गुरुवार, 30 जुलाई 2015

जाने किस उम्मीद में ....#5


जाने किस उम्मीद में ....#5

कुछ लोग दिल में दिमाग रखकर बात करते हैं, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में दिमाग में दिल रख सोचता हूँ मैं !

- केशव राम सिंघल

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

जाने किस उम्मीद में ... #4


जाने किस उम्मीद में ... #4

आईने में जब दिखा बदसूरत चेहरा अपना, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में आईने को साफ़ करने लगा मैं !

भूल गया धूल आईने पर नहीं, चेहरे पर है, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में आईने को साफ़ करने लगा मैं !
- केशव राम सिंघल

जाने किस उम्मीद में ... #3


मन्दिर में भगवान नहीं, मूरत मिली उसकी, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में इधर-उधर खोजता-फिरता हूँ मैं !
- केशव राम सिंघल

इधर-उधर = क्भी इस मन्दिर में, कभी उस मन्दिर में, कभी गुरुद्वारे में, कभी मस्जिद में, तो कभी चर्च में ...

सोमवार, 20 जुलाई 2015

जाने किस उम्मीद में ... #2


किस मंशा से जलाते रहे वे नफ़रत की आग, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में पैगाम मुहब्बत का गाता हूँ मैं ।
- केशव राम सिंघल

बुधवार, 15 जुलाई 2015

एक नजर यह भी .... एक ग़लत नजरिया ...


एक नजर यह भी ....

एक ग़लत नजरिया ...


बैंकों के सेवानिवृत कर्मचारी और अधिकारी ताकते रह गए हैं. उन्हें इस बार भी द्विपक्षीय समझौते दिनांक 25 मई 2015 में कुछ मिला नही. न तो बेसिक पेंशन में कोई बढ़ोतरी हुई और न ही पारिवारिक पेंशन में सुधार हुआ है. सबसे अधिक दुःख तो इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (Indian Banks' Association) के रवैये से हुआ, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया - "IBA maintained that any demand of retirees can be examined as a welfare measure as contractual relationship does not exist between banks and retirees." यह तो ऐसा वक्तव्य है जैसे वे कहना चाह रहे हों कि बैंक जो पेंशन सेवानिवृतों को दे रहे हैं, उसके लिए बैंकों की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है, यह तो कल्याण उपाय (welfare measure) के तौर पर दी जाने वाली राशि है, जो उनकी दया-अनुकम्पा है और जिसे कभी भी रोका जा सकता है. कितना ग़लत है ऐसा नजरिया ?

कानूनी रूप से देखा जाए तो इंडियन बैंक्स एसोसिएशन की सोच ग़लत है. वास्तव में पेंशन सेवानिवृत कर्मचारी/अधिकारी का वैधानिक अधिकार है, जो पेंशन रेग्युलेशन. 1995 से मिला, जो 29 सितंबर 1995 को अधिसूचित हुआ था. पेंशन रेग्युलेशन सेवानिवृत कर्मचारी/अधिकारी से संविदात्मक संबंध (contractual relationship) को स्वीकार करता है. पेंशन एक आस्थगित वेतन (deferred wage) है और इस तथ्य को पूरा विश्व स्वीकार करता है. आज जब संस्थाएँ सामाजिक उत्तरदायित्व (social responsibility) से अपने आपको अलग नहीं कर सकते तो इंडियन बैंक्स एसोसिएशन कैसे पेंशन सुधार से अपना मुँह मोड़ रहा है, यह समझ के बाहर है.

दुःख होता है इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के अधिकारियों पर जो संकीर्ण सोच रखते हैं और इसी कारण इंडियन बैंक्स एसोसिएशन का एक ग़लत नजरिया बना है. क्या वे नही जानते कि कभी वे भी सेवानिवृत होंगे.

- केशव राम सिंघल

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गुरुवार, 9 जुलाई 2015

एक नजर यह भी ... राष्ट्रगान पर बेवजह विवाद


एक नजर यह भी ...
राष्ट्रगान पर बेवजह विवाद


राजस्थान राज्य के राज्यपाल ने राष्ट्रगान से 'अधिनायक' शब्द हटाने की बात कही है और इस प्रकार एक विवाद को हवा देने का प्रयास किया है।

भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' है, जो मूलतः बांग्ला भाषा में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था, जिसे भारत सरकार द्वारा 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान के रूप में अंगीकृत किया गया। इसके गायन की अवधि लगभग 52 सेकेण्ड निर्धारित है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्व के एकमात्र व्यक्ति हैं, जिनकी रचना को एक से अधिक देशों में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है। उनकी एक दूसरी कविता 'आमार सोनार बाँग्ला' को बांग्लादेश में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है।

हमारे देश का राष्ट्रगान ना केवल हमारी पहचान है बल्कि हमारी आन-बान-शान का प्रतीक् भी है। सोशल मीडिया (व्हाट्सअप्प) पर ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि हमारे राष्ट्रगान को यूनेस्को की ओर से विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान करार दिया गया, जो बहुत ही गौरव की बात है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर की लिखी कविता, जो भारत का राष्ट्रगान है, पर बहस 1911 से ही होती रही जिस समय इसे लिखा गया था। विवाद पैदा करने वाले लोग इस तथ्य पर ध्यान नही देते कि 1937 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पुलिन बिहारी सेन को लिखे एक पत्र में यह स्पष्ट किया था कि यह कविता ब्रिटिश शासकों की प्रशंसा में नहीं लिखी गई।

राष्ट्रगान ऐसा गाना होता है, जो किसी भी देश के इतिहास और परंपरा को दर्शाता है। राष्ट्रगान उस देश को न केवल एक अलग पहचान देता है, बल्कि उसका लयात्मक संगीत सभी देशवासियों को एकजुट भी करता है। हमारा राष्ट्रगान ऐसा ही है। हमें इस पर गर्व होना चाहिए। गुरुदेव टैगोर ने राष्ट्रगान ‘जन गण मन..’ की रचना की। पहले उन्होंने इसे एक बंगाली कविता के रूप में लिखा था। 27 दिसम्बर 1911 को कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक सभा में इसे पहली बार गाया गया था। जिस 'अधिनायक' शब्द पर विवाद पैदा किया जा रहा है, उसका अर्थ 'नेतृत्व' (Leadership) से है और यही कवि की भावना थी।

यह सब जानने के बाद हमें राष्ट्रगान पर बेवजह विवाद से बचना चाहिए।

- केशव राम सिंघल

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बुधवार, 8 जुलाई 2015

एक नजर यह भी ..... पार्षद से मेरी अपेक्षाएँ


एक नजर यह भी .....
पार्षद से मेरी अपेक्षाएँ


पिछली बार अजमेर नगर निगम के चुनाव 18 अगस्त 2010 को हुए थे और तब चुनाव के बाद हमारे वार्ड के नवनिर्वाचित पार्षद महोदय एक बार मेरे मोहल्ले में आए थे, पर उसके बाद मैंने उन्हें कभी नहीं देखा.जब वे आए थे, तब उन्होंने मोहल्लेवासियो को कई आश्वासन दिए थे, पर वे केवल आश्वासन ही रहे. आमतौर से नागरिकों की नगर निगम और पार्षद से कुछ अपेक्षाएँ होती हैं, जिसमे सुशासन का होना, स्ट्रीट लाइट्स का समय पर जलना-बंद होना, खराब स्ट्रीट लाइट्स का जल्द ठीक होना, नियमित सफाई व्यवस्था का होना, नालियों की समय-समय पर मरम्मत, सड़कों की मरम्मत आदि शामिल होती हैं. इन सभी कार्यों में पार्षद की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, पर मुझे यह लिखते हुए तनिक भी संकोच नही है कि हमारे वार्ड के पार्षद महोदय का जन-संपर्क बहुत ही सीमित है और मेरा विश्वास है कि इस शहर के अन्य पार्षदों की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है. अखबारों के माध्यम से ज्ञात होता रहता है कि नगर निगम की समय-बद्ध नियमित साधारण-सभा (बैठकें) भी आयोजित नहीं हो पाती हैं और ज्यादातर पार्षद अप्रत्यक्ष तौर से ठेकेदारी के काम से नगर निगम से जुड़े हुए हैं. यह स्थिति किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है.

नगर निगम चुनावों को अब पाँच साल पूरे होने को हैं और सम्भवत: अगस्त 2015 में नगर निगम के अगले चुनाव होंगे. यह एक ऐसा मौका होगा जब अजमेर शहर के नागरिक अपने-अपने वार्ड के लिए पार्षद चुन सकेंगे. पार्षद कैसा होना चाहिए, यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है. एक नागरिक होने के नाते हमें इस पर विचार करना चाहिए. इस सम्बन्ध में मेरी अपेक्षाएँ निम्न हैं:

- पार्षद ऐसा हो जो वार्ड में जनता के बीच आसानी से उपलब्ध हो सके. वह् प्रतिदिन अपने निवास पर प्रात: दो घंटे के लिए और उसके बाद नगर निगम कार्यालय में एक निश्चित समयावधि के दौरान जन-संपर्क के लिए उपलब्ध रहे.
- पार्षद के निवास पर एक सुझाव/शिकायत् पुस्तिका होनी चाहिए, जिसमें वार्ड के नागरिक वार्ड से संबंधित अपनी शिकायत/समस्या/सुझाव लिख सकें.
- पार्षद के पास वर्तमान तकनीक के संचार साधन हों तथा उसका ईमेल और मोबाइल/फोन नंबर वार्ड के नागरिकों को सूचित हो.
- सार्वजनिक तौर से पार्षद अपने वार्ड में समय-समय पर मौहल्ला-सभा आयोजित करे, जिसमें सफाई-रोशनी व्यवस्था, विकास कार्यों और वार्ड से संबंधित मुद्दों पर चर्चा हो.
- पार्षद यह सुनिश्चित करे कि विवाह-पंजीयन, जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र, मानचित्र स्वीकृति आदि कार्यों के लिए नागरिकों को बार-बार चक्कर नहीं लगाने पड़े.
- पार्षद समय-समय पर अपने वार्ड के प्रत्येक क्षेत्र में जाकर सफाई-रोशनी व्यवस्था और विकास कार्यों का मुआयना कर आवश्यक सुधार के कदम उठाए.
- पार्षद अपने वार्ड के लिए एक वार्ड समिति बनाए, जिसमें प्रत्येक मौहल्ले के नागरिकों का प्रतिनिधित्व हो.
- वार्ड के प्रत्येक क्षेत्र में लगाए गए सफाई कर्मचारियों की जानकारी पार्षद वार्ड के नागरिकों को दे.
- पार्षद नगर-निगम से संबद्ध ठेकेदारी का काम नहीं करे.
- पार्षद समय-समय पर आयोजित नगर-निगम की बैठकों में दल-गत राजनीति को परे रखते हुए अपने वार्ड के विकास और समस्या-निराकरण के लिए सकारात्मक विचारों के साथ भाग ले.


एक नागरिक होने के नाते हमें भी दल-गत राजनीति से ऊपर उठकर ऐसे प्रत्याशी को पार्षद चुनना चाहिए, जो वार्ड के विकास के साथ-साथ अजमेर शहर के विकास में अपनी भूमिका निभा सके.

"विकास में जनता की भागीदारी तभी सुनिश्चित होगी,
जब जनता जागरूक होगी,
स्थानीय निकाय में सुशासन तभी आएगा,
जब जनता जागरूक होगी.

सशक्त अजमेर के लिए आओ कुछ नया सोचें, लिखें और करें
और भागीदार बने इस शहर को विकास के पथ पर आगे बढ़ाने में."

- केशव राम सिंघल

(अजमेर शहर के मित्रों से निवेदन है कि जागरूकता के लिए इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करें. कृपया अपनी टिप्पणी से अवगत कराएँ. धन्यवाद.)
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मंगलवार, 7 जुलाई 2015

एक नजर यह भी .... विकास की अंधाधुंध दौड़


एक नजर यह भी ....

विकास की अंधाधुंध दौड़


भारतीय बैंक क़रीब तीन लाख करोड़ का कर्ज़ फंसाए बैठे हैं, जिनमें 40 फीसदी कर्ज़ सिर्फ़ 30 बड़ी कंपनियों पर बकाया है. भारत में बैंक नहीं डूबते क्योंकि सरकार बजट से पैसा देती रही है. (इंडिया टुडे, अंक 15 जुलाई 2015)

हमें ग्रीस (यूनान) से सीखना चाहिए कि विकास के बाद भी एक विकसित देश दिवालिया हो सकता है. हमें विकास की अंधाधुंध दौड़ में शामिल नहीं होना चाहिए, वरन् सतत् विकास (sustainable development) की ओर ध्यान देना चाहिए, ऐसा आर्थिक विकास जो प्राकृतिक संसाधनों की कमी के बिना आयोजित किया जाता है.

- केशव राम सिंघल
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एक नजर यह भी ..... राजनीति में नैतिक मूल्य


एक नजर यह भी .....

राजनीति में नैतिक मूल्य


भ्रष्टाचार समाप्त करने और शासन में पारदर्शिता लाने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दावे अब छिन्न-भिन्न हो गए लगते हैं. मोदी सरकार के गठन के 14 महीनों के अन्दर ही भाजपा शासित राज्यों में घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है.

विदेशमंत्री सुषमा स्वराज व राजस्थान मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे द्वारा ललित मोदी की तरफदारी, मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा शैक्षणिक योग्यता के लिए दिए गए हलफनामें, मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाला तथा छत्तीसगढ़ में पीडीएस चावल घोटाला ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर संसद के आगामी मानसून सत्र में विपक्ष तीखे तेवर दिखा सकता है, पर लोकसभा में विपक्ष संख्याबल के आधार पर कमजोर स्थिति में है. इन सब मुद्दों के कारण जनता के बीच नरेन्द्र मोदी सरकार की छवि तेजी से गिरने लगी है.

व्यापम घोटाला उजागर होने के बाद घोटाले से संबंधित 45 से अधिक लोग रहस्यमय परिस्थितियों में मर चुके हैं. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सीबीआई जाँच की माँग ठुकरा दी है. 'मन की बात' कहने वाले प्रधानमंत्री इन मुद्दों पर चुप हैं. नैतिक रुप से तीनों मुख्यमंत्रियों और दोनों केंद्रीय मंत्रियों को अपने पदों से इस्तीफा देकर स्वतंत्र जाँच में सहयोग करना चाहिए, पर वर्तमान भारतीय राजनीति में ऐसा संभव नहीं लग रहा क्योंकि राजनीति में नैतिक मूल्यों का बहुत तेजी से ह्रास होता दिख रहा है.

- केशव राम सिंघल
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