बुधवार, 26 अप्रैल 2023

महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर

महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर

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श्रीनिवास रामानुजन इयंगर (जन्म - 22 दिसम्बर 1887 – निधन - 26 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में माना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत में अभूतपूर्व योगदान दिया।


श्रीनिवास रामानुजन इयंगर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा रखते थे। सबसे विशिष्ट बात इनके सम्बन्ध में यह थी कि इन्होने अपने जीवन में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनके द्वारा संकलित अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है और उन पर शोध हो रहा है। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले हैं।


बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास सामान्य बालकों जैसा नहीं था। रामानुजन तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे। बचपन में जब इन्होने विद्यालय में प्रवेश लिया तो पारम्परिक शिक्षा में इनका मन भी नहीं लगा। दस वर्ष की आयु में इन्होने प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सबसे अधिक अङ्क प्राप्त किए और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल में प्रवेश लिया। रामानुजन अत्यंत जिज्ञासु थे और विभिन्न तरह के प्रश्न पूछा करते थे, जो उनके अध्यापकों को कभी-कभी बहुत अटपटे लगते थे। विद्यालय में इनकी प्रतिभा को इनके शिक्षकों और साथी विद्यार्थयों ने महसूस किया। रामानुजन ने स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही कालेज के स्तर के गणित को पढ़ लिया था। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक लाने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे कालेज की शिक्षा के लिए प्रवेश भी मिला। कॉलेज शिक्षा के दौरान रामानुजन गणित विषय पर ही अधिक केंद्रित रहते थे और अन्य विषयों पर ध्यान नहीं देते थे, फलस्वरूप गणित के अलावा अन्य विषयों में वे अनुतीर्ण हो गए और उनको मिलने वाली छात्रवृति भी मिलनी बंद हो गई। अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए इन्होने ट्यूशन और अंशकालीन कार्य करना प्रारम्भ किया। 1907 में रामानुजन ने फिर से बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी और अनुत्तीर्ण हो गए। इस प्रकार रामानुजन का जीवन कठिनाइयों से भर गया। 1908 में माता-पिता ने इनका विवाह कर दिया तो पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। बाहरवीं की परीक्षा में फेल होने के कारण इन्हे नौकरी भी नहीं मिल पाई और बीमार हो गए।


बीमारी से ठीक होने के बाद रामानुजन मद्रास आए और फिर से नौकरी की तलाश शुरू कर दी। जब भी किसी से मिलते तो उसे अपना रजिस्टर दिखाते थे, जिसमें इनके द्वारा गणित में किए गए कार्य होते थे। इसी दौरान किसी के कहने पर रामानुजन डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर स्वयं गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। श्री अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और जिलाधिकारी श्री रामचंद्र राव से कह कर इनके लिए 25 रूपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। इस वृत्ति पर रामानुजन ने मद्रास में एक साल रहते हुए अपना प्रथम शोधपत्र प्रकाशित किया। शोध पत्र का शीर्षक था "बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” और यह शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ। एक साल बाद इन्होने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी की। सौभाग्य से इस नौकरी में काम का बोझ कुछ ज्यादा नहीं था और यहाँ इन्हें अपने गणित के लिए पर्याप्त समय मिलता था। इस दौरान रामानुजन ने गणित के कई नए सूत्र लिखे।

कुछ पुराने शुभचिंतको ने रामानुजन द्वारा किए गए कार्यों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा। इसी समय रामानुजन ने अपने संख्या सिद्धांत के कुछ सूत्र प्रोफेसर एस अय्यर को दिखाए तो प्रोफ़ेसर अय्यर ने लन्दन के प्रोफेसर हार्डी का एक शोधपत्र रामानुजन को दिया। प्रोफेसर हार्डी के शोधकार्य को पढ़ने के बाद रामानुजन ने बताया कि उन्होने प्रोफेसर हार्डी के अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोज निकाला है। इसके बाद रामानुजन का प्रोफेसर हार्डी से पत्रव्यवहार प्रारम्भ हुआ और यहाँ से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ, जिसमें प्रोफेसर हार्डी की बहुत बड़ी भूमिका थी। प्रोफेसर हार्डी आजीवन रामानुजन की प्रतिभा और जीवन दर्शन के प्रशंसक रहे। रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनो ही के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई। एक तरह से देखा जाए तो दोनो ने एक दूसरे के लिए पूरक का काम किया।


प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन धन की कमी और व्यक्तिगत कारणों से शुरू में रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के कैंब्रिज के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। उसी समय रामानुजन को मद्रास विश्वविद्यालय में शोधवृत्ति मिल गई, जिससे उनका जीवन कुछ सरल हो गया और उनको शोधकार्य के लिए पूरा समय भी मिलने लगा था। इसी दौरान लंबे पत्रव्यवहार के बाद धीरे-धीरे प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए सहमत कर लिया। प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए आर्थिक सहायता भी मिल गई। रामानुजन ने इंग्लैण्ड जाने के पहले गणित के करीब 3000 से भी अधिक नये सूत्रों को अपनी नोटबुक में लिखा था। इंग्लैण्ड की यात्रा से रामानुजन के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर उच्चकोटि के शोधपत्र प्रकाशित किए। अपने एक विशेष शोध के कारण इन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली। लेकिन वहाँ की जलवायु और रहन-सहन की शैली उनके अधिक अनुकूल नहीं थी और उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। डॉक्टरों ने इसे क्षय रोग बताया। उस समय क्षय रोग का कोई उपयुक्त इलाज और दवा नहीं थी और रोगी को सेनेटोरियम मे रहना पड़ता था। रामानुजन को भी कुछ दिनों तक वहाँ रहना पड़ा। इंग्लैण्ड प्रवास के दौरान रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का फेलो नामित किया गया। डॉक्टरों की सलाह पर वे वापस भारत लौटे और यहाँ इन्हें मद्रास विश्वविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी मिल गई और इस प्रकार रामानुजन अध्यापन और शोध कार्य में पुनः रम गए। भारत लौटने पर भी स्वास्थ्य ने इनका साथ नहीं दिया, फिर भी वे अपने शोधपत्र लिखते रहे। गिरते स्वास्थ्य की वजह से रामानुजन का 33 वर्ष की आयु में 26 अप्रैल 1920 को निधन हो गया।


रामानुजन के शोध के फलस्वरूप हम ऐसी संख्याएं जान सके जिन्हें रामानुजन संख्या या हार्डी-रामानुजन संख्या कहा जाता है। रामानुजन संख्या या हार्डी-रामानुजन संख्या ऐसी धनात्मक संख्याए है जिनके दो संख्याओं के घनों के युग्मों के योग के बराबर लिखा जा सकता है। इस प्रकार का गुण रखने वाली बहुत ही कम अन्य संख्याएँ हैं। रामानुजन एक प्रकार से संख्याओं के जादूगर थे।


रामानुजन या हार्डी-रामानुजन संख्याए -


1729 = 9 के घन और 10 के घन का योग = 1 के घन और 12 के घन का योग


4104 = 2 के घन और 16 के घन का योग = 9 के घन और 15 के घन का योग


20683 = 10 के घन और 27 के घन का योग = 19 के घन और 24 के घन का योग


39312 = 2 के घन और 34 के घन का योग = 15 के घन और 33 के घन का योग


40033 = 9 के घन और 34 के घन का योग = 16 के घन और 33 के घन का योग


इस प्रकार 1729, 4104, 20683, 39312, 40033 रामानुजन या हार्डी-रामानुजन संख्याएं हैं।


गणित विषय से सम्बंधित रामानुजन के अन्य शोध भी हैं, जिन्हे इस आलेख में नहीं दिया जा रहा। रामानुजन ने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। यह अत्यंत दुःखद रहा कि विश्व के इस गणितज्ञ का 33 वर्ष की अल्पायु में ही निधन हो गया था।


विश्व के महानतम भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन इयंगर की पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन।


- केशव राम सिंघल



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