आईये हिंदी गजल सीखें
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"ग़ज़ल का ज्ञान केवल पढ़ा नहीं, महसूस किया जाता है — जैसे गुरु अपने अनुभव से शिष्यों को रस में डुबो देता है।" प्रतीकात्मक चित्र - साभार NightCafe
ग़ज़ल उर्दू साहित्य की महत्वपूर्ण काव्य विधा है। ग़ज़ल एक विशेष शैली की कविता कही जा सकती है जिसमें कई शेर (दो पंक्तियों के पद्य) होते हैं, और हर शेर अपने आप में पूर्ण होता है। ग़ज़ल के हर शेर का अर्थ स्वतंत्र हो सकता है, परंतु सभी शेर एक ही बहर (छंद) और क़ाफ़िया-रदीफ़ के अनुशासन में होते हैं।
गजल के मुख्य लक्षण निम्न होते हैं -
(1) हर शेर स्वतंत्र होता है।
(2) मतला (प्रथम शेर) और मक़ता (अंतिम शेर) होते हैं।
(3) क़ाफ़िया और रदीफ़ का प्रयोग होता है।
ग़ज़ल की रचना में क़ाफ़िया, रदीफ़, और बहर महत्वपूर्ण तीन तकनीकी तत्व होते हैं। चलिए एक-एक करके तीनों को समझते हैं।
(1) काफिया = तुक
काफिया रदीफ़ के पहले आती है। इसे तुकांत शब्द भी कह सकते हैं। क़ाफ़िया वो तुक होती है, जो हर शेर की पहली पंक्ति (मतला) के बाद और फिर दूसरे मिसरे में दोहराई जाती है — और ये रदीफ़ से ठीक पहले आता है।
(2) रदीफ़ = शब्द या पद, जो हर पंक्ति के अंत में एक जैसा दोहराया जाए।
रदीफ़ काफिया के बाद में आता है। रदीफ़ वह शब्द या शब्द समूह (पद) होता है, जो हर शेर के अंत में एक जैसा दोहराया जाता है, और क़ाफ़िया के बाद आता है।
(3) बहर = लय या छंद
बहर का अर्थ होता है कविता की लय या छंद — यानी हर शेर में अक्षरों की गणना या माप एक जैसी होनी चाहिए। ग़ज़ल की हर पंक्ति एक ही बहर में होती है। ग़ज़ल की हर पंक्ति एक ही बहर (लय या छंद) में होनी चाहिए। उदाहरण - अगर एक पंक्ति में 10 मात्राएँ हैं, तो दूसरी पंक्ति में भी उतनी ही होनी चाहिए।यह गणित की तरह होता है — इसे ग़ज़ल का पैमाना या मापक कह सकते हैं। ऐसा अंग्रेजी कविता में भी होता है।
ग़ज़ल मूलतः फ़ारसी और अरबी साहित्य से होते हुए उर्दू में विकसित हुई, जहाँ इस विधा ने अपनी पराकाष्ठा को छुआ। लेकिन समय के साथ-साथ यह काव्य विधा हिंदी में भी पूरी गरिमा और लोकप्रियता के साथ स्थान बना चुकी है। आजकल हिंदी में भी ग़ज़ल लिखी जा रही है। हिंदी ग़ज़ल के लिए दुष्यंत कुमार का योगदान सराहनीय है। दुष्यंत कुमार ने हिंदी ग़ज़ल को जनभावनाओं से जोड़कर एक नया आयाम दिया। उन्होंने ग़ज़ल को महज़ प्रेम और सौंदर्य की दुनिया से बाहर निकालकर सामाजिक, राजनैतिक और आम जनमानस की आवाज़ बना दिया। हिंदी ग़ज़ल को लोकप्रिय और जनजीवन से जोड़ने में दुष्यंत कुमार का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने ग़ज़ल को साहित्यिक मंचों से निकालकर आम आदमी के दिल तक पहुँचा दिया। राहत इंदौरी, विनोद कुमार शुक्ल, अनवर जलालपुरी, बशीर बद्र आदि ऐसे अन्य गजलकार हैं, जो हिंदी पाठकों के बीच भी काफी लोकप्रिय हुए।
यहाँ नीचे मैं गजल के कुछ उदाहरण देता हूँ -
हमने तुम्हें याद किया,
तुमने हमें याद किया,
यह बात दिलों की है,
आपस में याद किया।
यहाँ -
काफिया - तुम्हें, हमें, में
रदीफ़ - याद किया
बहर - हर पंक्ति लगभग समान लय में लगती है, एक ही बहर का पालन हुआ है।
हमने उन्हें याद किया,
ग़म से दिल को आबाद किया।
रात के सन्नाटे में,
हर आह में फ़रियाद किया।
यहाँ -
काफ़िया - आबाद, फ़रियाद
रदीफ़ - किया
बहर - समान लय बरकरार है।
मैं दुष्यंत कुमार की एक गजल का छंद प्रस्तुत करता हूँ -
कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।
यहाँ -
काफिया - कहाँ, यहाँ
रदीफ़ - के लिए
बहर - हर पंक्ति लगभग समान लय में लगती है, एक ही बहर का पालन हुआ है।
उदाहरण के लिए ग़ालिब की एक गजल प्रस्तुत करता हूँ -
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार,
या इलाही ये माजरा क्या है।
यहाँ -
काफिया - हुआ, दवा, माजरा
रदीफ़ - क्या है
बहर - हर पंक्ति लगभग समान लय में लगती है, एक ही बहर का पालन हुआ है।
आशा करता हूँ कि आप गजल के बारे में प्रारंभिक ज्ञान सीख गए होंगे। आईये, एक हिंदी गजल की रचना कर हमारे साथ साझा करें।
शुभकामनाएँ,
केशव राम सिंघल