लघुकथा
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पूर्वज
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प्रतीकात्मक चित्र - साभार NightCafe
मुन्ना एक दिन अपने पापा से पूछने लगा, “पापा, श्राद्ध का मतलब क्या होता है?” पापा कुछ कह पाते, इससे पहले ही दादी ने मुस्कुराते हुए बात संभाल ली — “बेटा, श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा। अपने देवताओं, परिवार, वंश परंपरा, संस्कृति और इष्ट के प्रति श्रद्धा रखना ही श्राद्ध है। हमारे पूर्वज, जो शरीर त्यागकर इस लोक से चले गए हैं, वे कहीं न कहीं किसी रूप में विद्यमान होते हैं। उनके तृप्ति और उन्नति के लिए जो हम श्रद्धा और भाव से अर्पण करते हैं, वही श्राद्ध कहलाता है। यह हर वर्ष एक तय दिन पर किया जाता है।”
पापा थोड़े राहत में मुस्कराए। सोचने लगे — चलो, एक सवाल का जवाब तो अम्मा ने दे ही दिया, अब ये दोनों आपस में बात करते रहेंगे।
कुछ ही देर बाद दादी फिर बोलीं, “हर साल तेरे दादाजी का श्राद्ध आश्विन कृष्णपक्ष की दशमी को पड़ता है। पिछले महीने ही तो मनाया था, जब तेरे पापा कौए को खाना खिलाने के लिए देर तक छत पर बैठे थे।” यह कहते हुए दादी की आँखें नम हो गईं। यादें ताज़ा हो उठीं — पिचहत्तर की उम्र में दादाजी चल बसे थे। दादी तब अठारह की थीं, जब उनका विवाह हुआ था। जीवन का लंबा साथ एकाएक छूट गया था।
मुन्ना ने सहजता से कहा, “हाँ दादी, आपने बताया था — श्राद्ध में हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और कौए को भोजन कराते हैं।” दादी ने आगे समझाया, “बिलकुल, कौए को यमराज का प्रतीक माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि अगर कौआ श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर ले, तो वह अर्पण हमारे पूर्वजों तक पहुँच जाता है। उनकी आत्मा को तृप्ति मिलती है और यमराज भी प्रसन्न होते हैं।”
कुछ देर सोचकर मुन्ना बोला, “दादी, कमाल है न! हम यहाँ कौए को खिलाते हैं, और वो खाना किसी और लोक में पहुँच जाता है। लेकिन दादी, ये खाना वहाँ कैसे और कब पहुँचता है?” दादी मुस्कराईं। उनके चेहरे पर अनुभव और अपनापन एक साथ झलक रहा था। “बेटा, ये कैसे और कब पहुँचता है, यह तो मैं नहीं जानती। लेकिन यह बहुत पुरानी और अद्भुत तकनीक है। जैसे तेरी बुआ अमेरिका से कोई फोटो मोबाइल से भेजती हैं, और वो कुछ ही सेकंड में तुझे यहाँ मिल जाती है। वैसे ही ये भी एक अदृश्य, आत्मिक तकनीक है — भावों की तकनीक।”
मुन्ना चुप हो गया। उसके मन में जिज्ञासा के साथ अब श्रद्धा का एक नया बीज अंकुरित हो चुका था।
✍🏻 केशव राम सिंघल
टिप्पणी - यह लघुकथा भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं को सरल शब्दों में प्रस्तुत करती है और पीढ़ियों के संवाद और भावनात्मक रिश्तों को भी सहज रूप से उजागर करती है।
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