सोमवार, 4 मार्च 2024

कृत्रिम बुद्धिमता (AI) का उपयोग करते समय सावधानी की जरुरत

कृत्रिम बुद्धिमता (AI) का उपयोग करते समय सावधानी की जरुरत 

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अपने एआई (AI) प्लेटफॉर्म जेमिनी (Gemini) द्वारा भारत के प्रधानमंत्री मोदी पर की गई निराधार टिप्पणियों पर कोई स्पष्टीकरण देने में असमर्थ, प्रौद्योगिकी दिग्गज गूगल (Google) ने भारत सरकार से 'माफी' (sorry) माँगी। फिर भी भारत सरकार गूगल द्वारा कही गई 'माफी' (sorry) से संतुष्ट नहीं है। 










सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखरन ने कहा, "एआई डेटा (AI data) बिना किसी परीक्षण और बिना किसी चेतावनी के प्रयोगशाला से सीधे सार्वजनिक इंटरनेट पर आ रहा है। और फिर, जब वे पकड़े जाते हैं, वे कहते हैं क्षमा करें, यह अविश्वसनीय है।"


एआई (AI) परिणाम प्रौद्योगिकी यंत्र अधिगम (machine learning) से बनते हैं। यंत्र की किसी गलती के लिए मनुष्य को कैसे उत्तरदायी ठहराया जा सकता है? यह प्रश्न उठाने से पहले यह समझना जरूरी कई कि कृत्रिम बुद्धिमता (AI) की खोज के पीछे मनुष्य ही है। इसलिए इस ओर विशेष कदम उठाने की जरुरत है। यह घटना प्रौद्योगिकी और नैतिक मुद्दों पर बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है। कृत्रिम बुद्धिमता (AI) प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, हमें इसकी नियंत्रण में सजग रहने की आवश्यकता है, ताकि हम समाज को सुरक्षित और न्यायसंगत बना सकें।


इस तरह के विवादों से बचने के लिए प्रौद्योगिकी पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में कुछ प्रासंगिक विचार निम्न हैं:


- जागरूकता और पारदर्शिता की आवश्यकता: कृत्रिम बुद्धिमता (AI) के उपयोग में, जागरूकता और पारदर्शिता की आवश्यकता होती है। उपयोगकर्ताओं को यह जानने का अधिकार होता है कि उनका डेटा कैसे उपयोग किया जाता है और किस प्रकार का निर्णय उनके लिए लिया जाता है।


- नैतिक मानकों की पालना: एआई प्रौद्योगिकी के उपयोग में, नैतिक मानकों की पालना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कृत्रिम बुद्धिमता (AI) प्रणालियों द्वारा उत्पन्न किए गए निर्णयों में कोई भी जातिगत, लिंगानुपातिक, धार्मिक या नैतिक भेदभाव नहीं हैं।


- संवैधानिक नियंत्रण: सरकारों को अपने क्षेत्र में एआई के उपयोग पर नियंत्रण रखने के लिए संवैधानिक नियंत्रण प्रणालियों को स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कृत्रिम बुद्धिमता (AI) प्रणालियों का उपयोग सामाजिक सुरक्षा और न्याय के लक्ष्यों के साथ संगत हो।


साक्षरता और शिक्षा: कृत्रिम बुद्धिमता (AI) प्रौद्योगिकी के संप्रेषण के साथ, हमें साक्षरता और शिक्षा के क्षेत्र में भी ध्यान देने की आवश्यकता है। लोगों को इसके प्रभावों, सीमाओं और नैतिकता के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण और जरूरी है।


आखिरकार, कृत्रिम बुद्धिमता (AI) प्रौद्योगिकी का उपयोग जिम्मेदारीपूर्वक और सावधानीपूर्वक करना सभी की जिम्मेदारी है। कृत्रिम बुद्धिमता (AI) प्रौद्योगिकी से जुड़े वैज्ञानिकों को निरंतर समीक्षा करते रहना चाहिए और नई संभावनाओं के साथ एक समाधानात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना चाहिए, ताकि सुसंगत परिणाम आ सकें। 


सादर,

केशव राम सिंघल 


सोमवार, 24 जुलाई 2023

समान नागरिक संहिता - 3

समान नागरिक संहिता - 3

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समान नागरिक संहिता (UCC) पर यह मेरा तीसरा लेख है। देश के प्रमुख समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका 7 जुलाई 2023 में समान नागरिक संहिता से संबधित समाचार प्रकाशित हुआ, जिसका सार निम्न है -

- केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता पर वरिष्ठ मंत्रियों का एक अनौपचारिक समूह बनाया गया है, जो समान नागरिक संहिता से सम्बंधित अलग-अलग मुद्दों पर विचार विमर्श करेंगे। इस समूह का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के हाथों में सौंपी गई है और स्मृति ईरानी, जी किशन रेड्डी और अर्जुन राम मेघवाल को शामिल किया गया है।

- किरेन रिजुजू आदिवाइयों से जुड़े मुद्दों पर, स्मृति ईरानी महिला अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर, जी किशन रेड्डी पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़े मुद्दों पर तथा अर्जुन राम मेघवाल कानूनी मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे।

- केंद्र सरकार के विधि आयोग ने धार्मिक संगठनों और जनता से समान नागरिक संहिता पर विचार 15 जुलाई 2023 तक माँगे हैं।

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अब हमारे सामने कुछ प्रमुख प्रश्न सामने हैं -

(1) भारत में अभी तक समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू हुई?

(2) समान नागरिक संहिता का विभिन्न धर्मों पर क्या प्रभाव पडेगा?

(3) समान नागरिक संहिता के प्रति विभिन्न धर्मों के मानने वालों की क्या राय है?

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भारत एक विशाल देश है, जिसमें विभिन्न धर्मों के मानने वाले रहते हैं। भारत का मूल ताना-बाना 22 आधिकारिक भाषाओं, 398 बोलियों और 645 जनजातियों का मिश्रण है, जिनकी सामाजिक प्रथाएँ एक-दूसरे से भिन्न हैं। यदि समान नागरिक संहिता लागू की जाती है तो उनके प्रथागत कानून समाप्त होने की आशंका है, इसलिए अनुसूचित जनजाति विशेषकर आदिवासी समाज के लोग, मुसलमान, ईसाई आदि इसका विरोध करते रहे हैं।

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समान नागरिक संहिता का विभिन्न धर्मों पर पड़ने वाले कुछ प्रभावों को नीचे दिया जा रहा है -

- समान नागरिक संहिता के आने के बाद हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा।

- हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम समाप्त हो जाएँगे और हिन्दुओं के विवाह और उत्तराधिकार के मामले एक समान कानून के अंतर्गत लाए जाएँगे।

- हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2(2) के तहत हिन्दू विवाह अधिनियम अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होते हैं। अनुसूचित जनजातियों, आदिवासी समाज अपनी परम्पराओं और प्रथाओं के आधार पर चलता है। समान नागरिक संहिता के आने के बाद क्या अनुसूचित जनजातियों और आदिवासी समाज के लोगों को अपनी परम्पराओं और प्रथाओं को छोड़ना होगा, यह प्रश्न सामने आ खड़ा हुआ है।

- अगर समान नागरिक संहिता अधिनियम आता है तो मुस्लिम परसनल (शरीयत) अप्लीकेशन एक्ट 1937 समाप्त हो जाएगा और मुसलमानों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु बदल जाएगी और बहु-विवाह प्रथा समाप्त हो जाएगी।

- सिखों में विवाह सम्बन्धी कानून आनंद विवाह अधिनियम 1909 के अंतर्गत आते हैं, जिसमे विवाह-विच्छेद का कोई प्रावधान नहीं है। अभी तक सिखों के विवाह विच्छेद मामले हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत निपटाए जाते थे। अगर समान नागरिक संहिता अधिनियम आता है तो आनंद विवाह अधिनियम समाप्त हो जाएगा।

- ईसाई तलाक अधिनियम 1869 के अंतर्गत आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन देने से पहले पति-पत्नी को कम से कम दो साल अलग रहना जरूरी है। ईसाई प्रथाओं के अंतर्गत ईसाई माताओं का उनके मृत बच्चों की सपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है। समान नागरिक संहिता अधिनियम आने के बाद ये कानून और प्रथाएं बदल जाएंगे। इसी प्रकार पारसी विवाह और तलाक अधिनियम के प्रावधान भी समाप्त हो जाएंगे, जिनके अंतर्गत यदि पारसी महिला किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह करती है तो वह पारसी रिवाजों के अधिकार खो बैठती है।

- समान नागरिक संहिता के आने के बाद हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा अर्थात्त सभी के लिए एक जैसा कानून विवाह के लिए, विवाह-विच्छेद के लिए, बच्चा गोद लेने के लिए और संपत्ति के बटवारे के लिए।

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इस प्रकार देखा जाए तो समान नागरिक संहिता का व्यापक प्रभाव भारतीय समाज पर पडेगा। अयोध्या में राम मंदिर बनाने और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को खत्म करने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार अब अपने तीसरे सबसे बड़े राजनीतिक लक्ष्य समान नागरिक संहिता पर तेजी से आगे बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पूरी राजनीति समान नागरिक संहिता के आसपास नजर आती दिख रही है। इसी बीच समाज के कई वर्गों से भी तीव्र और तीखा विरोध भी सुनने को मिल रहा है। नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम समाज के साथ आदिवासी समाज कर रहा है। आदिवासी समाज परंपराओं, प्रथाओं के आधार पर चलता है और समान नागरिक संहिता यानी कि एक समान कानून लागू होने से आदिवासियों की अस्मिता ही खत्म हो जाएगी। फिलहाल आदिवासी समाज / संगठनों के विरोध पर भाजपा नेताओं ने भी चुप्पी साध रखी हैं। आदिवासी संगठनों का कहना है कि अगर समान नागरिक संहिता आदिवासियों पर लागू हो जाती है, तो आदिवासी समाज की पहचान ही खत्म हो जाएगी। उनका कहना है कि समान नागरिक संहिता संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत आने वाले राज्यों (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना) के आदिवासी इलाकों में लागू ही नहीं हो सकता है। अतः ऐसा लगता है कि भाजपा सरकार सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए समान नागरिक संहिता को लेकर आगे बढ़ रही है।

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वैसे अभी तक सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता से सम्बंधित आने वाले अधिनियम का कोई ड्राफ्ट अभी तक जनता के बीच साझा नहीं हुआ है, अतः कुछ अधिक कहना कठिन लगता है। अधिकतर नागरिक प्रतिक्रियाएं बदल सकती हैं, यदि कुछ वर्गों (जैसे आदिवासी समाज) पर समान नागरिक संहिता से छूट दे दी जाए। इस प्रकार भाजपा अपने राजनीतिक उद्देश्य को यह कह कर पूरा कर लेगी कि वे समान नागरिक संहिता ले आए और राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करेंगे, पर वास्तव में वे समान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू नहीं कर पायेगे। यह कुछ ऐसा ही होगा कि कथनी कुछ, करनी कुछ।

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- केशव राम सिंघल

(10 जुलाई 2023 को लिखा और फेसबुक पर साझा भी किया।)


#समान_नागरिक_संहिता - 3

शनिवार, 1 जुलाई 2023

समान नागरिक संहिता - 2

समान नागरिक संहिता - 2

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मैंने 28 जून 2023 को 'समान नागरिक संहिता' विषय पर एक लेख साझा किया था, जिसमें इस बात को लेख के अंत में रखा था कि समान नागरिक संहिता को लेकर विचार करने से पहले हमें इसके विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करना चाहिए। आवश्यकता है कि इस बारे में संगठित और सामरिक चर्चा हो, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संस्थाएं, और नागरिक समुदायों के विचार और सुझाव समाहित हों। संविधानिक प्रक्रिया और सभी स्तरों पर समझौता और सहयोग द्वारा ही हम एक आपसी समझ और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि देश की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ऐसा ड्राफ्ट सामने लाएँ, जो समान सिद्धांत पर आधारित हो, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो।











समान नागरिक संहिता के मामले पर राजनीतिक पार्टियाँ और संस्थाएँ एक मत नहीं हैं और सभी का इस विषय पर अपना-अपना नजरिया है। मंगलवार 27 जून 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत की। उनके अनुसार -


- संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार का भी उल्लेख है।

- विपक्ष समान नागरीक संहिता के मुद्दे का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने और भड़काने के लिए कर रहा है।

- तीन तलाक का समर्थन करने वाले मुस्लिम बेटियों के साथ घोर अन्याय कर रहे हैं। मिस्र में 80-90 साल पहले तीन तलाक ख़त्म कर दिया गया था।

- भारतीय जनता पार्टी तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति का रास्ता नहीं अपनाएगी।


तीन तलाक के बारे में अपनी बात रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि तीन तलाक बेटियों के साथ अन्याय करता है, इसके कारण पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। अगर तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है तो यह पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कतर, जॉर्डन, सीरिया और बांग्लादेश में क्यों नहीं है?" उन्होंने कहा - "भारत के मुस्लिम भाइयों और बहनों को समझना चाहिए कि बहुत से राजनीतिक दल उन्हें भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।"


प्रधानमंत्री ने सामान नागरिक संहिता की चर्चा छेड़कर एक तरह से समान नागरिक संहिता को लेकर कानून बनाने का इरादा जाहिर कर दिया है। जैसे ही प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे को छेड़ा, तमाम विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया सामने आ गई। अधिकतर विपक्षी दलों ने समान नागरिक संहिता लाने का विरोध कर दिया।


विश्व हिन्दू परिषद ने बुधवार 28 जून 2023 को समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान का समर्थन किया। समान नागरिक संहिता के विषय को नारी सम्मान से जोड़ते हुए साथ ही सवाल किया कि जब आपराधिक कानून, संविदा कानून, कारोबार से जुड़े कानून एक समान हैं, तब परिवार से जुड़े कानून अलग क्यों हों? विश्व हिन्दू परिषद् के अनुसार 1400 साल पुरानी स्थिति अलग थी और उस समय की परिस्थिति में बहु विवाह की प्रथा आई, वह तब की जरूरत हो सकती है। ‘समय बदला है। नारी की गरिमा और समानता की बात सभी को स्वीकार करनी चाहिए। वह (नारी) पुरूष की सम्पत्ति नहीं है। ऐसे में किसी तरह के भेदभाव को समान नागरिक संहिता से दूर किया जा सकता है। तलाक के नियम सभी के लिए एक से हों और केवल मौखिक कह देने से तलाक नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि तलाक की स्थिति में गुजारा भत्ता की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा बच्चों की परवरिश की चिंता की जानी चाहिए। समान नागरिक संहिता से ऐसी अपेक्षा की जाती है कि सभी धर्मों से अच्छी बातें ले कर एक ऐसा कानून बनेगा जो सभी के लिए जो अच्छा होगा।


देश में मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक ऑनलाइन बैठक कर समान नागरिक संहिता का विरोध जारी रखने का निर्णय लेते हुए कहा है कि "वह इस सिलसिले में विधि आयोग के सामने अपनी दलीलों को और जोरदार ढंग से पेश करेगा। विधि आयोग के सामने आपत्ति दाखिल करने की अंतिम तिथि 14 जुलाई 2023 है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि भारत जैसे बहुसांस्‍कृतिक और विविध परम्‍पराओं वाले देश में सभी नागरिकों पर एक ही कानून नहीं थोपा जा सकता, यह न सिर्फ नागरिकों के धार्मिक अधिकारों का हनन है बल्कि यह लोकतंत्र की मूल भावना के भी विपरीत है।" उल्लेखनीय है कि विधि आयोग ने 14 जून को समान नागरिक संहिता पर नए सिरे से विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू की और राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित हितधारकों से राय मांगी है।


कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि ‘एजेंडा आधारित बहुसंख्यक सरकार’ समान नागरिक संहिता लोगों पर थोप नहीं सकती क्योंकि इससे लोगों के बीच ‘विभाजन’ बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बेरोजगारी, महंगाई और घृणा अपराध जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए समान नागरिक संहिता की वकालत कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समान नागरिक संहिता का इस्तेमाल समाज के ध्रुवीकरण के लिए कर रही है। चिदंबरम ने अपने ट्वीट में कहा - "माननीय प्रधान मंत्री ने समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए एक राष्ट्र को एक परिवार के बराबर बताया है। हालाँकि अमूर्त अर्थ में उनकी तुलना सच लग सकती है, वास्तविकता बहुत अलग है। एक परिवार खून के रिश्तों से एक सूत्र में बंधा होता है। एक राष्ट्र को संविधान द्वारा एक साथ लाया जाता है जो एक राजनीतिक-कानूनी दस्तावेज है। एक परिवार में भी विविधता होती है। भारत के संविधान ने भारत के लोगों के बीच विविधता और बहुलता को मान्यता दी है। समान नागरिक संहिता एक आकांक्षा है। इसे एजेंडा-संचालित बहुसंख्यकवादी सरकार द्वारा लोगों पर थोपा नहीं जा सकता। माननीय प्रधान मंत्री यह दिखा रहे हैं कि समान नागरिक संहिता एक सरल अभ्यास है। उन्हें पिछले विधि आयोग की रिपोर्ट पढ़नी चाहिए जिसमें बताया गया था कि इस समय यह संभव नहीं है। भाजपा की कथनी और करनी के कारण आज देश बंटा हुआ है। लोगों पर थोपा गई समान नागरिक संहिता केवल विभाजन को बढ़ाएगा। समान नागरिक संहिता के लिए माननीय प्रधान मंत्री की ठोस वकालत का उद्देश्य मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, घृणा अपराध, भेदभाव और राज्यों के अधिकारों को नकारने से ध्यान भटकाना है। लोगों को सतर्क रहना होगा। सुशासन में विफल होने के बाद, भाजपा मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने और अगला चुनाव जीतने का प्रयास करने के लिए समान नागरिक संहिता को सामने कर रही है।"


हालाँकि सरकार की ओर से समान नागरिक संहिता से सम्बंधित आने वाले कानून का कोई ड्राफ्ट सामने नहीं आया है, फिर भी जानकारी मिली है कि आम आदमी पार्टी समान नागरिक संहिता का समर्थन करेगी। इस पर कांग्रेस के पवन खेड़ा ने 29 जून को अपने ट्वीट में लिखा कि "जिस गति से आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता को समर्थन दिया है, उससे मैं वास्तव में आश्चर्यचकित हूँ। भले ही अन्य जिम्मेदार दल सरकार के मसौदा प्रस्ताव की प्रतीक्षा कर रहे हों, क्या आम आदमी पार्टी के पास समान नागरिक संहिता प्रस्ताव के मसौदे तक विशेष पहुँच है?"


समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि जिस तरह से समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठाया जा रहा है, उससे लगता है कि भारतीय में रहने वाले अल्पसंख्यकों को व्यवस्थित रूप से बदनाम करके एक हिंदू-बहुसंख्यकवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।


सर्वोच्च न्यायालय भी सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के बारे में कह चुका है। हो सकता है कि आगामी संसद सत्र में समान नागरिक संहिता का विधेयक संसद के पटल पर रखा जाए। यदि ऐसा होता है तो लगता है संसद में हंगामा होगा। सरकार को समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले दलों की बात सुननी चाहिए। इस मुद्दे पर विधेयक लाने से पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए तथा सरकार को खुले मन से विचार-विमर्श करना चाहिए। सवाल लोगों की आस्थाओं से जुड़ा है, अल्पसंख्यकों और विपक्षी दलों की बात को सुना जाना चाहिए। बेहतर होगा कि सभी दलों को विश्वास में लेकर इस सम्बन्ध में कानून बने। जैसा कि मैंने पहले कहा था, उसी को दोहराता हूँ। समान नागरिक संहिता को लेकर विचार करने से पहले हमें इसके विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करना चाहिए। आवश्यकता है कि इस बारे में संगठित और सामरिक चर्चा हो, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संस्थाएं, और नागरिक समुदायों के विचार और सुझाव समाहित हों। संविधानिक प्रक्रिया और सभी स्तरों पर समझौता और सहयोग द्वारा ही हम एक आपसी समझ और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि देश की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ऐसा ड्राफ्ट सामने लाएँ, जो समान सिद्धांत पर आधारित हो, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो। इसके लिए जल्दबाजी की जरुरत नहीं, सोच-समझकर कदम उठाने चाहिए।


- केशव राम सिंघल


#समान_नागरिक_संहिता - 2


बुधवार, 28 जून 2023

समान नागरिक संहिता - 1

समान नागरिक संहिता - 1

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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। यह मौलिक अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी आधार पर भेदभाव किए बिना अपनी पसंद के किसी भी धर्म को मानने की आजादी है। अनुच्छेद 25 में 'सभी व्यक्तियों' पद का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है कि धार्मिक स्वतंत्रता भारत के नागरिकों के साथ-साथ यह अधिकार विदेशियों को भी मिलता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक, "राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।" यानी संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का निर्देश दे रहा है, जो वर्तमान में उनके संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। इस प्रकार देखा जाए तो भारतीय संविधान समान नागरिक संहिता लाने के बारे में कहता है।












समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का मानना है कि सभी धर्मों के लिए समान कानून के साथ धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार और समानता के अधिकार के बीच संतुलन बनाना मुश्किल होगा। इसके चलते धर्म या जातीयता के आधार पर कई व्यक्तिगत कानून भी संकट में आ जाएँगे। विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लोग समान नागरिक संहिता का विरोध इस तर्क के आधार पर करते हैं कि शरिया कानून 1400 साल पुराना है। यह कानून कुरआन और पैगम्बर साहब की शिक्षाओं पर आधारित है। उनके मुताबिक़ शरिया उनकी आस्था से जुड़ा मुद्दा है।


हमें समान नागरिक संहिता पर प्रगतिशील रूख अपनाना होगा। समान नागरिक संहिता का किसी धर्म विशेष के रीति-रिवाज और आचार-व्यवहार से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि समान नागरिक संहिता तो विभिन्न धर्म-समुदायों और किसी एक धर्म-समुदाय के लोगों के बीच बराबरी की संविधान सम्मत धारणा का सर्वोच्च प्रतिष्ठा का मामला है और यह धारणा लैंगिग न्याय को सुनिश्चित करती है।


समान नागरिक संहिता पर सियासी बहस चालू हो गई है। समान नागरिक संहिता का विरोध करना एक प्रकार से आत्मघाती कदम हो सकता है और यह राजनीतिक तौर पर अनेक दलों को नुकसान पहुँचा सकता है, जो इसका विरोध करेंगे। साल 2024 आ रहा है और राजनीतिक दलों को इसका विरोध करने से पहले कई बार सोचना चाहिए। समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे राजनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और यह एक व्यापक विषय है जिस पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं।


समान नागरिक संहिता की धारणा एक सीधे-सरल मगर ताकतवर तर्क पर टिकी है। यह तर्क कानून के समक्ष समानता का तर्क है। देश के सभी नागरिकों के सभी नागरिकों के लिए दंड-संहिता एक है तो सभी नागरिकों के लिए नागरिक संहिता भी एक समान होनी चाहिए। बेशक विभिन्न समुदाय के लोग अपने विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन करें, लेकिन ऐसा तो नहीं होने दिया जा सकता न कि इन रीति-रिवाजों के पालन से व्यक्ति के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हो जाए। बेशक किसी समुदाय को धर्म और संस्कृति विषयक अधिकार हैं , लेकिन इन अधिकारों के तहत यह छूट कैसे दी जा सकती है कि वे उस समुदाय की औरतों को हासिल बराबरी के अधिकार का उल्लंघन करें। समान नागरिक संहिता के पक्ष में यह बताया जाता है कि यह सभी नागरिकों को न्याय, समानता और अधिकारों का एक समान मानदंड प्रदान करेगी। यह संविधानिक गारंटी के रूप में अद्यतित किया जाएगा और लोगों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक अधिकारों का अधिक आनंद उठाने में मदद करेगा। इसके माध्यम से, भारत में विभिन्न ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लोगों को समानता और न्याय की पहुँच मिलेगी।


भारत में नारीवादी आंदोलन ने कई बार समान नागरिक संहिता की माँग की है। जैसे तीन तलाक के मामले में विपक्ष फँस गया, उसी प्रकार समान नागरिक संहिता के मामले में विपक्ष फँसता नजर आ रहा है।


नागरिक संहिता के समान होने का अर्थ यह कतई नहीं है कि उसे सबके लिए एक-रूप और एक-रंग का होना चाहिए। समान नागरिक संहिता समान सिद्धांत पर आधारित हो सकती है, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो सकता है। समान नागरिक संहिता में समान का अर्थ होगा - सभी धार्मिक और सामाजिक समुदायों के लिए एक रूप संवैधानिक सिद्धांत को अमल में लाना। किसी भी समुदाय से सम्बंधित पारिवारिक कानून को इस बात की इजाजत नहीं होगी कि वह समानता के अधिकार, भेदभाव के विरुद्ध अधिकार तथा लैंगिक न्याय की धारणा का उल्लंघन करे। जो कोई रीति-रिवाज या पारिवारिक कानून इन सिद्धांतों के उल्लंघन में है, उन्हें ख़त्म किया जाना चाहिए। यही तो प्रगतिशील कदम होगा।


उदाहरण के लिए मुस्लिम समुदाय में शादी निकाहनामे पर आधारित एक अनुबंध होती है। समान नागरिक संहिता के लिए जरूरी नहीं कि मुस्लिम समुदाय अपनी इस प्रथा को त्याग दे। अलग-अलग समुदाय अपने अलग-अलग रीति-रिवाज का पालन करें। उदाहरण के लिए सिख समुदाय गुरुद्वारा में लावां और अर्दास पढ़कर विवाह आयोजित करें और हिन्दू हवन के साथ सात फेरे लेकर। केवल प्रमुख बात यह है कि ऐसे रीति-रिवाज अलग होते हुए भी संविधान सम्मत हो और किसी संविधान सम्मत अधिकार का उल्लंघन न करते हों। इस प्रकार समान नागरिक संहिता में भी अनेकता में एकता के दर्शन हो सकते हैं।


बहु-पत्नी विवाह प्राचीन ज़माने की परम्परा रही है। रामायण-महाभारत काल में और स्वतंत्रता से पूर्व हिन्दुओं में भी बहु-पत्नी विवाह होते थे, पर आज के समय में इसकी परम्परा नहीं है। आज के समय में समान नागरिक संहिता के तहत यदि सभी धर्मों के मानने वालों के लिए बहु-पत्नी विवाह समाप्त कर दिया जाए तो इससे कोई संविधान सम्मत अधिकार का उल्लंघन होगा, ऐसा नहीं लगता। सभी को समय के साथ बदलना चाहिए।


विपक्ष में समान नागरिक संहिता का विरोध करने के कई मुख्य तर्क हो सकते हैं। कुछ लोग समान नागरिक संहिता के प्रभाव को बाधाओं के रूप में देख सकते हैं, जैसे कि यह चुनावी रणनीतिक खेल बन सकता है और निरंतर राजनीतिक विवादों का कारण बन सकता है। समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले यह भी तर्क दे सकते हैं कि समान नागरिक संहिता विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक संप्रदायों के बीच बाधाओं का कारण बन सकती है। समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि समान नागरिक संहिता व्यक्तियों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।


इस बात का ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि समान नागरिक संहिता को लेकर विचार करने से पहले हमें इसके विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करना चाहिए। आवश्यकता है कि इस बारे में संगठित और सामरिक चर्चा हो, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संस्थाएं, और नागरिक समुदायों के विचार और सुझाव समाहित हों। संविधानिक प्रक्रिया और सभी स्तरों पर समझौता और सहयोग द्वारा ही हम एक आपसी समझ और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि देश की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ऐसा ड्राफ्ट सामने लाएँ, जो समान सिद्धांत पर आधारित हो, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो। क्या सरकार ऐसा ड्राफ्ट सामने ला पाएगी?


आप इस बारे में क्या सोचते हैं? अपना विचार रखें।


- केशव राम सिंघल

 #समान_नागरिक_संहिता - 1


मंगलवार, 9 मई 2023

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप

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महाराणा प्रताप

9 मई 1540 को

कुंभलगढ़ दुर्ग (मेवाड़) में जन्में

सिसोदिया राजवंश के राजा थे।

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महाराणा प्रताप

वीरता शौर्य दृढ़ता और पराक्रम के लिए अद्भुत मिसाल थे।

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महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक

28 फरवरी 1572 को हुआ था।

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महाराणा प्रताप ने

बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।

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हल्दीघाटी युद्ध 18 जून 1576 को हुआ था,

जिसमें महाराणा का घोड़ा चेतक मारा गया था।

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मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप और मुस्लिम सरदार हकीम खाँ सूरी ने किया था।

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इस युद्ध के बाद

महाराणा प्रताप जंगलों पहाड़ों में रहते

और बाद में जब 1582 में दिवेर के युद्ध में महाराणा ने खोया राज्य पुनः पाया,

महाराणा ने चावण्ड (मेवाड़) को अपने राज्य की राजधानी बनाया,

जहाँ 19 जनवरी 1597 को महाराणा ने अंतिम साँस ली।

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महाराणा ने कठिन समय बिताया, घास के बीज से बनी चपाती तक खाई, पर अपने स्वाभिमान को झुकने न दिया।

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ऐसे वीर शिरोमणि को सादर नमन।


- केशव राम सिंघल