शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

मुमताज महल

मुमताज महल

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मुमताज महल

फारसी रईस की बेटी

जन्म 27 अप्रैल 1593 को आगरा में

जिज्ञासु, प्रतिभाशाली और संस्कारी महिला

अरबी और फ़ारसी भाषाओं की अच्छी जानकार

कविताओं की रचनाकार

मुमताज ने शाहजहाँ के साथ प्रेम विवाह किया था 30 अप्रैल 1612 को

बहुत से कवि मुमताज की सुंदरता, अनुग्रह और करुणा का वर्णन करते थे

उसने चौदह बच्चे (आठ बेटे और छह बेटियाँ) पैदा किए

जिनमें से सात की जन्म के समय या बहुत कम उम्र में मृत्यु हो गई

उसकी मृत्यु बुरहानपुर में प्रसवोत्तर रक्तस्राव से 17 जून 1631 को हुई।

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मुमताज महल

1628 में बनी साम्राज्ञी मात्र तीन वर्षों के लिए

वह 'मलिका-ए-जहाँ' और 'मलिका-उज़-ज़मानी' थी

शाहजहाँ ने उसे इन उपाधियों से नवाजा था

शाहजहाँ मुमताज महल को सबसे अधिक भत्ता प्रति वर्ष एक लाख रुपये दिया करते थे

मुमताज भी निजी और राज्य के मामलों में शाहजहाँ की करीबी विश्वासपात्र और विश्वसनीय सलाहकार थी।

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मुमताज महल

बेहद दर्दनाक थी उसकी मौत

प्रसव पीड़ा से तड़प-तड़प कर मरी थी वो

अपनी मौत से पहले उसने बादशाह शाहजहाँ से लिए दो वादे -

पहला शादी न करने का

और दूसरा एक ऐसा मकबरा बनवाने का जो अनोखा हो

और इसके कुछ ही देर बाद सुबह होने से पहले मुमताज ने दम तोड़ दिया था।

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मुमताज महल

जब जून 1631 में मरी तो उसके शरीर को अस्थायी रूप से दफनाया गया

ज़ैनाबाद बुरहानपुर में ताप्ती नदी के किनारे एक दीवार वाले खुशी के बगीचे में

और बाद में दिसंबर 1631 में उसके मृत शरीर को एक सुनहरी ताबूत में आगरा ले जाया गया

और वहाँ यमुना नदी के किनारे एक छोटी सी इमारत में दफ़न किया गया

बाद में इसी जगह को मकबरे के रूप में बनवाया गया

जिसे बनवाने में बाइस साल लगे

यही वह मकबरा है जिसे ताजमहल कहते हैं।

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मुमताज महल की याद में बना ताजमहल

पत्थरों में एक बादशाह के प्यार के गर्व का जुनून

यही वह जगह है -

जहाँ बादशाह औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को

मुमताज़ महल की कब्र के पास दफनाया था।

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मुमताज महल की याद में बना ताजमहल

आज यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।

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मुमताज महल की याद में बना ताजमहल

मुमताज महल और शाहजहाँ का अंतिम विश्राम स्थल है।

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ऐतिहासिक विश्व धरोहर की प्रणेता मुमताज महल को नमन।


- केशव राम सिंघल

27 अप्रैल 2023


मलिका-ए-जहाँ = दुनिया की रानी

मलिका-उज़-ज़मानी = युग की रानी






कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस (World Day for Safety and Health at Workplace)

कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस 

(World Day for Safety and Health at Workplace)

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सरकारी या निजी संस्थानों में नौकरी करने वाले लोगों का ज्यादातर वक्त उनके कार्यस्थल में गुजरता है, ऐसे में कार्यस्थल परिसर में कार्यरत कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करना एक बड़ी अपेक्षा है, जिसे हर कर्मचारी चाहता है। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हर साल 28 अप्रेल को कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस (World Day for Safety and Health at Workplace) मनाया जाता है। हर साल यह विश्व दिवस एक खास विषय (Theme) के साथ  कार्यस्थल में कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। 


अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं और बीमारियों को रोकने के लिए साल 2003 में पहली बार यह विश्व दिवस मनाना शुरू किया था। कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस 2023 एक मौलिक सिद्धांत (fundamental principle) और कार्यस्थल पर अधिकार के रूप में एक सुरक्षित और स्वस्थ कामकाजी माहौल के विषय पर मनाया जा रहा है। एक सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण एक मौलिक सिद्धांत और कार्यस्थल पर हर कार्मिक का अधिकार है।


जून 2022 में, अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन (ILC) ने ILO के मौलिक सिद्धांतों और काम पर अधिकारों के ढांचे में "एक सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण" को शामिल करने का निर्णय लिया। कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस 2023 के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने एक पोस्टर  भी जारी किया, जिसे इस आलेख के साथ भी प्रदर्शित किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने विशेष रूप से व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित 40 से अधिक मानकों (standards) के साथ-साथ 40 से अधिक अभ्यास संहिताओं (Codes of Practice) को अपनाया है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के लगभग आधे दस्तावेज प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों से सरोकार रखते हैं।











अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संस्था (ISO - International Organization for Standardization) ने इसी विषय-क्षेत्र के लिए आईएसओ 45001:2018 मानक विकसित किया है, जो संस्थाओं को व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली कार्यान्वित करने के लिए अपेक्षाओं के साथ उपयोग के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस मानक की अंतिम समीक्षा 2022 में की गई थी और तदुपरांत इसकी पुष्टि की गई, इसलिए आईएसओ 45001:2018 मानक का 2018 संस्करण ही वर्तमान मानक है, जिसे संस्थाएँ लागू कर सकती हैं।


भारत में भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards) ने 'कार्यस्थल पर सामाजिक उत्तरदायित्व - अपेक्षाओं' पर एक भारतीय मानक IS 16001:2012 विकसित किया है, जो कार्यस्थल पर अच्छे कार्य वातावरण से जुड़े विषयों को सम्बोधित करता है। मुझे इस लेख के पाठकों को यह बताते हुए हर्ष है कि इस मानक को विकसित करने वाली भारतीय मानक ब्यूरो की समिति में मेरी बेटी डॉ दिव्या सिंघल एक सदस्य रही है। जानकारी में आया है कि इस मानक को फिर से संशोधित किया जा रहा है। 


आइये, हम कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं और बीमारियों को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाएँ और उपयुक्त कदम उठाएँ। 


विश्व कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य दिवस पर बधाई और शुभकामनाएँ। 


- केशव राम सिंघल 




बुधवार, 26 अप्रैल 2023

महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर

महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर

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श्रीनिवास रामानुजन इयंगर (जन्म - 22 दिसम्बर 1887 – निधन - 26 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में माना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत में अभूतपूर्व योगदान दिया।


श्रीनिवास रामानुजन इयंगर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा रखते थे। सबसे विशिष्ट बात इनके सम्बन्ध में यह थी कि इन्होने अपने जीवन में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनके द्वारा संकलित अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है और उन पर शोध हो रहा है। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले हैं।


बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास सामान्य बालकों जैसा नहीं था। रामानुजन तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे। बचपन में जब इन्होने विद्यालय में प्रवेश लिया तो पारम्परिक शिक्षा में इनका मन भी नहीं लगा। दस वर्ष की आयु में इन्होने प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सबसे अधिक अङ्क प्राप्त किए और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल में प्रवेश लिया। रामानुजन अत्यंत जिज्ञासु थे और विभिन्न तरह के प्रश्न पूछा करते थे, जो उनके अध्यापकों को कभी-कभी बहुत अटपटे लगते थे। विद्यालय में इनकी प्रतिभा को इनके शिक्षकों और साथी विद्यार्थयों ने महसूस किया। रामानुजन ने स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही कालेज के स्तर के गणित को पढ़ लिया था। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक लाने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे कालेज की शिक्षा के लिए प्रवेश भी मिला। कॉलेज शिक्षा के दौरान रामानुजन गणित विषय पर ही अधिक केंद्रित रहते थे और अन्य विषयों पर ध्यान नहीं देते थे, फलस्वरूप गणित के अलावा अन्य विषयों में वे अनुतीर्ण हो गए और उनको मिलने वाली छात्रवृति भी मिलनी बंद हो गई। अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए इन्होने ट्यूशन और अंशकालीन कार्य करना प्रारम्भ किया। 1907 में रामानुजन ने फिर से बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी और अनुत्तीर्ण हो गए। इस प्रकार रामानुजन का जीवन कठिनाइयों से भर गया। 1908 में माता-पिता ने इनका विवाह कर दिया तो पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। बाहरवीं की परीक्षा में फेल होने के कारण इन्हे नौकरी भी नहीं मिल पाई और बीमार हो गए।


बीमारी से ठीक होने के बाद रामानुजन मद्रास आए और फिर से नौकरी की तलाश शुरू कर दी। जब भी किसी से मिलते तो उसे अपना रजिस्टर दिखाते थे, जिसमें इनके द्वारा गणित में किए गए कार्य होते थे। इसी दौरान किसी के कहने पर रामानुजन डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर स्वयं गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। श्री अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और जिलाधिकारी श्री रामचंद्र राव से कह कर इनके लिए 25 रूपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। इस वृत्ति पर रामानुजन ने मद्रास में एक साल रहते हुए अपना प्रथम शोधपत्र प्रकाशित किया। शोध पत्र का शीर्षक था "बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” और यह शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ। एक साल बाद इन्होने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी की। सौभाग्य से इस नौकरी में काम का बोझ कुछ ज्यादा नहीं था और यहाँ इन्हें अपने गणित के लिए पर्याप्त समय मिलता था। इस दौरान रामानुजन ने गणित के कई नए सूत्र लिखे।

कुछ पुराने शुभचिंतको ने रामानुजन द्वारा किए गए कार्यों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा। इसी समय रामानुजन ने अपने संख्या सिद्धांत के कुछ सूत्र प्रोफेसर एस अय्यर को दिखाए तो प्रोफ़ेसर अय्यर ने लन्दन के प्रोफेसर हार्डी का एक शोधपत्र रामानुजन को दिया। प्रोफेसर हार्डी के शोधकार्य को पढ़ने के बाद रामानुजन ने बताया कि उन्होने प्रोफेसर हार्डी के अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोज निकाला है। इसके बाद रामानुजन का प्रोफेसर हार्डी से पत्रव्यवहार प्रारम्भ हुआ और यहाँ से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ, जिसमें प्रोफेसर हार्डी की बहुत बड़ी भूमिका थी। प्रोफेसर हार्डी आजीवन रामानुजन की प्रतिभा और जीवन दर्शन के प्रशंसक रहे। रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनो ही के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई। एक तरह से देखा जाए तो दोनो ने एक दूसरे के लिए पूरक का काम किया।


प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन धन की कमी और व्यक्तिगत कारणों से शुरू में रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के कैंब्रिज के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। उसी समय रामानुजन को मद्रास विश्वविद्यालय में शोधवृत्ति मिल गई, जिससे उनका जीवन कुछ सरल हो गया और उनको शोधकार्य के लिए पूरा समय भी मिलने लगा था। इसी दौरान लंबे पत्रव्यवहार के बाद धीरे-धीरे प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए सहमत कर लिया। प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए आर्थिक सहायता भी मिल गई। रामानुजन ने इंग्लैण्ड जाने के पहले गणित के करीब 3000 से भी अधिक नये सूत्रों को अपनी नोटबुक में लिखा था। इंग्लैण्ड की यात्रा से रामानुजन के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर उच्चकोटि के शोधपत्र प्रकाशित किए। अपने एक विशेष शोध के कारण इन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली। लेकिन वहाँ की जलवायु और रहन-सहन की शैली उनके अधिक अनुकूल नहीं थी और उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। डॉक्टरों ने इसे क्षय रोग बताया। उस समय क्षय रोग का कोई उपयुक्त इलाज और दवा नहीं थी और रोगी को सेनेटोरियम मे रहना पड़ता था। रामानुजन को भी कुछ दिनों तक वहाँ रहना पड़ा। इंग्लैण्ड प्रवास के दौरान रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का फेलो नामित किया गया। डॉक्टरों की सलाह पर वे वापस भारत लौटे और यहाँ इन्हें मद्रास विश्वविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी मिल गई और इस प्रकार रामानुजन अध्यापन और शोध कार्य में पुनः रम गए। भारत लौटने पर भी स्वास्थ्य ने इनका साथ नहीं दिया, फिर भी वे अपने शोधपत्र लिखते रहे। गिरते स्वास्थ्य की वजह से रामानुजन का 33 वर्ष की आयु में 26 अप्रैल 1920 को निधन हो गया।


रामानुजन के शोध के फलस्वरूप हम ऐसी संख्याएं जान सके जिन्हें रामानुजन संख्या या हार्डी-रामानुजन संख्या कहा जाता है। रामानुजन संख्या या हार्डी-रामानुजन संख्या ऐसी धनात्मक संख्याए है जिनके दो संख्याओं के घनों के युग्मों के योग के बराबर लिखा जा सकता है। इस प्रकार का गुण रखने वाली बहुत ही कम अन्य संख्याएँ हैं। रामानुजन एक प्रकार से संख्याओं के जादूगर थे।


रामानुजन या हार्डी-रामानुजन संख्याए -


1729 = 9 के घन और 10 के घन का योग = 1 के घन और 12 के घन का योग


4104 = 2 के घन और 16 के घन का योग = 9 के घन और 15 के घन का योग


20683 = 10 के घन और 27 के घन का योग = 19 के घन और 24 के घन का योग


39312 = 2 के घन और 34 के घन का योग = 15 के घन और 33 के घन का योग


40033 = 9 के घन और 34 के घन का योग = 16 के घन और 33 के घन का योग


इस प्रकार 1729, 4104, 20683, 39312, 40033 रामानुजन या हार्डी-रामानुजन संख्याएं हैं।


गणित विषय से सम्बंधित रामानुजन के अन्य शोध भी हैं, जिन्हे इस आलेख में नहीं दिया जा रहा। रामानुजन ने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। यह अत्यंत दुःखद रहा कि विश्व के इस गणितज्ञ का 33 वर्ष की अल्पायु में ही निधन हो गया था।


विश्व के महानतम भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर की पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन।


- केशव राम सिंघल



विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (World Intellectual Property Day)

विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (World Intellectual Property Day)

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आज यानी 26 अप्रैल के दिन प्रतिवर्ष विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (World Intellectual Property Day) मनाया जाता है। विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (World Intellectual Property Day) की स्थापना विश्व बौद्धिक संपदा संस्था (WIPO - World Intellectual Property Organization) द्वारा 2000 में इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की गई थी।


विश्व बौद्धिक संपदा दिवस 2023 के उत्सव का विषय "महिला और बौद्धिक संपदा: त्वरित नवाचार और रचनात्मकता " है, जो नवाचार और रचनात्मकता को आगे बढ़ाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देती है।


बौद्धिक संपदा (Intellectual property) किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा सृजित कोई संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज, प्रतीक, नाम, चित्र, डिजाइन, कापीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेन्ट आदि को कहते हैं। जिस प्रकार कोई किसी भौतिक धन (Physical Property) का स्वामी होता है, उसी प्रकार कोई बौद्धिक संपदा का भी स्वामी हो सकता है।


विश्व बौद्धिक संपदा सूचकांक को निर्मित करते समय विश्व के कुल 55 देशों में बौद्धिक संपदा अधिकारों का सर्वेक्षण किया गया था। इन 55 देशों में से संयुक्त राज्य अमेरिका को प्रथम स्थान प्रदान किया गया, जबकि वेनेजुएला को अंतिम स्थान पर रखा गया। इस सूचकांक में वर्ष 2022 में भारत को 43 वाँ स्थान प्रदान किया गया।


सभी को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।


- केशव राम सिंघल 



मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

महाकवि सूरदास

महाकवि सूरदास

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महाकवि सूरदास हिन्दी के श्रेष्ठ भक्त कवि थे। वे भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त माने जाते रहे हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, महाकवि सूरदास जी की जयंती हर साल वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को आती है। इसलिए इस साल सूरदास जयंती, मंगलवार 25 अप्रैल 2023 को मनाई जा रही है।


महाकवि सूरदास का संपूर्ण काव्य ब्रजभाषा का श्रृंगार है। उन्होंने विभिन्न राग, रागनियों के माध्यम से एक भक्त ह्रदय के भावपूर्ण उद्गार व्यक्त किए हैं। कृष्ण, गाय, वृंदावन, गोकुल, मथुरा, यमुना, मधुवन, मुरली, गोप, गोपी आदि के साथ-साथ संपूर्ण ब्रज-जीवन, संस्कृति एवं सभ्यता के संदर्भ में उन्होंने अपनी वीणा के साथ बहुत कुछ गाया। महाकवि का काव्य शताब्दियाँ बीत जाने पर भी भारतीय काव्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके काव्य का अंतरंग एवं बहिरंग पक्ष अत्यंत सुदृढ़ और प्रौढ़ है।


सूरदास जी के दो दोहे उनके भावार्थ सहित नीचे दिए जा रहे हैं।


(1) चरन कमल बन्दौ हरि राई

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई।

बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई

सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई।।


इस दोहे के द्वारा सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि जिस पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा होती है वह सब कुछ कर जाता है। उसके लिए कोई भी काम उसके लिए असंभव नहीं रहता है। यदि भगवान श्रीकृष्ण की कृपा किसी लंगड़े पर हो गई तो वह बड़ा पहाड़ भी लांघ सकता है और यदि भगवान श्रीकृष्ण की कृपा एक अंधे पर हो जाती है तो वह इस सुंदर दुनिया को अपनी आँखों से देख सकता है। जब भगवान श्रीकृष्ण की कृपा होती है तो बहरे को सुनाई और गूंगे बोलने लग जाते हैं। कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं रहता। ऐसे करुण मय भगववान के पैरों में सूरदास बार बार नमन करता है।


(2) मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ

मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौं, तू जसुमति कब जायौ।।

कहा करौन इहि के मारें खेलन हौं नहि जात

पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात।।

गोरे नन्द जसोदा गोरीतू कत स्यामल गात

चुटकी दै-दै ग्वाला नचावत हँसत-सबै मुसकात।।

तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै

मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।।

सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत

सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।।


इस दोहे के द्वारा सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की घटना का वर्णन करते हैं। बालक श्रीकृष्ण यशोदा मैया के पास जाते है और अपने भाई बलराम की शिकायत करते हैं कि उन्हें दाऊ भैया यह कहकर खिझाते है कि तुमको यशोदा मैया कहीं बाहर से लेकर आई है। तुम्हे तो मोल भाव करके खरीदा गया है। इस कारण मैं खेलने नहीं जा रहा हूँ। बलराम भैया कहते हैं कि यशोदा मैया और नंदबाबा तो गोरे रंग के है और तुम सांवले रंग के हो। तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? इतना कहकर वो ग्वालों के साथ चले जाते हैं और उनके साथ खेलते और नाचते हैं। आप दाऊ भैया को तो कुछ नहीं कहती और मुझे मारती रहती हैं। श्री कृष्ण से ये सुनकर मैया यशोदा मन ही मन मुस्कुराती है। यह देख कृष्ण कहते हैं कि गाय माता की सौगंध खाओ कि मैं तेरा ही पुत्र हूँ।


महाकवि सूरदास जी की जयन्ती पर उन्हें कोटि-कोटि वंदन।


सादर,

केशव राम सिंघल