कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल
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लेखक
- केशव राम सिंघल
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कथा-श्रृंखला
के किरदार
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- अम्मा जी
- चाची
- लेखक
- शैलबाला
- सुमन मामी
- सरोज बुआ
- गुल्लू
- इनु
- अम्मा जी
का बड़ा बेटा
- अम्मा जी
के बड़े बेटे
की पत्नी दर्शना
- चाची के पति
- तिरंगा बेचने
वाला युवा
- भार्गव आंटी
- सुरुचि
- राजरानी
- चाची का बेटा मुन्ना
-
-
कुछ
और किरदार जो
भविष्य में आएँगे।
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1
मैं
जब बच्चा था, तब बड़ों से कहानी सुनता था। अक्सर सोने से पहले। कभी परियों की कहानी,
कभी किसी राजा-रानी की कहानी, कभी चूहे-शेर की कहानी, कछुए-खरगोश की कहानी, कभी ये
कहानी, कभी वो कहानी। कहीं किसी की अम्मा कहानी सुनाती थीं तो कहीं दादी, दादा, मौसी,
बुआ, या कोई और पर कहानी सुनने-सुनाने का प्रचलन खूब था। जब भी कहानी सुनने-सुनाने
का वक्त आता तो बच्चे घेर लेते थे, कहते - दादी कहानी सुनाओ,,,,, दादी, ये तो पुरानी
है, आपसे कई बार सुन ली, नई कहानी सुनाओ ,,,,,,,,,, क्या वही पुरानी कहानी सुना रही
हो ,,,,,, अब कोई ना तो कहानी सुनता है, और ना ही कोई कहानी सुनाता है। अब कहानी सुनने-सुनाने
का वक्त तो रहा नहीं। हाँ, लिखने और पढ़ने में आज भी कहानी ज़िंदा है।
राजा-रानी
तो अब इतिहास हो गए हैं और उन्हें इतिहास में ही पढ़ा जाए तो अच्छा रहेगा। परियाँ सपनों
की दुनिया में रहती हैं, उनकी कहानी में वास्तविकता नहीं होती, इसलिए कहने-सुनने में
मजा नहीं। अब तो जीवंत विषयों पर कहानी लिखने-पढ़ने सुनने-सुनाने का वक्त है और यही
सोचकर कि जो कहानी आसपास है उसे ही सुनाया जाए या लिखा जाए तो उसे सुनने या पढ़ने में
आनंद आएगा।
अब
मैं शुरू करता हूँ अपने आसपास की कहानी। ऐसी कहानी जो देश, काल, समाज, परिवार, घर,
आप, मैं, नेता, अभिनेता, राजनीति, खेल, व्यवसाय आदि की बात करेगी, जिसके विविध पक्ष
होंगे। कहानी का कथानक आपको रुचिकर लगेगा, तो कभी आप कहेंगे कि ऐसा नहीं, ऐसा होता,
खैर कहानी तो कहानी है लेखक का कथानक विस्तृत हो इसकी भरपूर कोशिश होगी।
हमारी
अम्मा और पड़ौस की चाची
जब भी समय मिलता है
आपस में बातें
करती हैं और बातें भी
अपने घर के दरवाजे पर
करती हैं। कभी-कभी तो
हमारे मोहल्ले के
दूसरे घरों की औरतें भी
बातों में शामिल
हो जाती हैं।
ज्यादातर तो वे
दोपहर की नींद निकालने के बाद साढ़े तीन-चार बजे
चाय पीते-पीते
करती हैं। कभी-कभार वे
एक दूसरे के
घर भी चली जाती हैं।
अम्मा और चाची कभी भी
किसी के घर बिना रोक-टोक आती-जाती हैं।
उनकी उम्र के कारण सभी
उन्हें आदर देते
हैं। क्या दिन
हो या रात वे भी
सभी की सहायता
के लिए उपलब्ध
रहती हैं। उनकी
बातचीत के विषय विस्तृत होते हैं।
वे बातचीत स्वास्थ्य,
शिक्षा, राजनीति, संस्कृति,
आर्थिक हालातों, पास-पड़ौस की
घटनाओं से लेकर अंतरराष्ट्रीय विषयों पर
करती हैं। एक विशेष बात
उनकी बातचीत में
दिखा करती है कि उनमें
से कोई भी कभी आपको
सरकार के समर्थन
में दिखेंगी तो
कभी सरकार के
विरोध में। कभी
कोई एक दूसरे
का साथ देंगी
तो कभी किसी
की बातें एक
दूसरे का विरोध
करेंगी। उनकी बातें
मौहल्ले की चर्चा
का विषय भी होती हैं।
लोग बात करते
हैं कि आज अम्मा जी
ने क्या कहा,
चाची ने क्या कहा और
किसने क्या कहा।
मैं भी अकसर उनकी बातें
सुना करता हूँ
या किसी से पता लगाता
हूँ कि आज क्या हुआ।
आज के जमाने
में अधिकतर औरतें
सीरियल देखने के
लिए अपने घरों
में टीवी के सामने बैठी
दिखती हैं और पास-पड़ौस
में औरतों की
बातचीत आजकल देखने-सुनने को
नहीं मिला करती
है, जो चालीस-पचास साल
पहले तो हुआ करती थीं,
पर हमारे मोहल्ले
में तो यह अभी भी
जीवित है। और इसका श्रेय
हमारी अम्मा और
हमारे पड़ौस की चाची को
जाता है, जो न केवल
पढ़ी-लिखी हैं
बल्कि बालिका शिक्षा
में उनका जीवन
पर्यन्त योगदान रहा
है। दोनों ही
शिक्षा विभाग से
सेवानिवृत अध्यापिका रही हैं।
हमारी अम्मा की
उम्र बहत्तर साल
और चाची की उम्र छियासठ साल है। आस-पड़ौस के
सभी लोग हमारी
अम्मा को अम्मा
जी और पड़ौस की चाची
को चाची कहते
हैं, पर हमारी
अम्मा चाची को छोटी कहकर
सम्बोधित करती हैं।
कभी कभी उनकी
बात अधूरी रह
जाती है। कभी कभी वे
बातों ही बातों
में गूढ़ बातें
कह देती हैं।
गाँवों-मोहल्लों में
चौपाल वहाँ के जीवन का
हिस्सा थी। वहीं
सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक बातें
हुआ करती थीं।
हाल के वर्षों
में चौपाल अतीत
की बात हो गई हैं,
पर हमारे मोहल्ले
में यह अभी भी ज़िंदा
है।
ऐसा
नहीं है की केवल हमारे
मोहल्ले में औरतें
ही बातें करती
हैं। आदमी लोग
भी बातें करते
हैं, पर वे कभी-कभार
ही करते हैं।
हमारे मोहल्ले में
औरतों की तो यह दैनिक
दिनचर्या है। बच्चे
तो अपनी पढ़ाई
और खेल में इतने व्यस्त
रहते हैं कि उन्हें वक्त
ही नहीं मिलता
गप-शप करने का। मोहल्ले
में मैं ही एक ऐसा
बुजुर्ग हूँ, जिसकी
उम्र चाची से पांच-छह साल कम ही है और चलने-फिरने
के हिसाब से
मैं चुस्त-दुरुस्त
हूँ। कुछ समय पहले हमारे
मोहल्ले के कोने वाले मकान
में एक दादा जी अपने
परिवार के साथ रहते थे।
वे काफी सामाजिक
थे। हमारे शहर
में जल-वितरण
अनियमित रहता है।
नलों में पानी
दो दिन में एक बार
केवल एक घंटे के लिए
आता है, पर उसका भी
कोई निश्चित समय
नहीं, ऐसे में दादा जी
मोहल्ले के सभी घरों में
एलान करते फिरते
कि पानी आ गया है,
भर लो। उन्हीं
से मोहल्ले के
लोगों को पता चलता था
आज बिजली कितने
समय गुल रहेगी।
वे नियमित रोज
अखबार पढ़ते थे।
उन्हें शहर, देश,
विदेश के साथ-साथ पूरे
मोहल्ले की खबर रहती थी
कि कौन आया कौन गया।
मुझे तो उनसे बहुत ही
फ़ायदा था। मैं दिन में
एक बार उनसे
जरूर मिलता था।
पिछले दिनों उनका
देहावसान हो गया
तो उनकी कमी
हमारा पूरा मोहल्ला
महसूस करता है।
दादा जी के देहावसान के बाद से मैं
दिन में एक बार अम्मा
जी के पास हो आता
हूँ। वे ज्यादातर
बाहर बरामदे में
बैठी रहती हैं
मुढ्ढे पर या अपनी चारपाई
पर। कोई भी मिलने आए,
आते ही उसे एक इलायची
पकड़ा देती हैं।
चाची से भी बात होती
है पर कभी कभार। उनसे
हुई बातचीत से
बहुत सी बातें
पता चलती हैं।
वैसे एक और बुजुर्ग भी हैं मोहल्ले में, वे पास के
मकान में ही रहते हैं,
पर वे अक्सर
बीमार रहते हैं
और उन्हें लोगों
से ज्यादा मतलब
नहीं रहता। अब
दादा जी की कमी तो
मैं पूरी नहीं
कर सकता, फिर
भी विभिन्न मामलो
पर मोहल्ले के
लोगों से संवाद
कायम करने की कोशिश करता
हूँ। जब भी मैं लोगों
की बातें सुनता
हूँ, कोई खबर पढ़ता हूँ
या किसी घटना
को देखता हूँ
तो तरह -तरह
के विचार मेरे
मन में आते हैं। ये
विचार कभी-कभी मैं सोशल
मीडिया के माध्यम
से व्यक्त कर
देता हूँ, किसी
से कह देता हूँ या
कभी-कभी नहीं
भी करता हूँ।
मुझे लगा कि रोजमर्रा की हमारे
मोहल्ले की बातों
और मन में आए विचारों
को कलमबद्ध कर
लिया जाए तो अच्छा रहेगा।
और इसी तरह शुरू हुई
यह कथा-श्रृंखला, पाठको को
समर्पित है। आप पढ़े, आनंद
लें, टिप्पणी करें,
दूसरों को पढ़ाएँ,
अपने सोशल मीडिया
अकाउंट पर साझा करें। स्वागत
है आपके सुझावों
का और टिप्पणियों
का।
कल्पना और तथ्यों के घालमेल से लिखी यह कथा-श्रृंखला रुचिकर लगेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
सभी चित्र प्रतीकात्मक - साभार इंटरनेट
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