देश को जगाकर वह खुद सो गयी!
देश की एक बहादुर बेटी चली गयी,
और हमें, तुम्हें और व्यवस्था को कठघरे में खडा कर गयी!
जीना चाहती थी आस रखते-रखते खुद सो गयी वह!
समय थम गया है,
देश के कोने-कोने में सैलाब जुट गया है,
पूरा देश शर्मसार है, यह गम का सैलाब है!
हम मौन व्रत करते हैं,
अत्याचार न सहेंगे, न होने देंगे,
हमें न्याय चाहिए, व्यवस्था में सुधार चाहिए!
हम नारी शिक्षा की बात करते हैं,
पर शिक्षा की जरुरत तो अब बेटों को आन पड़ी है!
जो दर्द उसने भोगा, वह और कोई न भोगे,
जो उस पर बीती, वह किसी और पर न बीते,
यह सुनिश्चित करना होगा!
हम मौन व्रत करते हैं,
अत्याचार न सहेंगे, न होने देंगे,
हमें न्याय चाहिए, व्यवस्था में सुधार चाहिए!
- केशव राम सिंघल