बुधवार, 18 अगस्त 2021

विमर्श - अफगानिस्तान में फिर से तालिबान - # २

 अफगानिस्तान में फिर से तालिबान - #

'''''''''''

विमर्श

'''''''''''

पहली बार ऐसा हुआ कि संयुक्त राष्ट्र (UN) के साथ पूरी दुनिया ने अफगानिस्तान की बरबादी का तमाशा देखा। ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्र (UN) अपने दायित्व से भटक गया है।

-----

अफगान सरकार का पतन केवल अमरीका की सैन्य विफलता का सूचक है, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा करने में भी अमरीकी प्रयास काम नहीं आए।

- जोएल साइमन, कार्यकारी निदेशक, कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स, वाशिंगटन पोस्ट

-------

एक अनुमान के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबान के प्रभुत्व से पाकिस्तानी आतंकी संगठनों को नई ताकत मिल सकती है, क्योंकि वह उनमें अपना 'दोस्त, दार्शनिक और मार्गदर्शक' खोजते रहे हैं। लश्कर और जैश--मोहम्मद जैसे संगठनों को आर्थिक मदद बढ़ सकती है। ऐसा अनुमान है कि इनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जा सकता है।

-----

पिचहत्तर हजार तालिबानी लड़ाकों के समक्ष साढ़े तीन लाख की अफगान सेना का जंग में मैदान छोड़ना हैरानी में डालता है।

------

अमेरिका ने अफगानिस्तान में हुई घटनाओं के लिए अफगानिस्तान सरकार की कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति को जिम्मेदार ठहराया है। अमरीका के अनुसार पिछले बीस साल में अफगान सरकार ने ग्रामीण इलाकों से तालिबानी प्रभाव कम करने के कोइ प्रयास नहीं किए।

-----

अमरीकी कांग्रेस को सौपी गयी एक रिपोर्ट के अनुसार अफगान फ़ौज और अफगान पुलिस का मैदान छोड़कर भागने का इतिहास है।

-----

अफगानिस्तान में व्यापक भ्रष्टाचार ने अपनी जड़े जमा रखी हैं।

-----

अफगान एयरफोर्स अपने २११ विमानों की सुरक्षा करने में ही सक्षम नहीं है।

-----

अफगानिस्तान के ग्रामीण और कबिलाई इलाकों में सरकार की छवि अक्षम और भ्रष्ट सरकार की होने की वजह से अफगान सरकार ने ग्रामीण इलाकों और कबिलाई इलाकों में समर्थन खो दिया था। तालिबान को इन इलाकों से समर्थन मिला।

-----

पाकिस्तान की नोबेल पुरूस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने अफगानिस्तान के हालात पर चिंता जताते हुए ट्वीट किया, मैं स्तब्ध हूँ, परेशान हूँ। मुझे महिलाओं, अल्पसंख्यकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बहुत ज्यादा चिंता है। मेरी दुनिया से अपील है कि अफगानिस्तान में युद्ध रोका जाए। लोगों और शरणार्थियों को सुरक्षित निकाला जाए। (१६ अगस्त २०२१)

-----

वाशिंगटन में १६ अगस्त २०२१ को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान एक पूर्व अफगान पत्रकार हमदर्फ ग़फ़ूरी ने कहा - हम बीस साल पीछे हो गए हैं। तालिबान के नेता पाकिस्तान का साथ देकर पूरे मध्य एशिया में आतंक मचाएंगे। (१६ अगस्त २०२१)

-----

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सोमवार १६ अगस्त २०२१ को एक ट्वीट कर केंद्र सरकार से अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व भारत के लिए अशुभ संकेत है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हमारे देश के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह भारत के खिलाफ चीन-पाक गठजोड़ को मजबूत करेगा। संकेत बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं, हमें अतिरिक्त सतर्क रहने की जरूरत है।' (१६ अगस्त २०२१)

-----

जुलाई २०२१ से ही अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी के बाद से, तालिबान ने तेजी से देश के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। जैसे ही देश के राष्ट्रपति खुद अफगानिस्तान से भाग गए और वहाँ सरकार गिर गई। अफगान बलों ने भी सरेंडर करते ही अफगानिस्तान में इस वक्त अफरा- तफरी का माहौल बन गया। वहाँ के स्थानीय लोग देश भागने के लिए एयरपोर्ट पर इकट्ठे हो गए। तालिबान लड़ाकों की बढ़ती ताकत के बाद अफगान महिलाओं के भीतर भी डर और अधिक बढ़ गया है। अफगानिस्तान में महिलाओं के अंदर के इस खौफ को देखते हुए अफगान महिला नेटवर्क की संस्थापक महबूबा सिराज ने चिंता जताते हुए कहा कि अफगान की यह दयनीय हालत देख लगता है कि यह मुल्क 200 साल पीछे चला जाएगा। इसके साथ ही महबूबा सिराज कहती हैं कि मैं निराश नहीं हूँ कि अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से जा रहे थे, उनके जाने का समय रहा था। वे अमेरिका और नाटो बल के लिए आगे कहती हैं कि हम चिल्ला रहे हैं और कह रहे हैं कि खुदा के वास्ते कम से कम तालिबान के साथ कुछ करो, उनसे किसी तरह का आश्वासन लो, एक ऐसा तंत्र बने जो महिलाओं के अधिकारों की गारंटी दे। महबूबा सेराज ने यह भी कहा कि दुनिया के नेताओं को शर्म आनी चाहिए कि उन्होंने अफगानिस्तान के साथ क्या किया, उन्हें क्या करने की जरूरत है, उन्होंने उस देश के साथ क्या किया। उन्होंने आगे कहा कि किसी ने भी हमारी स्थिति पर ध्यान नहीं दिया और उन्होंने सिर्फ एक निर्णय लिया। महबूबा सिराज ने यह कहकर निष्कर्ष निकाला कि अफगानिस्तान के साथ जो हो रहा है, वह (तालिबान) इस देश को 200 साल पीछे कर देगा, और एक पलायन होगा जिसके लिए विश्व के नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। (१७ अगस्त २०२१)

-----

एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान लड़ाके घर-घर जाकर अपने लड़ाकों की शादी के लिए १५ से ४५ साल की अविवाहित महिलाओं की लिस्ट लेकर जा रहे हैं क्योंकि वे अविवाहित महिलाओं को 'कहानीमत' या 'युद्ध की लूट' मानते हैं, जिसे विजेताओं के बीच बाँटने की परम्परा है। तालिबान के सांस्कृतिक आयोग का एक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें लिखा है कि कब्जे वाले इलाके के सभी इमाम और मुल्ला तालिबान को तालिबान लड़ाकों से शादी करने के लिए १५ साल से ऊपर की लड़कियों और ४५ साल से कम उम्र की विधवाओं की लिस्ट मुहैया कराएं। अफगानिस्तान के स्थानीय निवासियों ने कहा कि नए विजय प्राप्त क्षेत्र में, तालिबान ने महिलाओं की आवाजाही पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया है। उन्होंने आदेश दिया है कि महिलाएं बिना पुरुष के घर से बाहर नहीं जा सकती हैं। (१७ अगस्त २०२१)

-----

काबुल से दिल्ली पहुँची एक अफगान सांसद ने कहा कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि दुनिया ने अफगानिस्तान को अकेले छोड़ दिया है। उसने आगे कहा कि उसके सभी दोस्त मारे जाने वाले हैं, तालिबान सभी को मार डालेगा। उन्होंने आगे कहा कि अफगानिस्तान की महिलाओं को अब कोई अधिकार नहीं होगा। (१७ अगस्त २०२१)

-----

पश्तो भाषा में 'तालिबान' का शाब्दिक अर्थ

तालिबान = छात्र (Student), शिक्षार्थी (Scholar)

शाब्दिक अर्थ से परे तालिबान वे लोग हैं या उन लोगों का समूह है, जिनका धार्मिक कट्टरपंथ इतना प्रबल है कि उनको लगता है कि लोगों के जीवन जीने का ढंग, रहन-सहन और धार्मिक आस्थाएँ केवल उसी मानक (standard) के अनुसार होनी चाहिए, जो उनकी आस्थाओं के अनुरूप हैं। वे इस्लामिक विचारधारा में कट्टरपंथ के प्रबल समर्थक हैं। उनकी विचारधारा उन्हें कट्टरपंथी और चरमपंथी बनाती है। वे हिंसात्मक तरीके अपनाते हैं और उनकी हत्या करना अपना धर्म (कर्तव्य) समझते हैं, जो उनकी बात नहीं मानते। उनका एकमात्र लक्ष्य है अपना प्रभुत्व ज़माना, जिसके लिए सत्ता हासिल करना चाहते हैं।

-----

चीन का अफगानिस्तान को लेकर क्या रुख हो सकता है, यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से लौटने के बाद वहाँ कुछ समय के लिए शून्य निर्मित होगा और यह उसके लिए एक अच्छा अवसर हो सकता है। चीन इस स्थिति का लाभ लेने का प्रयास करेगा क्योंकि वह नहीं चाहेगा कि कोई अन्य देश वहाँ अपना आधार स्थापित करे। चीन के लिए  अमेरिका के मुकाबले अफगानिस्तान को निर्देशित करना और वहाँ संचालन करना आसान होगा। चीन के शिंगझिनयांग प्रान्त की लगभग ८० मील की सीमा अफगानिस्तान के साथ साझा होती है। इसलिए चीन यह चाहेगा कि चीन में वीगर आंदोलन को हवा देने, आतंकवादी गतिविधियों और षड्यंत्र से रोका जाए क्योंकि उनका मानना है कि शिंगझिनयांग का मुस्लिम आखिरकार चीन में तालिबान का नैसर्गिक समर्थन आधार था।  (१९ अगस्त २०२१)

 

 

 

- केशव राम सिंघल

 

#अफगानिस्तान_में_फिर_से_तालिबान

 

साभार स्रोत -

 

- दैनिक राष्ट्रदूत

- आउटलुक पत्रिका

- राजस्थान पत्रिका

- दैनिक नवज्योति

- दैनिक भास्कर

- पंजाब केसरी

- अन्य पत्र-पत्रिकाएं, इंटरनेट और टीवी समाचार

कोई टिप्पणी नहीं: