रविवार, 7 जून 2020

तालाबंदी लघुकथा- ७


तालाबंदी लघुकथा- ७
******

२५ मार्च को लॉकडाउन लगने के कारण उसका काम बंद हो गया था। थोड़ी-बहुत उसकी जो बचत थी, वह भी घर चलाने में ख़त्म हो गयी। उसने देश की वित्तमंत्री का भाषण खुद सुना था। उसे विश्वास था कि उसे प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत बैंक से दस हजार रुपये का कर्ज मिल ही जाएगा। १ जून से लॉकडाउन हटा। लॉकडाउन के हटते ही वह हिम्मत कर बैंक की शाखा में गया। वहाँ बड़ी मुश्किल से वह बैंक के मैनेजर से मिल सका। मैनेजर ने उससे कई सवाल पूछे और कहा कि क्या उसके पास रेहड़ी-पटरी पर काम करने का पहचान पत्र है या कोई ऐसा दस्तावेज जो यह प्रमाणित करे कि वह लॉक डाउन से पहले रेहड़ी-पटरी पर काम करता था। उसने नगर निगम की रसीदें और रेहड़ी-पटरी यूनियन का सदस्यता प्रमाणपत्र दिखाया तो मैनेजर ने उसे लोन का फ़ार्म दे दिया और कहा कि उसे लोन तो मिल जाएगा पर उसे ऋण वितरण के लिए जुलाई तक इन्तजार करना होगा। उसके हाथ में लोन का फार्म था, पर वह सोच रहा था कि अभी तो जून का पूरा महीना पड़ा है और मैनेजर साहब उसे जुलाई तक इंतज़ार करने को कह रहे हैं। प्यास आज लगी है और ये पानी कल पिलाएँगे। वह चुपचाप गुमसुम सा घर लौट आया।

लघुकथा लेखक - केशव राम सिंघल ©

प्रकाशन / साझा करने की अनुमति - लघुकथा लेखक के नाम के साथ किसी भी लघुकथा / लघुकथाओं के प्रकाशन / साझा करने की अनुमति है।

डिस्क्लेमर - तालाबंदी लघुकथाएँ लघुकथा लेखक की कल्पना के आधार पर लिखी गई हैं। किसी भी घटना से किसी भी लघुकथा की कोई भी प्रासंगिकता होना एक संयोग है।

#KRS #कोरोना #महामारी #लघुकथा


कोई टिप्पणी नहीं: