शनिवार, 27 अगस्त 2022

कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल - 2

कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल

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लेखक - केशव राम सिंघल

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ये अखबारवाला भी अजीब है, कभी तड़के पाँच बजे अखबार डाल जाता है तो कभी आठ बजे। चाची को अखबार पढ़ने का मौक़ा तभी मिल पाता है यदि अखबार सुबह जल्दी जाए। घर के और सभी देर से उठते हैं और एक बार उठ गए तो उनकी चीख-पुकार से घर में कोहराम मचा रहता है।  कभी यह करो तो कभी वो करो। समय ही नहीं मिलता अखबार पढ़ने का। वैसे भी अखबार में पिछले दिन की खबर पढ़ने को मिलती है और पढ़ने में देरी कर दी तो फिर बासी खबर और बासी हो जाती है, फिर बासी खबर पढ़ने के बाद दूसरों को सुनाने का मजा नहीं रहता। आज तो चाची को सुबह-सुबह अखबार पढ़ने को मिल गया और जल्दी-जल्दी उन्होंने अखबार पढ़ ही डाला। अखबार पढ़ने के बाद चाची सोचने लगी की आज तो इस खबर से मेरी धाक जम ही जाएगी। सुबह से ही चाची सोच रही थीं कि ये सब बातें वे अम्मा जी को बताएँगी जो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से सम्बंधित एक खबर में पढ़ी है और ऐसी जानकारी हैं, जो अम्मा जी ने कभी सुनी ना होगी। खबर पढ़ने के बाद चाची अपना लैपटॉप खोलकर बैठ गईं, पता नहीं क्या कर रहीं थीं। दोपहर में जब वक्त मिला तो  चाची ने अम्मा जी को बताया - भाभी, जानती हो अंतरराष्ट्रीय पलायन के मामले में भारत सबसे आगे हैं।

 


अम्मा की उम्र हो गई अस्सी से ज्यादा, वैसे तो बोलने सुनने में ठीक हैं पर कई बार कोई शब्द अनसुना रह जाता है उम्र का तकाजा हो शायद। पलायन शब्द उन्होंने सुना या नहीं सुना मुझे नहीं मालूम, पर अम्मा ने पूछा - वो कैसे? छोटी तू कई बार बात घुमा फिरा के कहती है। सीधे-सीधे बता कि कोई मैडल जीता है क्या हमारे देश ने?

 

चाची ने कहा - नहीं अम्मा, कोई मैडल की बात नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के जनसंख्या विभाग ने इंटरनेशनल माइग्रेशन रिपोर्ट 2020 में बताया था कि अंतरराष्ट्रीय आबादी के पलायन के मामले में भारत के प्रवासियों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। एक जानकारी के अनुसार 2017 में एक लाख तेतीस हजार से अधिक,  2018 में एक लाख चौंतीस हजार से अधिक, 2019 में एक लाख चवालीस हजार से अधिक, 2020 में पिचासी हजार से अधिक, और 2021 में 9 दिसंबर 2021 तक एक लाख ग्यारह हजार से अधिक लोगों  ने भारतीय नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता ले ली है।  

 

अम्मा जी को चाची की बात में रूचि होने लगी तो उन्होंने कहा - एक ज़माना था, जब दूसरे देशों के लोग भारत आकर बसते थे और अब भारत से लोग दूसरे देशों में जाकर बसते हैं। पहले भारत सोने की चिड़िया थी और अब तो आर्थिक हालत अच्छे नहीं हैं। अच्छा, छोटी, एक बात बता कितने विदेशियों ने 2017 से अब तक भारत की नागरिकता ग्रहण की है?

 

चाची कहने लगीं - मुझे पता था आप यह सवाल जरूर पूछोगी। मैं भी चालाक हूँ यह सब जानकारी गूगल गुरूजी से खोजकर लाई हूँ। साल 2010 से 2019 तक दस साल में इक्कीस हजार से अधिक शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी गई, जिसमें पंद्रह हजार बांग्लादेशी भी शामिल हैं।

 

अम्मा जी ने कहा - दस साल में केवल इक्कीस हजार विदेशियों, जिसमें भी बांग्लादेशी अधिक हैं, ने भारत की नागरिकता ली है और एक साल में एक लाख से अधिक भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी। यह सब बताता है कि लोग भारत को अब महफूज जगह नहीं मानते।

 


अम्मा जी की बात सुनकर चाची ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा - अम्मा, क्या खराबी है यहाँ। सब कुछ मिले है। बोलने की आजादी, घूमने-फिरने की आजादी, नारे लगाने की आजादी, आजादी ही आजादी, सब कुछ है यहाँ, फिर भी लोग अपना देश छोड़ विदेश में बस रहे हैं। अम्मा मेरा बस चले तो ऐसे लोगों को कभी भारत आने का वीसा भी ना दूँ, एक बार भारत की नागरिकता छोड़ी तो छोड़ी। तुम तुम्हारे नए देश में रहो, हम अपने देश में। जय हिन्द, जय भारत।

 

चाची की बात सुनकर अम्मा जी ने दार्शनिक अंदाज में कहा - छोटी, तेरे को गुस्सा बहुत जल्दी जावे है। नागरिकों का पलायन तो सदियों से होता रहा है। यह इंसानों की प्रवृति होती है। जब नागरिकों को अपनी जगह उचित रोजगार, व्यवसाय या नौकरी नहीं मिलती तो वह दूसरी जगह जाने की सोचता है। अब देख ना, पड़ौस में मिश्रा जी का बेटा नौकरी के खातिर पुणे गया है ना और गुज्जु हलवाई की पोती तो अमेरिका गई है।

 

अम्मा जी की बात से सहमति जताते हुए चाची बोलीं - अम्मा, आप बात तो सही कहे हो। फिर उन्होंने एक प्रश्न भी पूछ लिया - अच्छा, अम्मा जी, एक बात बताओ, इस बार जनगणना नहीं होगी क्या? पिछली जनगणना 2011 में हुई थी और इस बार 2021 में होनी थी, जिसके लिए 2020 में ही सरकार ने तैयारी कर ली थी, पर सारा मामला कोरोना की महामारी की वजह से स्थगित हो गया।

अम्मा जी को जितनी जानकारी थी, वह बताते हुए उन्होंने कहा - सरकार खुद चाहती है कि जनगणना का कार्य जल्द पूरा कर लिया जाए। मार्च 2022 में ही सरकार ने जनगणना नियमों में संशोधन किया है। सरकार डिजिटल माध्यम से जनगणना कार्य में तेजी लाएगी। मुझे सुदर्शन बता रहा था कि कोई भी नागरिक खुद डिजिटल माध्यम का उपयोग कर जनगणना अनुसूची भर सकेगा और जमा करा सकेगा। अब देखो, कब शुरू होता है यह काम?

 

अम्मा जी की बात सुनकर चाची कहने लगीं  - आपने अच्छी बात बताई। पिछली बार पड़ौस के अग्रवाल साहब और उनकी पत्नी का नाम 2011 की जनगणना में नहीं शामिल हो पाया था, क्योंकि दोनों कुछ दिनों के लिए विदेश गए थे और जो भी सरकारी कर्मचारी जनगणना के लिए आया होगा, उसने लिख दिया होगा कि यहाँ नहीं रहते। अब कम् से कम ऐसे लोग अपना नाम जनगणना में शामिल कर पाएंगे।

 

अम्मा - सो तो अच्छा है।

 

तभी सब्जी वाला उधर से निकला तो अम्मा और चाची घर वालों को यह बताने कि सब्जीवाला आया है, सब्जी खरीद लो, अपने-अपने घर में घुस गईं और इस तरह चौपाल समाप्त हुई।

 

यह कथा-श्रृंखला, पाठको को समर्पित है। आप पढ़े, आनंद लें, टिप्पणी करें, दूसरों को पढ़ाएँ, अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा करें। स्वागत है आपके सुझावों का और टिप्पणियों का।

 

कल्पना और तथ्यों के घालमेल से लिखी यह कथा-श्रृंखला रुचिकर लगेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।


सभी चित्र प्रतीकात्मक - साभार इंटरनेट 

 

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