शुक्रवार, 5 मई 2023

फाँसी की सजा

फाँसी की सजा

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हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है। व्यक्ति अपनी खुद की जान नहीं ले सकता, आत्महत्या भी कानूनन अपराध है। फाँसी की सजा अमानवीय होने के साथ मानव के जीने के अधिकार और मानव सम्मान का उल्लंघन है। कई देशों ने फाँसी की सजा पर रोक लगा दी है। 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बताया था कि 170 देशों ने या तो फाँसी को समाप्त कर दिया है या इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। एक जानकारी के अनुसार 29 देश ऐसे भी हैं जहाँ मृत्युदंड या फाँसी की सजा का प्रावधान है, लेकिन इनमें से किसी ने एक दशक से इस दंड का इस्तेमाल नहीं किया है। 7 देश ऐसे हैं जहाँ फाँसी अपवाद स्वरूप है, जिसे गंभीर अपराध, जैसे युद्ध के दौरान की स्थिति, के लिए दिया जा सकता है। 56 देशों ने मृत्युदंड के कानूनी प्रावधानों को बना रखा है। भारत, मलेशिया, बारबाडोस, बोत्सवाना, तंजानिया, जाम्बिया, जिम्बाम्बे, दक्षिण कोरिया ऐसे देश हैं जहाँ मृत्युदंड फाँसी के रूप में दी जाती है। अफगानिस्तान और सूडान में मृत्युदंड पत्थर मारकर, गोली मारकर या फाँसी देकर दी जाती है। बांग्लादेश, कैमरून, सीरिया, युगांडा, कुवैत, ईरान, मिस्र में मृत्युदंड गोली मारकर या फाँसी देकर दी जाती है। यमन, टोगो, तुर्केमिस्तान, थाईलैंड, बहरीन, चिली, इंडोनेशिया, घाना, अर्मीनिया में गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। चीन में मृत्युदंड जहरीला इंजेक्शन और फाँसी देकर दिया जाता है। फिलीपींस में गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। अमेरिका में बिजली के करेंट से, गैस से, फाँसी देकर या गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। सऊदी अरब में सिर कलम कर मृत्युदंड दिया जाता है।

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कुछ लोगों का मानना है कि मृत्युदंड पर पूरी तरह से रोक होनी चाहिए। भारत में भी लम्बे समय से फाँसी की सजा ख़त्म करने या मृत्यु के लिए कम पीड़ादायक विकल्प की माँग उठती रही है। वकील ऋषि मल्होत्रा ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर फाँसी की सजा देने के स्थान पर सभ्य और मर्यादित विकल्प तलाशने की माँग की थी। इस मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने 27 मार्च 2023 को केंद्र सरकार से उस कानून के बारे में अपना पक्ष रखने को कहा था, जो मृत्युदंड के मामले में मौत के लिए दोषी को सांस रुकने तक फाँसी की इजाजत देता है। केंद्र सरकार ने मंगलवार 2 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फाँसी की जगह कम पीड़ादायक मौत का विकल्प तलाश करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर विचार कर रही है। अब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जुलाई 2023 में होगी।

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सभ्य समाज में सजा की संकल्पना अपराधी को सुधारने के उद्देश्य से की गई है, न कि उनकी जान लेकर। फाँसी की सजा वह उद्देश्य पूरा नहीं करती, जिसके लिए सजा की संकल्पना की गई है। एक अध्ययन से यह भी जानकारी सामने आई कि कुछ लोगों को फाँसी की सजा दे दी गई, पर बाद में पता चला कि जिस अपराध के लिए उन्हें फाँसी दी गई, वह अपराध उन्होंने नहीं किया था। इस प्रकार निर्दोष लोगों को फाँसी की सजा दे दी गई, जो एक ऐसा गलत कदम था जिसे सुधारा नहीं जा सकता। फाँसी की सजा एक बदला लेने वाली मानसिकता है, जिससे अपराधी का सुधार भी संभव ही नहीं है। किसी भी सभ्य समाज को बदला लेने वाली मानसिकता से बचना चाहिए।

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जैसा कि बताया गया है कि 170 देशों ने या तो फाँसी को समाप्त कर दिया है या इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। क्या हम उन देशों में आ सकते हैं जिन्होंने फाँसी को समाप्त कर दिया है या इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है? हालाँकि हमारे देश में लम्बे समय से फाँसी की सजा ख़त्म करने या फाँसी के लिए कम पीड़ादायक विकल्प की माँग उठती रही है।


- केशव राम सिंघल 



 

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