शनिवार, 9 जनवरी 2021

इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक का प्रारम्भ और कोविड-19 से अंतिम युद्ध

 इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक का प्रारम्भ और कोविड-19 से अंतिम युद्ध  

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इक्कीसवीं सदी का तीसरा दशक एक उलझन के साथ शुरू हुआ। इस सदी के दूसरे दशक का अंत बहुत दु:खद अनुभव देकर गया। दूसरे दशक का अंतिम साल कोविड-19 संक्रमण के साथ शुरू हुआ। प्रारम्भ में कोविड-19 संक्रमण के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं थी, इसलिए शुरू के कुछ महीने भ्रम की स्थित में बीते। डर का माहौल था, सरकार ने मार्च में लॉकडाउन लगा दिया, काम-धंधे रुक गए, आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई थीं।  

 

कोविड-19 के कारण विश्व अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। हमारे देश को अनेक परिस्थितियों से गुजरना पड़ा। हमारे देश में बहुत से बच्चों की पढ़ाई छूट गई, क्योंकि उनके पास स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन नहीं हैं। हालांकि ऑनलाइन कक्षाएं चल रही हैं और तकनीक के माध्यम से शिक्षा जारी रखने के प्रयास हो रहे हैं, पर अधिकतर छात्रों के पास तकनीक सुविधाएं होने के कारण वे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग नहीं ले पा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ भारत में करीब 75  प्रतिशत छात्र लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में भाग नहीं ले सके और अभी भी ऐसे छात्रों की बड़ी संख्या है, जो ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं।

 

एक अनुमान के मुताबिक़ 75 फीसदी छात्र पढाई में एक साल पिछड़ जाएंगे क्योंकि बच्चों और उनके माता-पिता के पास स्मार्टफोन नहीं हैं। ग्रामीण इलाकों में मात्र 15 फीसदी लोगों के पास ही फोन कनेक्टिविटी है। भारत में आधी आबादी के पास इंटरनेट सुविधा नहीं है। 2018 की नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में पचपन हजार गाँवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के 2017- 18 के सर्वेक्षण के अनुसार भारत के 36 प्रतिशत स्कूलों में बिजली नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक़ देश में लगभग 28.6 करोड़ छात्र-छात्राओं की पढ़ाई-लिखाई प्रभावित हुई है। उच्च शिक्षा के लिए अब छात्र दूसरे शहर में जाने को तैयार नहीं हैं और ऐसे छात्रों की संख्या लगभग 47 प्रतिशत है।

 

मानव जाति ने इतनी प्रगति कर ली है कि वह स्थिति का मुकाबला करने के लिए नई-नई खोज कर तकनीक में बढ़ोतरी कर लेती है। तकनीक तो खोज ली जाती है, पर तकनीक खरीदने और उसका उपयोग करने के लिए आधी आबादी के पास पैसा नहीं है, आय कम है, गरीबी बढ़ रही है और बाजार सिकुड़ रहा है। 

 

बाजार सिकुड़ने और आर्थिक गतिविधियों के रुक जाने के कारण एक तरफ बेरोजगारी बढ़ी, रोजगार कम हुए, पर यह आश्चर्य की बात है कि कोविड-19 काल में कॉर्पोरेट सेक्टर में कंपनियों की आय में इजाफा हुआ है। अप्रेल 2020 से जुलाई 2020 के बीच भारतीय अरबपतियों की आय में 423 अरब डॉलर की  वृद्धि हुई। इसे पूंजीवाद की खासियत ही कहा जाएगा कि पूंजीपतियों ने कोविड-19 संकटकाल को एक अवसर के रूप में पहचाना और अपनी आय को बढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।    

 

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की लाचारी देखने को मिली। असंख्य लोगों की भीड़ अपने घर-गाँव/शहर की और पैदल ही भाग रही थी, क्योंकि उस समय यातायात के साधन रेल और बस बंद थीं। 

 

कोविड-19 महामारी ने हमें बहुत सी चीजें सिखा दी हैं।  हम सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन करने लगे हैं, मास्क प्रोटोकॉल का पालन करते हैं, लॉकडाउन नियमों का पालन करते हैं, जूम मीटिंग में भाग लेते हैं, घर से ही बहुत से व्यावसायिक काम करते हैं, हमारे बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेते हैं, डॉक्टर से ऑनलाइन परामर्श लेते हैं, घर की बहुत सी चीजें ऑनलाइन मंगाते हैं। और यह सब करते हुए हमें इस बात की आशा है कि कोविड-19 महामारी को हम पछाड़ कर ही दम लेंगे। हालांकि कोविड-19 महामारी के दुःखान्त असर को हम सबने महसूस किया है। इस दौरान हमारे  आसपास के बहुत से लोग कोविड-19 संक्रमण से बीमार हुए और  बहुतों ने इस संसार को छोड़ भी दिया। हर रात के बाद सुबह आती है, दुःख के बाद सुख आता है, इसी आशा और विश्वास के साथ हम कोविड-19 महामारी को पछाड़ने में लगे हैं।  वैसे भी मानव जाति में दर्द और नुक्सान जज्ब करने की अकूत क्षमता है।

 

भारत 31 दिसंबर 2020  तक एक करोड़ दो लाख छियासठ हजार छह सौ चौहत्तर संक्रमण मामलों के साथ दुनिया में सबसे अधिक कोविड-19 महामारी संक्रमण वाला दूसरा देश है, फिर भी संतोष इस बात का है कि कोविड-19 महामारी से हुई एक लाख अड़तालीस हजार सात सौ अड़तीस मौतों के साथ हमारा देश कोविड-19 महामारी से हुई सबसे कम मृत्यु दर वाला देश है।

 

सकारात्मक बात है कि वैक्सीन की खोज के पराक्रम ने मानव जाति की आशा और विश्वास को बढ़ाया है। और हम आशा करते हैं कि भारत सरकार वैक्सीन-अभियान इस तरह आयोजित करेगी कि आम जनता जल्द से जल्द कोविड-19 से बचाव का टीका लगवा पाए।

 

इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक का प्रारम्भ हो गया है और कोविड-19 से अंतिम युद्ध में हम ही जीतेंगे, इसी विश्वास और आशा के साथ,

 

- केशव राम सिंघल