मंगलवार, 9 मई 2023

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप

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महाराणा प्रताप

9 मई 1540 को

कुंभलगढ़ दुर्ग (मेवाड़) में जन्में

सिसोदिया राजवंश के राजा थे।

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महाराणा प्रताप

वीरता शौर्य दृढ़ता और पराक्रम के लिए अद्भुत मिसाल थे।

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महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक

28 फरवरी 1572 को हुआ था।

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महाराणा प्रताप ने

बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।

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हल्दीघाटी युद्ध 18 जून 1576 को हुआ था,

जिसमें महाराणा का घोड़ा चेतक मारा गया था।

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मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप और मुस्लिम सरदार हकीम खाँ सूरी ने किया था।

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इस युद्ध के बाद

महाराणा प्रताप जंगलों पहाड़ों में रहते

और बाद में जब 1582 में दिवेर के युद्ध में महाराणा ने खोया राज्य पुनः पाया,

महाराणा ने चावण्ड (मेवाड़) को अपने राज्य की राजधानी बनाया,

जहाँ 19 जनवरी 1597 को महाराणा ने अंतिम साँस ली।

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महाराणा ने कठिन समय बिताया, घास के बीज से बनी चपाती तक खाई, पर अपने स्वाभिमान को झुकने न दिया।

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ऐसे वीर शिरोमणि को सादर नमन।


- केशव राम सिंघल




सोमवार, 8 मई 2023

बातों ही बातों में - 03

बातों ही बातों में - 03 
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केशव राम सिंघल
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हर वक्तव्य, हर बात का महत्त्व है, किसी का कम, किसी का अधिक। आप पढ़े और सोचे, यही उद्देश्य है 'बातों ही बातों में' श्रृंखला का।
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संस्कृतियों के टकराने से सभ्यताएँ खत्म नहीं होतीं। 
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ह्रदय शुद्ध हो तो होने वाले कर्म भी सतगुण से भरे होंगे। 
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चक्र सृष्टि की सर्वोत्तम और अद्भुत आकृति है, जिसका आदि-अंत कुछ नहीं है। 
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समुद्र का मंथन देवताओं और दैत्यों ने मिलकर किया था जिससे चौदह रत्न प्राप्त हुए थे। 
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समुद्र-मंथन से सबसे पहला रत्न हलाहल (कालकूट) विष निकला था, जिसकी ज्वाला बहुत ही तीव्र थी। इस विष को भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था। 
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समुद्र-मंथन से निकलने वाले अन्य रत्न निम्न थे - सुरभि कामधेनु गाय, श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत श्वेत हाथी, कौस्तुभ मणि, दुनिया का पहला धर्मग्रंथ कल्पद्रुम, प्रसिद्ध सुंदर अप्सरा रंभा, समृद्धि (लक्ष्मी), वारुणी नामक मदिरा,  तपस्वी अत्रि और अनुसूया की संतान चन्द्रमा, पारिजात (हरसिंगार) वृक्ष, पांचजञ्य शंख, भगवान धन्वंतरि वैद्य के साथ अनेक औषधियाँ। 
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समुद्र-मंथन के अंत में अमृत का कलश निकला था, जो चौहदवाँ रत्न था। 
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कल्पना की शक्ति मानसिक स्वतंत्रता का प्रतीक होती है और रचनाकारों के लिए एक बहुत अहम स्रोत होती है। 
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सम्प्रेषण या संसार शब्दों पर ही निर्भर नहीं। 
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ब्रिटेन का चर्चिल भारतीय महात्मा गाँधी से घृणा करता था। चर्चिल कहता था - गाँधी अधनंगा फ़कीर है। ये वही गाँधी थे जो साल 1931 में जब गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए तो वहाँ के सम्राट जॉर्ज पंचम ने उन्हें बकिंघम पैलेस में चाय पर बुलाया और अंग्रेज़ क़ौम ये देख कर उस समय दंग रह गई कि इस औपचारिक मौक़े पर भी गाँधी एक धोती और चप्पल पहने राजमहल पहुँचे। 
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त्याग यह नहीं है कि मोटे और खुरदरे वस्त्र पहन लिए जाएँ और सूखी रोटी खाई जाए, त्याग तो यह है कि अपनी इच्छा, अभिलाषा और तृष्णा को जीता जाए।  - सुफियान सौरी
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लोकगीतों में संवेदना की वह तपिश होती है, जिसकी आँच हर ह्रदय को लगती है। लोकगीतों में अनुभूतियों की वह शीतलता होती है जो संघर्षों से जूझते, श्रमशान्त व्यक्ति के लिए सुधा बनकर बरसती है।  
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संस्कृति समाज का दर्पण है। संस्कृति का संरक्षण ही समाज की सुरक्षा है।  
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इतिहास को खोद-खोद कर मत निकालो। इससे अशांति फैलेगी।  
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मैं श्रेष्ठ हूँ, यह आत्मविश्वास है। मैं ही श्रेष्ठ हूँ, यह अभिमान है। 
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पैरों में जूता हो या ना हो, हाथों में किताब जरूर होनी चाहिए।  - बाबा साहब अम्बेडकर 
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डरा हुआ आदमी दरअसल मरा हुआ आदमी होता है। 
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अतीत को हम बनाए नहीं रख सकते। जो कल था, वह आज नहीं है। जो आज है, वह कल नहीं होगा। परिवर्तन नियति का नियम है। स्थायित्व शाश्वत नहीं, परिवर्तन शाश्वत है। 
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शिक्षा की परिकल्पना जाति, धर्म, वर्ग, राजनीति से ऊपर उठकर होनी चाहिए। शिक्षा का आधार नैतिकता होनी चाहिए, जो एक यथार्थ मानव का सृजन कर सके और सभी को समाहित करने की शक्ति शिक्षा-प्रणाली में होनी चाहिए। 
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देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं। देश हम और आप हैं। 
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अडानी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने जाँच समिति बैठा दी है तो फिर कांग्रेस जेपीसी की माँग क्यों कर रही है? यह प्रश्न मेरे मस्तिष्क में बार-बार आता रहा। अब तो एनसीपी नेता शरद पवार ने भी अडानी मामले में जेपीसी की माँग का समर्थन नहीं किया है। इस सम्बन्ध में कांग्रेस ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय की तरफ से बनाई गई समिति का जाँच का दायरा बहुत सीमित है।
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सरकार के सामने खड़ा रहता एक मुद्दा  - येन केन प्रकारेण प्रतिरोध दबाना है। 
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दुःखद स्थिति -  राजनीतिक दल परिवारवाद का विरोध करते हैं, पर टिकट परिवारवाद के आधार पर देते हैं। 
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रूसी लेखक रसूल हमजातोव ने एक बार कहा था - "मेरी कविता मेरा सृजन करती है और मैं अपनी कविता का।" इस प्रकार देखा जाए तो कवि और कविता एक दूसरे के सृजक हैं। इसी प्रकार हम कह सकते हैं कि कृति रचनाकार (कृतिकार) का सृजन करती है और रचनाकार (कृतिकार) कृति का। दूसरे शब्दों में - कला कलाकार का सृजन करती है और कलाकार कला का। 
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युग चार हैं - सत-युग, त्रेता-युग, द्वापर-युग और कलयुग। सतयुग कलियुग से चार गुना लंबा है। 
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रामायण की घटनाएँ त्रेता-युग में घटित हुई थी। फिलहाल कलियुग चल रहा है। 
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आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत के युद्ध 3136 ईसा पूर्व को हुआ था। महाभारत युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है। भागवत पुराण ने अनुसार श्रीकृष्‍ण के देह छोड़ने के बाद 3102 ईसा पूर्व कलिकाल का प्रारंभ हुआ था। महाभारत द्वापर में हुआ था।
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शेष फिर ,,,,,,,,,,,,, 



शुक्रवार, 5 मई 2023

फाँसी की सजा

फाँसी की सजा

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हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है। व्यक्ति अपनी खुद की जान नहीं ले सकता, आत्महत्या भी कानूनन अपराध है। फाँसी की सजा अमानवीय होने के साथ मानव के जीने के अधिकार और मानव सम्मान का उल्लंघन है। कई देशों ने फाँसी की सजा पर रोक लगा दी है। 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बताया था कि 170 देशों ने या तो फाँसी को समाप्त कर दिया है या इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। एक जानकारी के अनुसार 29 देश ऐसे भी हैं जहाँ मृत्युदंड या फाँसी की सजा का प्रावधान है, लेकिन इनमें से किसी ने एक दशक से इस दंड का इस्तेमाल नहीं किया है। 7 देश ऐसे हैं जहाँ फाँसी अपवाद स्वरूप है, जिसे गंभीर अपराध, जैसे युद्ध के दौरान की स्थिति, के लिए दिया जा सकता है। 56 देशों ने मृत्युदंड के कानूनी प्रावधानों को बना रखा है। भारत, मलेशिया, बारबाडोस, बोत्सवाना, तंजानिया, जाम्बिया, जिम्बाम्बे, दक्षिण कोरिया ऐसे देश हैं जहाँ मृत्युदंड फाँसी के रूप में दी जाती है। अफगानिस्तान और सूडान में मृत्युदंड पत्थर मारकर, गोली मारकर या फाँसी देकर दी जाती है। बांग्लादेश, कैमरून, सीरिया, युगांडा, कुवैत, ईरान, मिस्र में मृत्युदंड गोली मारकर या फाँसी देकर दी जाती है। यमन, टोगो, तुर्केमिस्तान, थाईलैंड, बहरीन, चिली, इंडोनेशिया, घाना, अर्मीनिया में गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। चीन में मृत्युदंड जहरीला इंजेक्शन और फाँसी देकर दिया जाता है। फिलीपींस में गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। अमेरिका में बिजली के करेंट से, गैस से, फाँसी देकर या गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। सऊदी अरब में सिर कलम कर मृत्युदंड दिया जाता है।

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कुछ लोगों का मानना है कि मृत्युदंड पर पूरी तरह से रोक होनी चाहिए। भारत में भी लम्बे समय से फाँसी की सजा ख़त्म करने या मृत्यु के लिए कम पीड़ादायक विकल्प की माँग उठती रही है। वकील ऋषि मल्होत्रा ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर फाँसी की सजा देने के स्थान पर सभ्य और मर्यादित विकल्प तलाशने की माँग की थी। इस मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने 27 मार्च 2023 को केंद्र सरकार से उस कानून के बारे में अपना पक्ष रखने को कहा था, जो मृत्युदंड के मामले में मौत के लिए दोषी को सांस रुकने तक फाँसी की इजाजत देता है। केंद्र सरकार ने मंगलवार 2 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फाँसी की जगह कम पीड़ादायक मौत का विकल्प तलाश करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर विचार कर रही है। अब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जुलाई 2023 में होगी।

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सभ्य समाज में सजा की संकल्पना अपराधी को सुधारने के उद्देश्य से की गई है, न कि उनकी जान लेकर। फाँसी की सजा वह उद्देश्य पूरा नहीं करती, जिसके लिए सजा की संकल्पना की गई है। एक अध्ययन से यह भी जानकारी सामने आई कि कुछ लोगों को फाँसी की सजा दे दी गई, पर बाद में पता चला कि जिस अपराध के लिए उन्हें फाँसी दी गई, वह अपराध उन्होंने नहीं किया था। इस प्रकार निर्दोष लोगों को फाँसी की सजा दे दी गई, जो एक ऐसा गलत कदम था जिसे सुधारा नहीं जा सकता। फाँसी की सजा एक बदला लेने वाली मानसिकता है, जिससे अपराधी का सुधार भी संभव ही नहीं है। किसी भी सभ्य समाज को बदला लेने वाली मानसिकता से बचना चाहिए।

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जैसा कि बताया गया है कि 170 देशों ने या तो फाँसी को समाप्त कर दिया है या इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। क्या हम उन देशों में आ सकते हैं जिन्होंने फाँसी को समाप्त कर दिया है या इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है? हालाँकि हमारे देश में लम्बे समय से फाँसी की सजा ख़त्म करने या फाँसी के लिए कम पीड़ादायक विकल्प की माँग उठती रही है।


- केशव राम सिंघल 



 

अप्प दीपो भवः

अप्प दीपो भवः

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सार्थक जीवन के लिए

अप्प दीपो भवः अपना दीपक खुद बनो

अपनी बुद्धि-विवेक और प्रज्ञाशक्ति का इस्तेमाल करो।

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सार्थक जीवन के लिए

अंधविश्वास आडम्बर रूढ़िवादी परम्पराएँ त्यागो

दर्शन अनुभव अनुभूति से अंतर्मन शुद्ध करो।

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सार्थक जीवन के लिए

बुद्धं शरणं गच्छामि

मुक्ति के लिए सम्यक मार्ग अपनाओ।

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सार्थक जीवन के लिए

अहिंसा और करुणा से संवेदनशील बनो

और इस जगत के हर प्राणी के साथ मैत्रीभाव रखो।

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टिप्पणी - “बुद्धं शरणं गच्छामि” बौद्ध धर्म का मूलमंत्र है। इसकी दो और पंक्तियों में “संघं शरणं गच्छामि” और “धम्मं शरणं गच्छामि” भी है। बौद्ध धर्म की मूल भावना को बताने वाला यह पद गौतम बुद्ध की शरण में जाने का अर्थ रखता है। बुद्ध को जानने के लिए उनकी शिक्षाओं की शरण लेना हितकर है। मुक्ति के लिए बुद्ध के सम्यक मार्ग के आठ अंग, जिन्हें अष्टांगिक मार्ग भी कहा जाता है - (1) सम्यक दृष्टि, (2) सम्यक संकल्प, (3) सम्यक वचन, (4) सम्यक कर्म, (5) सम्यक आजीविका, (6) सम्यक व्यायाम, (7) सम्यक स्मृति, और (8 ) सम्यक समाधि।

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बुद्ध पूर्णिमा और श्री बुद्ध जयन्ती पर हार्दिक शुभकामनाएँ।


- केशव राम सिंघल


सम्यक = उचित = यथोचित = विशिष्ट = आत्मीय = संगत = शुद्ध