सोमवार, 8 मई 2023

बातों ही बातों में - 03

बातों ही बातों में - 03 
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केशव राम सिंघल
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हर वक्तव्य, हर बात का महत्त्व है, किसी का कम, किसी का अधिक। आप पढ़े और सोचे, यही उद्देश्य है 'बातों ही बातों में' श्रृंखला का।
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संस्कृतियों के टकराने से सभ्यताएँ खत्म नहीं होतीं। 
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ह्रदय शुद्ध हो तो होने वाले कर्म भी सतगुण से भरे होंगे। 
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चक्र सृष्टि की सर्वोत्तम और अद्भुत आकृति है, जिसका आदि-अंत कुछ नहीं है। 
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समुद्र का मंथन देवताओं और दैत्यों ने मिलकर किया था जिससे चौदह रत्न प्राप्त हुए थे। 
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समुद्र-मंथन से सबसे पहला रत्न हलाहल (कालकूट) विष निकला था, जिसकी ज्वाला बहुत ही तीव्र थी। इस विष को भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था। 
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समुद्र-मंथन से निकलने वाले अन्य रत्न निम्न थे - सुरभि कामधेनु गाय, श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत श्वेत हाथी, कौस्तुभ मणि, दुनिया का पहला धर्मग्रंथ कल्पद्रुम, प्रसिद्ध सुंदर अप्सरा रंभा, समृद्धि (लक्ष्मी), वारुणी नामक मदिरा,  तपस्वी अत्रि और अनुसूया की संतान चन्द्रमा, पारिजात (हरसिंगार) वृक्ष, पांचजञ्य शंख, भगवान धन्वंतरि वैद्य के साथ अनेक औषधियाँ। 
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समुद्र-मंथन के अंत में अमृत का कलश निकला था, जो चौहदवाँ रत्न था। 
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कल्पना की शक्ति मानसिक स्वतंत्रता का प्रतीक होती है और रचनाकारों के लिए एक बहुत अहम स्रोत होती है। 
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सम्प्रेषण या संसार शब्दों पर ही निर्भर नहीं। 
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ब्रिटेन का चर्चिल भारतीय महात्मा गाँधी से घृणा करता था। चर्चिल कहता था - गाँधी अधनंगा फ़कीर है। ये वही गाँधी थे जो साल 1931 में जब गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए तो वहाँ के सम्राट जॉर्ज पंचम ने उन्हें बकिंघम पैलेस में चाय पर बुलाया और अंग्रेज़ क़ौम ये देख कर उस समय दंग रह गई कि इस औपचारिक मौक़े पर भी गाँधी एक धोती और चप्पल पहने राजमहल पहुँचे। 
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त्याग यह नहीं है कि मोटे और खुरदरे वस्त्र पहन लिए जाएँ और सूखी रोटी खाई जाए, त्याग तो यह है कि अपनी इच्छा, अभिलाषा और तृष्णा को जीता जाए।  - सुफियान सौरी
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लोकगीतों में संवेदना की वह तपिश होती है, जिसकी आँच हर ह्रदय को लगती है। लोकगीतों में अनुभूतियों की वह शीतलता होती है जो संघर्षों से जूझते, श्रमशान्त व्यक्ति के लिए सुधा बनकर बरसती है।  
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संस्कृति समाज का दर्पण है। संस्कृति का संरक्षण ही समाज की सुरक्षा है।  
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इतिहास को खोद-खोद कर मत निकालो। इससे अशांति फैलेगी।  
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मैं श्रेष्ठ हूँ, यह आत्मविश्वास है। मैं ही श्रेष्ठ हूँ, यह अभिमान है। 
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पैरों में जूता हो या ना हो, हाथों में किताब जरूर होनी चाहिए।  - बाबा साहब अम्बेडकर 
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डरा हुआ आदमी दरअसल मरा हुआ आदमी होता है। 
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अतीत को हम बनाए नहीं रख सकते। जो कल था, वह आज नहीं है। जो आज है, वह कल नहीं होगा। परिवर्तन नियति का नियम है। स्थायित्व शाश्वत नहीं, परिवर्तन शाश्वत है। 
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शिक्षा की परिकल्पना जाति, धर्म, वर्ग, राजनीति से ऊपर उठकर होनी चाहिए। शिक्षा का आधार नैतिकता होनी चाहिए, जो एक यथार्थ मानव का सृजन कर सके और सभी को समाहित करने की शक्ति शिक्षा-प्रणाली में होनी चाहिए। 
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देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं। देश हम और आप हैं। 
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अडानी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने जाँच समिति बैठा दी है तो फिर कांग्रेस जेपीसी की माँग क्यों कर रही है? यह प्रश्न मेरे मस्तिष्क में बार-बार आता रहा। अब तो एनसीपी नेता शरद पवार ने भी अडानी मामले में जेपीसी की माँग का समर्थन नहीं किया है। इस सम्बन्ध में कांग्रेस ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय की तरफ से बनाई गई समिति का जाँच का दायरा बहुत सीमित है।
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सरकार के सामने खड़ा रहता एक मुद्दा  - येन केन प्रकारेण प्रतिरोध दबाना है। 
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दुःखद स्थिति -  राजनीतिक दल परिवारवाद का विरोध करते हैं, पर टिकट परिवारवाद के आधार पर देते हैं। 
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रूसी लेखक रसूल हमजातोव ने एक बार कहा था - "मेरी कविता मेरा सृजन करती है और मैं अपनी कविता का।" इस प्रकार देखा जाए तो कवि और कविता एक दूसरे के सृजक हैं। इसी प्रकार हम कह सकते हैं कि कृति रचनाकार (कृतिकार) का सृजन करती है और रचनाकार (कृतिकार) कृति का। दूसरे शब्दों में - कला कलाकार का सृजन करती है और कलाकार कला का। 
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युग चार हैं - सत-युग, त्रेता-युग, द्वापर-युग और कलयुग। सतयुग कलियुग से चार गुना लंबा है। 
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रामायण की घटनाएँ त्रेता-युग में घटित हुई थी। फिलहाल कलियुग चल रहा है। 
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आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत के युद्ध 3136 ईसा पूर्व को हुआ था। महाभारत युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है। भागवत पुराण ने अनुसार श्रीकृष्‍ण के देह छोड़ने के बाद 3102 ईसा पूर्व कलिकाल का प्रारंभ हुआ था। महाभारत द्वापर में हुआ था।
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शेष फिर ,,,,,,,,,,,,, 



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