जाने किस उम्मीद में अपनी बात कह जाता हूँ मैं ...!
जानता हूँ जेब खाली उधार की उम्मीद कम फिर भी
जाने किस उम्मीद में बाज़ार की ओर मुड़ जाता हूँ मैं ...!
चेहरे पे मौजूद सलवटें झुर्रियां झड़ते बाल फिर भी
जाने किस उम्मीद में आईने से उलझ जाता हूँ मैं ...!
रास्ता आसाँ नहीं पता मंज़िल मिले ना मिले फिर भी
जाने किस उम्मीद में एक और कोशिश में लग जाता हूँ मैं ...!
लड़ता रहा जिन्दगी भर बेशक़ हारता रहा फिर भी
जाने किस उम्मीद में जुलूस का हिस्सा बन जाता हूँ मैं ...!
बाऊजी, सिलसिला बातें खत्म कई साल बीते फिर भी
जाने किस उम्मीद में तुम्हें याद कर जाता हूँ मैं ...!
पुण्यतिथी पर शत् शत् नमन ....
- केशव राम सिंघल
पुण्यतिथी पर शत् शत् नमन ....
(बाऊजी = मेरे वालिद आशा राम सिंघल, जन्म 02 जनवरी 1933, इंतकाल 22 मई 2006)
1 टिप्पणी:
Keshav Bhaisaheb, touched my heart and brought tears in the eyes.
Your brother,
Mohan
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