सोमवार, 20 अप्रैल 2020

लघुकथा - मोंटू की समस्या का हल


लघुकथा

मोंटू की समस्या का हल

दूसरे दिन सुबह सभी साढ़े पांच बजे उठ गए थे। अपने दैनिक क्रिया-कलापों से निवृत होने के बाद सुरेश और दोनों बच्चों ने हल्की कसरत की। थोड़ी देर बाद सुरेश जब मोंटू के कमरे में गया तो उसने पाया कि मोंटू उदास बैठा है। सुरेश ने मोंटू से पूछा - 'क्या बात है बेटा? उदास क्यों हो?' मोंटू ने कहा - 'पापा, ऐसे कैसे चलेगा? 21 दिन लॉक डाउन? मैं बोर हो गया हूँ? मुझे मेरे दोस्तों की याद आ रही है। हम रोज शाम को आधा-पौन घंटा क्रिकेट खेलते हैं। कल तो खेलने गए नहीं थे, आज भी नहीं जा पाएंगे, आज ही क्या अगले कई दिनों तक बाहर खेलने को नहीं मिलेगा।' सुरेश ने कहा, 'मोंटू ! तुम सही कहते हो। पर जानते हो यह कोरोना वायरस का संक्रमण कितना खतरनाक है। बहुत से विकसित देश भी इस वायरस से परेशान हैं। इससे बचाव का एकमात्र रास्ता है - सोशल डिस्टैन्सिंग। हो सकता है कि लॉकडाउन इक्कीस दिनों से आगे भी बढ़ जाए। यह सब हमारी सुरक्षा के लिए ही तो सरकार कर रही है। अच्छा यह बताओ कि कल का दिन तुम्हारा कैसा बीता? कल तुमने क्या-क्या किया? मोंटू बोला, 'पापा ! कल का दिन तो पता ही नहीं चला। आपने सुडोकु सिखाया था ना। मैंने पुराने अखबारों में सुडोकु की कई पहेलियाँ सॉल्व की, पर एक पहेली में अटक गया। उसके बाद मैंने छोड़ दिया। आज भी दुपहर में कुछ समय सुडोकु सॉल्व करूँगा।' 'अच्छा, पढ़ाई पर भी ध्यान है या नहीं?' सुरेश ने प्यार से मोंटू से पूछा। 'पापा ! आपको तो मालूम है कि मैथ्स में तो मेरा इंटरेस्ट है, इसलिए उसके अलजेब्रा के सवाल मैंने सॉल्व किए, पर हिस्ट्री पढ़ने में जोर आता है।' सुरेश मोंटू की इस बात पर थोड़ा विचार करने लगा, पर उसी समय मोंटू की मम्मी कमरे में आई और बोली, 'नाश्ता तैयार है, आकर कर लो।' सभी डाइनिंग रूम की ओर बढ़े, जहाँ शीनू पहले से ही बैठी हुई थी। सभी चारों एक रूम में, पर दूर-दूर इस तरह बैठे कि उन सब में सोशल डिस्टैन्सिंग स्पष्ट लगे। नाश्ता करते हुए सुरेश ने मोंटू की समस्या का जिक्र अपनी पत्नी से किया तो वह बोली कि कल मैंने घर वाले मोबाइल और मेरे मोबाइल पर वीडियो चैट का एप्प डाउनलोड किया है। इन दोनों में यूट्यूब भी है और गूगल भी है। गूगल से सर्च कर मोंटू अपने कोर्स के किसी भी पाठ का मैटर देख-पढ़ सकता है और यूट्यूब पर इससे सम्बंधित वीडियो देख सकता है। फिर उसने मोंटू से उस पाठ का नाम पूछा जिसमें उसे जोर आ रहा था। मोंटू ने पाठ का नाम बताया तो सुरेश की पत्नी ने घर वाले मोबाईल पर उस पाठ का एक वीडियो दिखाते हुए कहा, "मोंटू ! क्या यही चैप्टर है? सिविलाइजिंग दी नेटिव, एजुकेटिंग दी नेशन?" मोंटू बोला, "हाँ, मम्मा !" "ये लो, देखो, सीखो और मस्त रहो," वह बोली। फिर सुरेश की देखकर बोली, "मैंने सोचा है कि घर वाला मोबाईल अब मोंटू के पास रहेगा, शीनू को मैं अपना मोबाईल दे दिया करूंगी, ताकि ये दोनों मोबाईल का इन दिनों सदुपयोग कर सकें।" सुरेश मन ही मन बहुत खुश था कि उसकी पत्नी ने यह समस्या कितने अच्छे तरीके से सुलझा दी।

कहानीकार लेखक - केशव राम सिंघल ©

प्रकाशन / साझा करने की अनुमति - कहानीकार लेखक के नाम के साथ इस कहानी के प्रकाशन / साझा करने की अनुमति है।

डिस्क्लेमर - यह कहानी कहानीकार लेखक की कल्पना के आधार पर लिखी गई है। किसी भी घटना से इस कहानी की कोई भी प्रासंगिकता होना एक संयोग है।

#KRS #कोरोना-जागरूकता #ParentingTipsStory

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

फेसबुक पर 'तालाबंदी के दौरान की कविता - कवि और पाठक समूह'


फेसबुक पर 'तालाबंदी के दौरान की कविता - कवि और पाठक समूह'

इस ग्रुप की तीन अप्रेल 2020 को सृजित किया गया। अपने संयोजकीय वक्तव्य में मैंने ग्रुप सृजन उद्देश्य सहित निम्न सम्प्रेषित किया:

"इस फेसबुक ग्रुप में आपका स्वागत। तालाबंदी (अर्थात 'लॉक डाउन') के दौरान अनेक कविताओं का सृजन हो रहा है। कविता एक ऐसी विधा है, जो हमें आनंदित व स्पंदित करने, नए स्वप्न व नए क्षितिज की ओर प्रेरित करने के साथ-साथ बहुत कुछ सम्प्रेषित कर जाती है। यह विभिन्न मानवीय अनुभूतियों, संवेदनाओं, सहमति, समर्थन से सृजित होती है। कहीं मैंने पढ़ा - कविता भी एक सुन्दर चिड़िया ही है। ... व्यक्ति के मुख में कविता कल्लोल करती है। ... वह एकांत में सृजित होती है। तालाबंदी (अर्थात 'लॉक डाउन') के दौरान लिखी कुछ चुनिंदा कविताओं को इस ग्रुप में साझा किया जाएगा, इसी उद्देश्य से इस ग्रुप को बनाया गया है। आपसे निवेदन - कृपया अपने मित्रों को इस ग्रुप में शामिल होने के लिए आमंत्रित करें। अपना ख्याल रखें, तालाबंदी (लॉक डाउन) के दौरान घरों में रहें, खुद सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रखें। शुभकामनाओं सहित, केशव राम सिंघल"

तालाबंदी (लॉकडाउन) के दौरान लिखी गयी कविताओं को हम ढूँढते है, पढ़ते हैं और पसंद आने पर स्रोत का हवाला देते हुए उसे ग्रुप की फेसबुक वॉल में शामिल कर लेते हैं। कुछ रचनाओं में सम्पादन (अक्सर वर्तनी सुधार) की जरुरत होती है तो वह हम करते हैं। अभी तक हम निम्न रचनाकारों (कवियों) की रचनाएँ शामिल कर पाए हैं -
- अनिल गुप्ता
- मदन वैष्णव
- डा. अनंत भटनागर
- भानु स्वरूप गोस्वामी (भानु भारवि)
- रास बिहारी गौड़
- पूनम चंद सिंहल
- दीक्षा दिव्या पद्दमनाभन
- संजय कुंदन
- देवेंद्र सक्सेना
- कपिल सिब्बल
- राकेश आनन्दकर
- राजश्री गोस्वामी
- रेखा भाटिया
- गोपाल माथुर
- रमेश अग्रवाल
- देवेश अलख
- इकराम राजस्थानी
- मलका नसीम
- वन्दना कुंअर
- एसीपी कमल सिंह तंवर
- सुधा उपाध्याय
- ज्योति किरण राठौर
- डा. मंजु सिंह मरालिका
- अनिता निधि
- कैलाश शर्मा गोविन्द
- वेद माथुर
- लालित्य ललित
- केशव राम सिंघल
(रचनाकारों की इस सूची को हम अद्यतन करते रहेंगे।)

हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में बाइस मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू लगाने के बाद चौबीस मार्च की रात बारह बजे से इक्कीस दिनों का लॉकडाउन (तालाबंदी) लगा दिया गया और अब इसे उन्नीस दिनों के लिए और बढ़ा दिया गया है। तालाबंदी के दौरान सृजित काव्य को आप पढ़ेंगे और रचनाकार के मंतव्य को समझेंगे, ऐसी आशा है। आप इस प्रयास की सराहना करेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है।

आपके सुझाव, टिप्पणी और आलोचना का स्वागत है।

अभिवादन,

केशव राम सिंघल
फेसबुक पर 'तालाबंदी के दौरान की कविता - कवि और पाठक समूह' पर कविता पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। धन्यवाद।


कहानी - कोरोना का डर और दरकता रिश्ता


कहानी

कोरोना का डर और दरकता रिश्ता


वह अपने घर-गाँव से 1600 किलोमीटर दूर मुम्बई में काम करता है। मेहनत-मजदूरी कर कुछ पैसे कमाता है। फिलहाल वह एक होटल में काम करता है। अपना रोज का खर्च किफायत से चलाता है और कुछ रूपये अपने भाई के पास बेनागा प्रतिमाह भेजता है, क्योंकि घर में अकेली बूढ़ी माँ भाई-भाभी के पास रहती है। इसी माह उसने दस मार्च को पांच हजार रुपये अपने भाई को बैंक के जरिये भेजे थे, जब होटल के मालिक ने उसे पंद्रह हजार रुपयों का मासिक वेतन दिया था। वह एक चाल में रहता है, जहाँ उसके साथ चार साथी और रहते हैं। चाल का किराया दस हजार रुपये हैं, जो सभी साथी मिल-बांटकर देते हैं। चूँकि इन दिनों वह होटल में काम कर रहा है, अतः उसके खाने का बहुत सा खर्च बच जाता है क्योंकि होटल पर मासिक वेतन के अलावा उसे खाने की मुफ्त सुविधा भी मिली हुई है। वह बहुत खुश रहता है, क्योंकि घर पैसे भेजने के बावजूद वह हर महीने लगभग पांच हजार से ज्यादा रुपये बचा लेता है, जिसे वह अपने एक बैंक खाते में जमा कर देता है। उसके पास अच्छा मोबाईल है। उसके पास एटीएम कार्ड भी है, जब भी जरुरत हो वह पैसे निकाल लेता है। उसके बैंक की ब्रांच होटल के पास ही है, अतः उसे कोई दिक्कत नहीं, वह प्रसन्न रहता है। कुछ दिनों से वह कोरोना वायरस के बारे में सुन रहा है, पर इस बारे में ज्यादा नहीं जानता। वह तो बस अपने काम में मस्त, करीब दस घंटे रोज काम करता है। जब भी सोने या आराम करने अपने कमरे में आता है, आते ही गहरी नींद में सो जाता है।

बाईस मार्च को जनता कर्फ्यू लगा तो होटल मालिक ने एक दिन पहले ही कह दिया था कि बाईस को होटल की छुट्टी रहेगी। वह खुश था, चलो इस रविवार को अपने कमरे पर आराम करेंगे। बाईस तारीख को सभी पाँचों साथी एक साथ कमरे में कोरोना वायरस के बारे में बात कर रहे थे। उसने भी कोरोना के बारे में बहुत कुछ अपने मोबाईल में पढ़ा था। बाईस मार्च को ही उसने व्हाट्सएप्प मेसेज अपनी भाभी को भेजा और घर के हालचाल पूछे। भाभी ने बताया कि घर में सभी ठीक हैं, माँ भी ठीक है, थोड़ी-बहुत बीमार रहती है, इसलिए दवाई का खर्चा भी उठाना पड़ता है। कुछ पैसे ज्यादा भेजा करो। उसने भाभी से हाँमी भरते हुए लिखा कि अगली बार अधिक रुपयों का इंतजाम कर भेजेगा।

24 मार्च को होटल पर पूरे दिन उसने काम किया और शाम छह बजे अपना काम समाप्त करके ही वह अपने कमरे के लिए होटल से करीब सात बजे निकला। शाम का खाना उसने होटल में खा लिया था और पैदल ही होटल से कमरे की तरफ बढ़ने लगा। करीब आठ बजे के आसपास वह अपने कमरे में घर पहुँचा ही था कि उसके साथी का फोन आया कि प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम सन्देश दे रहे हैं, उसे सुन। उसने अपने मोबाइल को खोला और प्रधानमंत्री का सन्देश बहुत ही ध्यान से सुनने लगा। उसने सुना कि पूरे देश में इक्कीस दिनों का लॉक डाउन आज रात बारह बजे से लागू रहेगा। सभी सोशल डिस्टैन्सिंग रखें .... आदि आदि बहुत सी बातें उसने सुनी। कुछ समझ में आईं, कुछ नहीं आईं। इतना तो जान गया कि कल से काम बंद। उसने होटल मालिक को फोन किया। होटल मालिक बोला - कल से होटल बंद रहेगा। उसने सोचा कि अब इक्कीस दिनों के लिए काम बंद है तो घर-गाँव ही चला जाए। वैसे भी माँ को देखे साल से अधिक हो गया है। दीवाली पर जा नहीं पाया था। पिछली से पिछली दीवाली पर गया था।

थोड़ी देर बाद उसके साथी कमरे पर आ गए। वे सभी घबराए हुए लग रहे थे। सभी उसके घर-गाँव के ही थे। उसने घर जाने के बारे में उनसे बात की तो उसके साथी बोले कि जाएंगे कैसे। ट्रेनें तो बाईस तारीख से ही बंद हैं। बसें भी नहीं चल रही हैं। सब घर जाना चाहते थे पर कैसे जाएंगे, यही प्रश्न सभी के मन में था। सभी साथी खाना खाकर आए थे। आपस में थोड़ी देर बात करते हुए सो गए। सुबह उठे तो सबको एक सन्नाटा सा लगा। वे सभी सुबह की चाय पास की एक दुकान पर पीते थे। जब वहां गए तो वह बंद मिली। अरे यहाँ तो चाय के भी लाले पड़ गए हैं। सभी साथी परेशान, वापिस अपने कमरे में आ गए। वहां बैठे-बैठे मोबाइल में कुछ देखते और पढ़ते। उन्हें पता चला कि कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ रहा है अतः वायरस से बचने के लिए लोगों के बीच सोशल डिस्टन्सिंग का होना जरूरी है। उन्होंने मोबाईल पर कल रात वाला प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम सम्बोधन फिर से सुना। प्रधानमंत्री कह रहे थे कि पूरे देश में आज रात बारह बजे से इक्कीस दिनों का लॉकडाउन रहेगा। इस कोरोना महामारी ने समर्थ देशों को भी बेबस कर दिया है। एक मात्र विकल्प है इस महामारी से बचने का, हर नागरिक के लिए सोशल डिस्टन्सिंग जरूरी है, संक्रमण की साइकिल को तोड़ना होगा। हमारे सामने यही एक मार्ग है कि हमें घर से बाहर नहीं निकलना है। चाहे जो हो जाए, घर के बाहर नहीं निकलना है। हमें इस महामारी के संक्रमण को रोकना है। प्रधानमंत्री ने कोरोना का अर्थ समझाते हुए कहा कि कोरोना मतलब 'कोई रोडपर नानिकले'। अब सभी सोच में पड़ गए कि क्या करें, यहाँ कैसे रहेंगे। सभी होटल पर खाना खाते हैं। यहाँ कमरे पर तो कोई व्यवस्था उन्होंने खाना बनाने कभी की ही नहीं। वैसे भी एक ही कमरा, जिसमें वे पांच जने रहते हैं। चाल के दूसरे कमरों में और लोग भी रहते हैं, पर सभी के दरवाजे बंद।

कमरे में खाने की कोई व्यवस्था नहीं पर कुछ बिस्कुट रखे थे। सभी ने वही खाए और पानी पी लिया। दस बज गए थे, अब दोपहर के खाने की चिंता थी। उन पाँचों में से दो बाहर निकले और थोड़ी देर बाद वापिस आये। वे पास की किसी दुकान से डबल रोटी के पांच पैकेट, एक किलो नमकीन, बिस्कुट के कुछ पैकेट खरीद लाए थे। सभी सामान के लिए दुकानदार ने तय मूल्य से कुछ ज्यादा ही पैसे लिए थे, पर वे करते भी क्या। दुपहर के खाने में ब्रेड और नमकीन खाकर पानी पीया और फिर सोच में पड़ गए। एक ने कहा कि घर-गाँव चलते हैं। दूसरे ने कहा - कैसे? उसने कहा - पैदल। चौथा बोला - पागल है क्या? जानता नहीं घर-गाँव कितना दूर है, यहाँ से एक हजार छह सौ किलोमीटर है। पांचवे ने कहा - जब ट्रेन-बस बंद हैं तो रास्ता यही बचा है कि पैदल चला जाए। एक बोला - हम जब दुकान पर ब्रेड-नमकीन खरीद रहे थे, वहाँ कुछ लोग पैदल ही निकलने की बात कर रहे थे। हम भी अपना सामान बांधते हैं, और यहां से निकलते हैं घर के लिए, दस-पंद्रह दिनों में पहुँच ही जाएंगे। रास्ते में कोई साधन मिलेगा तो ले लेंगे, नहीं तो अपनी दो टांगों की सवारी ही करेंगे। वह बोला - मुझे तो यही उचित लगता है। कहीं ना कहीं कुछ तो मिलेगा। उसने साथियों को बताया कि उसकी मोबाइल पर बात हुई है, अपने गाँव के वे दोनों भी साथ चलेंगे जो पास ही रहते हैं। वे कुछ देर में आ जाएंगे। सभी ने अपना जरूरी-जरूरी सामान बांधा और कमरे के मालिक को बताकर निकल गए। अब वे सात जने एक ही गाँव के मुम्बई से अपने गाँव की पैदल यात्रा पर निकल पड़े।

थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि देखा बहुत से लोग पैदल निकल रहे हैं। उन्ही से अपने घर-गाँव की सड़क का रास्ता पूछते-पूछते चल दिए। पहले दो घंटे में करीब पच्चीस किलोमीटर चले होंगे कि थक गए तो एक पेड़ के नीचे बैठ गए। थोड़ा बहुत जो भी पास था, वही खाकर पानी पीया और फिर चल दिए। देखा वे ही नहीं बहुत से लोग, बच्चे,औरतें सभी थोड़ा बहुत सामान लादे आगे बढ़े जा रहे हैं। जब ये लोग जा रहे हैं तो भगवान हमारी भी नैया पार लगाएगा। एक जगह पुलिस वालों ने रोका और हिदायत दी कि आगे-पीछे चलो, साथ-साथ नहीं। सभी मास्क पहनो, और मास्क नहीं है तो मुँह को कपड़े से अच्छी तरह ढक कर, बाँध कर चलो। सोशल डिस्टैन्सिंग का ख्याल रखो। यह अच्छी बात रही कि पुलिसवाले पूछने पर आगे का रास्ता बता देते थे कि कौन सी सड़क कौन से शहर की ओर है।

अब करीब तीन घंटे और चलने के बाद शाम होने लगी थी। वे सभी चिंतित थे कि शाम का खाना कहाँ खाएंगे और कहाँ सोएंगे। वे तो चलते ही रहे, अन्धेरा हो गया पर वे चलते ही रहे। वे ही क्या और भी बहुत से लोग चल रहे थे। रात के आठ बजे होंगे, उन्हें आगे दूर रोशनी दिखाई दी। उनमें से एक ने कहा - शायद कोई गाँव है, वहाँ कुछ खाने को मिल जाए। करीब आधा घंटे बाद वहाँ पहुंचे तो पता चला कि कुछ लोगों ने राहगीरों के लिए खाने का इंतजाम किया है। उन्होंने भगवान को धन्यवाद दिया और साथ ही उस गाँववालों के प्रति दुआएं निकल रहीं थीं। पूछने पर उन्हें पता चला कि वे करीब पचपन किलोमीटर चल कर आ गए हैं। खाना खाकर और थोड़ी देर आराम करने के बाद उन्होंने देखा कि लोग रात के अँधेरे में भी आगे बढ़ रहे हैं तो उन्होंने भी तय किया कि वे भी चलेंगे और चलते ही रहेंगे। रात के साढ़े दस बज गए थे और अब उन्होंने अपनी आगे की यात्रा शुरू की।

करीब दो घंटे ही चल पाए होंगे, एक साथी ने कहा - अब नहीं चला जाता। सड़क किनारे ऐसी जगह रुके, जहाँ और भी लोग मौजूद थे। उन लोगों से दूरी बनाते हुए उन्होंने अपने सोने की जगह तलाश की, अपनी-अपनी चद्दर बिछा और सामान का तकिया बना सभी लेट गए। थकान इतनी अधिक थी कि कब नींद आई पता ही नहीं चला। एक जने की नींद सुबह छह बजे खुल गयी। दूसरा करीब साढ़े छह उठ गया और थोड़ी देर बाद सभी उठ गए। सभी ने पास जंगल में शौच किया और कुल्ला आदि कर फिर आगे बढ़ने लगे। आधा घंटे चलने के बाद उन्हें एक जगह चाय नसीब हुई। सड़क के किनारे एक चाय वाले ने दुकान खोल रखी थी। इसी तरह कभी सड़क के किनारे और कभी रेल पटरियों के सहारे चलते-रुकते आखिर चौदह दिन बाद वे अपने गाँव पहुंच ही गए। रास्ते में अनेक शहर पड़े, कस्बे पड़े, गाँव पड़े, कहीं खाना मिला, कहीं नहीं मिला। रेल पटरियों के सहारे चलते चलते जैसे ही वे अपने गाँव के रेलवे स्टेशन के पास पहुंचे, उसने अपने घर फोन किया। फोन भाभी ने उठाया। भाभी से उसने कहा कि थोड़ी देर में वह घर आ जाएगा। भाभी ने पूछा कि वह कैसे आया तो उसने बताया कि वे सात लोग पैदल-पैदल मुम्बई से यहाँ आ गए हैं और अब थोड़ी देर में वह घर पहुँच जाएगा। उसने यह भी बताया कि घर आने से पहले सभी साथी राजकीय चिकित्सालय जाएंगे और वहाँ अपनी जांच करवा लेने के बाद ही घर आएँगे क्योंकि रास्ते में पुलिस ने निर्देश दिए हैं कि घर जाने से पहले अपना स्वास्थ्य परीक्षण जरूर करवाना। भाभी कुछ बोली नहीं। उसे अजीब सा लगा, फिर कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद उसने मोबाइल काट दिया।

भाभी ने उसके आने की बात अपने पति और सास को बताई। वे सब आश्चर्यचकित थे। थोड़ी देर में यह बात मोहल्ले भर में सभी लोगों को पता चल गयी कि मुम्बई से एक साथ सात लोग पैदल यात्रा कर यहाँ आए हैं। बस इस बात का पता चलते ही मौहल्ले भर में हड़कंप मच गया। इधर वे सभी सातों सीधे गाँव के सरकारी चिकित्सालय पहुंचे, जहाँ से उन्हें पता चला कि कोरोना जांच यहाँ नहीं, जिला अस्पताल में चल रही है। जिला अस्पताल पच्चीस किलोमीटर दूर, वे सभी थके हुए। वे अब कैसे जाएंगे? किसी पुलिस कर्मी ने यह जानकारी अपने पुलिस अधिकारी को दी कि गाँव में सात लोग मुम्बई से पैदल यात्रा कर गाँव आए हैं और अभी गाँव के सरकारी चिकित्सालय में हैं। पुलिस अधिकारी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए निर्देश दिया कि सातों को कोरोना जांच के लिए पुलिस की गाड़ी से जिला अस्पताल लेकर पहुंचो और उन्हें जांच की सही रिपोर्ट आने के बाद ही छोड़ना है।

पुलिस सातों को चार गाड़ियों में लेकर जिला अस्पताल पहुँची। जैसे वे अस्पताल पहुंचे उन सभी का बुरा हाल था। थकान और भूख के कारण सभी की हालत खराब थी। अस्पताल पहुंचते ही उन सभी की जांच की गयी और सैम्पल लिए गए। उन सभी से कहा गया कि उन्हें जांच रिपोर्ट आने तक अस्पताल में ही रहना होगा। उन सभी को अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। चूँकि जिला अस्पताल सरकारी था, खाने की व्यवस्था अस्पताल की ओर से थी। उन्होंने पूछा कि जांच रिपोर्ट कब आएगी तो उन्हें बताया गया कि कल आएगी। दूसरे दिन रिपोर्ट आयी तो उन्हें बताया गया कि कोरोना जांच रिपोर्ट नेगेटिव है, लेकिन उन्हें चौदह दिनों के कवारंटीन में रहना होगा। किसी से मिलना-जुलना नहीं। एक अलग कमरे में रहना होगा। यह कहते हुए उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। सभी अपने घर जाने के लिए निकले और उन्हें संतोष था कि उनमें से कोई भी कोरोना से संक्रमित नहीं है।

रास्ते में उसने घर फोन किया और बताया कि कल उसे जिला अस्पताल में भर्ती कर लिया गया था और वह अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर आ रहा है। अस्पताल वालों ने उसे चौदह दिनों का कवारंटीन के लिए कहा है, यह उसने फोन पर अपने भाई-भाभी को बताया। उधर घर में भाई-भाभी आपस में बात करने लगे कि यह चौदह दिनों का कवारंटीन अस्पताल वालों ने बोला है, यह क्या होता है? क्यों बोला है? जरूर कोई बात होगी। घर में उसकी भाभी अपने पति से बोली - देखो जी, आप कह देना अपने भाई से बाहर कहीं इंतजाम कर ले अपने चौदह दिन के कवारंटीन का। उसका भाई बोला - मैं, मैं कैसे बोलूंगा? चिढ़कर उसकी पत्नी बोली - आप नहीं बोल सकते तो मांजी बोल देंगी, याद रखो जी, मैं तो नहीं खोलने वाली घर का दरवाजा।

कुछ ही देर बाद वे सभी गाँव पहुँच गए, सभी अपने-अपने घरों की ओर चले और वह भी निश्चिन्त होकर अपने घर पहुँचा। उसने अपने घर की घंटी का बटन दबाया, पर अंदर से कोई आवाज नहीं। उसने थोड़ी देर इंतज़ार किया, फिर घंटी का बटन दबाया। उसे कुछ खुसर-पुसर सुनाई दी। उसने और इंतज़ार किया, पर दरवाजा खुला नहीं, हाँ अंदर से उसकी माँ की आवाज आयी - बेटा तू कहीं और इंतजाम कर ले अपने रुकने का। इस घर के दरवाजे तो तेरे भाई-भाभी ने बंद कर दिए हैं, मैं बूढ़ी क्या कर सकती हूँ। तू कहीं और अपना ठौर ढूंढ। यहां घर पहुंचने पर ना मां ने दरवाजा खोला, ना भाई और ना भाभी ही ने। जबकि वह अस्पताल की जांच के बाद घर पहुंचा था, उसकी कोरोना जांच रिपोर्ट नेगेटिव थी, पर एहतियात के तौर पर उसे चौदह दिनों तक कवारंटीन का निर्देश मिला था। सुनते ही उसने दरकता रिश्ता महसूस किया और वह अपने घर के बाहर ही बेहोश गिर पड़ा। देर शाम जब दोबारा पुलिस को उसकी हालत का पता चला तो उन्होंने उसे गाँव के ही अस्पताल में भर्ती कराया है। उसकी हालत अब ठीक है, पर थकान से वह बेहाल है और बार-बार अपनी लम्बी पैदल यात्रा को याद कर वह रोने लगता है।

कहानीकार लेखक - केशव राम सिंघल ©

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गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

लघु कथा - मोंटू और शीनू के साथ अच्छा समय


लघु कथा - मोंटू और शीनू के साथ अच्छा समय

कोरोना को प्रतिबंधित करने के लिए प्रधानमंत्री जी ने देश में 21 दिनों के पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की है। सुरेश को अपने बच्चों की चिंता है, जो इन दिनों स्कूल नहीं जाएंगे। वह खुद घर पर है, काम पर नहीं जा सकता। वह पैसे के बारे में चिंतित है, तनाव और अभिभूत महसूस कर रहा है। उसने अपनी समस्याएँ अपनी पत्नी को बताई, जो एक सरकारी स्कूल में शिक्षक है। उसकी पत्नी ने कहा, "ज्यादा चिंता मत करो। स्कूल बंद होना हमारे बच्चों के साथ बेहतर रिश्ते बनाने का एक मौका है। हमारा व्यक्तिगत समय मस्ती करने के लिए स्वतंत्र है। 'प्रत्येक के साथ अकेले' समय बिताना कितना मजेदार है। यह हमारे लिए एक अवसर है। अब यह समय अपने बच्चों को प्यार और सुरक्षित महसूस कराने का अच्छा मौका है। और हम उन्हें बता सकते हैं कि वे महत्वपूर्ण हैं।" "आप सही कहती हो, लेकिन कैसे?" सुरेश से पूछा। पत्नी ने कहा, "यह सरल है। प्रत्येक बच्चे के साथ बिताने के लिए अलग-अलग समय निर्धारित करो। यह सिर्फ 20 मिनट के लिए हो सकता है, या इससे अधिक - यह हमारे ऊपर है। यह हर दिन एक ही समय पर हो सकता है, ताकि हमारे बच्चे आगे के दिनों में इसके लिए इसी समय तैयार रह देख सकें।" सुरेश ने कहा, "ओह! तुम ठीक कह रही हो। मैं आज से ही शुरू करता हूँ।"

सुरेश अपने बेटे मोंटू के पास गया और बेटे से भौतिक दूरी बनाते हुए उसने मोंटू से पूछा, "तुम कैसा महसूस कर रहे हो?" मोंटू ने जवाब दिया, "पापा, मैं बोर महसूस कर रहा हूँ। मैं इन दिनों अपना समय कैसे गुजारूंगा? मैं खेलना चाहता हूँ।" मोंटू आठवीं कक्षा का छात्र है, गणित में अच्छा है, इसलिए उसने अपने बेटे को एक अखबार लाने के लिए कहा। मोंटू तुरंत अखबार ले लाया। सुरेश ने एक पेज खोला जिसमें सुडोकू पहेली है। उसने मोंटू से कहा, "इस मानसिक खेल को हल करो। क्या तुम इसे कर सकते हो?" मोंटू ने अपने पापा की तरफ देखा और कहा, "मैं सुडोकू नहीं जानता। यह क्या है?" सुरेश ने अपने बेटे को सुडोकू के नियम समझाए और फिर मोंटू को खेल में दिलचस्पी हुई। मोंटू ने पहेली हल की, लेकिन इसमें कुछ समय लगा। सुरेश ने पहेली सुलझाने के लिए मोंटू को बधाई दी। मोंटू के साथ कुछ अच्छा समय बिताने के बाद, सुरेश अपनी बेटी शीनू के पास गया, जो अकेले अपनी गुड़िया के साथ खेल रही थी। शीनू ने अपने पापा को देखा और पूछा, "पापा! कोई काम?" सुरेश ने शीनू को जवाब दिया, "हाँ, मैं भी तुम्हारी गुड़ियों के साथ खेलना चाहता हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ खेल सकता हूँ?" "हाँ, पापा, आप खेल सकते हैं, लेकिन आपको थोड़ी दूरी रखनी होगी। कृपया वहाँ बैठिए और मैं आपको एक गुड़िया दे रही हूँ।" सुरेश यह जानकर खुश हुआ कि उसकी बेटी वर्तमान स्थिति को समझती है, जबकि वह कक्षा तीन की छात्रा है। सुरेश ने लगभग आधा घंटा शीनू के साथ बिताया। शीनू खुश थी क्योंकि उसके पिता उसकी गुड़िया के साथ खेले।

बच्चों के साथ समय बिताने के बाद सुरेश रसोईघर की तरफ गया। वहाँ उसकी पत्नी खाना बनाने में व्यस्त थी। उसने अपनी पत्नी की मदद की और बच्चों के साथ की गई अपनी गतिविधियों के बारे में बताया। उसकी पत्नी खुश हुई। उसने कहा, "आपने अच्छा किया, यह एक ऐसा समय है, जब हम अपने बच्चों में आत्मविश्वास पैदा कर सकते हैं। अगर हमारे बच्चे ऐसा कुछ करना चाहते हैं जो फिजिकल डिस्टन्सिंग के अनुसार ठीक नहीं है, तो यह समय उनके साथ इस बारे में बात करने का एक मौका है।" "हाँ, आप सही कहती हो," सुरेश ने कहा। उसकी पत्नी ने सुरेश को सुझाव दिया, "आपको मोंटू के साथ खेल, संगीत, मशहूर हस्तियों, दोस्तों के बारे में जैसी कुछ बात करनी चाहिए। शीनू के साथ आपको कोई किताब पढ़नी चाहिए या उसके साथ चित्रों को देखना चाहिए, कोई चित्र बनाना चाहिए, किसी संगीत पर नृत्य करना चाहिए या कोई गीत गाना चाहिए, उसकी पढ़ाई में आपको उसकी मदद करनी चाहिए।" "हाँ, आप सही कहती हो," सुरेश ने फिर कहा और अब उसकी पत्नी खुश है कि उसके पति ने भी बच्चों के साथ अच्छा समय बिताना शुरू कर दिया है।

कहानीकार लेखक - केशव राम सिंघल ©

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डिस्क्लेमर - यह कहानी कहानीकार लेखक की कल्पना के आधार पर लिखी गई है। किसी भी घटना से इस कहानी की कोई भी प्रासंगिकता होना एक संयोग है।

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A Short Story - Quality Time With Montu And Sheenu



A Short Story - Quality Time With Montu And Sheenu

Prime minister has announced 21 days complete lock down in the country to restrict Corona. Suresh is worried about his children, who will not go to school those days. He himself is at home, can't go to work. He worried about his earnings, feeling stressed and overwhelmed. He narrated his problems to his wife, who is a teacher in a government school. His wife said, "Don't worry too much. School shutdown is a chance to make better relationships with our children. Our personal time is free to do fun. This is an opportunity for us. Now it is a chance to make our children feel loved and secured, and show them they are important." "You are right dear, but how?" asked Suresh. The wife said, "It's simple. Set aside time to spend with each child. It can be for just 20 minutes, or longer – it’s up to us. It can be at the same time each day so our children or teenagers can look forward to it." Suresh said, "Oh! You are right. I'll start from today itself."

Suresh went to his son Montu and keeping a physical distance with the son he asked Montu, "How are you feeling?" Montu replied, "Papa, I am feeling bored. How I will pass my time these days? I want to play." Montu is a student of eight class, good in mathematics, so he asked his son to bring a newspaper. Montu brought the newspaper immediately. Suresh opened a page that has Sudoku. He asked Montu, "Solve this mental game. Can you do it?" Montu looked at him and said, "I don't know Sudoku. What is this?" Suresh explained the rules of Sudoku to his son and then Montu took interest in the game. Montu solved the puzzle, but it took some time. Suresh congratulated Montu for solving the puzzle. After spending some quality time with Montu, Suresh went to his daughter Sheenu, who was playing with her dolls alone. Sheenu looked at him and asked, "Papa! Any work?" Suresh replied to Sheenu, "Yes, I also want to play with your dolls. Can I play with you?" "Yes, Papa, you can play, but you have to keep a distance. Please sit there and I am giving you a doll." Suresh was happy to know that his daughter understand the present situation, although she is a student of class three. Suresh spent about half an hour with Sheenu. Sheenu was happy because her father played with her dolls.

After spending the time with children, Suresh went to the kitchen. His wife was busy in cooking. He helped his wife and told about his activities he did with the children. His wife was happy. She said, "Good. This is a time when we can build confidence in our children. If our children want to do something that's not OK with physical distancing, then this is a chance to talk with them about this." "Yes, you are right," said Suresh. His wife suggested to Suresh, "You should talk about something with Montu likes: sports, music, celebrities, friends. With Sheenu, you should read a book or look at pictures, make drawings, dance to music or sing song, help her in studies." "Yes, you are right," said Suresh again and his wife is happy that her husband too has started spending quality time with children.

- Keshav Ram Singhal

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