सोमवार, 24 जुलाई 2023

समान नागरिक संहिता - 3

समान नागरिक संहिता - 3

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समान नागरिक संहिता (UCC) पर यह मेरा तीसरा लेख है। देश के प्रमुख समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका 7 जुलाई 2023 में समान नागरिक संहिता से संबधित समाचार प्रकाशित हुआ, जिसका सार निम्न है -

- केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता पर वरिष्ठ मंत्रियों का एक अनौपचारिक समूह बनाया गया है, जो समान नागरिक संहिता से सम्बंधित अलग-अलग मुद्दों पर विचार विमर्श करेंगे। इस समूह का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के हाथों में सौंपी गई है और स्मृति ईरानी, जी किशन रेड्डी और अर्जुन राम मेघवाल को शामिल किया गया है।

- किरेन रिजुजू आदिवाइयों से जुड़े मुद्दों पर, स्मृति ईरानी महिला अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर, जी किशन रेड्डी पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़े मुद्दों पर तथा अर्जुन राम मेघवाल कानूनी मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे।

- केंद्र सरकार के विधि आयोग ने धार्मिक संगठनों और जनता से समान नागरिक संहिता पर विचार 15 जुलाई 2023 तक माँगे हैं।

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अब हमारे सामने कुछ प्रमुख प्रश्न सामने हैं -

(1) भारत में अभी तक समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू हुई?

(2) समान नागरिक संहिता का विभिन्न धर्मों पर क्या प्रभाव पडेगा?

(3) समान नागरिक संहिता के प्रति विभिन्न धर्मों के मानने वालों की क्या राय है?

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भारत एक विशाल देश है, जिसमें विभिन्न धर्मों के मानने वाले रहते हैं। भारत का मूल ताना-बाना 22 आधिकारिक भाषाओं, 398 बोलियों और 645 जनजातियों का मिश्रण है, जिनकी सामाजिक प्रथाएँ एक-दूसरे से भिन्न हैं। यदि समान नागरिक संहिता लागू की जाती है तो उनके प्रथागत कानून समाप्त होने की आशंका है, इसलिए अनुसूचित जनजाति विशेषकर आदिवासी समाज के लोग, मुसलमान, ईसाई आदि इसका विरोध करते रहे हैं।

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समान नागरिक संहिता का विभिन्न धर्मों पर पड़ने वाले कुछ प्रभावों को नीचे दिया जा रहा है -

- समान नागरिक संहिता के आने के बाद हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा।

- हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम समाप्त हो जाएँगे और हिन्दुओं के विवाह और उत्तराधिकार के मामले एक समान कानून के अंतर्गत लाए जाएँगे।

- हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2(2) के तहत हिन्दू विवाह अधिनियम अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होते हैं। अनुसूचित जनजातियों, आदिवासी समाज अपनी परम्पराओं और प्रथाओं के आधार पर चलता है। समान नागरिक संहिता के आने के बाद क्या अनुसूचित जनजातियों और आदिवासी समाज के लोगों को अपनी परम्पराओं और प्रथाओं को छोड़ना होगा, यह प्रश्न सामने आ खड़ा हुआ है।

- अगर समान नागरिक संहिता अधिनियम आता है तो मुस्लिम परसनल (शरीयत) अप्लीकेशन एक्ट 1937 समाप्त हो जाएगा और मुसलमानों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु बदल जाएगी और बहु-विवाह प्रथा समाप्त हो जाएगी।

- सिखों में विवाह सम्बन्धी कानून आनंद विवाह अधिनियम 1909 के अंतर्गत आते हैं, जिसमे विवाह-विच्छेद का कोई प्रावधान नहीं है। अभी तक सिखों के विवाह विच्छेद मामले हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत निपटाए जाते थे। अगर समान नागरिक संहिता अधिनियम आता है तो आनंद विवाह अधिनियम समाप्त हो जाएगा।

- ईसाई तलाक अधिनियम 1869 के अंतर्गत आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन देने से पहले पति-पत्नी को कम से कम दो साल अलग रहना जरूरी है। ईसाई प्रथाओं के अंतर्गत ईसाई माताओं का उनके मृत बच्चों की सपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है। समान नागरिक संहिता अधिनियम आने के बाद ये कानून और प्रथाएं बदल जाएंगे। इसी प्रकार पारसी विवाह और तलाक अधिनियम के प्रावधान भी समाप्त हो जाएंगे, जिनके अंतर्गत यदि पारसी महिला किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह करती है तो वह पारसी रिवाजों के अधिकार खो बैठती है।

- समान नागरिक संहिता के आने के बाद हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा अर्थात्त सभी के लिए एक जैसा कानून विवाह के लिए, विवाह-विच्छेद के लिए, बच्चा गोद लेने के लिए और संपत्ति के बटवारे के लिए।

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इस प्रकार देखा जाए तो समान नागरिक संहिता का व्यापक प्रभाव भारतीय समाज पर पडेगा। अयोध्या में राम मंदिर बनाने और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को खत्म करने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार अब अपने तीसरे सबसे बड़े राजनीतिक लक्ष्य समान नागरिक संहिता पर तेजी से आगे बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पूरी राजनीति समान नागरिक संहिता के आसपास नजर आती दिख रही है। इसी बीच समाज के कई वर्गों से भी तीव्र और तीखा विरोध भी सुनने को मिल रहा है। नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम समाज के साथ आदिवासी समाज कर रहा है। आदिवासी समाज परंपराओं, प्रथाओं के आधार पर चलता है और समान नागरिक संहिता यानी कि एक समान कानून लागू होने से आदिवासियों की अस्मिता ही खत्म हो जाएगी। फिलहाल आदिवासी समाज / संगठनों के विरोध पर भाजपा नेताओं ने भी चुप्पी साध रखी हैं। आदिवासी संगठनों का कहना है कि अगर समान नागरिक संहिता आदिवासियों पर लागू हो जाती है, तो आदिवासी समाज की पहचान ही खत्म हो जाएगी। उनका कहना है कि समान नागरिक संहिता संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत आने वाले राज्यों (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना) के आदिवासी इलाकों में लागू ही नहीं हो सकता है। अतः ऐसा लगता है कि भाजपा सरकार सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए समान नागरिक संहिता को लेकर आगे बढ़ रही है।

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वैसे अभी तक सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता से सम्बंधित आने वाले अधिनियम का कोई ड्राफ्ट अभी तक जनता के बीच साझा नहीं हुआ है, अतः कुछ अधिक कहना कठिन लगता है। अधिकतर नागरिक प्रतिक्रियाएं बदल सकती हैं, यदि कुछ वर्गों (जैसे आदिवासी समाज) पर समान नागरिक संहिता से छूट दे दी जाए। इस प्रकार भाजपा अपने राजनीतिक उद्देश्य को यह कह कर पूरा कर लेगी कि वे समान नागरिक संहिता ले आए और राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करेंगे, पर वास्तव में वे समान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू नहीं कर पायेगे। यह कुछ ऐसा ही होगा कि कथनी कुछ, करनी कुछ।

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- केशव राम सिंघल

(10 जुलाई 2023 को लिखा और फेसबुक पर साझा भी किया।)


#समान_नागरिक_संहिता - 3

शनिवार, 1 जुलाई 2023

समान नागरिक संहिता - 2

समान नागरिक संहिता - 2

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मैंने 28 जून 2023 को 'समान नागरिक संहिता' विषय पर एक लेख साझा किया था, जिसमें इस बात को लेख के अंत में रखा था कि समान नागरिक संहिता को लेकर विचार करने से पहले हमें इसके विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करना चाहिए। आवश्यकता है कि इस बारे में संगठित और सामरिक चर्चा हो, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संस्थाएं, और नागरिक समुदायों के विचार और सुझाव समाहित हों। संविधानिक प्रक्रिया और सभी स्तरों पर समझौता और सहयोग द्वारा ही हम एक आपसी समझ और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि देश की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ऐसा ड्राफ्ट सामने लाएँ, जो समान सिद्धांत पर आधारित हो, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो।











समान नागरिक संहिता के मामले पर राजनीतिक पार्टियाँ और संस्थाएँ एक मत नहीं हैं और सभी का इस विषय पर अपना-अपना नजरिया है। मंगलवार 27 जून 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत की। उनके अनुसार -


- संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार का भी उल्लेख है।

- विपक्ष समान नागरीक संहिता के मुद्दे का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने और भड़काने के लिए कर रहा है।

- तीन तलाक का समर्थन करने वाले मुस्लिम बेटियों के साथ घोर अन्याय कर रहे हैं। मिस्र में 80-90 साल पहले तीन तलाक ख़त्म कर दिया गया था।

- भारतीय जनता पार्टी तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति का रास्ता नहीं अपनाएगी।


तीन तलाक के बारे में अपनी बात रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि तीन तलाक बेटियों के साथ अन्याय करता है, इसके कारण पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। अगर तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है तो यह पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कतर, जॉर्डन, सीरिया और बांग्लादेश में क्यों नहीं है?" उन्होंने कहा - "भारत के मुस्लिम भाइयों और बहनों को समझना चाहिए कि बहुत से राजनीतिक दल उन्हें भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।"


प्रधानमंत्री ने सामान नागरिक संहिता की चर्चा छेड़कर एक तरह से समान नागरिक संहिता को लेकर कानून बनाने का इरादा जाहिर कर दिया है। जैसे ही प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे को छेड़ा, तमाम विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया सामने आ गई। अधिकतर विपक्षी दलों ने समान नागरिक संहिता लाने का विरोध कर दिया।


विश्व हिन्दू परिषद ने बुधवार 28 जून 2023 को समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान का समर्थन किया। समान नागरिक संहिता के विषय को नारी सम्मान से जोड़ते हुए साथ ही सवाल किया कि जब आपराधिक कानून, संविदा कानून, कारोबार से जुड़े कानून एक समान हैं, तब परिवार से जुड़े कानून अलग क्यों हों? विश्व हिन्दू परिषद् के अनुसार 1400 साल पुरानी स्थिति अलग थी और उस समय की परिस्थिति में बहु विवाह की प्रथा आई, वह तब की जरूरत हो सकती है। ‘समय बदला है। नारी की गरिमा और समानता की बात सभी को स्वीकार करनी चाहिए। वह (नारी) पुरूष की सम्पत्ति नहीं है। ऐसे में किसी तरह के भेदभाव को समान नागरिक संहिता से दूर किया जा सकता है। तलाक के नियम सभी के लिए एक से हों और केवल मौखिक कह देने से तलाक नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि तलाक की स्थिति में गुजारा भत्ता की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा बच्चों की परवरिश की चिंता की जानी चाहिए। समान नागरिक संहिता से ऐसी अपेक्षा की जाती है कि सभी धर्मों से अच्छी बातें ले कर एक ऐसा कानून बनेगा जो सभी के लिए जो अच्छा होगा।


देश में मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक ऑनलाइन बैठक कर समान नागरिक संहिता का विरोध जारी रखने का निर्णय लेते हुए कहा है कि "वह इस सिलसिले में विधि आयोग के सामने अपनी दलीलों को और जोरदार ढंग से पेश करेगा। विधि आयोग के सामने आपत्ति दाखिल करने की अंतिम तिथि 14 जुलाई 2023 है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि भारत जैसे बहुसांस्‍कृतिक और विविध परम्‍पराओं वाले देश में सभी नागरिकों पर एक ही कानून नहीं थोपा जा सकता, यह न सिर्फ नागरिकों के धार्मिक अधिकारों का हनन है बल्कि यह लोकतंत्र की मूल भावना के भी विपरीत है।" उल्लेखनीय है कि विधि आयोग ने 14 जून को समान नागरिक संहिता पर नए सिरे से विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू की और राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित हितधारकों से राय मांगी है।


कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि ‘एजेंडा आधारित बहुसंख्यक सरकार’ समान नागरिक संहिता लोगों पर थोप नहीं सकती क्योंकि इससे लोगों के बीच ‘विभाजन’ बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बेरोजगारी, महंगाई और घृणा अपराध जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए समान नागरिक संहिता की वकालत कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समान नागरिक संहिता का इस्तेमाल समाज के ध्रुवीकरण के लिए कर रही है। चिदंबरम ने अपने ट्वीट में कहा - "माननीय प्रधान मंत्री ने समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए एक राष्ट्र को एक परिवार के बराबर बताया है। हालाँकि अमूर्त अर्थ में उनकी तुलना सच लग सकती है, वास्तविकता बहुत अलग है। एक परिवार खून के रिश्तों से एक सूत्र में बंधा होता है। एक राष्ट्र को संविधान द्वारा एक साथ लाया जाता है जो एक राजनीतिक-कानूनी दस्तावेज है। एक परिवार में भी विविधता होती है। भारत के संविधान ने भारत के लोगों के बीच विविधता और बहुलता को मान्यता दी है। समान नागरिक संहिता एक आकांक्षा है। इसे एजेंडा-संचालित बहुसंख्यकवादी सरकार द्वारा लोगों पर थोपा नहीं जा सकता। माननीय प्रधान मंत्री यह दिखा रहे हैं कि समान नागरिक संहिता एक सरल अभ्यास है। उन्हें पिछले विधि आयोग की रिपोर्ट पढ़नी चाहिए जिसमें बताया गया था कि इस समय यह संभव नहीं है। भाजपा की कथनी और करनी के कारण आज देश बंटा हुआ है। लोगों पर थोपा गई समान नागरिक संहिता केवल विभाजन को बढ़ाएगा। समान नागरिक संहिता के लिए माननीय प्रधान मंत्री की ठोस वकालत का उद्देश्य मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, घृणा अपराध, भेदभाव और राज्यों के अधिकारों को नकारने से ध्यान भटकाना है। लोगों को सतर्क रहना होगा। सुशासन में विफल होने के बाद, भाजपा मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने और अगला चुनाव जीतने का प्रयास करने के लिए समान नागरिक संहिता को सामने कर रही है।"


हालाँकि सरकार की ओर से समान नागरिक संहिता से सम्बंधित आने वाले कानून का कोई ड्राफ्ट सामने नहीं आया है, फिर भी जानकारी मिली है कि आम आदमी पार्टी समान नागरिक संहिता का समर्थन करेगी। इस पर कांग्रेस के पवन खेड़ा ने 29 जून को अपने ट्वीट में लिखा कि "जिस गति से आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता को समर्थन दिया है, उससे मैं वास्तव में आश्चर्यचकित हूँ। भले ही अन्य जिम्मेदार दल सरकार के मसौदा प्रस्ताव की प्रतीक्षा कर रहे हों, क्या आम आदमी पार्टी के पास समान नागरिक संहिता प्रस्ताव के मसौदे तक विशेष पहुँच है?"


समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि जिस तरह से समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठाया जा रहा है, उससे लगता है कि भारतीय में रहने वाले अल्पसंख्यकों को व्यवस्थित रूप से बदनाम करके एक हिंदू-बहुसंख्यकवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।


सर्वोच्च न्यायालय भी सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के बारे में कह चुका है। हो सकता है कि आगामी संसद सत्र में समान नागरिक संहिता का विधेयक संसद के पटल पर रखा जाए। यदि ऐसा होता है तो लगता है संसद में हंगामा होगा। सरकार को समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले दलों की बात सुननी चाहिए। इस मुद्दे पर विधेयक लाने से पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए तथा सरकार को खुले मन से विचार-विमर्श करना चाहिए। सवाल लोगों की आस्थाओं से जुड़ा है, अल्पसंख्यकों और विपक्षी दलों की बात को सुना जाना चाहिए। बेहतर होगा कि सभी दलों को विश्वास में लेकर इस सम्बन्ध में कानून बने। जैसा कि मैंने पहले कहा था, उसी को दोहराता हूँ। समान नागरिक संहिता को लेकर विचार करने से पहले हमें इसके विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करना चाहिए। आवश्यकता है कि इस बारे में संगठित और सामरिक चर्चा हो, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संस्थाएं, और नागरिक समुदायों के विचार और सुझाव समाहित हों। संविधानिक प्रक्रिया और सभी स्तरों पर समझौता और सहयोग द्वारा ही हम एक आपसी समझ और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि देश की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ऐसा ड्राफ्ट सामने लाएँ, जो समान सिद्धांत पर आधारित हो, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो। इसके लिए जल्दबाजी की जरुरत नहीं, सोच-समझकर कदम उठाने चाहिए।


- केशव राम सिंघल


#समान_नागरिक_संहिता - 2


बुधवार, 28 जून 2023

समान नागरिक संहिता - 1

समान नागरिक संहिता - 1

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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। यह मौलिक अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी आधार पर भेदभाव किए बिना अपनी पसंद के किसी भी धर्म को मानने की आजादी है। अनुच्छेद 25 में 'सभी व्यक्तियों' पद का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है कि धार्मिक स्वतंत्रता भारत के नागरिकों के साथ-साथ यह अधिकार विदेशियों को भी मिलता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक, "राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।" यानी संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का निर्देश दे रहा है, जो वर्तमान में उनके संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। इस प्रकार देखा जाए तो भारतीय संविधान समान नागरिक संहिता लाने के बारे में कहता है।












समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का मानना है कि सभी धर्मों के लिए समान कानून के साथ धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार और समानता के अधिकार के बीच संतुलन बनाना मुश्किल होगा। इसके चलते धर्म या जातीयता के आधार पर कई व्यक्तिगत कानून भी संकट में आ जाएँगे। विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लोग समान नागरिक संहिता का विरोध इस तर्क के आधार पर करते हैं कि शरिया कानून 1400 साल पुराना है। यह कानून कुरआन और पैगम्बर साहब की शिक्षाओं पर आधारित है। उनके मुताबिक़ शरिया उनकी आस्था से जुड़ा मुद्दा है।


हमें समान नागरिक संहिता पर प्रगतिशील रूख अपनाना होगा। समान नागरिक संहिता का किसी धर्म विशेष के रीति-रिवाज और आचार-व्यवहार से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि समान नागरिक संहिता तो विभिन्न धर्म-समुदायों और किसी एक धर्म-समुदाय के लोगों के बीच बराबरी की संविधान सम्मत धारणा का सर्वोच्च प्रतिष्ठा का मामला है और यह धारणा लैंगिग न्याय को सुनिश्चित करती है।


समान नागरिक संहिता पर सियासी बहस चालू हो गई है। समान नागरिक संहिता का विरोध करना एक प्रकार से आत्मघाती कदम हो सकता है और यह राजनीतिक तौर पर अनेक दलों को नुकसान पहुँचा सकता है, जो इसका विरोध करेंगे। साल 2024 आ रहा है और राजनीतिक दलों को इसका विरोध करने से पहले कई बार सोचना चाहिए। समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे राजनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और यह एक व्यापक विषय है जिस पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं।


समान नागरिक संहिता की धारणा एक सीधे-सरल मगर ताकतवर तर्क पर टिकी है। यह तर्क कानून के समक्ष समानता का तर्क है। देश के सभी नागरिकों के सभी नागरिकों के लिए दंड-संहिता एक है तो सभी नागरिकों के लिए नागरिक संहिता भी एक समान होनी चाहिए। बेशक विभिन्न समुदाय के लोग अपने विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन करें, लेकिन ऐसा तो नहीं होने दिया जा सकता न कि इन रीति-रिवाजों के पालन से व्यक्ति के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हो जाए। बेशक किसी समुदाय को धर्म और संस्कृति विषयक अधिकार हैं , लेकिन इन अधिकारों के तहत यह छूट कैसे दी जा सकती है कि वे उस समुदाय की औरतों को हासिल बराबरी के अधिकार का उल्लंघन करें। समान नागरिक संहिता के पक्ष में यह बताया जाता है कि यह सभी नागरिकों को न्याय, समानता और अधिकारों का एक समान मानदंड प्रदान करेगी। यह संविधानिक गारंटी के रूप में अद्यतित किया जाएगा और लोगों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक अधिकारों का अधिक आनंद उठाने में मदद करेगा। इसके माध्यम से, भारत में विभिन्न ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लोगों को समानता और न्याय की पहुँच मिलेगी।


भारत में नारीवादी आंदोलन ने कई बार समान नागरिक संहिता की माँग की है। जैसे तीन तलाक के मामले में विपक्ष फँस गया, उसी प्रकार समान नागरिक संहिता के मामले में विपक्ष फँसता नजर आ रहा है।


नागरिक संहिता के समान होने का अर्थ यह कतई नहीं है कि उसे सबके लिए एक-रूप और एक-रंग का होना चाहिए। समान नागरिक संहिता समान सिद्धांत पर आधारित हो सकती है, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो सकता है। समान नागरिक संहिता में समान का अर्थ होगा - सभी धार्मिक और सामाजिक समुदायों के लिए एक रूप संवैधानिक सिद्धांत को अमल में लाना। किसी भी समुदाय से सम्बंधित पारिवारिक कानून को इस बात की इजाजत नहीं होगी कि वह समानता के अधिकार, भेदभाव के विरुद्ध अधिकार तथा लैंगिक न्याय की धारणा का उल्लंघन करे। जो कोई रीति-रिवाज या पारिवारिक कानून इन सिद्धांतों के उल्लंघन में है, उन्हें ख़त्म किया जाना चाहिए। यही तो प्रगतिशील कदम होगा।


उदाहरण के लिए मुस्लिम समुदाय में शादी निकाहनामे पर आधारित एक अनुबंध होती है। समान नागरिक संहिता के लिए जरूरी नहीं कि मुस्लिम समुदाय अपनी इस प्रथा को त्याग दे। अलग-अलग समुदाय अपने अलग-अलग रीति-रिवाज का पालन करें। उदाहरण के लिए सिख समुदाय गुरुद्वारा में लावां और अर्दास पढ़कर विवाह आयोजित करें और हिन्दू हवन के साथ सात फेरे लेकर। केवल प्रमुख बात यह है कि ऐसे रीति-रिवाज अलग होते हुए भी संविधान सम्मत हो और किसी संविधान सम्मत अधिकार का उल्लंघन न करते हों। इस प्रकार समान नागरिक संहिता में भी अनेकता में एकता के दर्शन हो सकते हैं।


बहु-पत्नी विवाह प्राचीन ज़माने की परम्परा रही है। रामायण-महाभारत काल में और स्वतंत्रता से पूर्व हिन्दुओं में भी बहु-पत्नी विवाह होते थे, पर आज के समय में इसकी परम्परा नहीं है। आज के समय में समान नागरिक संहिता के तहत यदि सभी धर्मों के मानने वालों के लिए बहु-पत्नी विवाह समाप्त कर दिया जाए तो इससे कोई संविधान सम्मत अधिकार का उल्लंघन होगा, ऐसा नहीं लगता। सभी को समय के साथ बदलना चाहिए।


विपक्ष में समान नागरिक संहिता का विरोध करने के कई मुख्य तर्क हो सकते हैं। कुछ लोग समान नागरिक संहिता के प्रभाव को बाधाओं के रूप में देख सकते हैं, जैसे कि यह चुनावी रणनीतिक खेल बन सकता है और निरंतर राजनीतिक विवादों का कारण बन सकता है। समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले यह भी तर्क दे सकते हैं कि समान नागरिक संहिता विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक संप्रदायों के बीच बाधाओं का कारण बन सकती है। समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि समान नागरिक संहिता व्यक्तियों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।


इस बात का ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि समान नागरिक संहिता को लेकर विचार करने से पहले हमें इसके विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करना चाहिए। आवश्यकता है कि इस बारे में संगठित और सामरिक चर्चा हो, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संस्थाएं, और नागरिक समुदायों के विचार और सुझाव समाहित हों। संविधानिक प्रक्रिया और सभी स्तरों पर समझौता और सहयोग द्वारा ही हम एक आपसी समझ और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि देश की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ऐसा ड्राफ्ट सामने लाएँ, जो समान सिद्धांत पर आधारित हो, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो। क्या सरकार ऐसा ड्राफ्ट सामने ला पाएगी?


आप इस बारे में क्या सोचते हैं? अपना विचार रखें।


- केशव राम सिंघल

 #समान_नागरिक_संहिता - 1


मंगलवार, 9 मई 2023

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप

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महाराणा प्रताप

9 मई 1540 को

कुंभलगढ़ दुर्ग (मेवाड़) में जन्में

सिसोदिया राजवंश के राजा थे।

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महाराणा प्रताप

वीरता शौर्य दृढ़ता और पराक्रम के लिए अद्भुत मिसाल थे।

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महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक

28 फरवरी 1572 को हुआ था।

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महाराणा प्रताप ने

बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।

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हल्दीघाटी युद्ध 18 जून 1576 को हुआ था,

जिसमें महाराणा का घोड़ा चेतक मारा गया था।

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मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप और मुस्लिम सरदार हकीम खाँ सूरी ने किया था।

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इस युद्ध के बाद

महाराणा प्रताप जंगलों पहाड़ों में रहते

और बाद में जब 1582 में दिवेर के युद्ध में महाराणा ने खोया राज्य पुनः पाया,

महाराणा ने चावण्ड (मेवाड़) को अपने राज्य की राजधानी बनाया,

जहाँ 19 जनवरी 1597 को महाराणा ने अंतिम साँस ली।

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महाराणा ने कठिन समय बिताया, घास के बीज से बनी चपाती तक खाई, पर अपने स्वाभिमान को झुकने न दिया।

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ऐसे वीर शिरोमणि को सादर नमन।


- केशव राम सिंघल




सोमवार, 8 मई 2023

बातों ही बातों में - 03

बातों ही बातों में - 03 
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केशव राम सिंघल
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हर वक्तव्य, हर बात का महत्त्व है, किसी का कम, किसी का अधिक। आप पढ़े और सोचे, यही उद्देश्य है 'बातों ही बातों में' श्रृंखला का।
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संस्कृतियों के टकराने से सभ्यताएँ खत्म नहीं होतीं। 
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ह्रदय शुद्ध हो तो होने वाले कर्म भी सतगुण से भरे होंगे। 
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चक्र सृष्टि की सर्वोत्तम और अद्भुत आकृति है, जिसका आदि-अंत कुछ नहीं है। 
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समुद्र का मंथन देवताओं और दैत्यों ने मिलकर किया था जिससे चौदह रत्न प्राप्त हुए थे। 
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समुद्र-मंथन से सबसे पहला रत्न हलाहल (कालकूट) विष निकला था, जिसकी ज्वाला बहुत ही तीव्र थी। इस विष को भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था। 
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समुद्र-मंथन से निकलने वाले अन्य रत्न निम्न थे - सुरभि कामधेनु गाय, श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत श्वेत हाथी, कौस्तुभ मणि, दुनिया का पहला धर्मग्रंथ कल्पद्रुम, प्रसिद्ध सुंदर अप्सरा रंभा, समृद्धि (लक्ष्मी), वारुणी नामक मदिरा,  तपस्वी अत्रि और अनुसूया की संतान चन्द्रमा, पारिजात (हरसिंगार) वृक्ष, पांचजञ्य शंख, भगवान धन्वंतरि वैद्य के साथ अनेक औषधियाँ। 
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समुद्र-मंथन के अंत में अमृत का कलश निकला था, जो चौहदवाँ रत्न था। 
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कल्पना की शक्ति मानसिक स्वतंत्रता का प्रतीक होती है और रचनाकारों के लिए एक बहुत अहम स्रोत होती है। 
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सम्प्रेषण या संसार शब्दों पर ही निर्भर नहीं। 
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ब्रिटेन का चर्चिल भारतीय महात्मा गाँधी से घृणा करता था। चर्चिल कहता था - गाँधी अधनंगा फ़कीर है। ये वही गाँधी थे जो साल 1931 में जब गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए तो वहाँ के सम्राट जॉर्ज पंचम ने उन्हें बकिंघम पैलेस में चाय पर बुलाया और अंग्रेज़ क़ौम ये देख कर उस समय दंग रह गई कि इस औपचारिक मौक़े पर भी गाँधी एक धोती और चप्पल पहने राजमहल पहुँचे। 
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त्याग यह नहीं है कि मोटे और खुरदरे वस्त्र पहन लिए जाएँ और सूखी रोटी खाई जाए, त्याग तो यह है कि अपनी इच्छा, अभिलाषा और तृष्णा को जीता जाए।  - सुफियान सौरी
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लोकगीतों में संवेदना की वह तपिश होती है, जिसकी आँच हर ह्रदय को लगती है। लोकगीतों में अनुभूतियों की वह शीतलता होती है जो संघर्षों से जूझते, श्रमशान्त व्यक्ति के लिए सुधा बनकर बरसती है।  
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संस्कृति समाज का दर्पण है। संस्कृति का संरक्षण ही समाज की सुरक्षा है।  
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इतिहास को खोद-खोद कर मत निकालो। इससे अशांति फैलेगी।  
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मैं श्रेष्ठ हूँ, यह आत्मविश्वास है। मैं ही श्रेष्ठ हूँ, यह अभिमान है। 
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पैरों में जूता हो या ना हो, हाथों में किताब जरूर होनी चाहिए।  - बाबा साहब अम्बेडकर 
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डरा हुआ आदमी दरअसल मरा हुआ आदमी होता है। 
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अतीत को हम बनाए नहीं रख सकते। जो कल था, वह आज नहीं है। जो आज है, वह कल नहीं होगा। परिवर्तन नियति का नियम है। स्थायित्व शाश्वत नहीं, परिवर्तन शाश्वत है। 
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शिक्षा की परिकल्पना जाति, धर्म, वर्ग, राजनीति से ऊपर उठकर होनी चाहिए। शिक्षा का आधार नैतिकता होनी चाहिए, जो एक यथार्थ मानव का सृजन कर सके और सभी को समाहित करने की शक्ति शिक्षा-प्रणाली में होनी चाहिए। 
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देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं। देश हम और आप हैं। 
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अडानी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने जाँच समिति बैठा दी है तो फिर कांग्रेस जेपीसी की माँग क्यों कर रही है? यह प्रश्न मेरे मस्तिष्क में बार-बार आता रहा। अब तो एनसीपी नेता शरद पवार ने भी अडानी मामले में जेपीसी की माँग का समर्थन नहीं किया है। इस सम्बन्ध में कांग्रेस ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय की तरफ से बनाई गई समिति का जाँच का दायरा बहुत सीमित है।
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सरकार के सामने खड़ा रहता एक मुद्दा  - येन केन प्रकारेण प्रतिरोध दबाना है। 
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दुःखद स्थिति -  राजनीतिक दल परिवारवाद का विरोध करते हैं, पर टिकट परिवारवाद के आधार पर देते हैं। 
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रूसी लेखक रसूल हमजातोव ने एक बार कहा था - "मेरी कविता मेरा सृजन करती है और मैं अपनी कविता का।" इस प्रकार देखा जाए तो कवि और कविता एक दूसरे के सृजक हैं। इसी प्रकार हम कह सकते हैं कि कृति रचनाकार (कृतिकार) का सृजन करती है और रचनाकार (कृतिकार) कृति का। दूसरे शब्दों में - कला कलाकार का सृजन करती है और कलाकार कला का। 
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युग चार हैं - सत-युग, त्रेता-युग, द्वापर-युग और कलयुग। सतयुग कलियुग से चार गुना लंबा है। 
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रामायण की घटनाएँ त्रेता-युग में घटित हुई थी। फिलहाल कलियुग चल रहा है। 
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आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत के युद्ध 3136 ईसा पूर्व को हुआ था। महाभारत युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है। भागवत पुराण ने अनुसार श्रीकृष्‍ण के देह छोड़ने के बाद 3102 ईसा पूर्व कलिकाल का प्रारंभ हुआ था। महाभारत द्वापर में हुआ था।
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शेष फिर ,,,,,,,,,,,,, 



शुक्रवार, 5 मई 2023

फाँसी की सजा

फाँसी की सजा

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हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है। व्यक्ति अपनी खुद की जान नहीं ले सकता, आत्महत्या भी कानूनन अपराध है। फाँसी की सजा अमानवीय होने के साथ मानव के जीने के अधिकार और मानव सम्मान का उल्लंघन है। कई देशों ने फाँसी की सजा पर रोक लगा दी है। 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बताया था कि 170 देशों ने या तो फाँसी को समाप्त कर दिया है या इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। एक जानकारी के अनुसार 29 देश ऐसे भी हैं जहाँ मृत्युदंड या फाँसी की सजा का प्रावधान है, लेकिन इनमें से किसी ने एक दशक से इस दंड का इस्तेमाल नहीं किया है। 7 देश ऐसे हैं जहाँ फाँसी अपवाद स्वरूप है, जिसे गंभीर अपराध, जैसे युद्ध के दौरान की स्थिति, के लिए दिया जा सकता है। 56 देशों ने मृत्युदंड के कानूनी प्रावधानों को बना रखा है। भारत, मलेशिया, बारबाडोस, बोत्सवाना, तंजानिया, जाम्बिया, जिम्बाम्बे, दक्षिण कोरिया ऐसे देश हैं जहाँ मृत्युदंड फाँसी के रूप में दी जाती है। अफगानिस्तान और सूडान में मृत्युदंड पत्थर मारकर, गोली मारकर या फाँसी देकर दी जाती है। बांग्लादेश, कैमरून, सीरिया, युगांडा, कुवैत, ईरान, मिस्र में मृत्युदंड गोली मारकर या फाँसी देकर दी जाती है। यमन, टोगो, तुर्केमिस्तान, थाईलैंड, बहरीन, चिली, इंडोनेशिया, घाना, अर्मीनिया में गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। चीन में मृत्युदंड जहरीला इंजेक्शन और फाँसी देकर दिया जाता है। फिलीपींस में गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। अमेरिका में बिजली के करेंट से, गैस से, फाँसी देकर या गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। सऊदी अरब में सिर कलम कर मृत्युदंड दिया जाता है।

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कुछ लोगों का मानना है कि मृत्युदंड पर पूरी तरह से रोक होनी चाहिए। भारत में भी लम्बे समय से फाँसी की सजा ख़त्म करने या मृत्यु के लिए कम पीड़ादायक विकल्प की माँग उठती रही है। वकील ऋषि मल्होत्रा ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर फाँसी की सजा देने के स्थान पर सभ्य और मर्यादित विकल्प तलाशने की माँग की थी। इस मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने 27 मार्च 2023 को केंद्र सरकार से उस कानून के बारे में अपना पक्ष रखने को कहा था, जो मृत्युदंड के मामले में मौत के लिए दोषी को सांस रुकने तक फाँसी की इजाजत देता है। केंद्र सरकार ने मंगलवार 2 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फाँसी की जगह कम पीड़ादायक मौत का विकल्प तलाश करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर विचार कर रही है। अब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जुलाई 2023 में होगी।

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सभ्य समाज में सजा की संकल्पना अपराधी को सुधारने के उद्देश्य से की गई है, न कि उनकी जान लेकर। फाँसी की सजा वह उद्देश्य पूरा नहीं करती, जिसके लिए सजा की संकल्पना की गई है। एक अध्ययन से यह भी जानकारी सामने आई कि कुछ लोगों को फाँसी की सजा दे दी गई, पर बाद में पता चला कि जिस अपराध के लिए उन्हें फाँसी दी गई, वह अपराध उन्होंने नहीं किया था। इस प्रकार निर्दोष लोगों को फाँसी की सजा दे दी गई, जो एक ऐसा गलत कदम था जिसे सुधारा नहीं जा सकता। फाँसी की सजा एक बदला लेने वाली मानसिकता है, जिससे अपराधी का सुधार भी संभव ही नहीं है। किसी भी सभ्य समाज को बदला लेने वाली मानसिकता से बचना चाहिए।

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जैसा कि बताया गया है कि 170 देशों ने या तो फाँसी को समाप्त कर दिया है या इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। क्या हम उन देशों में आ सकते हैं जिन्होंने फाँसी को समाप्त कर दिया है या इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है? हालाँकि हमारे देश में लम्बे समय से फाँसी की सजा ख़त्म करने या फाँसी के लिए कम पीड़ादायक विकल्प की माँग उठती रही है।


- केशव राम सिंघल 



 

अप्प दीपो भवः

अप्प दीपो भवः

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सार्थक जीवन के लिए

अप्प दीपो भवः अपना दीपक खुद बनो

अपनी बुद्धि-विवेक और प्रज्ञाशक्ति का इस्तेमाल करो।

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सार्थक जीवन के लिए

अंधविश्वास आडम्बर रूढ़िवादी परम्पराएँ त्यागो

दर्शन अनुभव अनुभूति से अंतर्मन शुद्ध करो।

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सार्थक जीवन के लिए

बुद्धं शरणं गच्छामि

मुक्ति के लिए सम्यक मार्ग अपनाओ।

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सार्थक जीवन के लिए

अहिंसा और करुणा से संवेदनशील बनो

और इस जगत के हर प्राणी के साथ मैत्रीभाव रखो।

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टिप्पणी - “बुद्धं शरणं गच्छामि” बौद्ध धर्म का मूलमंत्र है। इसकी दो और पंक्तियों में “संघं शरणं गच्छामि” और “धम्मं शरणं गच्छामि” भी है। बौद्ध धर्म की मूल भावना को बताने वाला यह पद गौतम बुद्ध की शरण में जाने का अर्थ रखता है। बुद्ध को जानने के लिए उनकी शिक्षाओं की शरण लेना हितकर है। मुक्ति के लिए बुद्ध के सम्यक मार्ग के आठ अंग, जिन्हें अष्टांगिक मार्ग भी कहा जाता है - (1) सम्यक दृष्टि, (2) सम्यक संकल्प, (3) सम्यक वचन, (4) सम्यक कर्म, (5) सम्यक आजीविका, (6) सम्यक व्यायाम, (7) सम्यक स्मृति, और (8 ) सम्यक समाधि।

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बुद्ध पूर्णिमा और श्री बुद्ध जयन्ती पर हार्दिक शुभकामनाएँ।


- केशव राम सिंघल


सम्यक = उचित = यथोचित = विशिष्ट = आत्मीय = संगत = शुद्ध











शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

मुमताज महल

मुमताज महल

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मुमताज महल

फारसी रईस की बेटी

जन्म 27 अप्रैल 1593 को आगरा में

जिज्ञासु, प्रतिभाशाली और संस्कारी महिला

अरबी और फ़ारसी भाषाओं की अच्छी जानकार

कविताओं की रचनाकार

मुमताज ने शाहजहाँ के साथ प्रेम विवाह किया था 30 अप्रैल 1612 को

बहुत से कवि मुमताज की सुंदरता, अनुग्रह और करुणा का वर्णन करते थे

उसने चौदह बच्चे (आठ बेटे और छह बेटियाँ) पैदा किए

जिनमें से सात की जन्म के समय या बहुत कम उम्र में मृत्यु हो गई

उसकी मृत्यु बुरहानपुर में प्रसवोत्तर रक्तस्राव से 17 जून 1631 को हुई।

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मुमताज महल

1628 में बनी साम्राज्ञी मात्र तीन वर्षों के लिए

वह 'मलिका-ए-जहाँ' और 'मलिका-उज़-ज़मानी' थी

शाहजहाँ ने उसे इन उपाधियों से नवाजा था

शाहजहाँ मुमताज महल को सबसे अधिक भत्ता प्रति वर्ष एक लाख रुपये दिया करते थे

मुमताज भी निजी और राज्य के मामलों में शाहजहाँ की करीबी विश्वासपात्र और विश्वसनीय सलाहकार थी।

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मुमताज महल

बेहद दर्दनाक थी उसकी मौत

प्रसव पीड़ा से तड़प-तड़प कर मरी थी वो

अपनी मौत से पहले उसने बादशाह शाहजहाँ से लिए दो वादे -

पहला शादी न करने का

और दूसरा एक ऐसा मकबरा बनवाने का जो अनोखा हो

और इसके कुछ ही देर बाद सुबह होने से पहले मुमताज ने दम तोड़ दिया था।

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मुमताज महल

जब जून 1631 में मरी तो उसके शरीर को अस्थायी रूप से दफनाया गया

ज़ैनाबाद बुरहानपुर में ताप्ती नदी के किनारे एक दीवार वाले खुशी के बगीचे में

और बाद में दिसंबर 1631 में उसके मृत शरीर को एक सुनहरी ताबूत में आगरा ले जाया गया

और वहाँ यमुना नदी के किनारे एक छोटी सी इमारत में दफ़न किया गया

बाद में इसी जगह को मकबरे के रूप में बनवाया गया

जिसे बनवाने में बाइस साल लगे

यही वह मकबरा है जिसे ताजमहल कहते हैं।

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मुमताज महल की याद में बना ताजमहल

पत्थरों में एक बादशाह के प्यार के गर्व का जुनून

यही वह जगह है -

जहाँ बादशाह औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को

मुमताज़ महल की कब्र के पास दफनाया था।

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मुमताज महल की याद में बना ताजमहल

आज यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।

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मुमताज महल की याद में बना ताजमहल

मुमताज महल और शाहजहाँ का अंतिम विश्राम स्थल है।

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ऐतिहासिक विश्व धरोहर की प्रणेता मुमताज महल को नमन।


- केशव राम सिंघल

27 अप्रैल 2023


मलिका-ए-जहाँ = दुनिया की रानी

मलिका-उज़-ज़मानी = युग की रानी






कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस (World Day for Safety and Health at Workplace)

कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस 

(World Day for Safety and Health at Workplace)

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सरकारी या निजी संस्थानों में नौकरी करने वाले लोगों का ज्यादातर वक्त उनके कार्यस्थल में गुजरता है, ऐसे में कार्यस्थल परिसर में कार्यरत कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करना एक बड़ी अपेक्षा है, जिसे हर कर्मचारी चाहता है। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हर साल 28 अप्रेल को कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस (World Day for Safety and Health at Workplace) मनाया जाता है। हर साल यह विश्व दिवस एक खास विषय (Theme) के साथ  कार्यस्थल में कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। 


अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं और बीमारियों को रोकने के लिए साल 2003 में पहली बार यह विश्व दिवस मनाना शुरू किया था। कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस 2023 एक मौलिक सिद्धांत (fundamental principle) और कार्यस्थल पर अधिकार के रूप में एक सुरक्षित और स्वस्थ कामकाजी माहौल के विषय पर मनाया जा रहा है। एक सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण एक मौलिक सिद्धांत और कार्यस्थल पर हर कार्मिक का अधिकार है।


जून 2022 में, अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन (ILC) ने ILO के मौलिक सिद्धांतों और काम पर अधिकारों के ढांचे में "एक सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण" को शामिल करने का निर्णय लिया। कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए विश्व दिवस 2023 के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने एक पोस्टर  भी जारी किया, जिसे इस आलेख के साथ भी प्रदर्शित किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने विशेष रूप से व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित 40 से अधिक मानकों (standards) के साथ-साथ 40 से अधिक अभ्यास संहिताओं (Codes of Practice) को अपनाया है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के लगभग आधे दस्तावेज प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों से सरोकार रखते हैं।











अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संस्था (ISO - International Organization for Standardization) ने इसी विषय-क्षेत्र के लिए आईएसओ 45001:2018 मानक विकसित किया है, जो संस्थाओं को व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली कार्यान्वित करने के लिए अपेक्षाओं के साथ उपयोग के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस मानक की अंतिम समीक्षा 2022 में की गई थी और तदुपरांत इसकी पुष्टि की गई, इसलिए आईएसओ 45001:2018 मानक का 2018 संस्करण ही वर्तमान मानक है, जिसे संस्थाएँ लागू कर सकती हैं।


भारत में भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards) ने 'कार्यस्थल पर सामाजिक उत्तरदायित्व - अपेक्षाओं' पर एक भारतीय मानक IS 16001:2012 विकसित किया है, जो कार्यस्थल पर अच्छे कार्य वातावरण से जुड़े विषयों को सम्बोधित करता है। मुझे इस लेख के पाठकों को यह बताते हुए हर्ष है कि इस मानक को विकसित करने वाली भारतीय मानक ब्यूरो की समिति में मेरी बेटी डॉ दिव्या सिंघल एक सदस्य रही है। जानकारी में आया है कि इस मानक को फिर से संशोधित किया जा रहा है। 


आइये, हम कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं और बीमारियों को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाएँ और उपयुक्त कदम उठाएँ। 


विश्व कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य दिवस पर बधाई और शुभकामनाएँ। 


- केशव राम सिंघल 




बुधवार, 26 अप्रैल 2023

महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर

महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर

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श्रीनिवास रामानुजन इयंगर (जन्म - 22 दिसम्बर 1887 – निधन - 26 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में माना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत में अभूतपूर्व योगदान दिया।


श्रीनिवास रामानुजन इयंगर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा रखते थे। सबसे विशिष्ट बात इनके सम्बन्ध में यह थी कि इन्होने अपने जीवन में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनके द्वारा संकलित अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है और उन पर शोध हो रहा है। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले हैं।


बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास सामान्य बालकों जैसा नहीं था। रामानुजन तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे। बचपन में जब इन्होने विद्यालय में प्रवेश लिया तो पारम्परिक शिक्षा में इनका मन भी नहीं लगा। दस वर्ष की आयु में इन्होने प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सबसे अधिक अङ्क प्राप्त किए और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल में प्रवेश लिया। रामानुजन अत्यंत जिज्ञासु थे और विभिन्न तरह के प्रश्न पूछा करते थे, जो उनके अध्यापकों को कभी-कभी बहुत अटपटे लगते थे। विद्यालय में इनकी प्रतिभा को इनके शिक्षकों और साथी विद्यार्थयों ने महसूस किया। रामानुजन ने स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही कालेज के स्तर के गणित को पढ़ लिया था। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक लाने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे कालेज की शिक्षा के लिए प्रवेश भी मिला। कॉलेज शिक्षा के दौरान रामानुजन गणित विषय पर ही अधिक केंद्रित रहते थे और अन्य विषयों पर ध्यान नहीं देते थे, फलस्वरूप गणित के अलावा अन्य विषयों में वे अनुतीर्ण हो गए और उनको मिलने वाली छात्रवृति भी मिलनी बंद हो गई। अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए इन्होने ट्यूशन और अंशकालीन कार्य करना प्रारम्भ किया। 1907 में रामानुजन ने फिर से बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी और अनुत्तीर्ण हो गए। इस प्रकार रामानुजन का जीवन कठिनाइयों से भर गया। 1908 में माता-पिता ने इनका विवाह कर दिया तो पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। बाहरवीं की परीक्षा में फेल होने के कारण इन्हे नौकरी भी नहीं मिल पाई और बीमार हो गए।


बीमारी से ठीक होने के बाद रामानुजन मद्रास आए और फिर से नौकरी की तलाश शुरू कर दी। जब भी किसी से मिलते तो उसे अपना रजिस्टर दिखाते थे, जिसमें इनके द्वारा गणित में किए गए कार्य होते थे। इसी दौरान किसी के कहने पर रामानुजन डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर स्वयं गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। श्री अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और जिलाधिकारी श्री रामचंद्र राव से कह कर इनके लिए 25 रूपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। इस वृत्ति पर रामानुजन ने मद्रास में एक साल रहते हुए अपना प्रथम शोधपत्र प्रकाशित किया। शोध पत्र का शीर्षक था "बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” और यह शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ। एक साल बाद इन्होने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी की। सौभाग्य से इस नौकरी में काम का बोझ कुछ ज्यादा नहीं था और यहाँ इन्हें अपने गणित के लिए पर्याप्त समय मिलता था। इस दौरान रामानुजन ने गणित के कई नए सूत्र लिखे।

कुछ पुराने शुभचिंतको ने रामानुजन द्वारा किए गए कार्यों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा। इसी समय रामानुजन ने अपने संख्या सिद्धांत के कुछ सूत्र प्रोफेसर एस अय्यर को दिखाए तो प्रोफ़ेसर अय्यर ने लन्दन के प्रोफेसर हार्डी का एक शोधपत्र रामानुजन को दिया। प्रोफेसर हार्डी के शोधकार्य को पढ़ने के बाद रामानुजन ने बताया कि उन्होने प्रोफेसर हार्डी के अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोज निकाला है। इसके बाद रामानुजन का प्रोफेसर हार्डी से पत्रव्यवहार प्रारम्भ हुआ और यहाँ से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ, जिसमें प्रोफेसर हार्डी की बहुत बड़ी भूमिका थी। प्रोफेसर हार्डी आजीवन रामानुजन की प्रतिभा और जीवन दर्शन के प्रशंसक रहे। रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनो ही के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई। एक तरह से देखा जाए तो दोनो ने एक दूसरे के लिए पूरक का काम किया।


प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन धन की कमी और व्यक्तिगत कारणों से शुरू में रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के कैंब्रिज के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। उसी समय रामानुजन को मद्रास विश्वविद्यालय में शोधवृत्ति मिल गई, जिससे उनका जीवन कुछ सरल हो गया और उनको शोधकार्य के लिए पूरा समय भी मिलने लगा था। इसी दौरान लंबे पत्रव्यवहार के बाद धीरे-धीरे प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए सहमत कर लिया। प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए आर्थिक सहायता भी मिल गई। रामानुजन ने इंग्लैण्ड जाने के पहले गणित के करीब 3000 से भी अधिक नये सूत्रों को अपनी नोटबुक में लिखा था। इंग्लैण्ड की यात्रा से रामानुजन के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर उच्चकोटि के शोधपत्र प्रकाशित किए। अपने एक विशेष शोध के कारण इन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली। लेकिन वहाँ की जलवायु और रहन-सहन की शैली उनके अधिक अनुकूल नहीं थी और उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। डॉक्टरों ने इसे क्षय रोग बताया। उस समय क्षय रोग का कोई उपयुक्त इलाज और दवा नहीं थी और रोगी को सेनेटोरियम मे रहना पड़ता था। रामानुजन को भी कुछ दिनों तक वहाँ रहना पड़ा। इंग्लैण्ड प्रवास के दौरान रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का फेलो नामित किया गया। डॉक्टरों की सलाह पर वे वापस भारत लौटे और यहाँ इन्हें मद्रास विश्वविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी मिल गई और इस प्रकार रामानुजन अध्यापन और शोध कार्य में पुनः रम गए। भारत लौटने पर भी स्वास्थ्य ने इनका साथ नहीं दिया, फिर भी वे अपने शोधपत्र लिखते रहे। गिरते स्वास्थ्य की वजह से रामानुजन का 33 वर्ष की आयु में 26 अप्रैल 1920 को निधन हो गया।


रामानुजन के शोध के फलस्वरूप हम ऐसी संख्याएं जान सके जिन्हें रामानुजन संख्या या हार्डी-रामानुजन संख्या कहा जाता है। रामानुजन संख्या या हार्डी-रामानुजन संख्या ऐसी धनात्मक संख्याए है जिनके दो संख्याओं के घनों के युग्मों के योग के बराबर लिखा जा सकता है। इस प्रकार का गुण रखने वाली बहुत ही कम अन्य संख्याएँ हैं। रामानुजन एक प्रकार से संख्याओं के जादूगर थे।


रामानुजन या हार्डी-रामानुजन संख्याए -


1729 = 9 के घन और 10 के घन का योग = 1 के घन और 12 के घन का योग


4104 = 2 के घन और 16 के घन का योग = 9 के घन और 15 के घन का योग


20683 = 10 के घन और 27 के घन का योग = 19 के घन और 24 के घन का योग


39312 = 2 के घन और 34 के घन का योग = 15 के घन और 33 के घन का योग


40033 = 9 के घन और 34 के घन का योग = 16 के घन और 33 के घन का योग


इस प्रकार 1729, 4104, 20683, 39312, 40033 रामानुजन या हार्डी-रामानुजन संख्याएं हैं।


गणित विषय से सम्बंधित रामानुजन के अन्य शोध भी हैं, जिन्हे इस आलेख में नहीं दिया जा रहा। रामानुजन ने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। यह अत्यंत दुःखद रहा कि विश्व के इस गणितज्ञ का 33 वर्ष की अल्पायु में ही निधन हो गया था।


विश्व के महानतम भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर की पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन।


- केशव राम सिंघल



विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (World Intellectual Property Day)

विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (World Intellectual Property Day)

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आज यानी 26 अप्रैल के दिन प्रतिवर्ष विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (World Intellectual Property Day) मनाया जाता है। विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (World Intellectual Property Day) की स्थापना विश्व बौद्धिक संपदा संस्था (WIPO - World Intellectual Property Organization) द्वारा 2000 में इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की गई थी।


विश्व बौद्धिक संपदा दिवस 2023 के उत्सव का विषय "महिला और बौद्धिक संपदा: त्वरित नवाचार और रचनात्मकता " है, जो नवाचार और रचनात्मकता को आगे बढ़ाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देती है।


बौद्धिक संपदा (Intellectual property) किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा सृजित कोई संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज, प्रतीक, नाम, चित्र, डिजाइन, कापीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेन्ट आदि को कहते हैं। जिस प्रकार कोई किसी भौतिक धन (Physical Property) का स्वामी होता है, उसी प्रकार कोई बौद्धिक संपदा का भी स्वामी हो सकता है।


विश्व बौद्धिक संपदा सूचकांक को निर्मित करते समय विश्व के कुल 55 देशों में बौद्धिक संपदा अधिकारों का सर्वेक्षण किया गया था। इन 55 देशों में से संयुक्त राज्य अमेरिका को प्रथम स्थान प्रदान किया गया, जबकि वेनेजुएला को अंतिम स्थान पर रखा गया। इस सूचकांक में वर्ष 2022 में भारत को 43 वाँ स्थान प्रदान किया गया।


सभी को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।


- केशव राम सिंघल 



मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

महाकवि सूरदास

महाकवि सूरदास

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महाकवि सूरदास हिन्दी के श्रेष्ठ भक्त कवि थे। वे भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त माने जाते रहे हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, महाकवि सूरदास जी की जयंती हर साल वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को आती है। इसलिए इस साल सूरदास जयंती, मंगलवार 25 अप्रैल 2023 को मनाई जा रही है।


महाकवि सूरदास का संपूर्ण काव्य ब्रजभाषा का श्रृंगार है। उन्होंने विभिन्न राग, रागनियों के माध्यम से एक भक्त ह्रदय के भावपूर्ण उद्गार व्यक्त किए हैं। कृष्ण, गाय, वृंदावन, गोकुल, मथुरा, यमुना, मधुवन, मुरली, गोप, गोपी आदि के साथ-साथ संपूर्ण ब्रज-जीवन, संस्कृति एवं सभ्यता के संदर्भ में उन्होंने अपनी वीणा के साथ बहुत कुछ गाया। महाकवि का काव्य शताब्दियाँ बीत जाने पर भी भारतीय काव्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके काव्य का अंतरंग एवं बहिरंग पक्ष अत्यंत सुदृढ़ और प्रौढ़ है।


सूरदास जी के दो दोहे उनके भावार्थ सहित नीचे दिए जा रहे हैं।


(1) चरन कमल बन्दौ हरि राई

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई।

बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई

सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई।।


इस दोहे के द्वारा सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि जिस पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा होती है वह सब कुछ कर जाता है। उसके लिए कोई भी काम उसके लिए असंभव नहीं रहता है। यदि भगवान श्रीकृष्ण की कृपा किसी लंगड़े पर हो गई तो वह बड़ा पहाड़ भी लांघ सकता है और यदि भगवान श्रीकृष्ण की कृपा एक अंधे पर हो जाती है तो वह इस सुंदर दुनिया को अपनी आँखों से देख सकता है। जब भगवान श्रीकृष्ण की कृपा होती है तो बहरे को सुनाई और गूंगे बोलने लग जाते हैं। कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं रहता। ऐसे करुण मय भगववान के पैरों में सूरदास बार बार नमन करता है।


(2) मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ

मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौं, तू जसुमति कब जायौ।।

कहा करौन इहि के मारें खेलन हौं नहि जात

पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात।।

गोरे नन्द जसोदा गोरीतू कत स्यामल गात

चुटकी दै-दै ग्वाला नचावत हँसत-सबै मुसकात।।

तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै

मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।।

सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत

सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।।


इस दोहे के द्वारा सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की घटना का वर्णन करते हैं। बालक श्रीकृष्ण यशोदा मैया के पास जाते है और अपने भाई बलराम की शिकायत करते हैं कि उन्हें दाऊ भैया यह कहकर खिझाते है कि तुमको यशोदा मैया कहीं बाहर से लेकर आई है। तुम्हे तो मोल भाव करके खरीदा गया है। इस कारण मैं खेलने नहीं जा रहा हूँ। बलराम भैया कहते हैं कि यशोदा मैया और नंदबाबा तो गोरे रंग के है और तुम सांवले रंग के हो। तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? इतना कहकर वो ग्वालों के साथ चले जाते हैं और उनके साथ खेलते और नाचते हैं। आप दाऊ भैया को तो कुछ नहीं कहती और मुझे मारती रहती हैं। श्री कृष्ण से ये सुनकर मैया यशोदा मन ही मन मुस्कुराती है। यह देख कृष्ण कहते हैं कि गाय माता की सौगंध खाओ कि मैं तेरा ही पुत्र हूँ।


महाकवि सूरदास जी की जयन्ती पर उन्हें कोटि-कोटि वंदन।


सादर,

केशव राम सिंघल



रविवार, 22 जनवरी 2023

बातों ही बातों में - 02

बातों ही बातों में - 02

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केशव राम सिंघल

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हर वक्तव्य, हर बात का महत्त्व है, किसी का कम, किसी का अधिक। आप पढ़े और सोचे, यही उद्देश्य है 'बातों ही बातों में' श्रृंखला का।

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2024 में राहुल गांधी पप्पू वाला राहुल नहीं होगा। भारत जोड़ो यात्रा से बदल गया राहुल गांधी?

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30 जनवरी 2023 को समाप्त हो रही है भारत जोड़ो यात्रा।

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एम सी मिश्रा ने पचास साल पहले ही अपनी रिपोर्ट में लिख दिया था कि जोशीमठ डूब रहा है, पर रिपोर्ट पढ़ता कौन है और उस पर कार्रवाई करना तो दूर उसे दराज में बंद कर दिया जाता है। और अब नींव हिल गई जोशीमठ की। दरारें आ गई हैं, मकानों में, इमारतों में, सडको पर 

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क्या ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, नितीश कुमार जैसे नेता भारत जोड़ो यात्रा जैसी कोई यात्रा कर सकते हैं या करेंगे?

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इस देश में धर्म का नशा अफीम की तरह चटा दिया जाता है।

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उत्तरकाशी (उत्तराखंड) के मोरी थाना क्षेत्र के एक गांव में मंदिर में प्रवेश करने पर अनुसूचित जाति के युवक की पिटाई करने और दागने का मामला सामने आया है। पता चला है कि गांव के ही कुछ सवर्ण युवाओं ने युवक को मंदिर के अंदर करीब 16 घंटे तक बंधक बनाए रखा और उसके पिता के सामने कपड़े उतार कर बेरहमी से पीटा।

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शब्द हथियार की तरह होते है, जिनसे किसी को मारा भी जा सकता है और बचाया भी जा सकता है। शब्दों का उपयोग सोच-समझकर करो। कम शब्दों में अपनी बात कहना सीखो। 

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लोकतंत्र और गणतंत्र में बहुमत का शासन भी निरंकुश हो सकता है। जरुरत है संविधान की सर्वोच्चता पर ध्यान देने की, ताकि लोगों की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा हो सके। इसके लिए जनता की सहभागिता के साथ शासन में जाँच और संतुलन (check and balance) की जरुरत है।

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गृह मंत्रालय के मुताबिक़ साल 2021 में 163,370 लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी। संसद में पेश किए गए दस्तावेज़ में कहा गया है कि इन लोगों ने "निजी वजहों" से नागरिकता छोड़ने का फ़ैसला किया है। सबसे ज़्यादा 78,284 लोगों ने अमेरिकी नागरिकता के लिए भारत की नागरिकता छोड़ी। 2014 में यह संख्या 1,29,328 थी, 2015 में यह संख्या 1,31,489 थी, 2016 में 1,41,603, 2017 में 1,33,049, 2018 में 1,34,561, जबकि 2019 में 1,44,017 और 2020 में 85,256 ने अपनी नागरिकता छोड़ी थी। इस प्रकार प्रतिवर्ष औसतन एक लाख तीस हजार से अधिक नागरिक भारत की नागरिकता छोड़ रहे हैं। क्या संकेत देते हैं ये आकड़े?

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भारत के किसान, मज़दूर इस देश के तपस्वी हैं। उनकी मेहनत के कारण देश में उन्नति होती है। मगर उनकी तयस्या का फल उनसे चोरी कर अरबपतियों के ख़ज़ाने भरे जा रहे हैं। देश के तपस्वियों को उनका हक़ मिले, देश आगे बढ़े, इसके लिए ज़रूरी है सबका साथ आना, आवाज़ उठाना, भारत को एक सूत्र में जोड़ना। @ राहुल गांधी

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750 से अधिक किसान न्यूनतम बिक्री मूल्य (MSP) के लिए शहीद हो गए। 

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भारत में गरीबी की क्या बात करते हो, देखते नहीं अब विश्व का सबसे अमीर आदमी एक भारतीय बन रहा है।

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यही तो जीवन की त्रासदी है। जब राम पास थे तो सीता को सोने का हिरन चाहिए था और जब सीता सोने की लंका में थी तो राम के लिए आँसू बहा रही थी। 

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भारत तो विश्व गुरु बनेगा ही ,,,,,,,,, भारत की जेलों तक में आपको साधु-संत मिल जाएँगे। 

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हारे हुए ने ही जीतना सिखाया है। आईएएस की कोचिंग देने वाले खुद आईएएस की परीक्षा पास नहीं कर सके, पर उन्होंने अपने ज्ञान से बहुतों को आईएएस की परीक्षा में पास करवा दिया।

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जुल्म का ढाँचा बहुत बड़ा है।

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पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके में विरोध प्रदर्शन होने के समाचार सुनने को मिल रहे हैं । वहाँ नारे लग रहे हैं कि 'आर-पार जोड़ दो, करगिल रोड खोल दो।'

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बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने 15 जनवरी 2023 को एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि आने वाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव 2024 में बहुजन समाज पार्टी किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी। क्या संकेत देता है यह बयान। भाजपा को इससे खुश होना चाहिए?

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मार्क ट्वेन (Mark Twain) ने एक बार कहा था कि लोगों को मूर्ख बनाना आसान है, लेकिन उन्हें यह समझाना कठिन है कि उन्हें मूर्ख बनाया गया है।  

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लोग बेरोजगारी की बात करते हैं। राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने लाभ के लिए उठाते भी हैं। ज्यादातर लोग चाहते हैं कि सरकार ही बेरोजगारी दूर करने के लिए प्रयत्न करे। बहुत से लोग खुद कोशिश करना नहीं चाहते। लोग उन्हें मिले अवसर या काम को छोटा काम का तमगा देकर उसे करने में उत्साहित नहीं होते और ऐसी स्थिति में निराशा का भाव दिखता है। देश में असंख्य अवसर हैं। लोग अपने लिए अवसर पैदा कर सकते हैं, दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं। मेहनत करने की जरुरत है। अपना रास्ता खुद बनाना होगा। खुद के रोजगार के साथ दूसरों को रोजगार देने के बारे में सोचे। जहाँ भी काम करे, उत्पाद और सेवा की गुणता (Quality) पर ध्यान दें। 

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तमाम निराशाओं और हताशाओं के बीच, बेरोज़गारी की व्यथा कथाओं के बीच हमारे ही समाज  में उद्यमी, मेहनती, नवाचार प्रेमी लोगों का एक नया वर्ग भी बहुत तेज़ी से उभर रहा है जो न केवल अपने जीवन को बेहतर बना रहा है, अपने आस-पास भी आशा-उल्लास और उत्साह का माहौल रच रहा है। @ डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल

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जब हम पहली बार गलती करते हैं और हमें पता होता है की यह गलत है तो हमें अपराध-बोध होता है। जब उसी गलती को दूसरी बार करते हैं तो हमारे अपराध-बोध में कमी आ जाती है और तीसरी बार करने पर तो अपराध-बोध ख़त्म हो जाता है। यही से शुरू होता है अपराधों का पनपना। 

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कानून और अदालतों का सहारा लेकर भी जनतंत्र को कुचला जा सकता है? 

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क्या तुम्हें डर नहीं लगता है?

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किसानों को जो राजनेता समझता हो, वैसा राजनेता ही किसानों के भले के लिए सोच सकता है।

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राजनेता में हिम्मत होनी चाहिए कि वह गलत को गलत कह सके। याद आता है राहुल गांधी का वह वक्तव्य जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी की सरकार की आलोचना भी की थी। राहुल गांधी ने उस अध्‍यादेश को 'पूरी तरह बकवास' करार दिया था, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। उन्‍होंने यहाँ तक कह दिया था कि ऐसे अध्‍यादेश को फाड़ कर फेंक देना चाहिए।

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बच्चा रोता है, हँसता है, मुँह से शब्द नहीं बोलता, फिर भी अपनी माँग रख ही देता है। 

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जीने के लिए स्वाभिमान का होना जरूरी है। स्वाभिमान के लिए रोजगार जरूरी है।

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एक समाचार क्लिप, जिसका हैडिंग था - "भारत के 88%, दुनिया के 40% रईसों की संपत्ति बढ़ी।" एक तरफ यह समाचार प्रसन्नता का भाव पैदा कर रहा है और दूसरी तरफ वास्तविकता जान चिंतित होना स्वाभाविक लगा। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आकड़ों के अनुसार देश की बेरोजगारी दर सितंबर में 6.4 प्रतिशत से बढ़कर अक्टूबर माह 2022 में 7.8 प्रतिशत पर पहुँच गई। एक अनुमान के मुताबिक़ 2022 में भारत की बेरोजगारी दर दिसंबर में बढ़कर 8.3% हो गई।

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2022 में, भारत के 100 सबसे अमीर लोगों की संयुक्त संपत्ति 800 अरब डॉलर तक पहुँच गई। भारत में अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। भारत में सबसे अमीर एक प्रतिशत आबादी के पास अब देश की कुल संपत्ति का 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है, जबकि नीचे की आधी आबादी के पास कुल संपत्ति का केवल 3 प्रतिशत हिस्सा है।

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एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल 2023 में भारत चीन को पीछे छोड़ विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा।

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शेष फिर ,,,,,,,,,,,,, 




शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

बातों ही बातों में - 01

बातों ही बातों में - 01

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केशव राम सिंघल 

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हर वक्तव्य, हर बात का महत्त्व है, किसी का कम, किसी का अधिक। आप पढ़े और सोचे, यही उद्देश्य है 'बातों ही बातों में' श्रृंखला का। 

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नेताओं की जय बोलने से अच्छा है कि उनसे हिसाब माँगो। 

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जमीन पर किसानों को अगर दो पैसा ज्यादा मिल रहा, तो वो राहुल गांधी की देन है। भूमि अधिग्रहण कानून राहुल गांधी लेकर आए। ये जिस काम में लगता है, उसे करता है। इसकी (राहुल गांधी) गलती ये है कि ये सच बोलता है, झूठ-पाखंड नहीं करता। - @राकेश टिकैत  

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सरकार को घाटा होगा तो वह कम्पनी बेच देगी। और यदि पूंजीपति को घाटा होगा तो वह कंपनी ही बंद कर देगा। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आते ही अडानी ने हिमाचल प्रदेश में सीमेंट प्लांट बंद कर दिया। 

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क्या साहब का जलवा अब उतार पर है? 

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कमल हसन भी जुड़े भारत जोड़ो यात्रा के साथ। 

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क्या आरएसएस इस सदी का कौरव है?

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क्या कुछ ज्यादा ही नहीं हो रहा? सब कुछ अडानी के नाम। 

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एक बूढ़ा हो रहा है और दूसरा तैयार हो रहा है। स्थायित्व शाश्वत नहीं, परिवर्तन शाश्वत है। 

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अटल बिहारी वाजपेयी भी तो 2004 में कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से मिले थे। 

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आरएसएस (?) का एक आदमी बोलता है - 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बना तब मेरा एक लीटर खून बढ़ गया था, पर जैसा इन्होने देश के साथ किया, उससे मेरा खून पाँच लीटर कम हो गया। एक इंटरव्यू वीडियो में सुना। 

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आज भी होता है द्रोपदी का चीरहरण और द्रोण, भीष्म, विदुर जैसे न्यायकर्ता मुँह छिपाते हुए चुप रहते हैं। 

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भारत जोड़ो यात्रा में अब आलोचक भी जुड़ रहे हैं। क्या संकेत हैं?

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क्या कांग्रेस ने ब्रांडिंग के लिए 300 करोड़ खर्च करके भारत जोड़ो यात्रा प्रारम्भ की है? क्या यह यात्रा को कमतर करने की कोशिश तो नहीं?

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महाभारत फिर होगा? वे कहते हैं - एक तरफ अर्जुन है दूसरी ओर है हस्तिनापुर की सत्ता। 

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पूर्व आर्मी चीफ और कई पूर्व सैन्य अफसर राहुल गांधी से भारत जोड़ो यात्रा में मिले। क्या संकेत है? 

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मिले कदम, जुड़े वतन। भारत जोड़ो, नफरत तोड़ो। 

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कैद में मिले चाहे राजभोग, पर नहीं मिलती आजादी। 

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दया आती है पार्टी कार्यकर्ताओं पर, जो अपनी मेहनत से पार्टी को खड़ा करते हैं और नेतृत्व की भूमिका में उन्हें कोई अहमियत नहीं दी जाती। पार्टी नेतृत्व पर कब्जा दूसरी पार्टी से आए नेता कर लेते हैं। वही लोग चुनाव टिकट पा जाते है और मंत्री भी बन जाते हैं। 

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एक भारत जोड़ो यात्री ने बताया कि राहुल जी के साथ पदयात्रा करके वे अपने आपको निरोग और स्वस्थ महसूस करते हैं। इस प्रकार राहुल भारत को निरोग और स्वस्थ रहने का सूत्र लोगों को दे रहा है।  

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सत्ता जब पास है तो फिर विचारधारा की जरुरत क्या है। विचारधारा की सीढ़ी की अब जरुरत कहाँ, वह तो अब बेकार है। जिस जीएसटी का विरोध पार्टी 2014 से पहले करती थी, उस जीएसटी को ही वह देश में लेकर आई। 

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जब बदलाव मन में आएगा तो बदलाव देखने को मिलेगा। 

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नागरिकता कानून क्यों नहीं लागू हुआ? 

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कश्मीर में चुनाव क्यों नहीं हुए? 

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क्या भाजपा नागरिकता कानून पर राजनीति करने में माहिर है और साथ ही जनता को उलझाने में? काफी समय से पार्टी इस मुद्दे पर चुप है। 

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तन्हाई में व्यक्ति सोचता है बहुत। 

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गांधीवादी होना आसान है, गांधी होना बहुत मुश्किल है। 

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हिलाने से पुल गिर जाता है, नारियल फोड़ने से सड़क टूट जाती है और भैंस के टकराने से इंजन क्षतिग्रस्त हो जाता है। क्या संकेत इन बातों के? 

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भारत बन गया है विश्व गुरु, ताली बजाओ, घोषणा हुई है - पाँच सौ विदेशी विश्वविद्यालयों के कैम्पस भारत में खुलेंगे और मेडिकल-इंजीनियरिंग की पढ़ाई अब क्षेत्रीय भाषाओं में होगी।  

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शेष फिर ,,,,,,,,,,,,,



कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल - 19

कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल

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लेखक - केशव राम सिंघल

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आज सभी खुश थे कि दुबई में कल (28-08-2022) एशिया कप 2022 के भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच में भारत ने पाँच विकेट से जीत हासिल कर ली। सब एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे।

 

चाची बोलीं - अम्मा जी, मैं तो बहुत निराश हो गई थी, जब मैंने भारतीय टीम की पहले दस ओवरों की परफॉर्मेंस देखी। बहुत ही कम रन रेट थी।

 

अम्मा जी कहने लगीं - छोटी, तुझे पता है कि मैं आजकल टीवी नहीं देखा करती। हाँ, बच्चे देख रहे थे, वे ही बार-बार मुझे आकर स्कोर आदि बता देते थे। मैंने सुना कि हार्दिक पांड्या ने विजयी छक्का जड़ा, वही मैन ऑफ़ मैच रहे। चलो बधाई।

 

तभी राजरानी बोली - अम्मा जी, वैसे पाकिस्तान भी अच्छा खेली। जब भारत की टीम बैटिंग के लिए उतरी तो शुरू में उनकी फील्डिंग बहुत अच्छी थी।

 

शैलबाला कहने लगी - कल तो बच्चे इतने खुश थे कि जैसे ही हार्दिक पांड्या ने विजयी छक्का जड़ा, वे नाचने लगे और मिठाइयाँ बाँटने लगे।

 









अम्मा जी कहने लगी - खुशी की तो बात है।

 

तभी राजरानी ने बताया - अम्मा जी, कल नोयडा में एक सौ तीन मीटर ऊँची बत्तीस मंजिला इमारत ट्विन टावर को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार गिरा दिया गया।

 

अम्मा जी कहने लगीं - यह तो वही टावर थी जो इसके बिल्डरों ने अवैध रूप से बनाई थी।

 

राजरानी कहने लगी - हाँ, अम्मा जी। पर एक दिन में तो नहीं बनी यह इमारत। यह तो सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश थे कि इस इमारत को गिरा दिया जाए, अन्यथा इसके बिल्डरों ने खूब प्रयास किए कि यह बिल्डिंग गिराई जाए। 

 

ट्विन टावर से सम्बंधित जानकारी देते हुए राजरानी ने बताया - इस ट्विन टावर को गिराने के लिए 'वाटरफॉल इम्प्लोजन' तकनीक का सहारा लिया गया तथा 3,700 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया। यह टावर मात्र सेकेण्ड में जमींदोज हो गई। बिल्डिंग विस्फोट के बाद सतासी हजार टन मलबा फ़ैल गया। इस ट्विन टावर को गिराने का काम एडिफिस इंजीनियरिंग नामक कंपनी ने किया और सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस टावर के गिराने से आसपास की बिल्डिंगों को कोई नुकसान नहीं पहुँचा है। बहुत बार बिल्डरों के फरेब में लोग जाते हैं और अपनी जिंदगी भर की कमाई को दाँव पर लगा देते हैं। अम्मा जी, जब भ्रष्टाचार की इमारत गिरती है तो  हमारा समाज खुशियाँ मनाता है। यह इमारत भ्र्ष्टाचार की प्रतीक थी, जिसे गिरा दिया गया। जिस समय यह इमारत गिराई गई लोगों ने तालियाँ बजाई। काश, भ्रष्टाचार को मूल से ख़त्म कर दिया जाए।

 

अम्मा जी ने कहा - राजरानी, तुमने तो बहुत सारी जानकारी दे दी। वैसे इतनी ऊँची टावर अवैध बन गई, ताज्जुब की बात है ना।

 

चाची बोली - भ्रष्टाचार के कारण सब कुछ हो जाता है अम्मा जी।  

 

अम्मा जी कहने लगीं - यह भ्रष्टाचार ही हमें ले डूबेगा, अन्यथा क्या कमी है हमारे देश में।

 

सभी अम्मा जी के तरफ देख कर सहमति जाहिर करने लगे।

 









तभी सरोज बुआ बोलीं - अम्मा जी, भ्रष्टाचार से सम्बंधित एक कहानी मैंने सोशल मीडिया पर पढ़ी है, वही सुनाती हूँ। एक बार एक अमीर व्यक्ति के घर इनकम टैक्स का छापा पड़ा। घंटो की खोजबीन के बाद छापे के लिए आई टीम के अफसर ने उस अमीर व्यक्ति से कहा - आपका हिसाब किताब तो ठीक-ठाक सा लग रहा है, पर एक जगह खातों में लिखा है यमदूत को फल खिलाने का खर्चा चार लाख रुपया, पर इससे सम्बंधित बिल या भुगतान की रसीद नहीं हैं। क्या आपके पास कोई बिल या भुगतान की रसीद है जिससे यह प्रमाणित हो कि यह खर्च आपने किया है। यह सुन वह व्यक्ति बोला - नहीं साहब, इससे सम्बंधित तो कोई बिल या प्राप्ति रसीद नहीं है मेरे पास। मैंने तो नकद भुगतान किया था। व्यक्ति की बात सुनकर अधिकारी ने कहा -  कानूनन आप यह खर्चा अपनी किताबों में नहीं दिखा सकते। इस प्रकार आपको आयकर और पैनल्टी के रूप में करीब ढाई-तीन लाख रुपये देने होंगे। एक रास्ता है, यदि आप मुझे एक लाख रुपये दे दें तो मैं बात को यहीं समाप्त कर दूँगा। व्यक्ति ने सहमति प्रकट करते हुए अपने मुनीम को आवाज लगाईं और कहा - मुनीम जी, साहब को झटपट एक लाख रुपये दे दो और खाते में लिख देना एक यमदूत ने एक लाख का केला खाया। अम्मा जी, मुझे लेखक का नाम नहीं पता। उस अनाम लेखक को साभार।

 

अम्मा जी ने कहा - अच्छा व्यंग्य किया है। भ्रष्टाचार तो रच-बस गया है आज। दुःख की बात है यह।

 

भार्गव आंटी अम्मा जी की तरफ देख कर बोलीं - अम्मा जी, आपको तो पता ही है कि बेटी पत्रकारिता का कोर्स कर रही है, पर चाहती है कि बिहार की राजनीति पर कुछ लिखे। बिहार राज्य और वहाँ की राजनीति पर समझ विकसित करने के लिए कोई पुस्तक बताइये।

 

अम्मा जी बोलीं - बिहार या किसी भी राज्य की राजनीति को समझना है तो विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में राज्य से संबंधित लेख पढ़े और अपने नोट्स तैयार करे। अगर उसने पच्चीस-पचास लेख पढ़ लिए तो राज्य से संबंधित एक अच्छी समझ उसको हो जाएगी। इसके लिए उसको कुछ पत्रिकाओं के पुराने अंक भी पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। कुछ हिंदी पत्रिकाएँ हैं जैसे - आउटलुक हिंदी पाक्षिक, इंडिया टुडे आदि। बेटी को मेरी शुभकामनाएँ।

 

चाची बोली - प्रसन्न कुमार चौधरी और श्रीकांत की लिखी एक किताब है 'बिहार में सामाजिक परिवर्तन के कुछ आयाम' इस किताब का पेपरबैक संस्करण भी उपलब्ध है तथा इसे अमेजन से भी मँगाया जा सकता है। यदि भोजपुर बिहार के नक्सलवादी आंदोलन को जानना है तो कल्याण मुखर्जी और राजेंद्र सिंह यादव की लिखी एक किताब है 'भोजपुर - बिहार में नक्सलवादी आंदोलन', जिसे राधाकृष्ण प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।

 

शैलबाला बोली - बिहार पर बहुत सी किताबें हैं। यदि वहाँ के परिवेश के बारे में अधिक जानना है तो फणीश्वर नाथ रेणु का उपन्यास 'मैला आँचल' बिटिया को जरूर पढ़ना चाहिए। इस उपन्यास को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है तथा यह पेपरबैक और किंडल संस्करणों में उपलब्ध है।

 









भार्गव आंटी ने कहा - चाची, रेणु जी का यह उपन्यास तो मैंने भी पढ़ रखा है। यह तो हिंदी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है।

 

तभी राजरानी बोली - भार्गव आंटी, मेरे पास है इसकी प्रति। मैं आपके घर भिजवा दूँगी।

 

यह कथा-श्रृंखला, पाठको को समर्पित है। आप पढ़े, आनंद लें, टिप्पणी करें, दूसरों को पढ़ाएँ, अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा करें। स्वागत है आपके सुझावों और टिप्पणियों का।

 

कल्पना और तथ्यों के घालमेल से लिखी यह कथा-श्रृंखला रुचिकर लगेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। कथा में दिए सभी चित्र प्रतीकात्मक हैं तथा इंटरनेट से साभार लिए गए हैं।