रविवार, 25 अप्रैल 2021

चिड़िया मुझसे बोली

चिड़िया मुझसे बोली 


आज एक चिड़िया उड़ती हुई मेरी खिड़की की ओर आई, पास की मुंडेर पर बैठ गई और फिर धीरे से चहचहाते मुझसे बोली - "कैसे हो? अभी तक तुम परिंदों को कैद करते रहे। अब तुम्हें कैसा लग रहा है जब एक अदृश्य जीव ने तुम्हें कैद कर रखा है? निरुत्तर सा मैं उसे देख रहा था, यकायक फिर चहचहाई - "दूर कहीं मुझे है जाना, आकाश की ऊँचाई मुझे है नापना।" और फुर्र से उड़ गई।

- केशव राम सिंघल



चित्र साभार - इंटरनेट

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट

 

कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट  

 

माँ-बाप दोनों परेशान कि उनके बेटे को तीन-चार दिन से बुखार है। वीडियो चैटिंग से लिए डाक्टरी परामर्श के अनुसार वे बेटे को दवा दे रहें हैं पर बुखार उतर ही नहीं रहा। पड़ौसियों से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि बेटे को अस्पताल ले जाओ, कहीं कोरोना ना हो। कोरोना का डर ऐसा कि कोई पास आना ही नहीं चाहता। पिता एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करते हैं और माता गृहणी, मध्यमवर्गीय परिवार है और नौकरी के कारण पिछले पांच साल से इस शहर में रह रहे हैं। बेटे का एक मित्र है, जो इसी शहर में पला-बढ़ा है, शायद उससे कुछ मदद मिल जाए, यही सोच कर उसे फोन किया। उसने फोन पर कहा, अंकल चिंता मत करो मैं आता हूँ। माता-पिता दोनों को आशा की किरण दिखाई दी, ऐसे समय जब पड़ौसियों से अपेक्षित सहायता नहीं मिल पा रही हो। कष्ट के समय कोई साथ हो तो बहुत ढांढस मिलता है। 

 

करीब आध घंटा भी नहीं बीता होगा, बेटे का मित्र घर पर अपने एक और मित्र के साथ आ गया। माँ-बाप दोनों आश्वस्त हुए। मित्र ने बीमार को देखा और फिर बोला - अंकल, इसे हॉस्पिटल लेकर चलते हैं। प्राइवेट एम्बुलेंस फोन कर मंगाई, मरीज को एम्बुलेंस में लिटाया और चल पड़े शहर के एक अच्छे अस्पताल की ओर। मित्र ने अपने मित्र को हॉस्पिटल का नाम बताकर वहीं स्कूटर से पहुँचने के लिए कहा। पंद्रह मिनट में वे सभी अस्पताल पहुँच गए थे। अस्पताल वालों ने देखने से मना कर दिया, कहा कोविड-19 की टेस्ट रिपोर्ट लाओ। बिना कोविड-19 नेगेटिव रिपोर्ट के हम किसी मरीज को भर्ती नहीं कर सकते। सभी ने हॉस्पिटल प्रबंधन से बात करने की कोशिश की, पर प्रबंधन कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट देखे बिना मरीज को भर्ती करने के लिए तैयार नहीं। पिता ने, मित्र ने और उसके साथी ने खूब मिन्नतें की, पर अस्पताल वाले मरीज देखने के लिए तैयार नहीं। फिर दूसरे अस्पताल की ओर भागे तो वहाँ भी वही जवाब मिला। एम्बुलेंस में लेटे मरीज को हल्की खाँसी रही थी, गला सूख रहा था, साँस लेने में दिक्कत महसूस हो रही थी। प्राइवेट एम्बुलेंस में ऑक्सीजन की सुविधा नहीं। इधर मरीज की साँस उखड़ रही थी और अस्पताल वाले कानून समझा रहे थे। कई हॉस्पिटल वालों को मोबाइल फोन से संपर्क किया, सभी से वही नकारात्मक उत्तर कि बिना कोविड-19 नेगेटिव रिपोर्ट के हम मरीज नहीं भर्ती कर सकते। सरकारी अस्पताल से भी संपर्क किया गया। जहाँ भी बात की गई सब जगह यही जवाब, बेड खाली नहीं हैं, रिपोर्ट लाओ तब देखेंगे। एक हॉस्पिटल वाले जैसे-तैसे तैयार हुए, फिर उसी हॉस्पिटल की ओर भागे। अस्पताल वालों ने मरीज को आईसीयू में भर्ती कर लिया। अस्पताल वालों ने तुरत-फुरत मरीज को देखा, कोविड टेस्ट के लिए सैंपल लिया और साथ ही ऑक्सीजन लेवल जाँचा तो पाया कि वह पचास-साठ के बीच था। हॉस्पिटल वालों ने ऑक्सीजन लगा दी। अस्पताल वालों ने बीस हजार रुपये पेशगी जमा करने को कहा जो जमा करा दिए।  सभी निश्चिन्त हुए कि अब सब कुछ ठीक होगा

 

रात को अस्पताल से फोन आया कि उनके पास सीमित मात्रा में ऑक्सीजन है, इसलिए ऑक्सीजन की व्यवस्था करने को कहा। सभी ने अपने स्तर पर कोशिश की। पर कोई स्रोत नहीं पता चल रहा था जहाँ से ऑक्सीजन उपलब्ध हो सके। अस्पताल वालों से कहा कि अपने सप्लायर को निवेदन करो तो जवाब मिला, उससे संपर्क कर लिया, उसके पास नहीं है, इन दिनों शॉर्टेज चल रही है। रात को और क्या हुआ, पता नहीं। सुबह मरीज की साँस फिर से उखड़ने लगी। हॉस्पिटल वालों ने फिर ऑक्सीजन की व्यवस्था करने को कहा। फिर सुबह दस बजे बोले - हमारी ऑक्सीजन ख़त्म हो गयी है, आप मरीज को कहीं और ले जाइये। कहीं और कहाँ ले जाते, सब जगह से नकारात्मक उत्तर मिल रहा था। सबने कोशिश की, कहीं एक बेड मिल जाए, एक वेंटिलेटर मिल जाए, कुछ हो हो एक ऑक्सीजन सिलेंडर ही मिल जाए। सभी ने अपने जानकारों के मार्फ़त चीफ मेडिकल अफसर और प्रशासन के लोगों से भी संपर्क किया। कहीं से कोई सकारात्मक पहल होती दिखाई नहीं दी। खूब कोशिश की पर सभी अपनी कोशिशों में असफल।

 

करीब बारह बजे अस्पताल वालों ने एक एम्बुलेंस से मरीज को शहर के सरकारी अस्पताल को रेफर कर दिया। उसी सरकारी अस्पताल को जहाँ कल संपर्क किया था और उन्होंने बेड खाली नहीं है का उत्तर दिया था। मरीज की साँसे उखड़ रही थीं। अस्पताल वालों ने जिस एम्बुलेंस में मरीज को सरकारी अस्पताल भेजा, उस एम्बुलेंस में भी ऑक्सीजन की सुविधा नहीं थी। रास्ते में मरीज का शरीर ठंडा पड़ने लगा, मूँह से झाग निकले और फिर कुछ देर में दिल की धड़कन बंद हो गयी।

 

बिना उपयुक्त इलाज के चला गया वह पच्चीस साल का युवा। किसे दोष दें, देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को या अपने भाग्य को? हाँ, एक बात और, उस युवा की कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट उसके मरने के बाद ही गयी, जो नेगेटिव थी।

 

कहानीकार लेखक - केशव राम सिंघल ©

प्रकाशन / साझा करने की अनुमति - कहानीकार लेखक के नाम के साथ इस कहानी के प्रकाशन / साझा करने की अनुमति है।

डिस्क्लेमर - यह कहानी कहानीकार लेखक की कल्पना के आधार पर लिखी गई है। किसी भी घटना से इस कहानी की कोई भी प्रासंगिकता होना एक संयोग है।

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