यहूदी-ईसाई-मुस्लिम-डूज समुदाय, यरूशलम और इजरायल - 1
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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe
इस आलेख शृंखला में हम यहूदी, ईसाई, मुस्लिम और डूज समुदायों के बारे में चर्चा करेंगे और साथ ही यरूशलम और इजरायल के बारे में संक्षिप्त जानकारी देंगे।
अरब रेगिस्तानी इलाका था और वहाँ के लोग घुमन्तु थे, जो लड़ते बहुत थे। अरब के लोगों में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी। सबसे पहले अरब में यहूदी धर्म आया, जिसकी शुरुआत पैगम्बर अब्राहम लगभग 2000 ईसा पूर्व अर्थात आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व मानी जाती है। यहूदी धर्म के बाद ईसाई धर्म पहली शताब्दी ईस्वी में शुरू हुआ और इस्लाम सातवीं शताब्दी ईस्वी करीब 610 ईस्वी में आया। ड्रूज (Druze) समुदाय का आगमन 10वीं-11वीं सदी (लगभग 986-1021 ईस्वी) में हुआ, जब यह इस्लाम के इस्माइली शाखा से अलग होकर एक स्वतंत्र धर्म बना। इस प्रकार यहूदी धर्म सबसे प्राचीन (करीब 2000 ईसा पूर्व), फिर ईसाई धर्म (1वीं सदी), फिर इस्लाम (7वीं सदी) आया—ड्रूज इन सबसे बाद में अस्तित्व में आए।
इन चारों धर्मों में कई समानताएँ हैं, लेकिन कुछ ख़ास अंतर भी हैं। यहूदी, मुस्लिम और डूज धर्म एकेश्वरवादी हैं अर्थात् ईश्वर एक है। ईसाई धर्म में भी एक ईश्वर है, लेकिन वे त्रिमूर्ति (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) को मानते हैं। ईसाई धर्म में ईसा को भगवान् का पुत्र और उद्धारकर्ता माना जाता है। इस्लाम में ईसा को पैगम्बर माना जाता है, लेकिन ईश्वर का पुत्र नहीं। यहूदी धर्म ईसा को न तो मसीहा मानता है और न ही पैगम्बर। डूज समुदाय एक अनोखा एकेश्वरवादी धार्मिक और जातीय समूह है, जो मुख्यतः लेबनान, सीरिया, इजरायल और जॉर्डन में पाया जाता है। ये लोग अरबी बोलते हैं, लेकिन न तो खुद को मुस्लिम मानते हैं और न ही यहूदी या ईसाई। इनकी धार्मिक मान्यताएँ अलग हैं और इनकी धार्मिक पहचान भी ख़ास है।
यहूदी धर्म का धार्मिक ग्रन्थ ड्रूज समुदाय का पवित्र ग्रंथ टोरा है, ईसाई धर्म का बाइबिल और इस्लाम का धार्मिक ग्रन्थ कुरान है। डूज समुदाय का पवित्र ग्रन्थ "रिसालत अल-हिकमा" (Epistles of Wisdom/किताब अल-हिकमा) है, जिसे सिर्फ उनके धार्मिक विद्वान ही पढ़ सकते हैं।
यरूशलम तीनों धर्मों (यहूदी, ईसाई और इस्लाम) के लिए आस्था का स्थान है। यहूदी धर्म मानने वालों के लिए यरूशलम सबसे पवित्र शहर है, यहीं उनका प्राचीन मंदिर था, जिसे वे भगवान् का निवास स्थान मानते आए हैं। ईसाई धर्म के मानने वालों के लिए यरुशलम वह स्थान है जहां यीशु मसीह को सूली पर चढ़ाया गया, दफनाया गया और यहीं उनका पुनरुत्थान हुआ। इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद यरुशलम तीसरा पवित्र शहर है। कहा जाता है कि यहीं से पैगम्बर ने मेराज (स्वर्ग की यात्रा) की थी और यरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद है। यरुशलम डूज (Druze) समुदाय के लिए यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धर्मों जितना महत्वपूर्ण नहीं है। यरुशलम मुख्य रूप से यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म के लोगों के लिए पवित्र शहर माना जाता है, लेकिन डूज समुदाय के धार्मिक केंद्र और तीर्थ स्थल लेबनान, सीरिया और इज़राइल के अन्य हिस्सों में हैं, न कि यरुशलम में। यरुशलम शहर का प्रशासन और रख-रखाव मुख्य रूप से इजरायल सरकार के पास है, लेकिन धार्मिक स्थलों की देखरेख उनके अपने धार्मिक ट्रस्ट या संगठनों द्वारा की जाती है। तीनों धर्मों के लोग आमतौर पर अपने-अपने पवित्र स्थलों पर जा सकते हैं, पर सुरक्षा कारणों से या तनाव के कारण कभी-कभी पाबंदिया लग जाती हैं, खासकर अल-अक्सा मस्जिद को लेकर मुस्लिमों के लिए।
यहूदी और इस्लाम दोनों ही एकेश्वरवादी अर्थात् एक भगवान् को मानने वाले धर्म हैं और दोनों की जड़े अब्राहम से जुडी हैं, फिर भी यहूदी इस्लाम के बीच मन-मुटाव के कई कारण हैं। इस्लाम मानता है कि पैगम्बर मुहम्मद अंतिम पैगम्बर हैं, जबकि यहूदी इसे नहीं मानते। इस्लाम धार्मिक ग्रन्थ कुरान और यहूदी धार्मिक ग्रन्थ टोरा की व्याख्याएँ अलग हैं। पैगम्बर मुहम्मद के समय यहूदियों ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया, जिससे दोनों धर्म मानने वालों के बीच टकराव शुरू हुआ और कई लड़ाईयाँ हुईं। 1948 में इजरायल बनने के बाद अरब देशों और इजरायल के बीच जमीन और यरुशलम जैसे पवित्र स्थलों को लेकर कई विवाद और संघर्ष हुए। यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों यरूशलम को पवित्र मानते हैं, लेकिन वहाँ नियंत्रण को लेकर लगातार संघर्ष चलता है। झगडे की जड़ सिर्फ धर्म नहीं, बल्कि राजनीति, इतिहास और जमीन का विवाद है।
शेष अगले आलेख में ..........
सादर,
केशव राम सिंघल