शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

शिक्षा में त्रिभाषा फार्मूला

शिक्षा में त्रिभाषा फार्मूला

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भारत जैसे बहुभाषी देश में शिक्षा नीति का उद्देश्य न केवल ज्ञान देना है, बल्कि भाषाई विविधता को संरक्षित करना भी है। इसी उद्देश्य से त्रिभाषा फार्मूला लागू किया गया, लेकिन इस पर मतभेद बने हुए हैं।

 

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने एक बार फिर केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, "हम हिंदी थोपने का विरोध करेंगे। हिंदी एक मुखौटा है, जबकि संस्कृत इसका छिपा हुआ चेहरा है।" केंद्र सरकार ने स्टालिन द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज किया है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपने पत्र में कहा कि बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में मैथिली, ब्रजभाषा, बुंदेलखंडी और अवधी जैसी भाषाओं को हिंदी के प्रभुत्व ने खत्म कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि 25 से अधिक उत्तर भारतीय भाषाएँ हिंदी और संस्कृत के प्रभुत्व के कारण प्रभावित हुई हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संस्कृत को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसे राज्य सरकारों पर थोपने की कोशिश हो रही है। यदि तमिलनाडु त्रिभाषा नीति को स्वीकार कर लेता है, तो तमिल को नजरअंदाज कर दिया जाएगा और भविष्य में संस्कृत का दबदबा रहेगा।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत त्रिभाषा फार्मूला क्या है?

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत प्रस्तावित त्रिभाषा फार्मूला एक शैक्षणिक ढाँचा है, जिसके अनुसार बच्चों को तीन भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए। पहली भाषा आमतौर पर छात्र की मातृभाषा या राज्य की क्षेत्रीय भाषा होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मुताबिक, भारत के सभी छात्रों को कम से कम तीन भाषाएँ सीखनी होंगी, जिनमें से दो भारतीय भाषाएँ होनी चाहिए और तीसरी अंग्रेज़ी होनी चाहिए। यह फार्मूला सरकारी और निजी दोनों स्कूलों पर लागू होता है।

 

समाधान क्या हो सकता है?

 

त्रिभाषा फार्मूला में हिंदी या संस्कृत को लेकर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए। यह मुख्यतः छात्रों की इच्छा पर निर्भर होना चाहिए। भारत की शिक्षा प्रणाली में त्रिभाषा फार्मूले को लेकर अक्सर बहस होती है, क्योंकि यह भाषा, सांस्कृतिक पहचान और व्यावहारिक उपयोगिता से जुड़ा हुआ मुद्दा है। सर्वसम्मत समाधान इस प्रकार हो सकता है -

 

मातृभाषा को प्राथमिकता - प्राथमिक शिक्षा (कम से कम 5वीं कक्षा तक) मातृभाषा में होनी चाहिए, जिससे बच्चों की बौद्धिक क्षमता और समझ बेहतर हो। इससे बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि बढ़ेगी और उनकी मौलिक सोच का विकास होगा।

 

संपर्क भाषा का विकल्प - मातृभाषा के अलावा हिंदी, संस्कृत, या कोई अन्य भारतीय भाषा सीखने की छूट होनी चाहिए। जिनकी मातृभाषा हिंदी या संस्कृत है, उन्हें अन्य भारतीय भाषाओं में से कोई भाषा चुनने का विकल्प मिलना चाहिए।

 

वैश्विक संपर्क भाषा - अंग्रेजी या अन्य किसी विदेशी भाषा को सीखने की सुविधा होनी चाहिए, जिससे छात्रों को वैश्विक स्तर पर अवसर मिल सकें।

 

त्रिभाषा फार्मूला में संस्कृत को अन्य भारतीय भाषाओं के बराबर रखा गया है, जबकि यह एक शास्त्रीय भाषा है। इसे अनिवार्य बनाने की बजाय विकल्प के रूप में ही रखना उचित होगा।

 

इस प्रकार गैर-हिंदी राज्य, जैसे तमिलनाडु के छात्र पढ़ेंगे -

 

(1) तमिल

 

(2) तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, बंगाली, हिंदी या कोई अन्य भारतीय भाषा

 

(3) अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषा

 

वहीं, हिंदी-भाषी राज्य राजस्थान के छात्र पढ़ेंगे -

 

(1) हिंदी

 

(2) तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, बंगाली, तमिल या कोई अन्य भारतीय भाषा

 

(3) अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषा

 

इससे त्रिभाषा फार्मूला भी रहेगा और हिंदी या संस्कृत को किसी पर थोपने की बात नहीं होगी। राज्य सरकारों और शिक्षण संस्थानों को अधिक से अधिक भाषाओं के अध्ययन की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि छात्रों को समुचित विकल्प मिल सके। त्रिभाषा फार्मूले को कठोर नियमों की बजाय लचीलेपन के साथ लागू किया जाना चाहिए।

 

त्रिभाषा फार्मूले का उद्देश्य भाषाई समावेशिता को बढ़ावा देना है, न कि किसी भाषा को थोपना। राज्य सरकारों और शिक्षण संस्थानों को अधिकतम भाषाई विकल्प प्रदान करने चाहिए, जिससे छात्र अपनी सुविधा और रुचि के अनुसार भाषा चुन सकें। हिंदी-भाषी राज्यों में भी अन्य भारतीय भाषाओं को सीखने की प्रवृत्ति बढ़ाने की जरूरत है। इससे विविधता को संजोने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता को भी मजबूती मिलेगी।

 

सादर,

केशव राम सिंघल

 


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