अमेरिका का नया H-1B वीज़ा शुल्क और प्रभाव
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एयरपोर्ट का प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe
अमेरिका अब विदेशी पेशेवर लोगों को अपनी धरती पर आने से रोकने के लिए H-1B वीज़ा के लिए एक लाख डॉलर वार्षिक की वीजा फीस लगाने की घोषणा की है, जो पिछली फीस से सौ गुना है। वीसा की यह वार्षिक फीस 21 सितंबर 2025 से लागू हो गई है, पर अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि यह नए H-1B वीज़ा अनुरोधों पर लागू होगी, और कंपनियों को प्रत्येक आवेदक के लिए छह वर्षों तक यह फीस देनी होगी। अब हम यह समझते हैं कि यह H-1B वीज़ा क्या है। H-1B वीज़ा एक गैर-आप्रवासी वीज़ा है जो अमेरिका में विशेषज्ञता वाले पदों (जैसे टेक, इंजीनियरिंग, बैंकिंग, शिक्षा आदि) पर विदेशी कुशल श्रमिकों / पेशेवरों को काम करने की अनुमति देता है। यह मुख्य रूप से अमेरिकी संस्थानों द्वारा विदेशी प्रतिभा को नौकरी देने के लिए उपयोग किया जाता है, और इसकी अधिकतम अवधि छह वर्ष होती है।
यह बढ़ी हुई H-1B वीज़ा फीस सभी H-1B वीज़ा के नए आवेदकों पर लागू होगी, चाहे वे किसी भी राष्ट्रीयता के हों। भारत से H-1B वीजा के लिए सबसे अधिक आवेदक होते हैं, अतः भारतीय आवेदकों पर इसका प्रभाव अधिक होगा।
एक प्रश्न लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह बढ़ी हुई वीजा फीस उन भारतीयों पर भी लागू होगी जो फिलहाल अमेरिका में वीज़ा अनुमति लेकर रह रहे हैं और आने वाले समय में उनकी वीज़ा अवधि समाप्त होने वाली है। ऐसा पता चला है कि वर्तमान H-1B धारकों पर यह तत्काल प्रभाव नहीं डालेगी, लेकिन भविष्य में एक्सटेंशन, ट्रांसफर या रिन्यूअल के लिए नए पिटीशन पर यह फीस लागू हो सकती है। यदि वे अमेरिका से बाहर जाते हैं और दोबारा अमेरिका में प्रवेश लेते हैं, तो बढ़ी हुई फीस लागू हो सकती है। री-एंट्री पर फीस तभी लागू होगी, जब नया पिटीशन (आवेदन) फाइल करना पड़े। ट्रंप प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यह फीस केवल नए H-1B आवेदनों (पिटीशन्स) पर लागू होगी, न कि मौजूदा वीज़ा धारकों पर—जिससे कुछ लोगों की चिंताएँ कम हो सकती हैं। हालांकि, घबड़ाहट और अनिश्चितता के कारण कई प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने यह भी कहा है कि "रश बैक" की जरूरत नहीं है।
अमेरिका ने वीसा शुल्क बढ़ाने का निर्णय अमेरिकी श्रमिकों की सुरक्षा, वेतन मानकों को मजबूत करने और H-1B प्रोग्राम में दुरुपयोग को रोकने के लिए लिया गया है। इसका उद्देश्य कंपनियों को अमेरिकी स्नातकों को ट्रेनिंग देने और अमेरिकियों को नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित करना है, साथ ही विदेशी श्रमिकों को केवल उच्च प्रबंधन पेशेवरों तक सीमित करना है। यह कानूनी आव्रजन को नियंत्रित करने की ट्रंप प्रशासन की नीति का हिस्सा है।
एक प्रश्न सामने आया कि क्या अमेरिका की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई है कि उन्हें अपने आयातों पर भारी भरकम टेरिफ और वीसा शुल्क में बढ़ोतरी करनी पढ़ रही है, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सके। इसके उत्तर में हमें पता चला कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था वर्तमान में मजबूत है, जिसमें इस वर्ष की तीसरी तिमाही में प्रारंभिक अनुमान के अनुसार जीडीपी ग्रोथ 3.3% है । टैरिफ और वीज़ा फीस सम्बन्धी नीतियाँ मुख्य रूप से संरक्षणवादी हैं, जिनका उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों की रक्षा और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है। बढे हुए टैरिफ से उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ सकता है, लेकिन बढे हुई वीजा फीस से उपभोक्ताओं पर कोई बोझ नहीं बढ़ेगा, बल्कि यह विदेशी पेशेवरों पर अमेरिका आने पर रोक लगाएगा, जिससे अमेरिका के युवाओं को अधिक रोजगार अवसर मिल सकेंगे।
वीसा शुल्क बढ़ाने के अन्य प्रभाव क्या हो सकते है, आओ इस पर चर्चा करें। बढ़ी हुई वीजा फीस अमेरिकी कंपनियों के लिए लागत बढ़ाएगी, खासकर छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स के लिए, जिससे विदेशी प्रतिभा को आकर्षित करना मुश्किल हो जाएगा। इससे अमेरिकी नवाचार और आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है, श्रम की कमी हो सकती है, और यह आशंका कि बहुत सी कंपनियाँ ऑटोमेशन, ऑफशोरिंग या अन्य देशों में ऑपरेशंस शिफ्ट कर सकती हैं। H-1B आवेदनों की संख्या कम हो सकती है, और भारतीय आईटी पेशेवरों पर विशेष प्रभाव पड़ेगा, लेकिन यह अमेरिकी पेशेवरों के लिए नौकरियां बढ़ा सकती है।
अमेरिकी कंपनियाँ बढ़े हुए H-1B वीज़ा शुल्क से बचने के लिए आउटसोर्सिंग (outsourcing) का रास्ता अपनाने या अन्य देशों में अपने ऑफिस खोलने पर विचार कर सकती हैं। यह पहले से ही एक सामान्य प्रथा है, और नई बड़ी हुई वार्षिक वीजा फीस, जो 21 सितंबर 2025 से लागू हो गई है, इस प्रथा को और अधिक आकर्षक बना सकती है। क्यों? आओ इसे समझते हैं। बड़ी हुई H-1B वीज़ा फीस के तहत विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में लाने और रखने की लागत अब बहुत अधिक हो जाएगी। इससे कंपनियाँ, खासकर टेक और आईटी सेक्टर की, अपने काम को सीधे भारत, फिलीपींस, मैक्सिको या पूर्वी यूरोप जैसे देशों में आउटसोर्स कर सकती हैं, जहाँ कुशल पेशेवर कम लागत पर उपलब्ध हो जाएँगे और अमेरिकी कंपनियों को कोई वीज़ा फीस नहीं देनी होगी। कई अमेरिकी कंपनियाँ जैसे माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, अमेज़न आदि पहले से ही भारत में बड़े ऑपरेशंस चला रही हैं, और यह प्रवृत्ति बढ़ सकती है। अमेरिकी कंपनियाँ भारत या अन्य देशों में सब्सिडियरी ऑफिस या डेवलपमेंट सेंटर खोलने पर विचार कर सकती हैं, जहाँ स्थानीय प्रतिभा को कम लागत पर रखा जा सकता है। अमेरिकी कंपनियाँ भारतीय आईटी फर्म्स जैसे इंफोसिस, टीसीएस आदि के साथ पार्टनरशिप बढ़ सकती है, या स्वयं नए केंद्र स्थापित कर सकती हैं। यह वीजा फीस वृद्धि नए आवेदनों को हतोत्साहित करेगी और ऑफशोरिंग को तेज करेगी। इससे अमेरिकी कंपनियाँ अपनी लागत कम रख सकती हैं और नवाचार भी जारी रख सकती हैं, लेकिन काम की गुणवत्ता, टाइम ज़ोन अंतर और संचार विशेष चुनौतियाँ सामने आएँगी, जिन्हे कंपनियों को सुलझाना होगा। वीजा फीस वृद्धि के कारण भारत जैसे देशों में अधिक निवेश और नौकरियाँ पैदा हो सकती हैं, क्योंकि कुशल पेशेवरों के लिए स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं। अमेरिका की यह नीति अमेरिका पर ही विपरीत प्रभाव डाल सकती है, क्योंकि अमेरिकी नौकरियों के अवसर अमेरिकी युवाओं को मिलने के बजाय बहुत सा काम विदेश चला जाएगा, जिससे लोकल अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। जहाँ ट्रैम्प प्रशासन की इस नीति का उद्देश्य अमेरिकी पेशेवरों को प्राथमिकता देना है, लेकिन यह नीति उन्हीं की कंपनियों को विदेशी शिफ्टिंग के लिए प्रेरित कर सकता है, हालाँकि उनकी रणनीति, बाजार की मांग और अन्य कारकों पर निर्भर करेगा। यह स्पष्ट करना जरूरी है कि वर्तमान में कोई आधिकारिक प्रतिबंध अमेरिकी कंपनियों के भारत में ऑपरेशंस पर नहीं है। भारत में GCCs (Global Capability Centers) बढ़ रहे हैं, और यह नीति भारत में अमेरिकी कंपनियों के कामकाज को और बढ़ा सकती है।
कुछ ख़बरों से पता चला है कि ट्रम्प प्रशासन के इस निर्णय से अमेरिका में रह रहे भारतीय पेशेवरों में चिंता बढ़ा दी है। दीपावली त्यौहार पर भारत आने की योजना बना रहे अनेक H-1B वीजा धारको ने अपने टिकट कैंसल कराए हैं। कुछ लोग जो छुट्टियाँ लेकर भारत आए हुए हैं, वे तुरत अमेरिका जाने के लिए कोशिश में लगे हुए हैं। अनेक अमेरिकी कंपनियों ने अपने H-1B वीजा धारक कर्मियों को जल्द अमेरिका लौटने या अभी अमेरिका नहीं छोड़ने के लिए निर्देश जारी किए हैं। लोगों में घबड़ाहट (पैनिक) शुरुआती अनिश्चितता के कारण था, क्योंकि फीस की घोषणा शुक्रवार 19 सितम्बर 2025 को हुई और स्पष्टता बाद में आई। ट्रंप प्रशासन ने बाद में कहा कि मौजूदा धारकों को "रश बैक" की जरूरत नहीं है।
भारत सरकार अमेरिका के निर्णय को "मानवीय प्रभाव" वाला मानती है और अमेरिका से चर्चा कर रही है। भारत के व्यापार संघ National Association of Software and Service Companies (Nasscom) ने अमेरिका की वीजा फीस बढ़ोतरी को "अनुचित" बताया है। कुछ विशेषज्ञों ने चिंता जताई है और अपनी राय व्यक्त की है कि जब ट्रम्प प्रशासन भारतीयों को अमेरिका आने से रोकने के लिए नीति बना रहा है तो क्यों अमेरिकी कंपनियों को भारत में व्यापार करने की इजाजत मिले।
सादर,
केशव राम सिंघल
