सोमवार, 20 अप्रैल 2020

लघुकथा - मोंटू की समस्या का हल


लघुकथा

मोंटू की समस्या का हल

दूसरे दिन सुबह सभी साढ़े पांच बजे उठ गए थे। अपने दैनिक क्रिया-कलापों से निवृत होने के बाद सुरेश और दोनों बच्चों ने हल्की कसरत की। थोड़ी देर बाद सुरेश जब मोंटू के कमरे में गया तो उसने पाया कि मोंटू उदास बैठा है। सुरेश ने मोंटू से पूछा - 'क्या बात है बेटा? उदास क्यों हो?' मोंटू ने कहा - 'पापा, ऐसे कैसे चलेगा? 21 दिन लॉक डाउन? मैं बोर हो गया हूँ? मुझे मेरे दोस्तों की याद आ रही है। हम रोज शाम को आधा-पौन घंटा क्रिकेट खेलते हैं। कल तो खेलने गए नहीं थे, आज भी नहीं जा पाएंगे, आज ही क्या अगले कई दिनों तक बाहर खेलने को नहीं मिलेगा।' सुरेश ने कहा, 'मोंटू ! तुम सही कहते हो। पर जानते हो यह कोरोना वायरस का संक्रमण कितना खतरनाक है। बहुत से विकसित देश भी इस वायरस से परेशान हैं। इससे बचाव का एकमात्र रास्ता है - सोशल डिस्टैन्सिंग। हो सकता है कि लॉकडाउन इक्कीस दिनों से आगे भी बढ़ जाए। यह सब हमारी सुरक्षा के लिए ही तो सरकार कर रही है। अच्छा यह बताओ कि कल का दिन तुम्हारा कैसा बीता? कल तुमने क्या-क्या किया? मोंटू बोला, 'पापा ! कल का दिन तो पता ही नहीं चला। आपने सुडोकु सिखाया था ना। मैंने पुराने अखबारों में सुडोकु की कई पहेलियाँ सॉल्व की, पर एक पहेली में अटक गया। उसके बाद मैंने छोड़ दिया। आज भी दुपहर में कुछ समय सुडोकु सॉल्व करूँगा।' 'अच्छा, पढ़ाई पर भी ध्यान है या नहीं?' सुरेश ने प्यार से मोंटू से पूछा। 'पापा ! आपको तो मालूम है कि मैथ्स में तो मेरा इंटरेस्ट है, इसलिए उसके अलजेब्रा के सवाल मैंने सॉल्व किए, पर हिस्ट्री पढ़ने में जोर आता है।' सुरेश मोंटू की इस बात पर थोड़ा विचार करने लगा, पर उसी समय मोंटू की मम्मी कमरे में आई और बोली, 'नाश्ता तैयार है, आकर कर लो।' सभी डाइनिंग रूम की ओर बढ़े, जहाँ शीनू पहले से ही बैठी हुई थी। सभी चारों एक रूम में, पर दूर-दूर इस तरह बैठे कि उन सब में सोशल डिस्टैन्सिंग स्पष्ट लगे। नाश्ता करते हुए सुरेश ने मोंटू की समस्या का जिक्र अपनी पत्नी से किया तो वह बोली कि कल मैंने घर वाले मोबाइल और मेरे मोबाइल पर वीडियो चैट का एप्प डाउनलोड किया है। इन दोनों में यूट्यूब भी है और गूगल भी है। गूगल से सर्च कर मोंटू अपने कोर्स के किसी भी पाठ का मैटर देख-पढ़ सकता है और यूट्यूब पर इससे सम्बंधित वीडियो देख सकता है। फिर उसने मोंटू से उस पाठ का नाम पूछा जिसमें उसे जोर आ रहा था। मोंटू ने पाठ का नाम बताया तो सुरेश की पत्नी ने घर वाले मोबाईल पर उस पाठ का एक वीडियो दिखाते हुए कहा, "मोंटू ! क्या यही चैप्टर है? सिविलाइजिंग दी नेटिव, एजुकेटिंग दी नेशन?" मोंटू बोला, "हाँ, मम्मा !" "ये लो, देखो, सीखो और मस्त रहो," वह बोली। फिर सुरेश की देखकर बोली, "मैंने सोचा है कि घर वाला मोबाईल अब मोंटू के पास रहेगा, शीनू को मैं अपना मोबाईल दे दिया करूंगी, ताकि ये दोनों मोबाईल का इन दिनों सदुपयोग कर सकें।" सुरेश मन ही मन बहुत खुश था कि उसकी पत्नी ने यह समस्या कितने अच्छे तरीके से सुलझा दी।

कहानीकार लेखक - केशव राम सिंघल ©

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डिस्क्लेमर - यह कहानी कहानीकार लेखक की कल्पना के आधार पर लिखी गई है। किसी भी घटना से इस कहानी की कोई भी प्रासंगिकता होना एक संयोग है।

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