रविवार, 11 अक्तूबर 2015

जाने किस उम्मीद में .... # 16




अब तो चुपचाप सा खामोश गुजरता है मेरा दिन, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में, अब अपने से ही बातें करता हूँ मैं !
© 2015 केशव राम सिंघल

शुभकामना सहित,

केशव राम सिंघल

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

जाने किस उम्मीद में ....#6



संतुष्टि अंतर्निहित होती है, उसी प्रकार आनंद, विचार और धारणा का मूल तत्व,
तो फिर कोई क्या सोचे क्या फर्क पड़ता है.
हम तो मस्त हैं, आनंदित हैं, तृप्त हैं संतुष्ट हैं, इच्छाओं के बिना भी.

जाने किस उम्मीद में ....#6

प्रभावित करने की किसी को कोई इच्छा नहीं अब, फिर भी
जाने किस उम्मीद में, उम्मीदों के बिना भी आनंदित हूँ मैँ !

शुभकामना सहित,

- केशव राम सिंघल