शनिवार, 17 अगस्त 2024

टकराव टालो

टकराव टालो 

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सार - यह आलेख एक दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जिसमें टकराव से बचने और हल निकालने पर जोर दिया गया है। आलेख में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं जैसे कि टकराव से शक्ति नष्ट होती है, बैरभाव से ही टकराव उत्पन्न होता है, और जिस व्यक्ति का टकराव और बैरभाव समाप्त हो गया, समझो उसका मोक्ष हो गया।

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विज्ञान के अनुसार 13.7 अरब वर्ष पहले एक छोटे से बिंदु से फैलते हुए ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। एक बहुत बड़े टकराव के साथ धमाका हुआ और उस धमाके के साथ  सृष्टि की रचना हुई। टकराव से यह जगत निर्मित हुआ है। यह जगत टकराव ही है। यह स्पंदन स्वरूप है। टकराव टालो। टकराव मिटा दो, संघर्ष मिटा दो, नहीं तो हमारे मन में एक नई टकराव वाली दुनिया बन जाएगी।


बुद्धि ही संसार में टकराव करवाती है। टकराव हमारी अज्ञानता की निशानी है। इस दुनिया में जो भी टकराता है, वे निर्जीव वस्तुएँ होती हैं। जो टकराते हैं, वे जीवंत नहीं होते। जीवंत टकराते नहीं, हल खोजते हैं। निर्जीव वस्तुएँ टकराती हैं। इसलिए जो भी आपसे टकराए, उसे दीवार जैसा निर्जीव समझ लेना। टकराव करने वाले से टकराव टालना है, प्रतिक्रिया से बचना है। 


इस संसार का सबसे बड़ा धर्मयुद्ध महाभारत पांडवों और कौरवों के बीच लड़ा गया, जिसमें लाखों सैनिक मारे गए और अंत में मात्र  18 योद्धा ही जीवित बचे थे। महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला और लगभग 45 लाख सैनिक और योद्धाओं में हजारों सैनिक लापता हो गए, जबकि युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे, जिनके नाम हैं- कौरव पक्ष के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि। महाभारत युद्ध इस बात का प्रमाण है कि पांडव और कौरव अपने बीच आपसी टकराव नहीं टाल सके, जिसका अंत भारी नुकसान के साथ हुआ।   


ये जो टकराव करते हैं या करवाते हैं, सभी निर्जीव दीवारें हैं। जो टकराते हैं, वे भी निर्जीव दीवारें ही हैं। ऐसा अपनी बुद्धि में डाल लो। दरवाजा अर्थात् हल (solution) कहाँ है, उसे ढूँढो तो अँधेरे में दरवाजा अर्थात् हल मिल ही जाएगा। अँधेरे में ऐसे हाथ से टटोलते-टटोलते दरवाजा मिल ही जाता है, फिर वहां से निकल जाओ। किसी भी हालत में टकराना नहीं है। अपने लिए नियम बनाओ - मुझे किसी से टकराना नहीं है। 


टकराव से दुःख होता है, सारा समय बिगड़ जाता है। टकराव से सज्जनता चली जाती है, मानवता का ह्रास होता है। टकराव का कारण अज्ञानता है। जब किसी के साथ मतभेद होता है, तो वह हमारी निर्बलता की निशानी है। लोग गलत नहीं हैं, मतभेद में गलती हमारी है। अगर कोई जानबूझकर भी विवाद पैदा कर रहा हो, तो हमें उससे क्षमा माँग लेनी चाहिए। कहना चाहिए - "भैया, यह मेरी समझ में नहीं आता।" लोग मतभेद को लंबा खींचे, ऐसा होता नहीं। जहाँ टकराव हुआ, वहाँ अपनी भूल है, ऐसा समझना चाहिए। 


कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आ जाती है, जब सामने वाला हमारा अपमान करने लगता है। वास्तव में ऐसे समय सामने वाला अहंकारी होता है। वह अपने अहंकार के वशीभूत होता है, पर इससे हमारा क्या बिगड़ने वाला? उसे उसकी गलती मत बताओ, बल्कि कहो - मेरी ही भूल है। अपनी भूल को स्वीकार कर लो। भूल स्वीकार करने के बाद ही हल निकलता है। 


टकराव टालने और हल निकालने की हमारी प्रवृति हो, फिर भी सामने वाला व्यक्ति हमें परेशान करे, अपमान करे, तब हम क्या करें? मेरा उत्तर है - कुछ नहीं। हमें ध्यान रखना है कि टकराव से हमारी सारी आत्मशक्ति ख़त्म होती है। ज़रा सा भी टकराए तो हमारी आत्मशक्ति का ह्रास। सामने वाला टकराए, तो हमें संयम से रहना चाहिए। टकराव तो होना ही नहीं चाहिए। फिर चाहे तो यह शरीर भी जाना हो तो जाए, मगर टकराव में नहीं आना चाहिए। टकराव से हर हालत में बचने का प्रयास करो।  


यदि टकराव नहीं हो तो मनुष्य को शान्ति मिल जाए, वह मोक्ष प्राप्त कर ले। किसी ने इतना ही सीख लिया कि मुझे टकराव में नहीं आना है तो उसे किसी की भी जरुरत नहीं। एक-दो जन्मों में उसका मोक्ष निश्चित है। "टकराव में नहीं आना है।" ऐसा यदि किसी व्यक्ति के मन में बैठ गया और उसने निश्चय कर लिया तो वह संयमित हो गया। मन में इच्छा होती है। मन की इच्छा के कारण कर्मबन्धन है। मन रूपी नौका इस संसार के साधनों से चलती है, पर हमें अपना जीवन उन्नत करना है और मन को इसी संसार के पार ले जाना है। इसके लिए मन को लक्ष्य और परिस्थितियों के अनुसार संयमित करने की जरुरत है।


शरीर का टकराव हुआ हो और शरीर के किसी भाग में चोट लगी हो तो वह इलाज करने या मरहम-पट्टी से वह ठीक हो जाएगा, पर टकराव से मन में जो घाव पड़ गए हों, बुद्धि में जो घाव पड़े हों, उन्हें कौन ठीक करेगा। ऐसे घाव अनेक जन्मों तक नहीं जा पाएँगे। टकराव से मन-बुद्धि पर तो घाव पड़ते ही हैं, साथ ही पूरे अंतःकरण पर भी घाव पड़ते हैं। ध्यान रहे, टकराव से शक्ति नष्ट होती है। नया टकराव पैदा ना करो, इससे शक्तियाँ केंद्रित होंगी। 


इस दुनिया में बैरभाव से ही टकराव उत्पन्न होता है। संसार का मूल टकराव है। यह संसार टकराव से उत्पन्न हुआ। जिस व्यक्ति का टकराव और बैरभाव समाप्त हो गया, समझो उसका मोक्ष हो गया। प्रेम बाधक नहीं है, बैरभाव जाए तो प्रेम उत्पन्न हो जाए। यह समझना है हमें।  भले ही कोई व्यक्ति हमसे टकराए, पर हम किसी से न टकराएँ। इस तरह रहेंगे तो हमारी व्यावहारिक समझ बनी रहेगी। हमें किसी से टकराना नहीं है, अन्यथा हमारी व्यावहारिक समझ चली जाएगी। हमें ध्यान रखना है कि अपनी ओर से टकराव न हो। 


सामने वाले व्यक्ति द्वारा उत्पन्न टकराव से अपने में व्यावहारिक समझ पैदा होती है। आत्मा की यह ऐसी शक्ति है कि टकराव के वक्त कैसे व्यवहार करना है, उसके सभी उपाय हमारी आत्मा बता देती है। एक बार आत्मज्ञान हो गया तो वह जाएगा नहीं। ऐसा करते-करते हमारी व्यावहारिक समझ बढ़ती जाएगी।  


निष्कर्ष 


1. टकराव से हमारी आत्मशक्ति ख़त्म होती है।

2. टकराव से मन में जो घाव पड़ गए हों, बुद्धि में जो घाव पड़े हों, उन्हें ठीक करना मुश्किल है।

3. टकराव से शक्ति नष्ट होती है।

4. बैरभाव से ही टकराव उत्पन्न होता है।

5. जिस व्यक्ति का टकराव और बैरभाव समाप्त हो गया, समझो उसका मोक्ष हो गया।


सादर,

केशव राम सिंघल 


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