राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 2020
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy)
2020 भारत में शिक्षा के लिए एक व्यापक रूपरेखा है। इसका उद्देश्य स्कूली और उच्च शिक्षा
में सुधार लाकर भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति (Global knowledge superpower) बनाना
है। इस नीति में कई प्रमुख विशेषताएँ हैं, जिनका उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार
करना और इसे सभी के लिए सुलभ बनाना है। इससे सम्बंधित प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं
-
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy)
2020 में विद्यालय-पूर्व (pre-school) शिक्षा से लेकर शोध-डॉक्टर की उपाधि तक की शिक्षा
को शामिल किया गया है।
- इस शिक्षा नीति में 3 साल की उम्र से शिक्षा शुरू करने
की बात कही गई है।
- इस शिक्षा नीति के अनुसार विद्यालय शिक्षा का ढाँचा
5+3+3+4 का होगा। इसके अनुसार छात्र 5 साल तक अपनी नींव मज़बूत करेंगे, फिर 3 साल तक
प्रारंभिक चरण में रहेंगे, फिर 3 साल तक मध्य चरण में रहेंगे, और आखिर में 4 साल तक
माध्यमिक चरण में रहेंगे।
- इस शिक्षा नीति के तहत, पाँचवीं कक्षा तक मातृभाषा ही
शिक्षा का माध्यम होगा। उदाहरण के लिए, तमिल मातृभाषा वाले छात्रों को तमिल में, गुजराती
मातृभाषा वाले छात्रों को गुजराती में, हिंदी मातृभाषा वाले छात्रों को हिंदी में शिक्षा
प्रदान की जाएगी।
- इस नीति में, शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया (Teaching-learning
process) में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया है।
- इस शिक्षा नीति के तहत, स्कूलों, कॉलेजों, और विश्वविद्यालयों
को निरीक्षण से मुक्ति दी जाएगी।
- इस शिक्षा नीति में सामाजिक और शैक्षिक रूप से वंचित
बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए 'समावेश निधि' बनाने का प्रस्ताव है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy)
2020 के तहत 2040 तक सभी उच्च शिक्षा संस्थान बहुविषयक संस्थान बन जाएँगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy)
2020 का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को समग्र, लचीला और भविष्य-उन्मुख बनाना है। एक स्कूल
को इस नीति के अनुरूप ढालने के लिए निम्नलिखित प्रमुख परिवर्तन जरूरी हैं -
1. शिक्षा का प्रारूप और पाठ्यक्रम में बदलाव
- 5+3+3+4 संरचना अपनाना, जिसमें -
- आधार (बालवाटिका) चरण (Foundation Stage) - 5 वर्ष
- 3-8 वर्ष (आंगनबाड़ी और प्राथमिक शिक्षा)
- प्रारंभिक चरण (Preparatory Stage) - 3 वर्ष - 8-11
वर्ष (कक्षा 3 से 5)
- मध्य चरण (Middle Stage) - 3 वर्ष - 11-14 वर्ष (कक्षा
6 से 8)
- द्वितीयक चरण (Secondary Stage) - 4 वर्ष - 14-18 वर्ष
(कक्षा 9 से 12)
इस दौरान कौशल आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना, जैसे कोडिंग,
कला, और विज्ञान परियोजनाएँ। साथ ही शिक्षा में बहुभाषीयता का उपयोग अर्थात प्रारंभिक
कक्षाओं में क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई।
2. परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली में सुधार
- वार्षिक परीक्षा की बजाय सतत और समग्र मूल्यांकन
(Continuous and Comprehensive Evaluation - CCE) पर जोर।
- कक्षा 10 और 12 की बोर्ड परीक्षाएं कठिनाई घटाकर और
मॉड्यूलर तरीके से आयोजित की जाएँगी।
- छात्रों की सृजनात्मकता, समस्याओं को हल करने की क्षमता,
और नैतिक मूल्यों का मूल्यांकन।
सतत और समग्र मूल्यांकन (CCE) मूल्यांकन पद्धति विद्यार्थियों
के समग्र विकास पर ध्यान देती है, जिसमें केवल शैक्षणिक प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि सह-पाठयक्रम
गतिविधियों, आचरण, और कौशल विकास को भी महत्व दिया जाता है।
सतत और समग्र मूल्यांकन (Continuous and
Comprehensive Evaluation - CCE) के प्रमुख उद्देश्य
- सतत मूल्यांकन (Continuous Evaluation): छात्रों की
प्रगति का नियमित और निरंतर मूल्यांकन करना। शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया के दौरान
सुधार के लिए त्वरित फीडबैक देना।
- समग्र मूल्यांकन (Comprehensive Evaluation): छात्रों
की बौद्धिक, भावनात्मक, सामाजिक, और शारीरिक क्षमताओं का आकलन करना। सह-पाठयक्रम गतिविधियों
जैसे खेल, कला, और नैतिक मूल्यों के विकास को भी शामिल करना।
सतत और समग्र मूल्यांकन का उद्देश्य परीक्षा आधारित तनाव
को कम करना और सीखने की प्रक्रिया को अधिक रोचक बनाना है, ताकि विद्यार्थियों के सर्वांगीण
विकास हो और शिक्षा केवल परीक्षा-आधारित प्रणाली से हटाकर समग्र विकास की ओर जाए। इसे
भारत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में लागू किया गया था, लेकिन इसे राष्ट्रीय शिक्षा
नीति (NEP) 2020 के अंतर्गत और अधिक उन्नत और व्यापक स्वरूप में परिवर्तित किया जा
रहा है, जिसमें मूल्यांकन को और अधिक लचीला और कौशल-आधारित बनाया गया है।
3. शिक्षकों का प्रशिक्षण और विकास
- शिक्षकों के लिए नियमित प्रशिक्षण (In-service
training) और कौशल विकास कार्यशालाएं।
- पेशेवर मानक (Professional standards) स्थापित करने
के लिए ‘National Professional Standards for Teachers (NPST)’ का पालन।
- शिक्षकों के पारदर्शी प्रदर्शन मूल्यांकन और करियर की
प्रगति के अवसर।
4. समग्र विकास पर ध्यान
- कला, खेल, योग, और नैतिक शिक्षा का अनिवार्य रूप से
समावेश।
- व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना, खासकर माध्यमिक स्तर
पर।
- सह-पाठ्यतर और पाठ्येतर (co-curricular and
extra-curricular) गतिविधियों में भागीदारी को प्रोत्साहन।
5. डिजिटल शिक्षा का उपयोग और बुनियादी ढाँचे का उन्नयन
- ई-लर्निंग और ब्लेंडेड लर्निंग (ऑफलाइन और ऑनलाइन शिक्षण
का मिश्रण) को अपनाना।
- स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम, डिजिटल लाइब्रेरी, और
इंटरनेट की सुविधा।
- डिजिटल डिवाइड को पाटने के लिए प्रौद्योगिकी-सक्षम लर्निंग
का विस्तार।
यहाँ डिजिटल डिवाइड का अर्थ है समाज में उन लोगों के बीच
का अंतर जिनके पास सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT), जैसे इंटरनेट, कंप्यूटर या स्मार्टफोन
की सुविधा है और उन लोगों के बीच, जिन्हें ये सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं या जो इनका
सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाते।
डिजिटल डिवाइड के कारण
- आर्थिक असमानता - कुछ लोग तकनीकी उपकरण खरीदने के लिए
आर्थिक सक्षम नहीं होते।
- भौगोलिक कारक - दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट
कनेक्टिविटी सीमित होती है।
- शैक्षिक अंतर - तकनीक का उपयोग करने के लिए आवश्यक ज्ञान
और प्रशिक्षण में कमी।
- विकास का असमान वितरण - शहरी क्षेत्रों में तकनीकी पहुँच
बेहतर होती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित।
डिजिटल डिवाइड पाटने का अर्थ है कि इस अंतर को कम करने
के लिए प्रयासों को लागू करना, जिनसे हर व्यक्ति को प्रौद्योगिकी का समान अवसर और प्रशिक्षण
मिले। उदाहरण के तौर पर, सरकार द्वारा कम कीमत पर इंटरनेट सेवाएँ उपलब्ध कराना, स्कूलों
में ऑनलाइन लर्निंग के लिए उपकरण और कनेक्टिविटी प्रदान करना, ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों
में डिजिटल साक्षरता अभियान चलाना।
कोविड (COVID-19) महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा एक आवश्यकता
बन गई। लेकिन जिन छात्रों के पास स्मार्टफोन या इंटरनेट की सुविधा नहीं थी, वे शिक्षा
से वंचित रह गए। इस डिजिटल डिवाइड को पाटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई प्रयास
किए, जैसे - प्रसार भारती और दूरदर्शन के माध्यम से कक्षाएँ प्रसारित करना, स्कूलों
और एनजीओ द्वारा मोबाइल फोन और टैबलेट का वितरण, जनता के लिए मुफ्त वाई-फाई हॉटस्पॉट
का प्रावधान। इस प्रकार, डिजिटल डिवाइड को पाटने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है
कि हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी आर्थिक या भौगोलिक स्थिति में हो, प्रौद्योगिकी के
फायदों का लाभ उठा सके।
6. समावेशी और समान शिक्षा
- विकलांग छात्रों के लिए समावेशी शिक्षा की व्यवस्था।
- लिंग समानता और कमजोर वर्गों (SC/ST/OBC/EWS) के लिए
विशेष प्रावधान।
- मानसिक स्वास्थ्य के लिए काउंसलिंग सेवाएं उपलब्ध कराना।
7. विद्यालयी प्रशासन और स्वायत्तता
- स्कूल प्रबंधन समितियों (School Management
Committees - SMC) को मजबूत करना।
- स्कूलों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना ताकि वे स्थानीय
आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम को अनुकूलित कर सकें।
- अभिभावकों और समुदाय के साथ सक्रिय सहभागिता।
8. नैतिक और पर्यावरणीय शिक्षा पर ध्यान
- नैतिक मूल्यों और पर्यावरणीय जागरूकता को पाठ्यक्रम
में शामिल करना।
- प्रायोगिक शिक्षा जैसे सामुदायिक परियोजनाओं और सेवा-कार्य
का प्रावधान।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति का कार्यान्वयन
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत 5+3+3+4 शैक्षणिक
संरचना को पूरी तरह लागू करने के लिए कोई निश्चित अंतिम तिथि तय नहीं की गई है। हालाँकि,
इसे चरणबद्ध तरीके से 2023-24 से लागू किया जा रहा है और कई राज्यों ने प्राथमिक से
लेकर उच्च शिक्षा तक अलग-अलग स्तरों पर इस ढाँचे को अपनाने की पहल शुरू कर दी है। चरणबद्ध
कार्यान्वयन में सबसे पहले आधार (बालवाटिका) चरण (Foundation Stage) की शुरुआत की गई
है, जिसमें प्ले स्कूल और नर्सरी को शामिल किया गया। इसके बाद प्राथमिक और माध्यमिक
स्तर पर बदलाव हो रहे हैं, जहाँ नई पाठ्यचर्या और मूल्यांकन प्रणाली अपनाई जा रही है।
इसके साथ ही, राज्यों को अपनी नीतियों और शैक्षणिक ढांचे के अनुसार NEP को लागू करने
की स्वतंत्रता दी गई है, जिससे गति और प्रक्रियाओं में विविधता आ रही है। विशेष रूप
से कुछ राज्य, जैसे उत्तराखंड और हरियाणा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की अपेक्षाओं
को तेजी से लागू कर रहे हैं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी परिवर्तन हो रहे हैं, जहाँ
4-वर्षीय स्नातक कार्यक्रम और क्रेडिट बैंक जैसी पहलें अपनाई जा रही हैं।
इस व्यापक बदलाव के पूर्ण कार्यान्वयन में कई साल लग सकते
हैं, क्योंकि प्रत्येक राज्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के साथ अपनी नीतियों
का तालमेल बिठाना होगा और विभिन्न बुनियादी ढाँचे और प्रशिक्षण की आवश्यकताएँ पूरी
करनी होंगी। इसलिए, यह एक सतत प्रक्रिया है, जो 2030 तक पूरी तरह कारगर हो सकती है,
लेकिन इस संदर्भ में समय-सीमा लचीली रखी गई है।
सार
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 भारत की नवीनतम शिक्षा
नीति है, जिसका उद्देश्य स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों क्षेत्रों में परिवर्तन लाना
है, ताकि शिक्षा अधिक समावेशी, लचीली और कौशल-आधारित हो सके। इस नीति का उद्देश्य भारत
की शिक्षा प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना है, जिसमें सृजनात्मकता, आलोचनात्मक
चिंतन, और व्यावहारिक कौशल पर जोर दिया गया है। स्कूलों को इन परिवर्तनों को अपनाने
के लिए शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों और प्रशासन के बीच सहयोग और निरंतर प्रयास की
आवश्यकता होगी।
सादर,
केशव राम सिंघल
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