कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल
''''''''''''''''''
लेखक - केशव राम सिंघल
''''''''''''''''''
18
आज
की बातचीत की
शुरुआत चाची ने की। उन्होंने
कहा - कांग्रेस दिन-प्रतिदिन कमजोर होती
जा रही है।
26 अगस्त 2022 को 51 साल
कांग्रेसी गुलाम नबी
आजाद ने भी कांग्रेस पार्टी छोड़
दी। 25 अगस्त 2022 को
कांग्रेस के युवा
प्रवक्ता जयवीर शेरगिल
ने भी पार्टी
से इस्तीफा दे
दिया था। ज्योतिरादित्य
सिंधिया, कपिल सिब्बल,
सुष्मिता देव, जितिन
प्रसाद, हार्दिक पटेल,
सुनील जाखड़ आदि
ऐसे बहुत से नेता हैं
जिन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।
राजरानी
बोली - ऐसा सुनने
में आया है कि कांग्रेस
पार्टी के अध्यक्ष
का चुनाव कुछ
हफ्तों के लिए टाला जा
सकता है। चुनाव
कब होगा इस पर फैसला
28 अगस्त को कांग्रेस
वर्किंग कमेटी (CWC) की
बैठक में लिया
जाएगा। पहले यह घोषणा की
गई थी कांग्रेस
पार्टी के अध्यक्ष
का चुनाव 21 अगस्त
से 20 सितंबर के
बीच होगा।
दर्शना
बोली - अच्छा हुआ
गुलाम नबी आजाद
ने कांग्रेस पार्टी
छोड़ दी। वे तो भाजपा
के प्रति नरम
रुख अपनाते हैं।
मोदी के प्रति
उदार रुख है उनका। मैं
तो स्वागत करती
हूँ यदि वे भाजपा में
शामिल हो जाएँ।
कांग्रेस तो ख़त्म
होने की राह पर है।
देखना जल्द ही कांग्रेस ख़त्म हो जाएगी।
शैलबाला
बोली - मैं नहीं
मानती तुम्हारी बात।
कांग्रेस फिर से
ज़िंदा होकर लौट
आएगी। कांग्रेस कभी
ख़त्म नहीं होगी।
याद रखना, राहुल
गांधी ही कांग्रेस
में नई जान फूकेंगे। कांग्रेस को
युवा चेहरों की
जरुरत है। ऐसे युवाओं की
जो वर्तमान सरकार
का वैचारिक स्तर
पर मुकाबला कर
सकें। कन्हैया कुमार
जैसे युवाओं की
जरुरत है, ना कि बूढ़े
लोगों की जो करते-धरते
कुछ नहीं, बस
जिन्हें पद चाहिए,
प्रतिष्ठा भी चाहिए।
सुमन
मामी बोलीं - गुलाम
नबी कहते हैं
कि कांग्रेस पार्टी
पूरी तरह बरबाद
हो गई है, पर राहुल
गांधी और उनकी युवा ब्रिगेड
भाजपा पर सीधा हमला करने
की हिमायती है।
ऐसे में गुलाम
नबी आजाद का राहुल गांधी
से मतभेद होना
स्वाभाविक है।
यह
तो सभी जानते
हैं कि अम्मा
जी के बड़े बेटे की
बहु दर्शना भाजपा
समर्थक है, सभी उसकी ओर
देखने लगे। तभी
दर्शना ने कहा -
गुलाम नबी आजाद
क्या करेंगे। यह
तो भविष्य बताएगा।
पर संभावना है
कि मोदी जी उन्हें कोई
ना कोई जिम्मेदारी
का पद अवश्य
ऑफर करेंगे। वे
किसी राज्य के
राज्यपाल भी बनाए
जा सकते हैं।
मोदी जी भी गुलाम नबी
आजाद के प्रति
अच्छी राय रखते
है। राज्यसभा से
गुलाम नबी आजाद
की बिदाई के
समय मोदी जी ने अपने
भाषण में उनकी
तारीफ करते हुए
कहा था कि काश उनकी
सेवाएँ लम्बे समय
तक मिल पाती।
शैलबाला
बोली - गुलाम नबी
आजाद को कांग्रेस
पार्टी नहीं छोड़नी
चाहिए। कांग्रेस ने
उन्हें क्या नहीं
दिया। उन्हें पद,
शोहरत सभी तो कांग्रेस की वजह से मिला
है। मुझे तो अच्छा नहीं
लगा। ऐसे समय में जब
कांग्रेस को ताकत
की जरुरत है,
लोग कांग्रेस छोड़
रहे हैं। संघर्ष
के समय वे जिम्मेदारी से हट गए और
कांग्रेस छोड़ दी।
चाची
ने पूछा - गुलाम
नबी आजाद ने कांग्रेस पार्टी छोड़
दी है तो अब वह
क्या करेंगे? क्या
भाजपा में जाएंगे?
सरोज
बुआ ने बताया
- ऐसा सुनने में
आया है कि गुलाम नबी
आजाद ने इन अटकलों को
खारिज कर दिया है कि
वह भाजपा के
संपर्क में हैं या उसमें
शामिल होंगे। शायद
वह अब अपनी नई राजनीतिक
पार्टी बनाएँ। जम्मू-कश्मीर से
उनके समर्थक दिल्ली
पहुँच रहे हैं और उनसे
विचार-विमर्श के
बाद ही आजाद कोई निर्णय
लेंगे।
राजरानी
ने कहा - कांग्रेस को अंदर से अपने को मजबूत बनाना होगा। देश के बहुत से लोग चाहते
हैं कि कांग्रेस मजबूती के साथ आगे आए। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में यह पार्टी
मजबूती के साथ फिर आगे आएगी।
विषयांतर
करने की दृष्टि
से चाची बोली
- अम्मा जी, आपने
अटारी-बाघा बॉर्डर
के बारे में
बताया था। जब आप वहाँ
गई थीं तो क्या अमृतसर
में स्वर्ण मंदिर
और जलियांवाला बाग़
नहीं देखा था क्या?
अम्मा
जी कहने लगीं
- उस दिन पूरी
बात नहीं बता
पाई। हम बहुत सी जगह
होकर आए थे। स्वर्ण मंदिर
तो एक बार हम सुबह
पाँच बजे ही चले गए
थे। स्वर्ण मंदिर
को श्री हरमंदिर
साहिब के नाम से भी
जाना जाता है।
यह सिखों की
आस्था का सबसे पवित्र गुरुद्वारा
है। दस सिख गुरुओं में
से चौथे गुरु
रामदास साहिब ने
पन्द्रवीं सदी में
यह गुरुद्वारा और
इसका सरोवर बनवाया
था, जहाँ सभी
लोग प्रार्थना कर
सकें। समय-समय पर गुरुद्वारे
की इमारत में
कई बार नई-नई चीज़ें
जोड़ी गईं, जिसमें
फ़र्श पर संगमरमर
लगाया जाना शामिल
है। ऐसा बताया
जाता है कि भारत के
सिख साम्राज्य (1799-1849) के
संस्थापक, महाराजा रणजीत सिंह
ने गुरुद्वारे का
ऊपरी मंजिल को
750 किलो शुद्ध सोने
से मढ़वाया था।
सिख धर्मग्रंथ, गुरु
ग्रंथ साहिब, स्वर्ण
मंदिर में ही रखा गया
है।
चाची
बोलीं - तभी इसे स्वर्ण मंदिर
कहते हैं। मैंने
इसकी फोटो देखी
है। सोने की भाँति चमकता
है यह मंदिर।
मेरा भी देखने
का मन है। एक बार
जाऊँगी वहाँ।
अम्मा
जी कहने लगीं
- बिलकुल जाना चाहिए।
अमृतसर देश के ज्यादातर हिस्सों से
वायु, रेल और सड़क मार्ग
से जुड़ा हुआ
है। अमृतसर शहर
से तेरह किलोमीटर
की दूरी पर एयरपोर्ट है। अमृतसर
में रुकने की
व्यवस्था भी अच्छी
है। स्वर्ण मंदिर
गुरुद्वारे में ठहरने
की व्यवस्था है।
वैसे आप चाहो तो होटल
में भी रुक सकते हो।
चाची
ने पूछा - अम्मा
जी, और क्या-क्या देखा
अमृतसर में।
अम्मा
जी ने बताया
- हमारे पास केवल
आधा दिन था अमृतसर देखने
के लिए। इसलिए
हम ज्यादा जगह
तो नहीं जा पाए, पर
हमने जलियांवाला बाग़
देखा और अमृतसर
का पार्टिशन म्यूजियम
भी देखा। अगर
अमृतसर जाओ तो इन तीनों
जगहों पर जरूर जाना चाहिए।
1947 में आजादी के
साथ ही देश के नक्शे
पर खिंची गई
विभाजन की रेखा की वजह
से अपने ही देश में
बहुत से लोग परदेसी हो
गए। लाखों लोगों
ने जबरन पलायन
का दुःख झेला।
इतिहास के सबसे बड़े पलायन
और उससे जुड़े
घटनाक्रम को अमृतसर
की पार्टीशन म्यूजियम
में सहेजा गया
है, जो यादों
के ऐसे पन्ने
खोलती हैं, जिसके
लफ्ज कहीं आंसुओं
से भरे हैं तो कहीं
खून से तरबतर।
अमृतसर में स्वर्ण
मंदिर और जलियांवाला
बाग से कुछ ही दूरी
पर स्थित ‘पार्टिशन
म्यूजियम’की विभिन्न
दीर्घाओं में देश
के बंटवारे से
जुड़े घटनाक्रम को
बयान करने का प्रयत्न किया गया
है। उस समय के अखबारों
की बहुत सी कतरने और
तस्वीरें उस वक्त
के बारे में
बताती हैं।
चाची ने कहा - अम्मा जी, मैंने स्वर्ण मंदिर और जलियांवाला बाग़ के बारे में तो बहुत सुना था, पर पार्टीशन म्यूजियम के बारे में पहली बार ही सुन रही हूँ। कभी अमृतसर जाने का मौक़ा ही नहीं मिला। एक बार अमृतसर जरूर जाऊँगी।शैलबाला ने कहा - मैंने सुना है कि वहाँ के छोले-कुलचे बहुत ही प्रसिद्ध हैं। अम्मा जी, आपने खाए या नहीं? और वहाँ के लंगर में खाना खाया?
अम्मा
जी ने जवाब दिया - हमने
अमृतसर में स्वर्ण
मंदिर के पास एक ढाबे
में सुबह नाश्ते
में छोले-कुलचे,
दूध- जलेबी और
चाय आदि और दोपहर में
स्वर्ण मंदिर के
लंगर में खाना
खाया था। स्वर्ण
मंदिर के लंगर को गुरु
का लंगर भी कहा जाता
है, जहाँ हजारों
लोगों का भोजन वहाँ की
रसोई में तैयार
किया जाता है।
वहाँ का भोजन और काडा
प्रसाद बहुत ही स्वादिष्ट था।
यह
कथा-श्रृंखला, पाठको
को समर्पित है।
आप पढ़े, आनंद
लें, टिप्पणी करें,
दूसरों को पढ़ाएँ,
अपने सोशल मीडिया
अकाउंट पर साझा करें। स्वागत
है आपके सुझावों
और टिप्पणियों का।
कल्पना
और तथ्यों के
घालमेल से लिखी यह कथा-श्रृंखला रुचिकर लगेगी,
ऐसा मेरा विश्वास
है। कथा में दिए सभी चित्र प्रतीकात्मक हैं
तथा इंटरनेट से साभार लिए गए हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें