भगवान श्रीगणेश: हमारे जीवन के शिक्षक
गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार
भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है, विशेषकर दक्षिण भारत में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना,
महाराष्ट्र और कर्नाटक में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन
भगवान श्रीगणेश जी का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है।
हम भारतवासी गणेश चतुर्थी के अवसर पर उत्साह और खुशी से झूम उठते हैं। हर काम करने
से पहले हम भगवान श्रीगणेश का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी प्रार्थना करते हैं। गणेश
चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। आइए हम भगवान श्रीगणेश का
जन्मदिन मनाने के साथ-साथ उनके जीवन की शिक्षाओं को भी सीखने का प्रयत्न करें। भगवान
श्रीगणेश की शिक्षाओं में हमें ज्ञान, दृढ़ता और करुणा गहराई से दिखाई देती हैं। भगवान
श्रीगणेश शुभारम्भ के देवता और बाधाओं को दूर करने वाले देवता के रूप में पूजे जाते
हैं। हर काम का शुभारम्भ करने से पहले हम भगवान् श्रीगणेश का आशीर्वाद लेने के लिए
उनसे प्रार्थना करते हैं। हिंदू संस्कृति में वे एक प्रतिष्ठित देवता हैं। उनका अनोखा
रूप और उनसे जुड़ी कहानियाँ जीवन के गहन सबक देती हैं।
प्रतीक रूप में भगवान श्रीगणेश
1. भगवान
श्रीगणेश का हाथी जैसा मस्तक ज्ञान और बुद्धि की विशालता का प्रतीक है। भगवान श्रीगणेश
का बड़ा मस्तक हमें बड़ा सोचने और अपने मन की असीमित शक्ति को अपनाने के लिए प्रोत्साहित
करता है।
2. भगवान
श्रीगणेश का एकल दाँत अनुकूलनशीलता और लचीलेपन का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान श्रीगणेश
का एकल दाँत हमें शिक्षा देता है कि हमारे पास जो है उसका सर्वोत्तम उपयोग हम करें
और कभी हार न मानें।
3. भगवान
श्रीगणेश के बड़े कान सक्रिय रूप से सुनने और सतर्क रहने के महत्व पर जोर देते हैं।
उनके बड़े कान हमें अपने आस-पास की दुनिया के प्रति ग्रहणशील होने का पाठ पढ़ाते हैं।
4. भगवान
श्रीगणेश की सूंड लचीलापन और अनुकूलनशीलता का प्रदर्शन करते हुए चुनौतियों का सामना
शालीनता से करने की क्षमता का प्रतीक है।
अपने भौतिक स्वरूप से परे, भगवान श्रीगणेश के गुण, उनका
वाहन चूहा और उनके द्वारा धारण किया जाने वाला मोदक (मिठाई), गहरे आध्यात्मिक अर्थ
रखते हैं। वे विनम्रता, इच्छाओं और भक्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं।
भगवान श्रीगणेश द्वारा बताए जीवन के चौदह सबक
आज की तेज़-तर्रार दुनिया में, युवा पीढ़ी भगवान श्रीगणेश
की शिक्षाओं से सांत्वना और मार्गदर्शन पा सकती है। खामियों को स्वीकार करना, सचेत
रहना और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना ऐसे कालातीत सबक हैं, जो हर पीढ़ी के लिए समान
रूप से प्रभावशाली हैं। आइए, इन अमूल्य शिक्षाओं को ध्यान से समझने का प्रयास करते
हैं:
1. अपनी
कमियों को स्वीकार करें -
भगवान श्रीगणेश आशा की किरण के रूप में खड़े हैं, जो अपने
अनोखे रूप के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका हाथी जैसा सिर और एकल दाँत अपनी कमियों को स्वीकार
करने का प्रतीक है। हमें अपनी कमियों और गलतियों को स्वीकार करना उनसे सीखना चाहिए।
हमारी कमियाँ और गलतियाँ हमें सही राह पर चलना सिखाती हैं और इन्हें स्वीकार कर हम
आत्म-विकास और आत्म-स्वीकृति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
2. क्रोध
में शांत रहना -
जब भगवान शिव, भगवान श्रीगणेश की पैदायश से अनजान थे,
तो उन्होंने प्रवेश करने का प्रयास किया। श्रीगणेश ने उन्हें रोक दिया, जिससे भयंकर
युद्ध हुआ। क्रोध और भ्रम के बावजूद अपने कर्तव्य को पूरा करने में गणेश का संघर्ष
के दौरान शांत रहना इस बात को सामने रखता है और यह सिखाता है कि क्रोध में आवेगपूर्ण
कार्य करने से पछतावे भरे परिणाम हो सकते हैं। भक्ति का अभ्यास करके और शांति बनाए
रखकर, हम चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को अनुग्रह और बुद्धि के साथ पार कर सकते हैं, जैसा
कि भगवान् श्रीगणेश ने अपने बचपन में किया था। भगवान श्रीगणेश की पैदायश से सम्बंधित
कथा नीचे दी गई है।
3. सावधानी
से सुनें -
सावधानी से सुनने का अर्थ है वास्तव में सुनना। ऐसा करने
से, हम अपने आप को गहरे संबंधों और समृद्ध अनुभवों के लिए खोलते हैं। भगवान श्रीगणेश
के बड़े कान हमारे आस-पास की दुनिया से ज्ञान और समझ को ग्रहण करने के महत्व को दर्शाते
हैं। विकर्षणों से भरी दुनिया में, सक्रिय रूप से सुनने से गहन अंतर्दृष्टि और मजबूत
रिश्ते बनते हैं।
4. कभी
हार मत मानो -
भगवान श्रीगणेश की दृढ़ता की अनेक कहानियाँ हमें प्रेरित
करती हैं। अपने माता-पिता की तलाश से लेकर अपने एकल दाँत के बावजूद उनके दृढ़ संकल्प
तक, ये कहानियाँ दृढ़ता सिखाती हैं। चुनौतियाँ अपरिहार्य हैं, लेकिन दृढ़ संकल्प और
विश्वास के साथ, सफलता संभव है। भगवान श्रीगणेश हमें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित
करते हैं भले ही रास्ता कठिन हो।
5. क्षमा
का अभ्यास करें -
शिकायत और अतीत की चोटों को अपने दिल में रखना एक भारी
बोझ हो सकता है, जो हमारी आत्मा को दबा देता है। भगवान श्रीगणेश, अपनी असीम बुद्धि
में, क्षमा और करुणा की परिवर्तनकारी शक्ति का उदाहरण देते हैं। अतीत की नाराजगी को
दूर करके और समझ का रास्ता चुनकर, हम न केवल खुद को पूर्वाग्रहों से मुक्त करते हैं,
बल्कि प्रेम और सद्भाव का माहौल भी बनाते हैं।
6. ज्ञान
का बुद्धिमानी से उपयोग करें -
भगवान श्रीगणेश को अक्सर समृद्धि के साथ जोड़ा जाता है,
लेकिन उनका असली सार ज्ञान की खोज में निहित है। भौतिक इच्छाओं से प्रेरित दुनिया में,
भगवान श्रीगणेश की शिक्षाएँ ज्ञान के मूल्य पर जोर देती हैं। ज्ञान को प्राथमिकता देकर,
हम अपने आप को ज्ञान के एक ऐसे भंडार से भर लेते हैं जो समय पर जीवन की जटिलताओं के
माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करता है।
7. विनम्रता
को महत्व दें और सभी का सम्मान करें -
भगवान श्रीगणेश की अपनी दिव्य स्थिति के बावजूद अपने वाहन
के रूप में एक छोटे से जानवर "मूषक" का चयन करना उनके द्वारा विनम्रता के
महत्व को रेखांकित करना है। आज के युग में अहंकार और अभिमान अक्सर केंद्र में होते
हैं, ऐसे में भगवान श्रीगणेश की शिक्षाएँ एक सौम्य अनुस्मारक के रूप में काम करती हैं
कि सच्ची महानता विनम्रता और सेवा में निहित है। खुद को विनम्र स्थापित करके, हम वास्तविक
संबंध बना सकते हैं और अपने आस-पास के लोगों का सम्मान और प्रशंसा अर्जित कर सकते हैं।
8. आशावादी
बनें -
भगवान श्रीगणेश के हाथी के मस्तक की कहानी परिवर्तन की
अनिवार्यता का प्रमाण है। जीवन बदलती परिस्थितियों की एक श्रृंखला है, और भगवान श्रीगणेश
हमें अनुग्रह और साहस के साथ परिवर्तन को स्वीकार करना सिखाते हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव
का विरोध करने के बजाय, हमें जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के साथ सामंजस्य रखना और
परिवर्तन में विशेषता खोजना सीखना चाहिए। एक सकारात्मक दृष्टिकोण दरवाजे खोल सकता है
और सफलता और खुशी का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
9. धैर्य
का अभ्यास करें -
भगवान श्रीगणेश, जिन्हें अक्सर हम अपने नए प्रयासों की
शुरुआत में याद करते हैं, धैर्य और दृढ़ता के प्रतीक हैं। तत्काल संतुष्टि की दुनिया
में, गणेश की शिक्षाएँ हमें धैर्य के गुणों और इसके साथ मिलने वाले लाभों की याद दिलाती
हैं। धैर्य का अभ्यास करके, हम खुद को आगे बढ़ने, सीखने और अपने लक्ष्यों को उस गति
से प्राप्त करने की अनुमति देते हैं, जो हमारे लिए स्थायी सफलता सुनिश्चित करती है।
10. रिश्तों
को संजोएँ -
भगवान श्रीगणेश के अपने माता-पिता, भगवान शिव और देवी
पार्वती के साथ गहरे बंधन की कहानियाँ रिश्तों के महत्व को उजागर करती हैं। आभासी संबंधों
से प्रेरित दुनिया में, भगवान श्रीगणेश की शिक्षाएँ हमें अपने वास्तविक दुनिया के रिश्तों
को संजोने और पोषित करने का आग्रह करती हैं, उन्हें भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण
के आधार के रूप में पहचानती हैं।
11. संतुलन
की तलाश करें -
सामान्य मुद्रा में भगवान श्रीगणेश अपना एक पैर जमीन पर
और दूसरा अपने घुटने पर टिकाए हुए दिखते हैं, जो संतुलन का प्रतीक हैं। उनकी मुद्रा
हमें अपनी भौतिक और आध्यात्मिक खोजों के बीच संतुलन बनाने के महत्व को दर्शाती है।
सफलता की तलाश में, संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है, यह सुनिश्चित करते हुए कि हम नई
ऊँचाइयों पर चढ़ते हुए भी जमीन पर बने रहें।
12. वर्तमान
में जिएँ -
भगवान श्रीगणेश के कान हमें अपने आस-पास के वातावरण के
प्रति जागरूक रहने की याद दिलाते हैं। वर्तमान में रहकर हम जीवन सचेतनता का अभ्यास
करके, हम अव्यवस्था को दूर कर सकते हैं, सांसारिकता में सुंदरता की सराहना कर सकते
हैं और उथल-पुथल के बीच शांति पा सकते हैं। यह बढ़ी हुई जागरूकता हमारे अनुभवों को
समृद्ध करती है, जीवन और उसमें हमारे स्थान की गहरी समझ को बढ़ावा देती है।
13. छोटी
जीत की खुशी मनाएँ -
हर उपलब्धि, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, सफलता
की ओर एक कदम है और इसकी खुशी मनाई जानी चाहिए। भगवान श्रीगणेश छोटी जीत की खुशी मनाने
के प्रतीक हैं। उनकी कहानियाँ छोटी उपलब्धियों को स्वीकार करने के महत्व को उजागर करती
हैं, जो बड़ी सफलताओं की ओर ले जाती हैं। उनके हाथ में मोदक छोटे प्रयासों से मिलने
वाले पुरस्कारों की मिठास का प्रतीक है।
14. तनाव
के समय में सकारात्मक दृष्टिकोण -
तनाव के समय में सकारात्मक दृष्टिकोण का उदाहरण देने वाली
सबसे प्रतिष्ठित कहानियों में से एक यह है कि कैसे बालक श्रीगणेश का मस्तक हाथी का
हो गया। अपने बदले हुए रूप पर विलाप करने या अतीत पर ध्यान देने के बजाय, बालक श्रीगणेश
ने अपने नए रूप को अनुग्रह और सकारात्मकता के साथ अपनाया। सकारात्मक सोच के साथ प्रतिकूल
परिस्थितियों का सामना करने से चुनौती कम नहीं होती, बल्कि हमें आशा और उम्मीद के साथ
उसका सामना करने की शक्ति मिलती है, यह पाठ हमें भगवान श्रीगणेश से सीखने को मिलता
है ।
भगवान श्रीगणेश की पैदायश से सम्बंधित कथा
शिवपुराण में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने
से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया।
भगवान शिव ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक
से भयंकर युद्ध किया, परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान
शिव ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का मस्तक काट दिया। इससे माता पार्वती
क्रुद्ध हो उठीं। माता पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव के आदेश पर
विष्णुजी सबसे पहले मिले जीव हाथी (गज) का मस्तक काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने हाथी
(गज) के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने खुशी
से आनंदित हो उस गज-मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने
का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य
होने का वरदान दिया। भगवान शिव ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन, विघ्न नाश करने में तेरा
नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर
तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है।
इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त
होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय भगवान श्रीगणेश की पूजा
करने के पश्चात् चंद्रमा को अर्घ्य देकर मिष्ठान खिलाएँ और खाएँ। ऐसी मान्यता है कि
श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
भगवान श्रीगणेश के जीवन और शिक्षाओं में वह गहनता और ज्ञान
है जो हमें जीवन की कठिनाइयों से उबरने और आत्म-विकास की ओर प्रेरित करती है। आज के
समय में, जब चुनौतियाँ और प्रतिकूलताएँ हमारे रास्ते में आती हैं, भगवान श्रीगणेश की
शिक्षाएँ हमें सही मार्ग दिखाने का कार्य करती हैं। उनके प्रतीक और उनके द्वारा दी
गई शिक्षाएँ हमें आशावाद, धैर्य, और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। आइए,
हम इस गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान श्रीगणेश के चरणों में समर्पित होकर उनकी शिक्षाओं
को अपने जीवन में आत्मसात करें और जीवन को सही मायनों में सार्थक बनाएँ।
सादर,
केशव राम सिंघल
आलेख में शामिल सम्बंधित चित्रों की रचनाकार - श्रीमती मधु सिंघल
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