शनिवार, 1 जुलाई 2023

समान नागरिक संहिता - 2

समान नागरिक संहिता - 2

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मैंने 28 जून 2023 को 'समान नागरिक संहिता' विषय पर एक लेख साझा किया था, जिसमें इस बात को लेख के अंत में रखा था कि समान नागरिक संहिता को लेकर विचार करने से पहले हमें इसके विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करना चाहिए। आवश्यकता है कि इस बारे में संगठित और सामरिक चर्चा हो, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संस्थाएं, और नागरिक समुदायों के विचार और सुझाव समाहित हों। संविधानिक प्रक्रिया और सभी स्तरों पर समझौता और सहयोग द्वारा ही हम एक आपसी समझ और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि देश की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ऐसा ड्राफ्ट सामने लाएँ, जो समान सिद्धांत पर आधारित हो, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो।











समान नागरिक संहिता के मामले पर राजनीतिक पार्टियाँ और संस्थाएँ एक मत नहीं हैं और सभी का इस विषय पर अपना-अपना नजरिया है। मंगलवार 27 जून 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत की। उनके अनुसार -


- संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार का भी उल्लेख है।

- विपक्ष समान नागरीक संहिता के मुद्दे का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने और भड़काने के लिए कर रहा है।

- तीन तलाक का समर्थन करने वाले मुस्लिम बेटियों के साथ घोर अन्याय कर रहे हैं। मिस्र में 80-90 साल पहले तीन तलाक ख़त्म कर दिया गया था।

- भारतीय जनता पार्टी तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति का रास्ता नहीं अपनाएगी।


तीन तलाक के बारे में अपनी बात रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि तीन तलाक बेटियों के साथ अन्याय करता है, इसके कारण पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। अगर तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है तो यह पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कतर, जॉर्डन, सीरिया और बांग्लादेश में क्यों नहीं है?" उन्होंने कहा - "भारत के मुस्लिम भाइयों और बहनों को समझना चाहिए कि बहुत से राजनीतिक दल उन्हें भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।"


प्रधानमंत्री ने सामान नागरिक संहिता की चर्चा छेड़कर एक तरह से समान नागरिक संहिता को लेकर कानून बनाने का इरादा जाहिर कर दिया है। जैसे ही प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे को छेड़ा, तमाम विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया सामने आ गई। अधिकतर विपक्षी दलों ने समान नागरिक संहिता लाने का विरोध कर दिया।


विश्व हिन्दू परिषद ने बुधवार 28 जून 2023 को समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान का समर्थन किया। समान नागरिक संहिता के विषय को नारी सम्मान से जोड़ते हुए साथ ही सवाल किया कि जब आपराधिक कानून, संविदा कानून, कारोबार से जुड़े कानून एक समान हैं, तब परिवार से जुड़े कानून अलग क्यों हों? विश्व हिन्दू परिषद् के अनुसार 1400 साल पुरानी स्थिति अलग थी और उस समय की परिस्थिति में बहु विवाह की प्रथा आई, वह तब की जरूरत हो सकती है। ‘समय बदला है। नारी की गरिमा और समानता की बात सभी को स्वीकार करनी चाहिए। वह (नारी) पुरूष की सम्पत्ति नहीं है। ऐसे में किसी तरह के भेदभाव को समान नागरिक संहिता से दूर किया जा सकता है। तलाक के नियम सभी के लिए एक से हों और केवल मौखिक कह देने से तलाक नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि तलाक की स्थिति में गुजारा भत्ता की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा बच्चों की परवरिश की चिंता की जानी चाहिए। समान नागरिक संहिता से ऐसी अपेक्षा की जाती है कि सभी धर्मों से अच्छी बातें ले कर एक ऐसा कानून बनेगा जो सभी के लिए जो अच्छा होगा।


देश में मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक ऑनलाइन बैठक कर समान नागरिक संहिता का विरोध जारी रखने का निर्णय लेते हुए कहा है कि "वह इस सिलसिले में विधि आयोग के सामने अपनी दलीलों को और जोरदार ढंग से पेश करेगा। विधि आयोग के सामने आपत्ति दाखिल करने की अंतिम तिथि 14 जुलाई 2023 है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि भारत जैसे बहुसांस्‍कृतिक और विविध परम्‍पराओं वाले देश में सभी नागरिकों पर एक ही कानून नहीं थोपा जा सकता, यह न सिर्फ नागरिकों के धार्मिक अधिकारों का हनन है बल्कि यह लोकतंत्र की मूल भावना के भी विपरीत है।" उल्लेखनीय है कि विधि आयोग ने 14 जून को समान नागरिक संहिता पर नए सिरे से विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू की और राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित हितधारकों से राय मांगी है।


कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि ‘एजेंडा आधारित बहुसंख्यक सरकार’ समान नागरिक संहिता लोगों पर थोप नहीं सकती क्योंकि इससे लोगों के बीच ‘विभाजन’ बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बेरोजगारी, महंगाई और घृणा अपराध जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए समान नागरिक संहिता की वकालत कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समान नागरिक संहिता का इस्तेमाल समाज के ध्रुवीकरण के लिए कर रही है। चिदंबरम ने अपने ट्वीट में कहा - "माननीय प्रधान मंत्री ने समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए एक राष्ट्र को एक परिवार के बराबर बताया है। हालाँकि अमूर्त अर्थ में उनकी तुलना सच लग सकती है, वास्तविकता बहुत अलग है। एक परिवार खून के रिश्तों से एक सूत्र में बंधा होता है। एक राष्ट्र को संविधान द्वारा एक साथ लाया जाता है जो एक राजनीतिक-कानूनी दस्तावेज है। एक परिवार में भी विविधता होती है। भारत के संविधान ने भारत के लोगों के बीच विविधता और बहुलता को मान्यता दी है। समान नागरिक संहिता एक आकांक्षा है। इसे एजेंडा-संचालित बहुसंख्यकवादी सरकार द्वारा लोगों पर थोपा नहीं जा सकता। माननीय प्रधान मंत्री यह दिखा रहे हैं कि समान नागरिक संहिता एक सरल अभ्यास है। उन्हें पिछले विधि आयोग की रिपोर्ट पढ़नी चाहिए जिसमें बताया गया था कि इस समय यह संभव नहीं है। भाजपा की कथनी और करनी के कारण आज देश बंटा हुआ है। लोगों पर थोपा गई समान नागरिक संहिता केवल विभाजन को बढ़ाएगा। समान नागरिक संहिता के लिए माननीय प्रधान मंत्री की ठोस वकालत का उद्देश्य मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, घृणा अपराध, भेदभाव और राज्यों के अधिकारों को नकारने से ध्यान भटकाना है। लोगों को सतर्क रहना होगा। सुशासन में विफल होने के बाद, भाजपा मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने और अगला चुनाव जीतने का प्रयास करने के लिए समान नागरिक संहिता को सामने कर रही है।"


हालाँकि सरकार की ओर से समान नागरिक संहिता से सम्बंधित आने वाले कानून का कोई ड्राफ्ट सामने नहीं आया है, फिर भी जानकारी मिली है कि आम आदमी पार्टी समान नागरिक संहिता का समर्थन करेगी। इस पर कांग्रेस के पवन खेड़ा ने 29 जून को अपने ट्वीट में लिखा कि "जिस गति से आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता को समर्थन दिया है, उससे मैं वास्तव में आश्चर्यचकित हूँ। भले ही अन्य जिम्मेदार दल सरकार के मसौदा प्रस्ताव की प्रतीक्षा कर रहे हों, क्या आम आदमी पार्टी के पास समान नागरिक संहिता प्रस्ताव के मसौदे तक विशेष पहुँच है?"


समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि जिस तरह से समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठाया जा रहा है, उससे लगता है कि भारतीय में रहने वाले अल्पसंख्यकों को व्यवस्थित रूप से बदनाम करके एक हिंदू-बहुसंख्यकवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।


सर्वोच्च न्यायालय भी सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के बारे में कह चुका है। हो सकता है कि आगामी संसद सत्र में समान नागरिक संहिता का विधेयक संसद के पटल पर रखा जाए। यदि ऐसा होता है तो लगता है संसद में हंगामा होगा। सरकार को समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले दलों की बात सुननी चाहिए। इस मुद्दे पर विधेयक लाने से पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए तथा सरकार को खुले मन से विचार-विमर्श करना चाहिए। सवाल लोगों की आस्थाओं से जुड़ा है, अल्पसंख्यकों और विपक्षी दलों की बात को सुना जाना चाहिए। बेहतर होगा कि सभी दलों को विश्वास में लेकर इस सम्बन्ध में कानून बने। जैसा कि मैंने पहले कहा था, उसी को दोहराता हूँ। समान नागरिक संहिता को लेकर विचार करने से पहले हमें इसके विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करना चाहिए। आवश्यकता है कि इस बारे में संगठित और सामरिक चर्चा हो, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल, सामाजिक संस्थाएं, और नागरिक समुदायों के विचार और सुझाव समाहित हों। संविधानिक प्रक्रिया और सभी स्तरों पर समझौता और सहयोग द्वारा ही हम एक आपसी समझ और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि देश की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता का ऐसा ड्राफ्ट सामने लाएँ, जो समान सिद्धांत पर आधारित हो, साथ ही उसमें रंग-रूप का वैविध्य भी हो। इसके लिए जल्दबाजी की जरुरत नहीं, सोच-समझकर कदम उठाने चाहिए।


- केशव राम सिंघल


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