रविवार, 12 अक्टूबर 2025

हमास और इजरायल के बीच समझौता - शान्ति की ओर एक कदम

हमास और इजरायल के बीच समझौता - शान्ति की ओर एक कदम 

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युद्ध और शान्ति का प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe 


आखिरकार मध्यस्थों की लगातार कोशिश के बाद हमास और इजरायल में एक बार फिर समझौता हो गया। यह समझौता 9-10 अक्टूबर 2025 को घोषित हुआ। इसे "ट्रंप प्लान" भी कहा जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके दूत (स्टीव विटकॉफ, जेरेड कुश्नर) ने मध्यस्थता में प्रमुख भूमिका निभाई। यह समझौता गाजा में दो वर्ष पुराने युद्ध को समाप्त करने की कोशिशों का पहला चरण है। यह बहु-चरणीय प्रक्रिया पर आधारित है, जिसमें बंधक-कैदी विनिमय, युद्धविराम और पुनर्निर्माण शामिल हैं। इस समझौते के मुख्य प्रावधान निम्न हैं - 


-  गाजा में तत्काल युद्धविराम लागू होगा। इजरायली सेना गाजा से आंशिक रूप से पीछे हटेगी, विशेष रूप से गाजा सिटी के आसपास के क्षेत्रों से, लेकिन पूरी तरह से गाजा छोड़ने की बजाय बफर जोन पर रहेगी। बफर जोन की सटीक सीमाएँ अभी अस्पष्ट हैं और पहले चरण के कार्यान्वयन के दौरान तय होंगी। 

  

-  हमास 7 अक्टूबर 2023 के हमले में पकड़े गए सभी 48 बंधकों (जिनमें अब 20 जीवित और 28 मृत हैं) की रिहाई करेगा। जीवित बंधकों, जिनमें ज्यादातर युवा इजरायली सैनिक हैं, की रिहाई 72 घंटों के भीतर शुरू होगी। बदले में, इजरायल लगभग 2,000 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा, जिसमें सभी फिलिस्तीनी महिलाएँ और बच्चे, 250 लंबी सजा काट रहे कैदी, और युद्ध शुरू होने के बाद गिरफ्तार लगभग 1,750 लोग शामिल हैं। रिहाई प्रक्रिया "चरणबद्ध" होगी। सभी बंधक और कैदी एक साथ रिहा नहीं होंगे। 


-  गाजा में भोजन, दवाओं और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ाई जाएगी। इसके लिए रफाह बॉर्डर क्रॉसिंग (Rafah Crossing) खोला जाएगा, जिससे मिस्र के साथ गाजा का आवागमन आसान हो सकेगा। क्रॉसिंग का संचालन यूरोपीय संघ (EU) और फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) की निगरानी में होगा। गाजा में घरों, सड़कों, जल और बिजली प्रणालियों का पुनर्निर्माण होगा। रफाह बॉर्डर क्रॉसिंग (Rafah Crossing) गाजा पट्टी और मिस्र के बीच एकमात्र सीमा पार करने वाला प्रमुख मार्ग है। मानवीय सहायता (भोजन, दवाएँ, ईंधन, चिकित्सा सामग्री) के ट्रकों को बिना बाधा के मिस्र से गाजा में प्रवेश करने की अनुमति मिलेगी। ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्रारंभिक चरण में प्रतिदिन लगभग 600 ट्रक सहायता पहुँचा सकते हैं। घायल, बीमार या अन्य जरूरतमंद फिलिस्तीनियों को मिस्र की ओर जाने की अनुमति, जिसमें पैदल यात्री मार्ग भी शामिल है। यह 20 लाख से अधिक विस्थापित फिलिस्तीनियों के लिए राहत का काम करेगा। रफाह क्रॉसिंग को 14 अक्टूबर 2025 से पैदल मार्ग के साथ फिर से खोलने की योजना है। 


- जैसे गाजा से इजरायली सैनिकों के हटने का प्रावधान समझौते में है,उसी प्रकार हमास को गाजा में अपना सैन्य हथियारबंदी करनी होगी और लगभग दो दशकों से चली आ रही शासन व्यवस्था छोड़नी होगी। "योग्य फिलिस्तीनियों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों" की एक संक्रमणकालीन शासन समिति बनेगी, जिसकी निगरानी "पीस बोर्ड" करेगा, जिसके अध्यक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप होंगे। इसमें फिलिस्तीनी स्व-निर्धारण और गाजा के लिए दो-राज्य समाधान की "विश्वसनीय राह" का स्पष्ट उल्लेख नहीं है।


यह समझौते के अनुसार की जाने वाली प्रक्रिया का पहला चरण है, जो कई हफ्तों-महीनों तक चलेगा। बाद के चरणों में पूर्ण सैन्य वापसी, निरस्त्रीकरण और पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। पुनर्निर्माण की अनुमानित लागत 50 बिलियन डॉलर है और यह 4-5 वर्षों में होगा। फंडिंग में अनेक देश योगदान देंगे। कई देशों के विदेश मंत्रियों ने संयुक्त बयान में फंडिंग तथा पुनर्निर्माण के लिए प्रतिबद्धता जताई है। एक फंडिंग तंत्र स्थापित किया जाएगा। यह GREAT (Gaza Reconstitution, Economic Acceleration and Transformation) ट्रस्ट पर आधारित होगा, जो बहुपक्षीय दान, ऋण तथा निवेश के माध्यम से संसाधन जुटाएगा। संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 2025 के लिए 4 बिलियन डॉलर की अपील की है (जिसका 28% फंडिंग हो गया है), यूरोपीय संघ (EU) तथा अन्य देश (जैसे अमेरिका, इटली, जापान आदि) भी सहयोग देंगे। फंडिंग में सऊदी अरब, यूएई, कतर, और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख योगदानकर्ता शामिल होंगे। अमेरिका शान्ति ओर पुनर्निर्माण के लिए नेतृत्वकर्ता भूमिका निभाएगा। 


बफर जोन गाजा पट्टी के उन क्षेत्रों को संदर्भित करता है, जो इजरायल की सीमा (उत्तरी और पूर्वी गाजा) और गाजा के आंतरिक हिस्सों के बीच एक सीमित, नियंत्रित क्षेत्र के रूप में कार्य करेंगे। यह विशेष रूप से गाजा सिटी के आसपास और फिलाडेल्फी कॉरिडोर (गाजा-मिस्र सीमा) के निकट केंद्रित होगा। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ इजरायली सेना (IDF) पूर्ण सैन्य नियंत्रण या गहन ऑपरेशन नहीं करेगी। इसमें सैन्य चौकियाँ, निगरानी उपकरण, और सीमित गश्ती दल शामिल हो सकते हैं।


इजरायल का मानना है कि बफर जोन हमास के राकेट हमलों, सुरंगों के निर्माण, या सीमा पार हमलों को रोकने के लिए आवश्यक है। 7 अक्टूबर 2023 के हमास के हमले के बाद, जिसमें 1,200 इजरायली मारे गए थे। इजरायल इस तरह सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहा है। बफर जोन में ड्रोन, सेंसर, और सैन्य टावरों का उपयोग किया जाएगा ताकि गाजा से इजरायल की ओर किसी भी गतिविधि पर नजर रखी जा सके। समझौते के अनुसार, हमास को सैन्य हथियारबंदी करनी होगी। बफर जोन यह सुनिश्चित करेगा कि हथियारों का पुनर्गठन न हो। समझौते के तहत, इजरायली सेना को गाजा सिटी और अन्य घनी आबादी वाले क्षेत्रों से हटाना होगा, जहाँ युद्ध के कारण भारी विनाश हुआ। लेकिन इजरायली सेना पूर्ण वापसी की बजाय बफर जोन में तैनात रहेगी।


इस आलेख के लेखक का मानना है कि बफर जोन गाजा के उपयोग योग्य क्षेत्र को और सीमित कर सकता है, क्योंकि युद्ध के कारण गाजा की बहुत सी खेती और आवासीय भूमि नष्ट हो गई है। यह फिलिस्तीनियों के लिए आवागमन और पुनर्निर्माण को जटिल बना सकता है। हालाँकि यह जोन इजरायल को मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक सुरक्षा प्रदान करता है, फिर भी फिलिस्तीनी पक्ष गाजा में इजरायली सेना की उपस्थिति को "इजरायली कब्जे का विस्तार" मान सकता है। रफाह क्रॉसिंग के खुलने के बावजूद, बफर जोन में सैन्य उपस्थिति मानवीय सहायता वितरण की निगरानी को प्रभावित कर सकती है, हालाँकि समझौते में मानवीय सहायता को "बिना बाधा" सुनिश्चित करने का वादा किया गया है।


मिस्र के शर्म एल-शेख में अनेक वार्ताएँ हुईं, जो मध्यस्थता का एक महत्वपूर्ण स्थान था। यह समझौता अनेक अप्रत्यक्ष वार्ताओं के कारण हुआ, जिसमें मुख्य मध्यस्थ निम्न रहे - 


- संयुक्त राज्य अमेरिका - राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में, जिसमें उनके मध्य पूर्व दूत स्टीव विटकॉफ और दामाद जेरेड कुश्नर प्रमुख भूमिका निभा रहे। अमेरिका ने युद्ध समाप्ति की गारंटी दी।


- मिस्र, कतर और तुर्की - अरब मध्यस्थों ने वार्ताओं की मेजबानी की और मानवीय प्रावधानों को समझौते में शामिल करने पर ध्यान दिया।


इजरायल और फिलीस्तीन के बीच विवाद बहुत पहले से है और 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायल पर अचानक हमला कर दिया था, जिसके कारण हमास और इजरायल के बीच लगातार युद्ध चल रहा था। इस हमले में लगभग 1,200 इजरायली (ज्यादातर नागरिक) मारे गए थे। इजरायल की जवाबी कार्रवाई में 67,000 से अधिक फिलिस्तीनी, फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, ज्यादातर महिलाएँ और बच्चे मारे गए, गाजा के अधिकांश घर-स्कूल-अस्पताल नष्ट हो गए, और 20 लाख से अधिक फिलीस्तीनी विस्थापित हुए। इस समझौते से पहले नवंबर 2023 और जनवरी 2025 में अस्थायी युद्धविराम हुए थे, जो टूट गए। इजरायल ने गाजा में हमास को कमजोर किया, नागरिक हताहतों के कारण गाजा के नागरिकों ने अंतरराष्ट्रीय अलगाव और काफी दुःख झेला।


हालाँकि इजरायल कैबिनेट ने समझौते का पहला चरण मंजूर किया, लेकिन दक्षिणपंथी मंत्री बेजलेल स्मोट्रिच ने कैदियों की रिहाई पर आपत्ति जताई है। हमास नेता महमूद मरदावी ने इसे "फिलिस्तीनी दृढ़ता की जीत" बताया। दोनों पक्षों में उत्साह है, लेकिन समझौते की सफलता की कोई गारंटी नहीं है। पहले हुए समझौते भी टूट गए थे। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप मिस्र और इजरायल की यात्रा करेंगे और इजरायल संसद को संबोधित करेंगे। पिछले समझौतों के टूटने के इतिहास को देखते हुए  इस आलेख के लेखक का मानना है कि इस समझौते के टूटने का खतरा लगातार बना हुआ है। भविष्य के गर्भ में क्या है, यह तो आने वाले समय में ही पता चल सकेगा। फिर भी यह समझौता शांति और मानवीय राहत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जिससे गाजा में युद्ध के कारण उत्पन्न मानवीय संकट कम होगा। आशा की जानी चाहिए कि दोनों पक्ष शान्ति की और बढे और स्थाई समाधान निकले।  


आपको यह आलेख कैसा लगा, कृपया अपनी राय से अवगत कराएँ।  


सादर,

केशव राम सिंघल 


बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

🕉️ हिन्दू काल गणना और लम्बाई गणना

 🕉️ हिन्दू काल गणना और लम्बाई गणना

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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe 

भारतीय सभ्यता ने समय और माप की गणना को अत्यंत सूक्ष्म और वैज्ञानिक दृष्टि से परिभाषित किया है। वैदिक-उपवेदिक काल से हमारे आदि-ऋषियों ने समय तथा स्थान की इकाइयों का विस्तृत तंत्र विकसित किया, जो पंचांग, ज्योतिष, स्थापत्य और दैनन्दिन जीवन में आज भी उपयोगी है। इस प्रकार वैदिक युग से ही कालगणना (Time Measurement) और लम्बाई गणना (Length Measurement) का विस्तृत तंत्र विकसित हुआ, जिसने पंचांग, ज्योतिष, गणित और वास्तु के क्षेत्रों में आधार स्तंभ का कार्य किया। हमारे ऋषि-मुनियों ने न केवल सूर्य, चंद्र और ग्रहों की गति से दिन, मास और वर्ष की गणना की, बल्कि समय की सूक्ष्मतम इकाइयों तक का उल्लेख भी किया है। यही भारतीय विद्या काल का अद्भुत विज्ञान है — काल गणना।   इस लेख में उन पारंपरिक इकाइयों को सुसंगत रूप में प्रस्तुत किया गया है, साथ ही सूक्ष्म इकाइयों को शामिल किया गया है।    


काल के प्रकार और अंग


हिन्दू कालगणना में काल के पाँच प्रमुख अंग बताए गए हैं — वर्ष, मास, दिन, लग्न और मुहूर्त। विषयवस्तु के अनुसार पंचांग के पाँच अंग माने गए हैं — तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण।


काल दो प्रकार का माना गया है —


1. सूक्ष्म काल (दर्शनात्मक/सूक्ष्म इकाइयाँ), जो अत्यंत सूक्ष्म और दार्शनिक है, लोक व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होता। यह वैज्ञानिक और दार्शनिक विवेचनाओं में प्रयुक्त होता ै। 

2. स्थूल काल (व्यवहारिक), जो व्यवहारिक जीवन में उपयोगी है और जिसे हम दैनन्दिन जीवन व पंचांग में उपयोग करते हैं।


काल गणना की इकाइयाँ


हिन्दू पंचांग में समय की कई सूक्ष्म और स्थूल इकाइयाँ प्रयुक्त होती हैं — जैसे घटी, पल, विपल, मुहूर्त, पहर, अहोरात्र, मास और वर्ष आदि।


इनकी गणना इस प्रकार की गई है —


सूक्ष्म इकाइयाँ


60 त्रुटि = 1 रेणु  

60 रेणु = 1 लव  

60 लव = 1 लीक्षक  

60 लीक्षक = 1 प्राण  

60 प्राण = 1 पल  

60 पल = 1 घटी  


स्थूल एवं उपयोगी इकाइयाँ 


1 घटी = 24 मिनट = 1440 सेकंड  

1 पल  ≈  24 सेकंड ( ≈ लगभग)  

60 पल = 1 घटी  

2½ घटी = 1 घंटा  

60 घटी = 24 घंटे  

2 घटी = 1 मुहूर्त  

7½ घटी = 1 पहर = 3 घंटे  

8 पहर = 1 अहोरात्र (दिन-रात)  

30 मुहूर्त = 1 अहोरात्र  

30 अहोरात्र = 1 मास  

12 मास = 1 वर्ष  

1 वर्ष = देवताओं का 1 दिन  

360 मानव वर्ष = 1 दिव्य वर्ष  


ज्योतिषीय इकाइयाँ


60 प्रतिविकला = 1 विकल्प  

60 विकल्प = 1 कला  

60 कला = 1 अंश  

30 अंश = 1 राशि  

12 राशियाँ = 1 भचक्र (राशिचक्र)  


लम्बाई गणना (सूक्ष्म से स्थूल तक)


भारतीय गणना पद्धति में दूरी और माप की इकाइयाँ भी अत्यंत वैज्ञानिक रूप से निर्धारित थीं। प्राचीन ग्रंथों में इनका उल्लेख निम्न प्रकार मिलता है — 


सूक्ष्म लम्बाई इकाइयाँ (परम्परागत क्रम में)


8 परमाणु = 1 रजकण  

8 रजकण = 1 जलकण  

8 जलकण = 1 धूलिकण  

8 धूलिकण = 1 लव  

8 लव = 1 रेखा  

8 रेखा = 1 अंगुल


स्थूल एवं व्यवहारिक इकाइयाँ

24 अंगुल = 1 हाथ (हस्त / हस्त = हस्ता)  

6 हाथ = 1 बाँस (कुछ परम्पराओं में 4 हाथ भी मिलता है; यहाँ पारम्परिक तथा प्रामाणिक ग्रंथानुसार 6 हाथ का उपयोग अधिक प्रमाणिक माना गया है)  

लगभग 4000 हाथ ≈ 1 कोस  ≈ 3.2 किलोमीटर (यह पारम्परिक रूप से स्वीकार्य लगभग मान है; कोस की परिभाषाएँ क्षेत्रानुसार भिन्न भी पायी जाती हैं)

 

सार

भारतीय काल और मापन प्रणाली केवल संख्यात्मक गणना नहीं, बल्कि जीवन के अनुशासन, नियमितता और सृजनशीलता का प्रतीक है।


हमारे ऋषियों ने समय और स्थान दोनों की गणना में अद्भुत गहराई दिखाई। जहाँ पश्चिमी सभ्यता ने समय को “घंटों और सेकंडों” में बाँटा, वहीं भारतीय दृष्टिकोण ने उसे “मुहूर्तों और तिथियों” में अनुभव किया — जो जीवन और प्रकृति से अधिक समरस है।


हिन्दू कालगणना न केवल वैज्ञानिक है, बल्कि आध्यात्मिक चेतना और जीवन-दर्शन से भी ओतप्रोत है।


सादर,

केशव राम सिंघल

(संकलन और सम्पादन)  

 

रविवार, 21 सितंबर 2025

अमेरिका का नया H-1B वीज़ा शुल्क और प्रभाव

अमेरिका का नया H-1B वीज़ा शुल्क और प्रभाव 

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एयरपोर्ट का प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe 

अमेरिका अब विदेशी पेशेवर लोगों को अपनी धरती पर आने से रोकने के लिए H-1B वीज़ा के लिए एक लाख डॉलर वार्षिक की वीजा फीस लगाने की घोषणा की है, जो पिछली फीस से सौ गुना है। वीसा की यह वार्षिक फीस 21 सितंबर 2025 से लागू हो गई है, पर अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि यह नए H-1B वीज़ा अनुरोधों पर लागू होगी, और कंपनियों को प्रत्येक आवेदक के लिए छह वर्षों तक यह फीस देनी होगी। अब हम यह समझते हैं कि यह H-1B वीज़ा क्या है। H-1B वीज़ा एक गैर-आप्रवासी वीज़ा है जो अमेरिका में विशेषज्ञता वाले पदों (जैसे टेक, इंजीनियरिंग, बैंकिंग, शिक्षा आदि) पर विदेशी कुशल श्रमिकों / पेशेवरों को काम करने की अनुमति देता है। यह मुख्य रूप से अमेरिकी संस्थानों द्वारा विदेशी प्रतिभा को नौकरी देने के लिए उपयोग किया जाता है, और इसकी अधिकतम अवधि छह वर्ष होती है।

 

यह बढ़ी हुई H-1B वीज़ा फीस सभी H-1B वीज़ा के नए आवेदकों पर लागू होगी, चाहे वे किसी भी राष्ट्रीयता के हों। भारत से H-1B वीजा के लिए सबसे अधिक आवेदक होते हैं, अतः भारतीय आवेदकों पर इसका प्रभाव अधिक होगा। 


एक प्रश्न लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह  बढ़ी हुई वीजा फीस उन भारतीयों पर भी लागू होगी जो फिलहाल अमेरिका में वीज़ा अनुमति लेकर रह रहे हैं और आने वाले समय में उनकी वीज़ा अवधि समाप्त होने वाली है। ऐसा पता चला है कि वर्तमान H-1B धारकों पर यह तत्काल प्रभाव नहीं डालेगी, लेकिन भविष्य में एक्सटेंशन, ट्रांसफर या रिन्यूअल के लिए नए पिटीशन पर यह फीस लागू हो सकती है। यदि वे अमेरिका से बाहर जाते हैं और दोबारा अमेरिका में प्रवेश लेते हैं, तो  बढ़ी हुई फीस लागू हो सकती है। री-एंट्री पर फीस तभी लागू होगी, जब नया पिटीशन (आवेदन) फाइल करना पड़े। ट्रंप प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यह फीस केवल नए H-1B आवेदनों (पिटीशन्स) पर लागू होगी, न कि मौजूदा वीज़ा धारकों पर—जिससे कुछ लोगों की चिंताएँ कम हो सकती हैं। हालांकि, घबड़ाहट और अनिश्चितता के कारण कई प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने यह भी कहा है कि "रश बैक" की जरूरत नहीं है।


अमेरिका ने वीसा शुल्क बढ़ाने का निर्णय अमेरिकी श्रमिकों की सुरक्षा, वेतन मानकों को मजबूत करने और H-1B प्रोग्राम में दुरुपयोग को रोकने के लिए लिया गया है। इसका उद्देश्य कंपनियों को अमेरिकी स्नातकों को ट्रेनिंग देने और अमेरिकियों को नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित करना है, साथ ही विदेशी श्रमिकों को केवल उच्च प्रबंधन पेशेवरों तक सीमित करना है। यह कानूनी आव्रजन को नियंत्रित करने की ट्रंप प्रशासन की नीति का हिस्सा है।


एक प्रश्न सामने आया कि क्या अमेरिका की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई है कि उन्हें अपने आयातों पर भारी भरकम टेरिफ और वीसा शुल्क में बढ़ोतरी करनी पढ़ रही है, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सके।  इसके उत्तर में हमें पता चला कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था वर्तमान में मजबूत है, जिसमें इस वर्ष की तीसरी तिमाही में प्रारंभिक अनुमान के अनुसार जीडीपी ग्रोथ 3.3% है । टैरिफ और वीज़ा फीस सम्बन्धी नीतियाँ मुख्य रूप से संरक्षणवादी हैं, जिनका उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों की रक्षा और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है। बढे हुए टैरिफ से उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ सकता है, लेकिन बढे हुई वीजा फीस से उपभोक्ताओं पर कोई बोझ नहीं बढ़ेगा, बल्कि यह विदेशी पेशेवरों पर अमेरिका आने पर रोक लगाएगा, जिससे अमेरिका के युवाओं को अधिक रोजगार अवसर मिल सकेंगे।  


वीसा शुल्क बढ़ाने के अन्य प्रभाव क्या हो सकते है, आओ इस पर चर्चा करें। बढ़ी हुई वीजा फीस अमेरिकी कंपनियों के लिए लागत बढ़ाएगी, खासकर छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स के लिए, जिससे विदेशी प्रतिभा को आकर्षित करना मुश्किल हो जाएगा। इससे अमेरिकी नवाचार और आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है, श्रम की कमी हो सकती है, और यह आशंका कि बहुत सी कंपनियाँ ऑटोमेशन, ऑफशोरिंग या अन्य देशों में ऑपरेशंस शिफ्ट कर सकती हैं। H-1B आवेदनों की संख्या कम हो सकती है, और भारतीय आईटी पेशेवरों पर विशेष प्रभाव पड़ेगा, लेकिन यह अमेरिकी पेशेवरों  के लिए नौकरियां बढ़ा सकती है। 


अमेरिकी कंपनियाँ बढ़े हुए H-1B वीज़ा शुल्क से बचने के लिए आउटसोर्सिंग (outsourcing) का रास्ता अपनाने या अन्य देशों में अपने ऑफिस खोलने पर विचार कर सकती हैं। यह पहले से ही एक सामान्य प्रथा है, और नई बड़ी हुई वार्षिक  वीजा फीस, जो 21 सितंबर 2025 से लागू हो गई है, इस प्रथा को और अधिक आकर्षक बना सकती है। क्यों? आओ इसे समझते हैं। बड़ी हुई H-1B वीज़ा फीस के तहत विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में लाने और रखने की लागत अब बहुत अधिक हो जाएगी। इससे कंपनियाँ, खासकर टेक और आईटी सेक्टर की, अपने काम को सीधे भारत, फिलीपींस, मैक्सिको या पूर्वी यूरोप जैसे देशों में आउटसोर्स कर सकती हैं, जहाँ कुशल पेशेवर कम लागत पर उपलब्ध हो जाएँगे और अमेरिकी कंपनियों को कोई वीज़ा फीस नहीं देनी होगी। कई अमेरिकी कंपनियाँ जैसे माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, अमेज़न आदि पहले से ही भारत में बड़े ऑपरेशंस चला रही हैं, और यह प्रवृत्ति बढ़ सकती है। अमेरिकी  कंपनियाँ भारत या अन्य देशों में सब्सिडियरी ऑफिस या डेवलपमेंट सेंटर खोलने पर विचार कर सकती हैं, जहाँ स्थानीय प्रतिभा को कम लागत पर रखा जा सकता है। अमेरिकी कंपनियाँ भारतीय आईटी फर्म्स जैसे इंफोसिस, टीसीएस आदि के साथ पार्टनरशिप बढ़ सकती है, या स्वयं नए केंद्र स्थापित कर सकती हैं। यह वीजा फीस वृद्धि नए आवेदनों को हतोत्साहित करेगी और ऑफशोरिंग को तेज करेगी। इससे अमेरिकी कंपनियाँ अपनी लागत कम रख सकती हैं और नवाचार भी जारी रख सकती हैं, लेकिन काम की गुणवत्ता, टाइम ज़ोन अंतर और संचार विशेष चुनौतियाँ सामने आएँगी, जिन्हे कंपनियों को सुलझाना होगा। वीजा फीस वृद्धि के कारण भारत जैसे देशों में अधिक निवेश और नौकरियाँ पैदा हो सकती हैं, क्योंकि कुशल पेशेवरों के लिए स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं। अमेरिका की यह नीति अमेरिका पर ही  विपरीत प्रभाव डाल सकती है, क्योंकि अमेरिकी नौकरियों के अवसर अमेरिकी युवाओं को मिलने के बजाय बहुत सा काम विदेश चला जाएगा, जिससे लोकल अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। जहाँ ट्रैम्प प्रशासन की इस नीति का उद्देश्य अमेरिकी पेशेवरों को प्राथमिकता देना है, लेकिन यह नीति उन्हीं की कंपनियों को विदेशी शिफ्टिंग के लिए प्रेरित कर सकता है, हालाँकि उनकी रणनीति, बाजार की मांग और अन्य कारकों पर निर्भर करेगा।  यह स्पष्ट करना जरूरी है कि वर्तमान में कोई आधिकारिक प्रतिबंध अमेरिकी कंपनियों के भारत में ऑपरेशंस पर नहीं है। भारत में GCCs (Global Capability Centers) बढ़ रहे हैं, और यह नीति भारत में अमेरिकी कंपनियों के कामकाज को और बढ़ा सकती है।


कुछ ख़बरों से पता चला है कि ट्रम्प प्रशासन के इस निर्णय से अमेरिका में रह रहे भारतीय पेशेवरों में चिंता बढ़ा दी है।  दीपावली त्यौहार पर भारत आने की योजना बना रहे अनेक H-1B वीजा धारको ने अपने टिकट कैंसल कराए हैं। कुछ लोग जो छुट्टियाँ लेकर भारत आए हुए हैं, वे तुरत अमेरिका जाने के लिए कोशिश में लगे हुए हैं। अनेक अमेरिकी कंपनियों ने अपने H-1B वीजा धारक कर्मियों को जल्द अमेरिका लौटने या अभी अमेरिका नहीं छोड़ने के लिए निर्देश जारी किए हैं। लोगों में घबड़ाहट (पैनिक) शुरुआती अनिश्चितता के कारण था, क्योंकि फीस की घोषणा शुक्रवार 19 सितम्बर 2025 को हुई और स्पष्टता बाद में आई। ट्रंप प्रशासन ने बाद में कहा कि मौजूदा धारकों को "रश बैक" की जरूरत नहीं है। 


भारत सरकार अमेरिका के निर्णय को "मानवीय प्रभाव" वाला मानती है और अमेरिका से चर्चा कर रही है। भारत के व्यापार संघ National Association of Software and Service Companies (Nasscom) ने अमेरिका की वीजा फीस बढ़ोतरी को "अनुचित" बताया है। कुछ विशेषज्ञों ने चिंता जताई है और अपनी राय व्यक्त की है कि जब ट्रम्प प्रशासन भारतीयों को अमेरिका आने से रोकने के लिए नीति बना रहा है तो क्यों अमेरिकी कंपनियों को भारत में व्यापार करने की इजाजत मिले।  


सादर, 

केशव राम सिंघल 



मंगलवार, 16 सितंबर 2025

राष्ट्रीय सड़क रख-रखाव नीति की आवश्यकता

राष्ट्रीय सड़क रख-रखाव नीति की आवश्यकता

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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe 

भारत में सड़कों का जाल पूरे देश में फैला हुआ है और नित नई सड़कें बन रही हैं। लेकिन, समय पर रख-रखाव और मरम्मत न होने के कारण अनेक सड़कें टूट जाती हैं, जिनसे दुर्घटनाएँ होती हैं और जनता को भारी परेशानी उठानी पड़ती है। जान-माल का नुकसान भी होता है। सड़क निर्माण जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण उनका समुचित रख-रखाव है। इस दिशा में एक राष्ट्रीय सड़क रख-रखाव नीति बनाना समय की आवश्यकता है, जिसके निम्न प्रमुख बिंदु हों –


1. सड़क वर्गीकरण और जिम्मेदारी निर्धारण


   * ग्राम पंचायत सड़के – जिम्मेदारी ग्राम पंचायत / ब्लॉक पंचायत।

   * नगर निगम/नगर पालिका की सड़कें – जिम्मेदारी नगर निगम / नगर पालिका।

   * राज्य सरकार की सड़कें (राज्य राजमार्ग, जिला सड़कें) – जिम्मेदारी PWD (लोक निर्माण विभाग)।

   * केंद्र सरकार की सड़कें (राष्ट्रीय राजमार्ग) – जिम्मेदारी NHAI/केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय।


2. शिकायत और समय-सीमा


   * नागरिकों की सुविधा हेतु एक राष्ट्रीय डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म / मोबाइल ऐप बने, जिस पर फोटो और लोकेशन सहित टूटी सड़क की शिकायत दर्ज हो सके।

   * शिकायत दर्ज होने के बाद निश्चित समय-सीमा में मरम्मत हो –


     * ग्राम पंचायत और नगर निगम/नगर पालिका सड़के – 2 दिन

     * राज्य सरकार की सड़कें – 5 दिन

     * केंद्र सरकार की सड़कें – 10 दिन


3. जनभागीदारी और पारदर्शिता


   * शिकायत दर्ज होने पर एक ट्रैकिंग नंबर मिले।

   * नागरिक शिकायत की स्थिति (Pending / Under Repair / Completed) देख सकें।

   * मरम्मत पूर्ण होने के बाद नागरिक फीडबैक और तस्वीर अपलोड कर सकें।


4. फंड और गुणवत्ता नियंत्रण


   * प्रत्येक स्तर पर एक अलग सड़क रख-रखाव कोष बनाया जाए।

   * छोटे गड्ढों की तुरंत मरम्मत के लिए इंस्टेंट रिपेयर तकनीक का प्रयोग हो।

   * स्वतंत्र एजेंसियाँ मरम्मत की गुणवत्ता की जाँच करें।


5. जवाबदेही और प्रोत्साहन


   * समय पर और गुणवत्तापूर्ण मरम्मत करने वाले प्राधिकरण को प्रशंसा और अतिरिक्त बजट मिले।

   * लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई हो। 


सार 


सड़कें प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था और जनजीवन की धमनियाँ होती हैं। भारत में सड़क निर्माण के साथ-साथ अब समयबद्ध रख-रखाव और मरम्मत के लिए नीति एवं ठोस प्रक्रियाएँ बनाना अत्यंत आवश्यक है। राष्ट्रीय सड़क रख-रखाव नीति से दुर्घटनाएँ कम होंगी, जनता को राहत मिलेगी और देश का विकास मार्ग और सुगम होगा।


पाठकों से निवेदन है कि इस सम्बन्ध में जागरूकता अभियान चलाएँ, जागरूकता लेख समाचार पत्रों को और उचित प्रस्ताव पत्र राज्य और केंद्र सरकार को भेजें, ताकि उचित नीति और प्रणाली बन सके। पाठकों की प्रतिक्रिया और विचार आमंत्रित हैं। 


सादर, 

केशव राम सिंघल 



बुधवार, 2 जुलाई 2025

यहूदी-ईसाई-मुस्लिम-डूज समुदाय, यरूशलम और इजरायल - 1

यहूदी-ईसाई-मुस्लिम-डूज समुदाय, यरूशलम और इजरायल - 1 

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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe 

इस आलेख शृंखला में हम यहूदी, ईसाई, मुस्लिम और डूज समुदायों के बारे में चर्चा करेंगे और साथ ही यरूशलम और इजरायल के बारे में संक्षिप्त जानकारी देंगे।  


अरब रेगिस्तानी इलाका था और वहाँ के लोग घुमन्तु थे, जो लड़ते बहुत थे। अरब के लोगों में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी। सबसे पहले अरब में यहूदी धर्म आया, जिसकी शुरुआत पैगम्बर अब्राहम लगभग 2000 ईसा पूर्व अर्थात आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व मानी जाती है।  यहूदी धर्म के बाद ईसाई धर्म पहली शताब्दी ईस्वी में शुरू हुआ और इस्लाम सातवीं शताब्दी ईस्वी करीब 610 ईस्वी में आया। ड्रूज (Druze) समुदाय का आगमन 10वीं-11वीं सदी (लगभग 986-1021 ईस्वी) में हुआ, जब यह इस्लाम के इस्माइली शाखा से अलग होकर एक स्वतंत्र धर्म बना।  इस प्रकार यहूदी धर्म सबसे प्राचीन (करीब 2000 ईसा पूर्व), फिर ईसाई धर्म (1वीं सदी), फिर इस्लाम (7वीं सदी) आया—ड्रूज इन सबसे बाद में अस्तित्व में आए।


इन चारों धर्मों में कई समानताएँ हैं, लेकिन कुछ ख़ास अंतर भी हैं। यहूदी, मुस्लिम और डूज धर्म एकेश्वरवादी हैं अर्थात् ईश्वर एक है। ईसाई धर्म में भी एक ईश्वर है, लेकिन वे त्रिमूर्ति (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) को मानते हैं। ईसाई धर्म में ईसा को भगवान् का पुत्र और उद्धारकर्ता माना जाता है। इस्लाम में ईसा को पैगम्बर माना जाता है, लेकिन ईश्वर का पुत्र नहीं। यहूदी धर्म ईसा को न तो मसीहा मानता है और न ही पैगम्बर। डूज समुदाय एक अनोखा एकेश्वरवादी धार्मिक और जातीय समूह है, जो मुख्यतः लेबनान, सीरिया, इजरायल और जॉर्डन में पाया जाता है। ये लोग अरबी बोलते हैं, लेकिन न तो खुद को मुस्लिम मानते हैं और न ही यहूदी या ईसाई। इनकी धार्मिक मान्यताएँ अलग हैं और इनकी धार्मिक पहचान भी ख़ास है।  


यहूदी धर्म का धार्मिक ग्रन्थ ड्रूज समुदाय का पवित्र ग्रंथ टोरा है, ईसाई धर्म का बाइबिल और इस्लाम का धार्मिक ग्रन्थ कुरान है। डूज समुदाय का पवित्र ग्रन्थ "रिसालत अल-हिकमा" (Epistles of Wisdom/किताब अल-हिकमा) है, जिसे सिर्फ उनके धार्मिक विद्वान ही पढ़ सकते हैं। 


यरूशलम तीनों धर्मों (यहूदी, ईसाई और इस्लाम) के लिए आस्था का स्थान है। यहूदी धर्म मानने वालों के लिए यरूशलम सबसे पवित्र शहर है, यहीं उनका प्राचीन मंदिर था, जिसे वे भगवान् का निवास स्थान मानते आए हैं। ईसाई धर्म के मानने वालों के लिए यरुशलम वह स्थान है जहां यीशु मसीह को सूली पर चढ़ाया गया, दफनाया गया और यहीं उनका पुनरुत्थान हुआ। इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद यरुशलम तीसरा पवित्र शहर है। कहा जाता है कि यहीं से पैगम्बर ने मेराज (स्वर्ग की यात्रा) की थी और यरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद है। यरुशलम डूज (Druze) समुदाय के लिए यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धर्मों जितना महत्वपूर्ण नहीं है। यरुशलम मुख्य रूप से यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म के लोगों के लिए पवित्र शहर माना जाता है, लेकिन डूज समुदाय के धार्मिक केंद्र और तीर्थ स्थल लेबनान, सीरिया और इज़राइल के अन्य हिस्सों में हैं, न कि यरुशलम में। यरुशलम शहर का प्रशासन और रख-रखाव मुख्य रूप से इजरायल सरकार के पास है, लेकिन धार्मिक स्थलों की देखरेख उनके अपने धार्मिक ट्रस्ट या संगठनों द्वारा की जाती है। तीनों धर्मों के लोग आमतौर पर अपने-अपने पवित्र स्थलों पर जा सकते हैं, पर सुरक्षा कारणों से या तनाव के कारण कभी-कभी पाबंदिया लग जाती हैं, खासकर अल-अक्सा मस्जिद को लेकर मुस्लिमों के लिए।  


यहूदी और इस्लाम दोनों ही एकेश्वरवादी अर्थात् एक भगवान् को मानने वाले धर्म हैं और दोनों की जड़े अब्राहम से जुडी हैं, फिर भी यहूदी इस्लाम के बीच मन-मुटाव के कई कारण हैं। इस्लाम मानता है कि पैगम्बर मुहम्मद अंतिम पैगम्बर हैं, जबकि यहूदी इसे नहीं मानते।  इस्लाम धार्मिक ग्रन्थ कुरान और यहूदी धार्मिक ग्रन्थ टोरा की व्याख्याएँ अलग हैं। पैगम्बर मुहम्मद के समय यहूदियों ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया, जिससे दोनों धर्म मानने वालों के बीच टकराव शुरू हुआ और कई लड़ाईयाँ हुईं। 1948 में इजरायल बनने के बाद अरब देशों और इजरायल के बीच जमीन और यरुशलम जैसे पवित्र स्थलों को लेकर कई विवाद और संघर्ष हुए। यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों यरूशलम को पवित्र मानते हैं, लेकिन वहाँ नियंत्रण को लेकर लगातार संघर्ष चलता है। झगडे की जड़ सिर्फ धर्म नहीं, बल्कि राजनीति, इतिहास और जमीन का विवाद है। 


शेष अगले आलेख में .......... 


सादर, 

केशव राम सिंघल