बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

🕉️ हिन्दू काल गणना और लम्बाई गणना

 🕉️ हिन्दू काल गणना और लम्बाई गणना

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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe 

भारतीय सभ्यता ने समय और माप की गणना को अत्यंत सूक्ष्म और वैज्ञानिक दृष्टि से परिभाषित किया है। वैदिक-उपवेदिक काल से हमारे आदि-ऋषियों ने समय तथा स्थान की इकाइयों का विस्तृत तंत्र विकसित किया, जो पंचांग, ज्योतिष, स्थापत्य और दैनन्दिन जीवन में आज भी उपयोगी है। इस प्रकार वैदिक युग से ही कालगणना (Time Measurement) और लम्बाई गणना (Length Measurement) का विस्तृत तंत्र विकसित हुआ, जिसने पंचांग, ज्योतिष, गणित और वास्तु के क्षेत्रों में आधार स्तंभ का कार्य किया। हमारे ऋषि-मुनियों ने न केवल सूर्य, चंद्र और ग्रहों की गति से दिन, मास और वर्ष की गणना की, बल्कि समय की सूक्ष्मतम इकाइयों तक का उल्लेख भी किया है। यही भारतीय विद्या काल का अद्भुत विज्ञान है — काल गणना।   इस लेख में उन पारंपरिक इकाइयों को सुसंगत रूप में प्रस्तुत किया गया है, साथ ही सूक्ष्म इकाइयों को शामिल किया गया है।    


काल के प्रकार और अंग


हिन्दू कालगणना में काल के पाँच प्रमुख अंग बताए गए हैं — वर्ष, मास, दिन, लग्न और मुहूर्त। विषयवस्तु के अनुसार पंचांग के पाँच अंग माने गए हैं — तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण।


काल दो प्रकार का माना गया है —


1. सूक्ष्म काल (दर्शनात्मक/सूक्ष्म इकाइयाँ), जो अत्यंत सूक्ष्म और दार्शनिक है, लोक व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होता। यह वैज्ञानिक और दार्शनिक विवेचनाओं में प्रयुक्त होता ै। 

2. स्थूल काल (व्यवहारिक), जो व्यवहारिक जीवन में उपयोगी है और जिसे हम दैनन्दिन जीवन व पंचांग में उपयोग करते हैं।


काल गणना की इकाइयाँ


हिन्दू पंचांग में समय की कई सूक्ष्म और स्थूल इकाइयाँ प्रयुक्त होती हैं — जैसे घटी, पल, विपल, मुहूर्त, पहर, अहोरात्र, मास और वर्ष आदि।


इनकी गणना इस प्रकार की गई है —


सूक्ष्म इकाइयाँ


60 त्रुटि = 1 रेणु  

60 रेणु = 1 लव  

60 लव = 1 लीक्षक  

60 लीक्षक = 1 प्राण  

60 प्राण = 1 पल  

60 पल = 1 घटी  


स्थूल एवं उपयोगी इकाइयाँ 


1 घटी = 24 मिनट = 1440 सेकंड  

1 पल  ≈  24 सेकंड ( ≈ लगभग)  

60 पल = 1 घटी  

2½ घटी = 1 घंटा  

60 घटी = 24 घंटे  

2 घटी = 1 मुहूर्त  

7½ घटी = 1 पहर = 3 घंटे  

8 पहर = 1 अहोरात्र (दिन-रात)  

30 मुहूर्त = 1 अहोरात्र  

30 अहोरात्र = 1 मास  

12 मास = 1 वर्ष  

1 वर्ष = देवताओं का 1 दिन  

360 मानव वर्ष = 1 दिव्य वर्ष  


ज्योतिषीय इकाइयाँ


60 प्रतिविकला = 1 विकल्प  

60 विकल्प = 1 कला  

60 कला = 1 अंश  

30 अंश = 1 राशि  

12 राशियाँ = 1 भचक्र (राशिचक्र)  


लम्बाई गणना (सूक्ष्म से स्थूल तक)


भारतीय गणना पद्धति में दूरी और माप की इकाइयाँ भी अत्यंत वैज्ञानिक रूप से निर्धारित थीं। प्राचीन ग्रंथों में इनका उल्लेख निम्न प्रकार मिलता है — 


सूक्ष्म लम्बाई इकाइयाँ (परम्परागत क्रम में)


8 परमाणु = 1 रजकण  

8 रजकण = 1 जलकण  

8 जलकण = 1 धूलिकण  

8 धूलिकण = 1 लव  

8 लव = 1 रेखा  

8 रेखा = 1 अंगुल


स्थूल एवं व्यवहारिक इकाइयाँ

24 अंगुल = 1 हाथ (हस्त / हस्त = हस्ता)  

6 हाथ = 1 बाँस (कुछ परम्पराओं में 4 हाथ भी मिलता है; यहाँ पारम्परिक तथा प्रामाणिक ग्रंथानुसार 6 हाथ का उपयोग अधिक प्रमाणिक माना गया है)  

लगभग 4000 हाथ ≈ 1 कोस  ≈ 3.2 किलोमीटर (यह पारम्परिक रूप से स्वीकार्य लगभग मान है; कोस की परिभाषाएँ क्षेत्रानुसार भिन्न भी पायी जाती हैं)

 

सार

भारतीय काल और मापन प्रणाली केवल संख्यात्मक गणना नहीं, बल्कि जीवन के अनुशासन, नियमितता और सृजनशीलता का प्रतीक है।


हमारे ऋषियों ने समय और स्थान दोनों की गणना में अद्भुत गहराई दिखाई। जहाँ पश्चिमी सभ्यता ने समय को “घंटों और सेकंडों” में बाँटा, वहीं भारतीय दृष्टिकोण ने उसे “मुहूर्तों और तिथियों” में अनुभव किया — जो जीवन और प्रकृति से अधिक समरस है।


हिन्दू कालगणना न केवल वैज्ञानिक है, बल्कि आध्यात्मिक चेतना और जीवन-दर्शन से भी ओतप्रोत है।


सादर,

केशव राम सिंघल

(संकलन और सम्पादन)  

 

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