सोमवार, 24 जुलाई 2023

समान नागरिक संहिता - 3

समान नागरिक संहिता - 3

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समान नागरिक संहिता (UCC) पर यह मेरा तीसरा लेख है। देश के प्रमुख समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका 7 जुलाई 2023 में समान नागरिक संहिता से संबधित समाचार प्रकाशित हुआ, जिसका सार निम्न है -

- केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता पर वरिष्ठ मंत्रियों का एक अनौपचारिक समूह बनाया गया है, जो समान नागरिक संहिता से सम्बंधित अलग-अलग मुद्दों पर विचार विमर्श करेंगे। इस समूह का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के हाथों में सौंपी गई है और स्मृति ईरानी, जी किशन रेड्डी और अर्जुन राम मेघवाल को शामिल किया गया है।

- किरेन रिजुजू आदिवाइयों से जुड़े मुद्दों पर, स्मृति ईरानी महिला अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर, जी किशन रेड्डी पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़े मुद्दों पर तथा अर्जुन राम मेघवाल कानूनी मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे।

- केंद्र सरकार के विधि आयोग ने धार्मिक संगठनों और जनता से समान नागरिक संहिता पर विचार 15 जुलाई 2023 तक माँगे हैं।

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अब हमारे सामने कुछ प्रमुख प्रश्न सामने हैं -

(1) भारत में अभी तक समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू हुई?

(2) समान नागरिक संहिता का विभिन्न धर्मों पर क्या प्रभाव पडेगा?

(3) समान नागरिक संहिता के प्रति विभिन्न धर्मों के मानने वालों की क्या राय है?

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भारत एक विशाल देश है, जिसमें विभिन्न धर्मों के मानने वाले रहते हैं। भारत का मूल ताना-बाना 22 आधिकारिक भाषाओं, 398 बोलियों और 645 जनजातियों का मिश्रण है, जिनकी सामाजिक प्रथाएँ एक-दूसरे से भिन्न हैं। यदि समान नागरिक संहिता लागू की जाती है तो उनके प्रथागत कानून समाप्त होने की आशंका है, इसलिए अनुसूचित जनजाति विशेषकर आदिवासी समाज के लोग, मुसलमान, ईसाई आदि इसका विरोध करते रहे हैं।

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समान नागरिक संहिता का विभिन्न धर्मों पर पड़ने वाले कुछ प्रभावों को नीचे दिया जा रहा है -

- समान नागरिक संहिता के आने के बाद हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा।

- हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम समाप्त हो जाएँगे और हिन्दुओं के विवाह और उत्तराधिकार के मामले एक समान कानून के अंतर्गत लाए जाएँगे।

- हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2(2) के तहत हिन्दू विवाह अधिनियम अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होते हैं। अनुसूचित जनजातियों, आदिवासी समाज अपनी परम्पराओं और प्रथाओं के आधार पर चलता है। समान नागरिक संहिता के आने के बाद क्या अनुसूचित जनजातियों और आदिवासी समाज के लोगों को अपनी परम्पराओं और प्रथाओं को छोड़ना होगा, यह प्रश्न सामने आ खड़ा हुआ है।

- अगर समान नागरिक संहिता अधिनियम आता है तो मुस्लिम परसनल (शरीयत) अप्लीकेशन एक्ट 1937 समाप्त हो जाएगा और मुसलमानों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु बदल जाएगी और बहु-विवाह प्रथा समाप्त हो जाएगी।

- सिखों में विवाह सम्बन्धी कानून आनंद विवाह अधिनियम 1909 के अंतर्गत आते हैं, जिसमे विवाह-विच्छेद का कोई प्रावधान नहीं है। अभी तक सिखों के विवाह विच्छेद मामले हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत निपटाए जाते थे। अगर समान नागरिक संहिता अधिनियम आता है तो आनंद विवाह अधिनियम समाप्त हो जाएगा।

- ईसाई तलाक अधिनियम 1869 के अंतर्गत आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन देने से पहले पति-पत्नी को कम से कम दो साल अलग रहना जरूरी है। ईसाई प्रथाओं के अंतर्गत ईसाई माताओं का उनके मृत बच्चों की सपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है। समान नागरिक संहिता अधिनियम आने के बाद ये कानून और प्रथाएं बदल जाएंगे। इसी प्रकार पारसी विवाह और तलाक अधिनियम के प्रावधान भी समाप्त हो जाएंगे, जिनके अंतर्गत यदि पारसी महिला किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह करती है तो वह पारसी रिवाजों के अधिकार खो बैठती है।

- समान नागरिक संहिता के आने के बाद हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा अर्थात्त सभी के लिए एक जैसा कानून विवाह के लिए, विवाह-विच्छेद के लिए, बच्चा गोद लेने के लिए और संपत्ति के बटवारे के लिए।

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इस प्रकार देखा जाए तो समान नागरिक संहिता का व्यापक प्रभाव भारतीय समाज पर पडेगा। अयोध्या में राम मंदिर बनाने और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को खत्म करने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार अब अपने तीसरे सबसे बड़े राजनीतिक लक्ष्य समान नागरिक संहिता पर तेजी से आगे बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पूरी राजनीति समान नागरिक संहिता के आसपास नजर आती दिख रही है। इसी बीच समाज के कई वर्गों से भी तीव्र और तीखा विरोध भी सुनने को मिल रहा है। नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम समाज के साथ आदिवासी समाज कर रहा है। आदिवासी समाज परंपराओं, प्रथाओं के आधार पर चलता है और समान नागरिक संहिता यानी कि एक समान कानून लागू होने से आदिवासियों की अस्मिता ही खत्म हो जाएगी। फिलहाल आदिवासी समाज / संगठनों के विरोध पर भाजपा नेताओं ने भी चुप्पी साध रखी हैं। आदिवासी संगठनों का कहना है कि अगर समान नागरिक संहिता आदिवासियों पर लागू हो जाती है, तो आदिवासी समाज की पहचान ही खत्म हो जाएगी। उनका कहना है कि समान नागरिक संहिता संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत आने वाले राज्यों (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना) के आदिवासी इलाकों में लागू ही नहीं हो सकता है। अतः ऐसा लगता है कि भाजपा सरकार सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए समान नागरिक संहिता को लेकर आगे बढ़ रही है।

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वैसे अभी तक सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता से सम्बंधित आने वाले अधिनियम का कोई ड्राफ्ट अभी तक जनता के बीच साझा नहीं हुआ है, अतः कुछ अधिक कहना कठिन लगता है। अधिकतर नागरिक प्रतिक्रियाएं बदल सकती हैं, यदि कुछ वर्गों (जैसे आदिवासी समाज) पर समान नागरिक संहिता से छूट दे दी जाए। इस प्रकार भाजपा अपने राजनीतिक उद्देश्य को यह कह कर पूरा कर लेगी कि वे समान नागरिक संहिता ले आए और राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करेंगे, पर वास्तव में वे समान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू नहीं कर पायेगे। यह कुछ ऐसा ही होगा कि कथनी कुछ, करनी कुछ।

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- केशव राम सिंघल

(10 जुलाई 2023 को लिखा और फेसबुक पर साझा भी किया।)


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