मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

किसान आंदोलन

 किसान आंदोलन

 

इस विषय से सम्बंधित पूर्व लेख 'सरकार के रवैये से किसान संगठन संतुष्ट नहीं' और 'कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट का नजरिया' क्लिक कर पढ़ें।

 

जैसा पता चलता है कि इस तरह के कानूनों की किसी किसान संगठन ने मांग नहीं की। सरकार कोरोना काल में इस तरह के कानूनों को विधेयक के रूप में लाई , और फिर इसे जब संसद में पारित किया गया तब भी कानून पारित कराने से पहले किसान संगठनों से सरकार ने विचार-विमर्श नहीं किया। ये कानून ऐसे लग रहे हैं कि जैसे किसान की कई तरफ से घेराबंदी की जा रही है - (१) वर्त्तमान मंडियाँ बंद हो जाएँगी क्योंकि निजी बाजार सामने खड़ा होगा, जो प्रारम्भ में ज्यादा दाम देगा और जैसे ही मंडियाँ प्रभावहीन सी हो जाएँगी, निजी बाजार किसानों को घेर लेगा और एमएसपी से कम कीमत पर खाद्यान खरीदेगा। (२) सरकार कह रही है कि एमएसपी समाप्त नहीं होगी, पर एमएसपी को कानूनी मान्यता भी नहीं दे रही कि कोई इससे कम पर खाद्यान्न की खरीद-बिक्री नहीं कर सकेगा। (३) ऐसी संभावनाएं दिख रहीं हैं कि सरकार की रुचि किसानों से खाद्यान खरीदने में नहीं है, बल्कि वे खाद्यान्न बाजार को निजी हाथों में सौपना चाहती है, इससे राशन की दुकानों से खाद्यान वितरण बंद हो जाएगा, जिसका सबसे अधिक नुकसान गरीब जनता को होने की संभावना है। (४) किसान की किस्मत करार में बंद हो जाएगी। नए कानून में करार विवाद निवारण प्रक्रिया से भी किसान संतुष्ट नहीं प्रतीत होते हैं। (५) खाद्यान जमाखोरी में कानूनों के अंतर्गत जो रोकटोक थी, वह भी बंद, इससे जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा और यह कदम अवैद्य को वैद्य करने जैसा लगता है। (६) अभी तक किसानों को कम दर पर बिजली मिलती रही, वह भी बंद। (७) पराली जलाने पर एक करोड़ तक का जुर्माना या पांच साल की कैद से किसान डर रहा है। वह कैसे पराली का निस्तारण कर सकेगा, इसको लेकर सरकार की कोई स्पष्ट कार्य योजना नहीं है।

सबसे बड़ी बात कृषि हमेशा राज्य सरकार का विषय रहा है। बहुत से लोगों का मानना है कि जिस तरीके से तीनों कृषि कानून लाए गए हैं, वे वैधानिक ढाँचे के अनुरूप नहीं हैं।

 

प्रधानमंत्री का रुख

 

ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री का रुख किसान आंदोलन के विपरीत है। उन्होंने अभी तक कोई ऐसा सन्देश नहीं दिया वे किसानों की मांगों के अनुसार किसान कानूनों को रद्द करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार देश कृषि सुधारों से आगे बढ़ रहा है। उनके अनुसार भारत 'वन नेशन, वन एग्रीकल्चर मार्किट' की दिशा में अग्रसर हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार २८ दिसंबर २०२० को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से महाराष्ट्र के संगोला से पश्चिम बंगाल के शालीमार तक चलने वाली सौवीं किसान रेल को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।  उनके मुताबिक़ किसान रेल ने देश भर में कृषि उपज का तेजी से परिवहन सुनिश्चित करने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसने कृषि उपज के लिए निबाध आपूर्ति शृंखला मुहैया कराई है।

 

चिंता की बात

 

सबसे बड़ी चिंता की बात है कि किसान आंदोलन समाप्त नहीं हो रहा और सरकार भी अपना रुख नरम नहीं कर रही। बातचीत बंद तो नहीं हुई है, पर अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका है। आगे देखते हैं कि क्या होता है, वैसे जनतंत्र में बातचीत से ही समस्याओं का हल निकलता है। सरकार और किसान संगठनों की अगली बातचीत ३० दिसंबर २०२० को होना तय हुई है। 


धन्यवाद। - केशव राम सिंघल


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