रविवार, 13 दिसंबर 2020

तीन कृषि कानून और किसान संगठनों की माँग

तीन कृषि कानून और किसान संगठनों की माँग

पिछले कई महीनों से हजारों की संख्या में किसान निम्न तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं -

(1) आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून

इस कानून में अनाज, दाल, तिलहन, खाने वाला तेल, आलू-प्याज को आवश्यक वस्तु की सूची से हटाने की व्यवस्था है। सरकार की ओर से माना जा रहा है की इस कानून के प्रावधानों से किसान को सही कीमत मिल सकेगी। किसान संगठनों का सोचना है कि इस कानून के कारण जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा और पूंजीपति कम कीमत पर कृषि उपज खरीदकर उसकी जमाखोरी कर सकेंगे, फलस्वरूप बाजार में माल की कमी के कारण मूल्यों में अत्यधिक वृद्धि होगी। 

(2) कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून

इस कानून के अंतर्गत किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेचने के लिए स्वतन्त्र रहेंगे। साथ ही अंतरराज्य कृषि व्यापार बढ़ाने की व्यवस्था है।

(3) कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून

इस कानून में कृषि करारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क की व्यवस्था की गयी है।  यह कानून कृषि उपज की बिक्री, फ़ार्म सेवाओं, कृषि व्यापार फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और एक्सपोर्टर्स के साथ किसानों को जुड़ने की व्यवस्था करता है। कृषि करारों के अंतर्गत किसानों को गुणवत्ता बीज की सप्लाई, तकनीकी मदद, फसल की निगरानी, कर्ज की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा सम्मिलित होगी। 

इन कानूनों का सबसे ज्यादा विरोध शुरू में पंजाब और हरियाणा में हुआ। इस मुद्दे पर शिरोमणी अकाली दल एनडीए से अलग हो गयी। अकाली दल की केबिनेट मिनिस्टर हरसिमरत कौर ने इन कानूनों के विरोध में इस्तीफा भी दिया।

किसान क्यों कर रहे हैं विरोध?

इन कानूनों को लेकर किसान संगठनों और विरोधी दलों का कहना है कि सरकार मंडी व्यवस्था ख़त्म कर किसानों को मिलने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को ख़त्म करना चाहती है, हालांकि सरकार का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) रहेगा।

इस मुद्दे पर किसान संगठनों और सरकार के बीच अनेक दौर की बातचीत चली, पर बातचीत बेनतीजा ही रहीं। किसान संगठनों ने 8 दिसंबर 2020 को भारत बंद का आयोजन किया।  9 दिसंबर 2020 को  केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को लिखित में प्रस्ताव भी भेजा, पर किसान संगठन संतुष्ट नहीं हैं। सरकार ने जो प्रस्ताव दिया है उनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) आधारित वर्त्तमान खरीद व्यवस्था को जारी रखना और नए कृषि कानूनों में बदलाव की पेशकश है। किसान संगठनों की मांग है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द करे क्योंकि इससे कृषि करारों और जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। कृषि करारों से किसान पूंजीपतियों के चंगुल में फंस जाएगा। किसान संगठन यह भी मांग कर रहे हैं कि नया कानून बनाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी दी जाए। मंडी समितियों द्वारा किसान की उपज खरीद प्रक्रिया बाधित नहीं हो।  बिजली संशोधन विधेयक 2020 नहीं लाया जाए, किसानों को बिजली सब्सिडी मिले, और पराली जलाने पर जुर्माने की प्रावधान की जगह पराली के निपटान का उपयुक्त समाधान किया जाए।  

सरकार का पक्ष 

दिनांक 10 दिसंबर 2020 को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आश्वस्त किया है कि एमएसपी चलती रहेगी। इस पर कोई खतरा नहीं है। एमएसपी पर रबी और खरीफ फसल की खरीद इस साल बहुत अच्छे से हुई। इस बार रबी की फसल का बुआई के समय ही एमएसपी घोषित कर दिया गया। मोदी जी के नेतृत्व में एमएसपी को डेढ़ गुना कर दिया गया है। साथ ही कृषि मंत्री ने कहा कि कई बार ये कहा गया कि किसानों की भूमि पर बड़े उद्योगपति कब्ज़ा कर लेंगे। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पहले से ही देश के कई राज्यों में होती रही है। इस कानून के अंतर्गत एग्रीमेंट प्रोसेसर और किसान की फसल बीच ही होगा,किसान की भूमि से संबंधित कोई करार इसमें नहीं हो सकता। कृषि कानून एमएसपी सिस्टम और एपीएमसी मंडियों को प्रभावित नहीं करते हैं। किसान फसल उगाने से पहले ही उपज के दाम तय कर सकते हैं। खरीदारों को समय पर भुगतान करना होगा वरना क़ानूनी कारवाही का सामना करना पडेगा। किसान अपनी इच्छानुसार कभी भी समझौते को समाप्त कर सकते हैं। किसानों को लगता था कि उनकी एपीएमसी की मंडिया खत्म हो जाएंगी, जब किसी ट्रेड पर टैक्स लगता है तो व्यापारी किसान से ही टैक्स की वसूली करता है अगर टैक्स नहीं लगेगा तो इसका फायदा किसान को होगा। किसानों को लगता था कि कोई भी पैन कार्ड के जरिए खरीदकर भाग जाएगा तो हम क्या करेंगे। इस शंका के समाधान हेतु राज्य सरकार को शक्ति दी जाएगी कि वह इस प्रकार की परिस्थिति में कोई भी नियम बना सकते हैं। एमएसपी को ख़त्म नहीं किया जाएगा। एपीएमसी मंडियों को बंद नहीं किया जाएगा। किसान की जमीन किसी भी कारण से कोई भी छीन नहीं सकता है। खरीदार किसान की भूमि में कोई परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। ठेकेदार पूर्ण भुगतान के बिना अनुबंध समाप्त नहीं कर सकते

किसानों के कुछ भ्रमों को लेकर कृषि मंत्री ने सरकार का पक्ष  सामने रखा है।

भ्रम : बड़े कॉर्पोरेट का फायदा, किसानों का नुक्सान।

कृषि मंत्री : कई राज्यों में किसान सफलतापूर्वक बड़े कॉर्पोरेट के साथ गन्ना, कपास, चाय, कॉफी जैसे उत्पाद प्रोड्यूस कर रहे हैं। अब इससे छोटे किसानों को बड़ा फायदा होगा, उनको गारंटीड मुनाफे के साथ ही टेक्नोलॉजी और उपकरण का भी लाभ मिलेगा।

भ्रम : बड़ी कम्पनियाँ कॉन्ट्रैक्ट के नाम पर किसानों का शोषण करेंगी।

कृषि मंत्री : करार से किसानों को निर्धारित दाम पाने की गारंटी मिलेगी, लेकिन किसान को किसी भी करार में बाँधा नहीं जा सकेगा। किसान किसी भी मोड़ पर बिना किसी पैनल्टी के करार से निकलने को स्वतंत्र होगा।

भ्रम : किसान की जमीन पूंजीपतियों को दी जाएगी।

कृषि मंत्री : बिल में साफ निर्देशित है कि किसानों की जमीन की बिक्री, लीज और गिरवी रखना पूरी तरह से निषिद्ध है। इसमें फसलों का करार होगा, जमीन का करार नहीं होगा।

भ्रम : देश में अब मंडियों का अंत हो जाएगा।

कृषि मंत्री : देश में मंडी व्यवस्था पहले की तरह ही जारी रहेगी।

भ्रम : किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने के लिए कृषि बिल साजिश है।

कृषि मंत्री : कृषि बिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई लेना-देना ही नहीं है, एमएसपी मूल्य मिलता रहा है, मिलता रहेगा।

भ्रम : कृषि बिल किसान विरोधी है।

कृषि मंत्री : कृषि बिल किसान की आजादी है। वन नेशन-वन मार्किट से अब किसान अपनी फसल कहीं भी, किसी को और किसी भी कीमत पर बेच सकते हैं। अब किसान किसी पर भी निर्भर रहने के बदले बड़ी खाद्य उत्पादन कंपनियों के साथ पार्टनर की तरह जुड़कर ज्यादा मुनाफा कमा पायेगा।

सरकार के रवैये से किसान संगठन संतुष्ट नहीं

हालांकि सरकार और किसान संगठनों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, पर सरकार के रवैये से किसान संगठन संतुष्ट नहीं हैं। कृषि मंत्री ने कहा कि कई राज्यों में किसान सफलतापूर्वक बड़े कॉर्पोरेट के साथ गन्ना, कपास, चाय, कॉफी जैसे उत्पाद प्रोड्यूस कर रहे हैं। जब किसान मौजूदा कानूनों के तहत किसान सफलतापूर्वक बड़े कॉर्पोरेट के साथ कृषि फसलें पैदा कर रहे हैं तो फिर कृषि के लिए नए करार कानून की जरुरत ही कहाँ है। किसानों को लगता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी  बाध्यता न होने के कारण बड़े पूंजीपति किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर कृषि फसल खरीदेंगे और फिर जमाखोरी कर बाजार में अधिक कीमतों में कृषि उत्पाद बेचेंगे क्यों कि सरकार ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून के तहत अनाज, दाल, तिलहन, खाने वाला तेल, आलू-प्याज को आवश्यक वस्तु की सूची से हटाने की व्यवस्था कर पूंजीपतियों की जमाखोरी को कानूनन मान्यता दे दी है। यह बहुत ही चिंता की बात है। सरकार ने अभी तक किसी बातचीत में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने की कानूनी बाध्यता को स्वीकार नहीं किया है। 

किसान संगठनों ने स्पष्ट कहा है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द करे क्योंकि इससे कृषि करारों और जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। कृषि करारों से किसान पूंजीपतियों के चंगुल में फंस जाएगा। किसान संगठन यह भी मांग कर रहे हैं कि नया कानून बनाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी दी जाए। मंडी समितियों द्वारा किसान की उपज खरीद प्रक्रिया बाधित नहीं हो।  बिजली संशोधन विधेयक 2020 नहीं लाया जाए, किसानों को बिजली सब्सिडी मिले, और पराली जलाने पर जुर्माने की प्रावधान की जगह पराली के निपटान का उपयुक्त समाधान किया जाए।  

- केशव राम सिंघल

 

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