महाकवि सूरदास
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महाकवि सूरदास हिन्दी के श्रेष्ठ भक्त कवि थे। वे भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त माने जाते रहे हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, महाकवि सूरदास जी की जयंती हर साल वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को आती है। इसलिए इस साल सूरदास जयंती, मंगलवार 25 अप्रैल 2023 को मनाई जा रही है।
महाकवि सूरदास का संपूर्ण काव्य ब्रजभाषा का श्रृंगार है। उन्होंने विभिन्न राग, रागनियों के माध्यम से एक भक्त ह्रदय के भावपूर्ण उद्गार व्यक्त किए हैं। कृष्ण, गाय, वृंदावन, गोकुल, मथुरा, यमुना, मधुवन, मुरली, गोप, गोपी आदि के साथ-साथ संपूर्ण ब्रज-जीवन, संस्कृति एवं सभ्यता के संदर्भ में उन्होंने अपनी वीणा के साथ बहुत कुछ गाया। महाकवि का काव्य शताब्दियाँ बीत जाने पर भी भारतीय काव्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनके काव्य का अंतरंग एवं बहिरंग पक्ष अत्यंत सुदृढ़ और प्रौढ़ है।
सूरदास जी के दो दोहे उनके भावार्थ सहित नीचे दिए जा रहे हैं।
(1) चरन कमल बन्दौ हरि राई
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई
सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई।।
इस दोहे के द्वारा सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि जिस पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा होती है वह सब कुछ कर जाता है। उसके लिए कोई भी काम उसके लिए असंभव नहीं रहता है। यदि भगवान श्रीकृष्ण की कृपा किसी लंगड़े पर हो गई तो वह बड़ा पहाड़ भी लांघ सकता है और यदि भगवान श्रीकृष्ण की कृपा एक अंधे पर हो जाती है तो वह इस सुंदर दुनिया को अपनी आँखों से देख सकता है। जब भगवान श्रीकृष्ण की कृपा होती है तो बहरे को सुनाई और गूंगे बोलने लग जाते हैं। कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं रहता। ऐसे करुण मय भगववान के पैरों में सूरदास बार बार नमन करता है।
(2) मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ
मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौं, तू जसुमति कब जायौ।।
कहा करौन इहि के मारें खेलन हौं नहि जात
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात।।
गोरे नन्द जसोदा गोरीतू कत स्यामल गात
चुटकी दै-दै ग्वाला नचावत हँसत-सबै मुसकात।।
तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै
मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत
सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।।
इस दोहे के द्वारा सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की घटना का वर्णन करते हैं। बालक श्रीकृष्ण यशोदा मैया के पास जाते है और अपने भाई बलराम की शिकायत करते हैं कि उन्हें दाऊ भैया यह कहकर खिझाते है कि तुमको यशोदा मैया कहीं बाहर से लेकर आई है। तुम्हे तो मोल भाव करके खरीदा गया है। इस कारण मैं खेलने नहीं जा रहा हूँ। बलराम भैया कहते हैं कि यशोदा मैया और नंदबाबा तो गोरे रंग के है और तुम सांवले रंग के हो। तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? इतना कहकर वो ग्वालों के साथ चले जाते हैं और उनके साथ खेलते और नाचते हैं। आप दाऊ भैया को तो कुछ नहीं कहती और मुझे मारती रहती हैं। श्री कृष्ण से ये सुनकर मैया यशोदा मन ही मन मुस्कुराती है। यह देख कृष्ण कहते हैं कि गाय माता की सौगंध खाओ कि मैं तेरा ही पुत्र हूँ।
महाकवि सूरदास जी की जयन्ती पर उन्हें कोटि-कोटि वंदन।
सादर,
केशव राम सिंघल
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