जाने किस उम्मीद में यादों का बहाना बन जाता हूँ मैं !
जानता हूँ बदलाव जरूरी / न पा सकने का दु:ख बहुत / फिर भी,
जाने किस उम्मीद में छलकते हैं आँसू और हल्का हो जाता हूँ मैं !
दर्द है, गम है, घुटन और मुश्किलें बहुत फिर भी
जाने किस उम्मीद में हँसकर सबकुछ छुपाता हूँ मैं !
- केशव राम सिंघल
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