बुधवार, 2 दिसंबर 2020

'लूथल' लघु उपन्यास

 लूथल (लोथल)

लूथल (लोथल) साबरमती नदी किनारे बसा एक प्राचीन नगर था, जो गुर्जर प्रदेश की राजधानी था। यह स्थान आज अहमदाबाद जिले के धोलका तालुके के सरगवावा गाँव की सीमा में स्थित है। यह माना जाता है कि यह अब से करीबन चार हजार साल पहले अस्तित्व में आया था।  इसके असली स्वरूप की जानकारी भारतीय पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण से मिली। खुदाई में ऐसे अवशेष मिले, जो यह संकेत देते हैं कि लूथल (लोथल) एक सामान्य नगर नहीं, बल्कि अपनेआप में विकसित समृद्धशाली नगर था। 

'लूथल' लघु उपन्यास 

पिछले दिनों मैं अपनी संग्रहित पुस्तकें देख रहा था। परमहंस प्रमोद का एक लघु उपन्यास 'लूथल' मेरे हाथ में आया। यह उपन्यास अजमेर के प्रकाशक जे के पब्लिशर्स द्वारा अक्टूबर 1970 में प्रकाशित किया गया था। काफी समय पहले मैंने इस उपन्यास को पढ़ा था। एक बार फिर इसे पढ़ा। इस उपन्यास की कथा का संक्षिप्त विवरण मैं दे रहा हूँ। 

महाराज आहुक गुर्जर साम्राज्य के राजा थे, जिसकी राजधानी लूथल थी।  उनका एक पुत्र महारानी सुदीक्षा से उत्पन्न हुआ था, जिसका नाम अम्बरीष था। एक बार महाराज आहुक महारानी सुदीक्षा और अधीनस्थ सहचरों (दास-दासियों) के साथ तीर्थ-यात्रा पर गए। तीर्थयात्रा के दौरान महाराज आहुक एक दासी की ओर आकृष्ट हो गए और उससे उह्नोने सम्बन्ध बनाए, फलस्वरूप दासी ने एक पुत्र को जन्म दिया। महाराज आहुक चाहते थे कि महारानी नवजात शिशु को अपने अपने से पैदा हुए पुत्र के रूप में स्वीकार कर ले, ताकि समाज उस बालक को दासी पुत्र नहीं, बल्कि राजा के एक पुत्र के रूप में जाने। महारानी को राजाज्ञा स्वीकार नहीं थी अतः महाराज ने महारानी को मारकर उसका शव गंगा में प्रवाहित कर एक संदेशवाहक से रातोंरात यह सन्देश गुर्जर प्रदेश की राजधानी भिजवा दिया कि तीर्थ यात्रा के दौरान द्वितीय पुत्र प्रसव के दौरान महारानी का स्वास्थ्य अधिक बिगड़ जाने के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका और वे नवजात शिशु को मातृविहीन कर स्वर्ग सिधार गईं। महाराज आहुक और महारानी सुदीक्षा के पुत्र के रूप में दासी अरुंधती ने अपने वास्तविक पुत्र को पाला-पोसा, पर वास्तविक तथ्य उसने सभी से छुपाए रखा। 

तीर्थयात्रा से लौटने के बाद तीस वर्षों तक महाराज आहुक ने अपने साम्राज्य पर शासन किया और जब वे परलोकगामी हुए तब उनके ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार अम्बरीष सिंहासन पर बैठे। महाराज अम्बरीष उदार, शांत, सुशील, सच्चरित्र और न्यायी राजा थे।  छोटा भाई राजकुमार भगदत्त स्वभाव से क्रूर, निरंकुश, चरित्र-भ्रष्ट और अन्यायी व्यक्ति था। वह गुर्जर साम्राज्य का राजा बनने और महाराज अम्बरीष की एकमात्र पुत्री राजकुमारी अवंतिका से विवाह की इच्छा रखता था। राजकुमारी अवंतिका इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थी, बल्कि एक घटना के बाद वह जम्मू के राजकुमार कौशिक के प्रति आकृष्ट हो गईं थी। राजकुमारी अवंतिका किसी दूसरे की पत्नी बने, यह राजकुमार भगदत्त को स्वीकार नहीं था। राजकुमार भगदत्त ने महाराज अम्बरीष की हत्या कर लूथल राजसिंहासन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उसने राजकुमार कौशिक और राजकुमारी अवंतिका को कैद में डाल दिया और फिर एक दिन सर्पदंश कराकर राजकुमार कौशिक के जीवन का अंत कर दिया। राजकुमारी अवंतिका इस आघात को सहन नहीं कर सकी और उसने अपने इष्टदेवता वरुण से आराधना की कि वे इस साम्राज्य को ध्वस्त कर दें।  कहते हैं कि राजकुमारी अवंतिका की आराधना के फलस्वरूप यह विशाल साम्राज्य अथाह जलराशि में विलुप्त हो गया। 

एक पठनीय उपन्यास, जिसका पुनर्लेखन / पुनः प्रकाशन होना चाहिए। उपन्यासकार परमहंस प्रमोद के बारे में मैं अनभिज्ञ हूँ। उनकी कोई जानकारी मुझे नहीं है।

- केशव राम सिंघल  

कोई टिप्पणी नहीं: