शनिवार, 18 दिसंबर 2021

निजीकरण

 निजीकरण

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निजीकरण और राष्ट्रीयकरण की बहस बहुत पुरानी है। कुछ लोग निजीकरण को और कुछ लोग राष्ट्रीयकरण को देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर मानते हैं। पूरा संसार इस समय पूंजीवाद की गिरफ्त में है और हर जगह आपको निजीकरण की बातें सुनने को मिलेगी। वर्तमान प्रधानमंत्री निजीकरण के पक्के समर्थक हैं। उनका मानना है और वे कहते भी हैं कि व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं है।

सभी को यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि इस समय केंद्र सरकार रणनीतिक क्षेत्रों में कुछ सार्वजनिक उपक्रमों को छोड़कर बाकी क्षेत्रों में सरकारी इकाइयों का निजीकरण करने को प्रतिबद्ध है। साथ ही केंद्र सरकार विनिवेश पर ज्यादा ध्यान दे रही है। सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी बेचकर सरकार राजस्व को बढ़ाना चाहती है। इसी साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में एलान किया था कि दो सरकारी बैंकों और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण किया जाएगा। पर सरकार ने यह घोषित नहीं किया है कि किन बैंकों की वह पूरी हिस्सेदारी या कुछ हिस्सा बेचने वाली है। हालांकि बैंकों के नामों की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। लेकिन चार बैंकों (बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ़ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेन्ट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया) के लगभग एक लाख तीस हज़ार कर्मचारियों के साथ ही दूसरे सरकारी बैंकों में भी इस चर्चा से खलबली मची हुई है।

ऐसा नहीं है कि विभिन्न क्षेत्रों में निजीकरण की अनुमति या प्रक्रिया केवल वर्तमान सरकार के कार्यकाल में प्रारम्भ हुई, दर असल इसकी शुरुआत काफी पहले से हो गयी थी। बैंकिंग क्षेत्र में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 1993 में 13 नए घरेलू बैंकों को बैंकिंग गतिविधियां करने की अनुमति दी। दूरसंचार क्षेत्र में 1991 से पहले तक बीएसएनएल का एकाधिकार था। 1999 में नई टेलीकॉम नीति लागू होने के बाद निजी कंपनियां आईं। बीमा क्षेत्र में 1956 में लाइफ इंश्योरेंस एक्ट के बाद एक सितंबर 1956 को भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना हुई थी। 1999 में मल्होत्रा समिति की सिफारिशों के बाद बीमा क्षेत्र में निजी क्षेत्र को अनुमति मिली। विमानन क्षेत्र में 1992 में सरकार ने खुला आसमान नीति (Open Sky Policy) बनाई और बहुत सी निजी विमानन कंपनियों ने इस क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ किया। प्रसारण क्षेत्र में 1991 तक दूरदर्शन ही था। 1992 में पहला निजी चैनल जीटीवी शुरू हुआ। आज देश में 1000 से ज्यादा चैनल हैं।

वर्तमान में सरकार को विकास नीतियों (तथा अपने प्रचार-प्रसार) के लिए धन की आवश्यकता है, जो उसके कर-राजस्व से पूरी नहीं पड़ पा रही है, इसलिए सरकार को अपने संस्थानों का निजीकरण करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है।

बैंकों के कर्मचारियों ने दो दिन 16 और 17 दिसंबर 2021 को हड़ताल की और हड़ताल सफल भी रही। पर क्या सरकार अपने फैसले से पीछे हटेगी? मुझे तो नहीं लगता।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद तमाम तरह के सुधार और कई बार सरकार की तरफ़ से पूंजी डाले जाने के बाद भी ज्यादातर सरकारी बैंकों की समस्याएं ख़त्म नहीं हो पाई हैं। सरकारी बैंकों में प्रबंधन (विशेषकर ऋण प्रबंधन) में कुशलता का अभाव है। पिछले तीन सालों में ही केंद्र सरकार बैंकों में डेढ़ लाख करोड़ रुपए की पूंजी डाल चुकी है और एक लाख करोड़ से ज़्यादा की रक़म रीकैपिटलाइजेशन बॉंड के ज़रिए भी दी गई है। फिर भी बैंकों की आर्थिक स्थिति में विशेष सुधार नहीं हो पा रहा।  

मेरा मानना है कि हर विकासशील देश में शिक्षा, रेल परिवहन, सड़क परिवहन, बैंकिंग, स्वास्थ्य, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति आदि क्षेत्रों में सरकार की भागीदारी अवश्य होनी चाहिए क्योंकि बड़ी जनसंख्या के लिए निम्न आर्थिक स्थिति के कारण पूंजीवादी व्यवस्था के तहत मांग और आपूर्ति के अनुसार बाजार कीमते चुकाना संभव नहीं है तथा निजी क्षेत्रों के बैंक गरीब लोगों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध नहीं कराते हैं। क्या राष्ट्रीयकृत बैंकों का निजीकरण होना चाहिए? यह प्रश्न बहुत ही महत्त्व का है। एक राष्ट्रीयकृत बैंक के पूर्व-अधिकारी होने के नाते मैं नहीं चाहूँगा कि सरकारी बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो, पर सरकार की मंशा बहुत ही साफ़ है और अब निजीकरण को कोई भी नहीं रोक पाएगा। 

- केशव राम सिंघल

(यह लेखक के निजी विचार हैं। प्रतिक्रिया स्वरूप टिप्पणी आमंत्रित हैं)

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

सरकार द्वारा किसानों की मांगों पर सकारात्मक रुख

सरकार द्वारा किसानों की मांगों पर सकारात्मक रुख 

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संसद में तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी किसान आंदोलन समाप्त नहीं हुआ था, क्योंकि किसान संगठनों ने कुछ मांगें सरकार के समक्ष रखीं थीं। अब भारत सरकार के कृषि और किसान मंत्रालय ने अपने एक पत्र क्रमांक सचिव (एएफडब्लू)/2021/मिस/1 दिनांक 9 दिसम्बर, 2021 से सूचित किया है कि वर्तमान गतिशील किसान आंदोलन के लंबित विषयों के सम्बन्ध में समाधान की दृष्टि से निम्न प्रस्ताव रखे हैं -


- न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक समिति गठन की जाएगी, जिसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि और कृषि वैज्ञानिक सम्मलित किए जाएंगे। पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसान प्रतिनिधि में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। समिति इस बात पर विचार करेगी कि किसानों को एमएसपी मिलना किस तरह सुनिश्चित किया जाए। देश में एमएसपी पर खरीदी की वर्तमान स्थिति को जारी रखा जाएगा। 


- तत्काल प्रभाव से किसान आंदोलन से सम्बंधित केसों को वापस लिया जाएगा। इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकार ने केसों को वापस लेने के लिए पूर्ण सहमति दी है और केंद्र सरकार अन्य राज्यों से भी अपील करेगी कि वे भी किसान आंदोलन से सम्बंधित केसों को वापस ले लें। 


- किसानों को मिलने वाले मुआवजे का जहाँ तक सवाल है, उसके लिए उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। किसान आंदोलन से सम्बंधित केसों को वापस लेने और मुआवजे के सम्बन्ध में पंजाब सरकार ने भी सार्वजनिक घोषणा की है। 


- बिजली बिल में किसान पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी स्टेकहोल्डर्स / संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होगी। मोर्चा से चर्चा होने बाद ही संसद में बिल पेश किया जाएगा।  


- जहाँ तक पराली के मुद्दे का सवाल है, भारत सरकार ने जो कानून पारित किया है उसकी धारा 14 और 15 में क्रिमिनल लायबिलिटी से किसान को मुक्ति दी है। 


भारत सरकार ने पत्र में यह भी कहा है कि इस प्रकार लंबित पांचों मांगों का समाधान हो जाता है। अब किसान आंदोलन को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं रहता है। भारत सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व से यह अनुरोध किया है कि अब किसान आंदोलन समाप्त करें। 


एक साल 14 दिन की लंबे संघर्ष के बाद आज 9 दिसम्बर 2021 को सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने घोषणा की है कि 11 दिसंबर 2021 को सभी किसान मोर्चों पर जीत का जश्न मनाया जाएगा, उसके बाद आंदोलन की वापसी होगी।


कृपया क्लिक कर पढ़े पिछला लेख - तीन कृषि कानूनों की वापसी। 


- केशव राम सिंघल 

शनिवार, 20 नवंबर 2021

तीन कृषि कानूनों की वापसी

 तीन कृषि कानूनों की वापसी

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*प्रधानमंत्री की घोषणा*

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार 19 नवम्बर 2021 को राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान देशवासियों से क्षमा मांगते हुए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। इस दौरान उन्होंने कहा, "इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के दौरान कहा, "हमारी सरकार किसानों के कल्याण के लिए, गांव-गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए पूरी सत्य निष्ठा से, ये कानून लेकर आई थी।" उन्होंने आगे कहा, "शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी, जिसके कारण दीए के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए।"

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन, फसलों के पैटर्न बदलने, एमएसपी को अधिक प्रभावी बनाने जैसे विषयों पर निर्णय लेने के लिए एक कमिटी गठित की जाएगी। बकौल प्रधानमंत्री, इस कमिटी में केंद्र व राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, किसान, कृषि वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्री शामिल होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान के बाद प्रदर्शनकारी किसानों से कहा, "मेरा आग्रह है, आज गुरु पर्व का पवित्र दिन है, अब आप अपने-अपने घर लौटें, अपने खेत में लौटें।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद यह भी कहा, "मैंने जो कुछ भी किया, किसानों के लिए किया, मैं जो कर रहा हूँ वह देश के लिए कर रहा हूँ।" उन्होंने आगे कहा, "आज मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अब और ज़्यादा मेहनत करूंगा ताकि आपके व देश के सपने साकार हो सकें।"

 

*घोषणा के बाद कुछ प्रतिक्रियाएँ*

 

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान करने के बाद कहा है, "उन्होंने प्रकाश पर्व पर तीनों कृषि कानून वापस लेने का फैसला लेकर किसानों से माफी मांगी है।" पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा, "इससे बड़ी बात कोई नहीं कर सकता। मैं उनका आभारी हूँ।"

 

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा के बाद कहा, "उन्होंने (प्रधानमंत्री ने) अपनी गलती मान ली है।" उन्होंने आगे कहा, "पंजाब को उन्हें माफ कर देना चाहिए क्योंकि एक नए अध्याय की शुरुआत हो रही है। इस जीत का पूरा श्रेय संयुक्त किसान मोर्चा के सत्याग्रह को जाता है।"

 

पंजाब के उप-मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन कृषि कानून रद्द करने के ऐलान के बाद कहा है, "देर आए दुरुस्त आए, भारत सरकार ने अपनी गलती मानी, मैं इसका स्वागत करता हूँ।" रंधावा ने कहा कि किसान आंदोलन में करीब 700 किसानों की मौत हुई, पंजाब सरकार की तरह केंद्र भी उनके परिजनों की मदद करे।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, "अथक संघर्ष करने वाले भाजपा की क्रूरता से विचलित नहीं होने वाले हर एक किसान को मेरी हार्दिक बधाई।"

 

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के बाद कहा है कि प्रधानमंत्री का निर्णय उनके बड़प्पन का परिचायक है। उन्होंने कहा, "इन कानूनों का मकसद किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाना था। मुझे दु:ख है कि इनका लाभ हम कुछ किसानों को समझाने में असफल हुए।"

 

अभिनेता सोनू सूद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान पर ट्वीट किया है, "किसान वापस अपने खेतों में आएंगे, देश के खेत फिर से लहराएंगे।" अभिनेता ने इस फैसले के लिए प्रदानमंत्री मोदी का धन्यवाद करते हुए लिखा, "इस ऐतिहासिक फैसले से, किसानों का प्रकाश पर्व और भी ऐतिहासिक हो गया, जय जवान जय किसान।"

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुक्रवार को तीन कृषि कानून को वापस लेने की घोषणा के बाद केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा, "साल भर से चले आ रहे किसानों के विरोध की आखिरकार जीत हुई है।" उन्होंने आगे कहा, "किसानों ने संघर्षों के इतिहास में एक उत्कृष्ट अध्याय को जोड़ा है। शहीदों, किसानों और संगठनों को नमन है।"

 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कृषि समिति के सदस्य अनिल घनवट ने केंद्र के तीनों कृषि कानून वापस लेने के ऐलान पर कहा है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान हित के ऊपर राजनीति को चुना है।" उन्होंने कहा, "हमारी समिति ने कई सुधार सुझाए थे, उनके इस्तेमाल की बजाय प्रधानमंत्री व बीजेपी ने पीछे हटने को चुना, वे सिर्फ चुनाव जीतना चाहते हैं।"

 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान के बाद ट्वीट किया, "देश के अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सिर झुका दिया। अन्याय के खिलाफ ये जीत मुबारक हो!" उन्होंने अपना पुराना ट्वीट शेयर किया जिसमें उन्होंने लिखा था, "मेरे शब्द लिख लीजिए...सरकार को कृषि विरोधी कानून वापस लेने पड़ेंगे।"

 

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तीनों कानूनों को रद्द किए जाने के एलान पर कहा कि 700 से अधिक किसान परिवारों, जिनके सदस्यों ने न्याय के लिए इस संघर्ष में अपने प्राणों की आहुति दी है, उनका बलिदान रंग लाया है। सत्य, न्याय और अहिंसा की जीत हुई है। लगभग 12 महीने के गांधीवादी आंदोलन के बाद आज देश के 62 करोड़ अन्नदाताओं-किसानों-खेत मजदूरों के संघर्ष व इच्छाशक्ति की जीत हुई। उन 700 से अधिक किसान परिवारों की कुर्बानी रंग लाई, जिनके परिवारजनों ने न्याय के इस संघर्ष में अपनी जान न्योछावर की। सत्ता में बैठे लोगों द्वारा बुना किसान-मजदूर विरोधी षडयंत्र भी हारा और तानाशाह शासकों का अहंकार भी। रोजी-रोटी और किसानी पर हमला करने की साजिश भी हारी। खेती-विरोधी तीनों काले कानून हारे और अन्नदाता की जीत हुई।

 

वरिष्ठ कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा - "लगभग 600 किसानों की शहादत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की है। भले ही यूपी चुनाव का दबाव है। पर गणतंत्र में जन भावनाएँ सर्वोपरि होती हैं। सरकार बहुत देर से समझी। आंदोलनकारी किसानों का अभिनंदन। अन्नदाता सुखी भव:।"

 

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुक्रवार को कहा, "किसानों को चिंता नहीं करनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कह दिया है कि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएंगे, तो यह निश्चित रूप से होगा ही।" उन्होंने कहा, "आज भी अगर कोई प्रधानमंत्री के बारे में अविश्वास की भावना रखते हैं तो मैं समझता हूँ यह बड़ी भूल है।"

 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों कृषि कानून रद्द करने के ऐलान के बाद कहा है, "आज प्रकाश दिवस के दिन कितनी बड़ी खुशखबरी मिली।" उन्होंने कहा, "700 से ज़्यादा किसान शहीद हुए, उनकी शहादत अमर रहेगी। आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी कि किस तरह, किसानों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर किसानी और किसानों को बचाया।"


शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में लिखा गया है, "किसान लड़ते रहे, शहीद हुए और आखिरकार जीत गए। 13 राज्यों के उप-चुनाव में बीजेपी को पराजय स्वीकार करनी पड़ी, उससे यह सद्बुद्धि आई है।" इसमें लिखा है, "पीछे नहीं हटेंगे, ऐसा कहने वाला अहंकार पराजित हुआ, परंतु अब भी अंधभक्त कहेंगे - यह साहब का मास्टर स्ट्रोक है!"

 

कृषि कानूनों को रद्द करने के प्रधानमंत्री मोदी के एलान को राजनीतिक स्टंट बताने वाले कई किसान संगठनों का कहना है कि तीन कृषि कानूनों के रद्द होने से किसानों की जिंदगी में कोई बड़ा बदलाव आने वाला नहीं हैं। जब तक केंद्र सरकार तमाम फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी) की कानूनी गारंटी नहीं देती तब तक किसानों की आय में वृद्धि की कल्पना नहीं की जा सकती। पंजाब के कई किसान संगठन तो एमएसपी से आगे तमाम कृषि कर्ज माफी की मांग पूरी न होने तक आंदोलन पर डटे रहने की बात कर रहे हैं।

 

तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा के बाद गाज़ीपुर सीमा पर किसानों ने जलेबियाँ बाँटकर जश्न मनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद किसानों ने 'किसान एकता ज़िंदाबाद' के नारे भी लगाए। वहीं, भारतीय किसान यूनियन ने कहा, "आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा, हम उस दिन का इंतज़ार करेंगे, जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान के बाद प्रदर्शनकारी किसानों से घर लौटने का आग्रह किया था।



*संयुक्त किसान मोर्चा का बयान*

 

प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने निम्न प्रेस वक्तव्य दिया -

 

"भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जून 2020 में पहली बार अध्यादेश के रूप में लाए गए सभी तीन किसान-विरोधी, कॉर्पोरेट-समर्थक काले कानूनों को निरस्त करने के भारत सरकार के फैसले की घोषणा की है। उन्होंने गुरु नानक जयंती के अवसर पर यह घोषणा करने का निर्णय लिया। संयुक्त किसान मोर्चा इस निर्णय का स्वागत करता है और उचित संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से घोषणा के प्रभावी होने की प्रतीक्षा करेगा। अगर ऐसा होता है, तो यह भारत में एक वर्ष से चल रहे किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत होगी। हालांकि, इस संघर्ष में करीब 700 किसान शहीद हुए हैं। लखीमपुर खीरी हत्याकांड समेत, इन टाली जा सकने वाली मौतों के लिए केंद्र सरकार की जिद जिम्मेदार है। संयुक्त किसान मोर्चा प्रधानमंत्री को यह भी याद दिलाना चाहता है कि किसानों का यह आंदोलन न केवल तीन काले कानूनों को निरस्त करने के लिए है, बल्कि सभी कृषि उत्पादों और सभी किसानों के लिए लाभकारी मूल्य की कानूनी गारंटी के लिए भी है। किसानों की यह अहम मांग  अभी बाकी है। इसी तरह बिजली संशोधन विधेयक को भी वापस लिया जाना बाकि है। एसकेएम सभी घटनाक्रमों पर संज्ञान लेकर, जल्द ही अपनी बैठक करेगा और यदि कोई हो तो आगे के निर्णयों की घोषणा करेगा।"

 

*पूर्व में भी मोदी सरकार अपने फैसलों से पीछे हटी*

 

यह पहली बार नहीं है कि मोदी सरकार अपने फैसलों से पीछे हटी है या हटना पड़ा है। 2015 में मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम वापिस लिया था। 2015 में सरकार को विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अधिनियम पर पुनर्विचार की मांग माननी पडी थी। सरकार राज्यसभा में संशोधन पारित नहीं करवा पाई थी अतः कानून को ठन्डे बास्ते में डालना पड़ा। बीज कानून में संशोधन भी भारी विरोध के कारण मोदी सरकार को छोड़ना पड़ा था।

 

*अध्यादेश के माध्यम से भी हो सकती थी कृषि कानूनों की वापसी*

 

प्रधानमंत्री ने अपनी घोषणा में कहा - "इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।" वैसे यदि सरकार चाहती तो अध्यादेश के माध्यम से इन तीन कृषि कानून को रद्द कर सकती थी। इससे किसान संगठनों को उस दिन का इंतज़ार नहीं करना पड़ता जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाता। जब सरकार ने तीन कृषि कानून को रद्द करने का निर्णय ले ही लिया था तो इस महीने के अंत का इन्तजार क्यों?

 

*प्रधानमंत्री की घोषणा स्वागतयोग्य पर प्रश्न बहुत से हैं*

 

प्रधानमंत्री की घोषणा स्वागतयोग्य है। लेकिन अभी भी बहुत से प्रश्न उठ खड़े हैं। सरकार किसान संगठन से बातचीत के लिए क्या कदम उठा रही है? न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी को लेकर क्या वह वास्तव में गंभीर है? कहीं यह केवल आगामी विधानसभा चुनाव जीतने के लिए की जाने वाली रणनीति तो नहीं है? जिन किसानों पर आंदोलन के दौरान मुकदमें हुए उन पर आगे क्या कार्रवाई होगी? इस आंदोलन में 700 से अधिक किसान शहीद हुए, क्या सरकार उनके परिवारों को उचित मुआवजा देगी? इन सभी प्रश्नों के उत्तर समय के गर्भ में हैं। जनतंत्र में कोई भी निर्णय सबसे चर्चा कर, सभी प्रभावित लोगों की सहमति और विपक्ष के साथ राय मशवरे के बाद ही लिया जाना चाहिए। इसलिए सबसे अहम और जरूरी बात है कि सरकार को ऐसा वातावरण बनाना चाहिए ताकि किसान संगठनों से बातचीत प्रारम्भ हो। यदि सरकार बातचीत प्रारम्भ नहीं करती है तो ऐसा सन्देश जाएगा कि सरकार अभी भी अंहकार में है।

 

मेरे इसी ब्लॉग में आप पिछला लिखा लेख 'छह माह से चल रहा किसान आंदोलन'  पढ़ सकते हैं और साथ ही इसी ब्लॉग में किसान आंदोलन और कृषि कानूनों से सम्बंधित निम्न पूर्व लेख भी आप पढ़ सकते है -

 

(१) तीन कृषि कानूनऔर किसान संगठनों की मांग,

 

(२) कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट का नजरिया, और

 

(३) किसान आंदोलन

 

आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा।

 

धन्यवाद,

 

केशव राम सिंघल

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी पर भारतीय रिजर्व बैंक की चिंताएँ

 बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी पर भारतीय रिजर्व बैंक की चिंताएँ

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भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार 10 नवम्बर 2021 को एक बार फिर क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ अपना पक्ष रखा है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने क्रिप्टोकरेंसी को अनुमति देने के खिलाफ अपने विचारों को दोहराया है।

 

भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार –

 

- क्रिप्टोकरेंसी देश की व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।

 

- साथ ही क्रिप्टोकरेंसी पर व्यापार करने वाले निवेशकों की संख्या के साथ क्रिप्टोकरेंसी के दावा किए बाजार मूल्य पर भी संदेह उत्पन्न करते हैं।

 

- क्रिप्टोकरेंसी किसी भी वित्तीय प्रणाली के लिए गंभीर खतरा है क्योंकि वे केंद्रीय बैंकों के नियंत्रण के बाहर हैं।

 

- क्रिप्टोकरेंसी व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के नजरिये से गंभीर चिंता का विषय है।

 

- भारत सरकार क्रिप्टोकरेंसी से सम्बंधित मुद्दों पर सक्रियता से विचार कर रही है और इस पर फैसला लेगी।

 

- केंद्रीय बैंकर के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक को क्रिप्टोकरेंसी के बारे में गंभीर चिंताएं हैं। 

 

भारतीय रिजर्व बैंक की चिंताओं पर विचार करना जरूरी है क्योंकि यह मामला देश के आर्थिक और वित्तीय स्थिरता से जुड़ा है। क्रिप्टोकरेंसी का लेन-देन (ट्रेडिंग) करने वाले निवेशकों की संख्या के साथ-साथ क्रिप्टोकरेंसी के बाजार मूल्य के बारे में मीडिया में बताई जा रही बड़ी संख्या की सत्यता के बारे में निश्चितता नहीं है। सबसे बड़ी बात है कि इन मुद्राओं (क्रिप्टोकरेंसी) के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाती है, क्योंकि ये मुद्राएँ (क्रिप्टोकरेंसी) भारतीय रिजर्व बैंक या किसी अन्य केंद्रीय बैंक द्वारा विनियमित नहीं होती है। इस सन्दर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने अपने बयान में यह भी कहा कि क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वाले निवेशकों की संख्या को थोड़ा बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जा रहा है और लगभग सत्तर प्रतिशत ऐसे निवेशक हैं जिन्होंने क्रिप्टोकरेंसी में केवल एक हजार रुपये तक का ही निवेश किया है।

 

पाठकों की जानकारी के लिए यह बताना भी जरूरी है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने 2018 में वस्तुतः क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और केंद्रीय बैंक द्वारा विनियमित सभी संस्थाओं को आभासी मुद्राओं में काम करने से रोकने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2019 में केंद्र सरकार से क्रिप्टोकरेंसी के लिए नीतियां बनाने के लिए कहा था और 2020 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों पर रोक लगा दी थी। इसके बाद फरवरी 2021 में भारतीय रिजर्व बैंक ने केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा के मॉडल का सुझाव देने के लिए एक आंतरिक पैनल का गठन किया था। 

 

पाठकों को यह भी जानना चाहिए कि भारत में बिटकॉइन या अन्य प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी को वैधानिक मुद्रा के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है। भारत में बिटकॉइन वैध मुद्रा नहीं है, पर आपको यह भी जानना चाहिए कि बिटकॉइन या किसी क्रिप्टोकरेंसी में निवेश को सरकार ने अभी तक अवैध भी घोषित नहीं किया है। इस लेख के लेखक ने बिटकॉइन क्रिप्टोकरेंसी के बारे में जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से किंडल पुस्तक 'बिटकॉइन क्या है?' लिखी है, जिसे अमेजन से प्राप्त किया जा सकता है। इस पुस्तक का ASIN कोड B096MWXZ7W है। यह पुस्तक किंडल अनलिमिटेड के सदस्य निशुल्क पढ़ सकते हैं।

 

- केशव राम सिंघल

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कृपया अमेजन का लिंक  देखें। धन्यवाद।

बुधवार, 18 अगस्त 2021

विमर्श - अफगानिस्तान में फिर से तालिबान - # २

 अफगानिस्तान में फिर से तालिबान - #

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विमर्श

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पहली बार ऐसा हुआ कि संयुक्त राष्ट्र (UN) के साथ पूरी दुनिया ने अफगानिस्तान की बरबादी का तमाशा देखा। ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्र (UN) अपने दायित्व से भटक गया है।

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अफगान सरकार का पतन केवल अमरीका की सैन्य विफलता का सूचक है, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा करने में भी अमरीकी प्रयास काम नहीं आए।

- जोएल साइमन, कार्यकारी निदेशक, कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स, वाशिंगटन पोस्ट

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एक अनुमान के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबान के प्रभुत्व से पाकिस्तानी आतंकी संगठनों को नई ताकत मिल सकती है, क्योंकि वह उनमें अपना 'दोस्त, दार्शनिक और मार्गदर्शक' खोजते रहे हैं। लश्कर और जैश--मोहम्मद जैसे संगठनों को आर्थिक मदद बढ़ सकती है। ऐसा अनुमान है कि इनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जा सकता है।

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पिचहत्तर हजार तालिबानी लड़ाकों के समक्ष साढ़े तीन लाख की अफगान सेना का जंग में मैदान छोड़ना हैरानी में डालता है।

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अमेरिका ने अफगानिस्तान में हुई घटनाओं के लिए अफगानिस्तान सरकार की कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति को जिम्मेदार ठहराया है। अमरीका के अनुसार पिछले बीस साल में अफगान सरकार ने ग्रामीण इलाकों से तालिबानी प्रभाव कम करने के कोइ प्रयास नहीं किए।

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अमरीकी कांग्रेस को सौपी गयी एक रिपोर्ट के अनुसार अफगान फ़ौज और अफगान पुलिस का मैदान छोड़कर भागने का इतिहास है।

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अफगानिस्तान में व्यापक भ्रष्टाचार ने अपनी जड़े जमा रखी हैं।

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अफगान एयरफोर्स अपने २११ विमानों की सुरक्षा करने में ही सक्षम नहीं है।

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अफगानिस्तान के ग्रामीण और कबिलाई इलाकों में सरकार की छवि अक्षम और भ्रष्ट सरकार की होने की वजह से अफगान सरकार ने ग्रामीण इलाकों और कबिलाई इलाकों में समर्थन खो दिया था। तालिबान को इन इलाकों से समर्थन मिला।

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पाकिस्तान की नोबेल पुरूस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने अफगानिस्तान के हालात पर चिंता जताते हुए ट्वीट किया, मैं स्तब्ध हूँ, परेशान हूँ। मुझे महिलाओं, अल्पसंख्यकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बहुत ज्यादा चिंता है। मेरी दुनिया से अपील है कि अफगानिस्तान में युद्ध रोका जाए। लोगों और शरणार्थियों को सुरक्षित निकाला जाए। (१६ अगस्त २०२१)

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वाशिंगटन में १६ अगस्त २०२१ को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान एक पूर्व अफगान पत्रकार हमदर्फ ग़फ़ूरी ने कहा - हम बीस साल पीछे हो गए हैं। तालिबान के नेता पाकिस्तान का साथ देकर पूरे मध्य एशिया में आतंक मचाएंगे। (१६ अगस्त २०२१)

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पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सोमवार १६ अगस्त २०२१ को एक ट्वीट कर केंद्र सरकार से अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व भारत के लिए अशुभ संकेत है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हमारे देश के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह भारत के खिलाफ चीन-पाक गठजोड़ को मजबूत करेगा। संकेत बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं, हमें अतिरिक्त सतर्क रहने की जरूरत है।' (१६ अगस्त २०२१)

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जुलाई २०२१ से ही अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी के बाद से, तालिबान ने तेजी से देश के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। जैसे ही देश के राष्ट्रपति खुद अफगानिस्तान से भाग गए और वहाँ सरकार गिर गई। अफगान बलों ने भी सरेंडर करते ही अफगानिस्तान में इस वक्त अफरा- तफरी का माहौल बन गया। वहाँ के स्थानीय लोग देश भागने के लिए एयरपोर्ट पर इकट्ठे हो गए। तालिबान लड़ाकों की बढ़ती ताकत के बाद अफगान महिलाओं के भीतर भी डर और अधिक बढ़ गया है। अफगानिस्तान में महिलाओं के अंदर के इस खौफ को देखते हुए अफगान महिला नेटवर्क की संस्थापक महबूबा सिराज ने चिंता जताते हुए कहा कि अफगान की यह दयनीय हालत देख लगता है कि यह मुल्क 200 साल पीछे चला जाएगा। इसके साथ ही महबूबा सिराज कहती हैं कि मैं निराश नहीं हूँ कि अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से जा रहे थे, उनके जाने का समय रहा था। वे अमेरिका और नाटो बल के लिए आगे कहती हैं कि हम चिल्ला रहे हैं और कह रहे हैं कि खुदा के वास्ते कम से कम तालिबान के साथ कुछ करो, उनसे किसी तरह का आश्वासन लो, एक ऐसा तंत्र बने जो महिलाओं के अधिकारों की गारंटी दे। महबूबा सेराज ने यह भी कहा कि दुनिया के नेताओं को शर्म आनी चाहिए कि उन्होंने अफगानिस्तान के साथ क्या किया, उन्हें क्या करने की जरूरत है, उन्होंने उस देश के साथ क्या किया। उन्होंने आगे कहा कि किसी ने भी हमारी स्थिति पर ध्यान नहीं दिया और उन्होंने सिर्फ एक निर्णय लिया। महबूबा सिराज ने यह कहकर निष्कर्ष निकाला कि अफगानिस्तान के साथ जो हो रहा है, वह (तालिबान) इस देश को 200 साल पीछे कर देगा, और एक पलायन होगा जिसके लिए विश्व के नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। (१७ अगस्त २०२१)

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एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान लड़ाके घर-घर जाकर अपने लड़ाकों की शादी के लिए १५ से ४५ साल की अविवाहित महिलाओं की लिस्ट लेकर जा रहे हैं क्योंकि वे अविवाहित महिलाओं को 'कहानीमत' या 'युद्ध की लूट' मानते हैं, जिसे विजेताओं के बीच बाँटने की परम्परा है। तालिबान के सांस्कृतिक आयोग का एक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें लिखा है कि कब्जे वाले इलाके के सभी इमाम और मुल्ला तालिबान को तालिबान लड़ाकों से शादी करने के लिए १५ साल से ऊपर की लड़कियों और ४५ साल से कम उम्र की विधवाओं की लिस्ट मुहैया कराएं। अफगानिस्तान के स्थानीय निवासियों ने कहा कि नए विजय प्राप्त क्षेत्र में, तालिबान ने महिलाओं की आवाजाही पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया है। उन्होंने आदेश दिया है कि महिलाएं बिना पुरुष के घर से बाहर नहीं जा सकती हैं। (१७ अगस्त २०२१)

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काबुल से दिल्ली पहुँची एक अफगान सांसद ने कहा कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि दुनिया ने अफगानिस्तान को अकेले छोड़ दिया है। उसने आगे कहा कि उसके सभी दोस्त मारे जाने वाले हैं, तालिबान सभी को मार डालेगा। उन्होंने आगे कहा कि अफगानिस्तान की महिलाओं को अब कोई अधिकार नहीं होगा। (१७ अगस्त २०२१)

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पश्तो भाषा में 'तालिबान' का शाब्दिक अर्थ

तालिबान = छात्र (Student), शिक्षार्थी (Scholar)

शाब्दिक अर्थ से परे तालिबान वे लोग हैं या उन लोगों का समूह है, जिनका धार्मिक कट्टरपंथ इतना प्रबल है कि उनको लगता है कि लोगों के जीवन जीने का ढंग, रहन-सहन और धार्मिक आस्थाएँ केवल उसी मानक (standard) के अनुसार होनी चाहिए, जो उनकी आस्थाओं के अनुरूप हैं। वे इस्लामिक विचारधारा में कट्टरपंथ के प्रबल समर्थक हैं। उनकी विचारधारा उन्हें कट्टरपंथी और चरमपंथी बनाती है। वे हिंसात्मक तरीके अपनाते हैं और उनकी हत्या करना अपना धर्म (कर्तव्य) समझते हैं, जो उनकी बात नहीं मानते। उनका एकमात्र लक्ष्य है अपना प्रभुत्व ज़माना, जिसके लिए सत्ता हासिल करना चाहते हैं।

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चीन का अफगानिस्तान को लेकर क्या रुख हो सकता है, यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से लौटने के बाद वहाँ कुछ समय के लिए शून्य निर्मित होगा और यह उसके लिए एक अच्छा अवसर हो सकता है। चीन इस स्थिति का लाभ लेने का प्रयास करेगा क्योंकि वह नहीं चाहेगा कि कोई अन्य देश वहाँ अपना आधार स्थापित करे। चीन के लिए  अमेरिका के मुकाबले अफगानिस्तान को निर्देशित करना और वहाँ संचालन करना आसान होगा। चीन के शिंगझिनयांग प्रान्त की लगभग ८० मील की सीमा अफगानिस्तान के साथ साझा होती है। इसलिए चीन यह चाहेगा कि चीन में वीगर आंदोलन को हवा देने, आतंकवादी गतिविधियों और षड्यंत्र से रोका जाए क्योंकि उनका मानना है कि शिंगझिनयांग का मुस्लिम आखिरकार चीन में तालिबान का नैसर्गिक समर्थन आधार था।  (१९ अगस्त २०२१)

 

 

 

- केशव राम सिंघल

 

#अफगानिस्तान_में_फिर_से_तालिबान

 

साभार स्रोत -

 

- दैनिक राष्ट्रदूत

- आउटलुक पत्रिका

- राजस्थान पत्रिका

- दैनिक नवज्योति

- दैनिक भास्कर

- पंजाब केसरी

- अन्य पत्र-पत्रिकाएं, इंटरनेट और टीवी समाचार