सोमवार, 28 अक्टूबर 2024

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 2020

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 2020

 










राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 2020 भारत में शिक्षा के लिए एक व्यापक रूपरेखा है। इसका उद्देश्य स्कूली और उच्च शिक्षा में सुधार लाकर भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति (Global knowledge superpower) बनाना है। इस नीति में कई प्रमुख विशेषताएँ हैं, जिनका उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना और इसे सभी के लिए सुलभ बनाना है। इससे सम्बंधित प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं -

 

- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 2020 में विद्यालय-पूर्व (pre-school) शिक्षा से लेकर शोध-डॉक्टर की उपाधि तक की शिक्षा को शामिल किया गया है।

 

- इस शिक्षा नीति में 3 साल की उम्र से शिक्षा शुरू करने की बात कही गई है।

 

- इस शिक्षा नीति के अनुसार विद्यालय शिक्षा का ढाँचा 5+3+3+4 का होगा। इसके अनुसार छात्र 5 साल तक अपनी नींव मज़बूत करेंगे, फिर 3 साल तक प्रारंभिक चरण में रहेंगे, फिर 3 साल तक मध्य चरण में रहेंगे, और आखिर में 4 साल तक माध्यमिक चरण में रहेंगे।

 

- इस शिक्षा नीति के तहत, पाँचवीं कक्षा तक मातृभाषा ही शिक्षा का माध्यम होगा। उदाहरण के लिए, तमिल मातृभाषा वाले छात्रों को तमिल में, गुजराती मातृभाषा वाले छात्रों को गुजराती में, हिंदी मातृभाषा वाले छात्रों को हिंदी में शिक्षा प्रदान की जाएगी। 

 

- इस नीति में, शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया (Teaching-learning process) में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया है।

 

- इस शिक्षा नीति के तहत, स्कूलों, कॉलेजों, और विश्वविद्यालयों को निरीक्षण से मुक्ति दी जाएगी।

 

- इस शिक्षा नीति में सामाजिक और शैक्षिक रूप से वंचित बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए 'समावेश निधि' बनाने का प्रस्ताव है।

 

- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 2020 के तहत 2040 तक सभी उच्च शिक्षा संस्थान बहुविषयक संस्थान बन जाएँगे।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 2020 का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को समग्र, लचीला और भविष्य-उन्मुख बनाना है। एक स्कूल को इस नीति के अनुरूप ढालने के लिए निम्नलिखित प्रमुख परिवर्तन जरूरी हैं -

 

1. शिक्षा का प्रारूप और पाठ्यक्रम में बदलाव

 

- 5+3+3+4 संरचना अपनाना, जिसमें -

- आधार (बालवाटिका) चरण (Foundation Stage) - 5 वर्ष - 3-8 वर्ष (आंगनबाड़ी और प्राथमिक शिक्षा)

- प्रारंभिक चरण (Preparatory Stage) - 3 वर्ष - 8-11 वर्ष (कक्षा 3 से 5)

- मध्य चरण (Middle Stage) - 3 वर्ष - 11-14 वर्ष (कक्षा 6 से 8)

- द्वितीयक चरण (Secondary Stage) - 4 वर्ष - 14-18 वर्ष (कक्षा 9 से 12)

 

इस दौरान कौशल आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना, जैसे कोडिंग, कला, और विज्ञान परियोजनाएँ। साथ ही शिक्षा में बहुभाषीयता का उपयोग अर्थात प्रारंभिक कक्षाओं में क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई।

 

2. परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली में सुधार

 

- वार्षिक परीक्षा की बजाय सतत और समग्र मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation - CCE) पर जोर।

 

- कक्षा 10 और 12 की बोर्ड परीक्षाएं कठिनाई घटाकर और मॉड्यूलर तरीके से आयोजित की जाएँगी।

 

- छात्रों की सृजनात्मकता, समस्याओं को हल करने की क्षमता, और नैतिक मूल्यों का मूल्यांकन।

 

सतत और समग्र मूल्यांकन (CCE) मूल्यांकन पद्धति विद्यार्थियों के समग्र विकास पर ध्यान देती है, जिसमें केवल शैक्षणिक प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि सह-पाठयक्रम गतिविधियों, आचरण, और कौशल विकास को भी महत्व दिया जाता है।

 

सतत और समग्र मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation - CCE) के प्रमुख उद्देश्य

 

- सतत मूल्यांकन (Continuous Evaluation): छात्रों की प्रगति का नियमित और निरंतर मूल्यांकन करना। शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया के दौरान सुधार के लिए त्वरित फीडबैक देना।

 

- समग्र मूल्यांकन (Comprehensive Evaluation): छात्रों की बौद्धिक, भावनात्मक, सामाजिक, और शारीरिक क्षमताओं का आकलन करना। सह-पाठयक्रम गतिविधियों जैसे खेल, कला, और नैतिक मूल्यों के विकास को भी शामिल करना।

 

सतत और समग्र मूल्यांकन का उद्देश्य परीक्षा आधारित तनाव को कम करना और सीखने की प्रक्रिया को अधिक रोचक बनाना है, ताकि विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हो और शिक्षा केवल परीक्षा-आधारित प्रणाली से हटाकर समग्र विकास की ओर जाए। इसे भारत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में लागू किया गया था, लेकिन इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अंतर्गत और अधिक उन्नत और व्यापक स्वरूप में परिवर्तित किया जा रहा है, जिसमें मूल्यांकन को और अधिक लचीला और कौशल-आधारित बनाया गया है।

 

 

3. शिक्षकों का प्रशिक्षण और विकास

 

- शिक्षकों के लिए नियमित प्रशिक्षण (In-service training) और कौशल विकास कार्यशालाएं।

 

- पेशेवर मानक (Professional standards) स्थापित करने के लिए ‘National Professional Standards for Teachers (NPST)’ का पालन।

 

- शिक्षकों के पारदर्शी प्रदर्शन मूल्यांकन और करियर की प्रगति के अवसर।

 

4. समग्र विकास पर ध्यान

 

- कला, खेल, योग, और नैतिक शिक्षा का अनिवार्य रूप से समावेश।

 

- व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना, खासकर माध्यमिक स्तर पर।

 

- सह-पाठ्यतर और पाठ्येतर (co-curricular and extra-curricular) गतिविधियों में भागीदारी को प्रोत्साहन।

 

5. डिजिटल शिक्षा का उपयोग और बुनियादी ढाँचे का उन्नयन

 

- ई-लर्निंग और ब्लेंडेड लर्निंग (ऑफलाइन और ऑनलाइन शिक्षण का मिश्रण) को अपनाना।

 

- स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम, डिजिटल लाइब्रेरी, और इंटरनेट की सुविधा।

 

- डिजिटल डिवाइड को पाटने के लिए प्रौद्योगिकी-सक्षम लर्निंग का विस्तार।

 

यहाँ डिजिटल डिवाइड का अर्थ है समाज में उन लोगों के बीच का अंतर जिनके पास सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT), जैसे इंटरनेट, कंप्यूटर या स्मार्टफोन की सुविधा है और उन लोगों के बीच, जिन्हें ये सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं या जो इनका सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाते।

 

डिजिटल डिवाइड के कारण

 

- आर्थिक असमानता - कुछ लोग तकनीकी उपकरण खरीदने के लिए आर्थिक सक्षम नहीं होते।

 

- भौगोलिक कारक - दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी सीमित होती है।

 

- शैक्षिक अंतर - तकनीक का उपयोग करने के लिए आवश्यक ज्ञान और प्रशिक्षण में कमी।

 

- विकास का असमान वितरण - शहरी क्षेत्रों में तकनीकी पहुँच बेहतर होती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित।

 

डिजिटल डिवाइड पाटने का अर्थ है कि इस अंतर को कम करने के लिए प्रयासों को लागू करना, जिनसे हर व्यक्ति को प्रौद्योगिकी का समान अवसर और प्रशिक्षण मिले। उदाहरण के तौर पर, सरकार द्वारा कम कीमत पर इंटरनेट सेवाएँ उपलब्ध कराना, स्कूलों में ऑनलाइन लर्निंग के लिए उपकरण और कनेक्टिविटी प्रदान करना, ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता अभियान चलाना।

 

कोविड (COVID-19) महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा एक आवश्यकता बन गई। लेकिन जिन छात्रों के पास स्मार्टफोन या इंटरनेट की सुविधा नहीं थी, वे शिक्षा से वंचित रह गए। इस डिजिटल डिवाइड को पाटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई प्रयास किए, जैसे - प्रसार भारती और दूरदर्शन के माध्यम से कक्षाएँ प्रसारित करना, स्कूलों और एनजीओ द्वारा मोबाइल फोन और टैबलेट का वितरण, जनता के लिए मुफ्त वाई-फाई हॉटस्पॉट का प्रावधान। इस प्रकार, डिजिटल डिवाइड को पाटने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी आर्थिक या भौगोलिक स्थिति में हो, प्रौद्योगिकी के फायदों का लाभ उठा सके।

 

6. समावेशी और समान शिक्षा

 

- विकलांग छात्रों के लिए समावेशी शिक्षा की व्यवस्था।

 

- लिंग समानता और कमजोर वर्गों (SC/ST/OBC/EWS) के लिए विशेष प्रावधान।

 

- मानसिक स्वास्थ्य के लिए काउंसलिंग सेवाएं उपलब्ध कराना।

 

7. विद्यालयी प्रशासन और स्वायत्तता

 

- स्कूल प्रबंधन समितियों (School Management Committees - SMC) को मजबूत करना।

 

- स्कूलों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना ताकि वे स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम को अनुकूलित कर सकें।

 

- अभिभावकों और समुदाय के साथ सक्रिय सहभागिता।

 

8. नैतिक और पर्यावरणीय शिक्षा पर ध्यान

 

- नैतिक मूल्यों और पर्यावरणीय जागरूकता को पाठ्यक्रम में शामिल करना।

 

- प्रायोगिक शिक्षा जैसे सामुदायिक परियोजनाओं और सेवा-कार्य का प्रावधान।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का कार्यान्वयन

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत 5+3+3+4 शैक्षणिक संरचना को पूरी तरह लागू करने के लिए कोई निश्चित अंतिम तिथि तय नहीं की गई है। हालाँकि, इसे चरणबद्ध तरीके से 2023-24 से लागू किया जा रहा है और कई राज्यों ने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक अलग-अलग स्तरों पर इस ढाँचे को अपनाने की पहल शुरू कर दी है। चरणबद्ध कार्यान्वयन में सबसे पहले आधार (बालवाटिका) चरण (Foundation Stage) की शुरुआत की गई है, जिसमें प्ले स्कूल और नर्सरी को शामिल किया गया। इसके बाद प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर बदलाव हो रहे हैं, जहाँ नई पाठ्यचर्या और मूल्यांकन प्रणाली अपनाई जा रही है। इसके साथ ही, राज्यों को अपनी नीतियों और शैक्षणिक ढांचे के अनुसार NEP को लागू करने की स्वतंत्रता दी गई है, जिससे गति और प्रक्रियाओं में विविधता आ रही है। विशेष रूप से कुछ राज्य, जैसे उत्तराखंड और हरियाणा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की अपेक्षाओं को तेजी से लागू कर रहे हैं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी परिवर्तन हो रहे हैं, जहाँ 4-वर्षीय स्नातक कार्यक्रम और क्रेडिट बैंक जैसी पहलें अपनाई जा रही हैं।

 

इस व्यापक बदलाव के पूर्ण कार्यान्वयन में कई साल लग सकते हैं, क्योंकि प्रत्येक राज्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के साथ अपनी नीतियों का तालमेल बिठाना होगा और विभिन्न बुनियादी ढाँचे और प्रशिक्षण की आवश्यकताएँ पूरी करनी होंगी। इसलिए, यह एक सतत प्रक्रिया है, जो 2030 तक पूरी तरह कारगर हो सकती है, लेकिन इस संदर्भ में समय-सीमा लचीली रखी गई है।

 

सार

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 भारत की नवीनतम शिक्षा नीति है, जिसका उद्देश्य स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों क्षेत्रों में परिवर्तन लाना है, ताकि शिक्षा अधिक समावेशी, लचीली और कौशल-आधारित हो सके। इस नीति का उद्देश्य भारत की शिक्षा प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना है, जिसमें सृजनात्मकता, आलोचनात्मक चिंतन, और व्यावहारिक कौशल पर जोर दिया गया है। स्कूलों को इन परिवर्तनों को अपनाने के लिए शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों और प्रशासन के बीच सहयोग और निरंतर प्रयास की आवश्यकता होगी।

 

सादर,

केशव राम सिंघल

शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

आत्मविश्वास की महत्ता

आत्मविश्वास की महत्ता 










"पंछी ने किया जब अपने पंखों पर विश्वास

दूर-दूर तक हो गया उसका आकाश।"


उपर्युक्त पंक्तियाँ आत्मविश्वास की महत्ता को इंगित करती हैं। यह आत्मविश्वास ही है जो हमें सफलता की ऊँचाइयों पर ले जाता है। ये पंक्तियाँ अत्यंत प्रेरणादायक हैं और आत्मविश्वास की महत्ता को सरल और प्रभावी तरीके से व्यक्त करती हैं। इसके गूढ़ अर्थ पर विस्तार से बात करते हैं। 


1. 'पंछी ने किया जब अपने पंखों पर विश्वास' 


यह वाक्य आत्मविश्वास के बारे में मूल विचार को दर्शाता है। यहाँ पंछी प्रतीकात्मक रूप में उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो अपनी क्षमता और योग्यता पर भरोसा करता है। पंख यहाँ व्यक्ति के कौशल, गुण, और सामर्थ्य को इंगित करते हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़ सकता है। आत्मविश्वास के बिना पंख होने के बावजूद उड़ान नहीं भरी जा सकती।


2. 'दूर-दूर तक हो गया उसका आकाश'  


यह वाक्य आत्मविश्वास के फलस्वरूप संभावनाओं के विस्तार को दर्शाता है। जब व्यक्ति अपने ऊपर विश्वास करता है, तो उसकी सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं, और वह नई ऊँचाइयों को छूने में सक्षम होता है।


आत्मविश्वास की उपयोगिता 


आत्मविश्वास व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का सही आकलन करने में मदद करता है और वह भय या असफलता की आशंका से मुक्त होकर आगे बढ़ता है। यह मनुष्य के भीतर सकारात्मक दृष्टिकोण और साहस का निर्माण करता है, जिससे वह कठिन परिस्थितियों का सामना कर पाता है। आत्मविश्वास व्यक्ति को सीमित मानसिकता से बाहर निकालकर असीमित अवसरों को पहचानने और उपयोग करने में सक्षम बनाता है। 


आत्मविश्वास की कमी के परिणाम


यदि व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी से ग्रस्त है, तो वह अपने कौशल का पूरा उपयोग नहीं कर पाता और अवसरों को गंवा सकता है। डर और असफलता की आशंका उसे आगे बढ़ने से रोकती है।


आत्मविश्वास विकास के लिए 


सकारात्मक सोच का अभ्यास करना चाहिए।

छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए। 

छोटे लक्ष्यों को प्राप्त कर आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए।

अपनी असफलताओं से सीख लेनी चाहिए, उन्हें हतोत्साह का कारण न बनने देना चाहिए।


सार 


संदर्भित पंक्तियाँ इस गहरे सत्य को सरल रूप में प्रस्तुत करती है कि आत्मविश्वास वह आधार है, जिससे किसी भी व्यक्ति का जीवन विस्तार पाता है। यह संदेश प्रेरणा देने वाला है और यह समझने की प्रेरणा देता है कि सफलता की पहली सीढ़ी स्वयं पर विश्वास करना है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि एक पंछी उड़ने के अपने पहले प्रयास में असफल हो सकता है, लेकिन हर प्रयास से उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और लगातार प्रयास उसे उड़ने के काबिल बनाता है। इसी प्रकार हमारे जीवन में भी हम कई बार असफलताओं का सामना करते हैं, पर अपने आत्मविश्वास और लगातार कोशिशों से सफलता प्राप्त करते हैं। 


सादर,

केशव राम सिंघल 

 

बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

खाद्य सुरक्षा के प्रमुख सिद्धांत

खाद्य सुरक्षा के प्रमुख सिद्धांत

 










विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सुरक्षित भोजन नियमावली (Five Keys to Safer Food Manual) 2006 में जारी की थी। इस नियमावली का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाना और भोजन जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए सरल और प्रभावी दिशानिर्देश प्रदान करना है। इस नियमावली में खाद्य सुरक्षा के पाँच प्रमुख सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। ये पाँच सिद्धांत निम्न हैं -

 

(1) स्वच्छता बनाए रखें (Keep Clean)

(2) कच्चे और पके हुए भोजन को अलग रखें (Separate Raw and Cooked Food)

(3) भोजन को अच्छी तरह पकाएँ (Cook Food Thoroughly)

(4) सुरक्षित तापमान पर भोजन का भंडारण करें (Store Food at Safe Temperatures)

(5) स्वच्छ पानी और सुरक्षित कच्ची सामग्री का उपयोग करें (Use Safe Water and Raw Materials)

 

हाल ही में भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards) ने भारतीय मानक आईएस 2491 :2024 खाद्य स्वच्छता - सामान्य सिद्धांत - रीति संहिता (IS 2491 :2024 Food Hygiene - General Principles - Code of Practices) जारी किया है, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सुरक्षित भोजन नियमावली से ही सिद्धांतों को लिया गया है। आइये हम उपर्युक्त पाँच सिद्धांतो की चर्चा करें।

 

स्वच्छता बनाए रखें (Keep Clean)

 

भोजन तैयार करते और परोसते समय स्वच्छता बहुत जरूरी है। भोजन तैयार करते समय और खाने से पहले हाथों की सफाई करें। खाना पकाने और परोसने के लिए उपयोग किए जाने वाले बर्तनों और स्थानों को साफ रखें। कीटाणुओं से बचने के लिए रसोई के उपकरणों और सतहों को नियमित रूप से साफ करें। गंदे पानी के उपयोग से बचें क्योंकि यह भोजन को दूषित कर सकता है। स्वच्छ पानी का उपयोग करें।

 

कच्चे और पके हुए भोजन को अलग रखें (Separate Raw and Cooked Food)

 

कच्चे माँस, मछली, और अन्य कच्चे खाद्य पदार्थों को पके हुए भोजन से अलग रखें ताकि एक-दूसरे के दूषण (Cross-contamination) से बचा जा सके। कच्चे और पके भोजन के लिए अलग-अलग चाकू और कटिंग बोर्ड का उपयोग करें।

 

भोजन को अच्छी तरह पकाएँ (Cook Food Thoroughly)

 

खाद्य पदार्थों को सही तापमान पर अच्छी तरह पकाएँ, ताकि सभी हानिकारक कीटाणु नष्ट हो सकें। माँस, चिकन, अंडे और समुद्री भोजन को विशेष रूप से अच्छे से पकाएँ। पहले से पके हुए भोजन को खाने से पहले अच्छी तरह गर्म करें।

 

सुरक्षित तापमान पर भोजन का भंडारण करें (Store Food at Safe Temperatures)

 

भोजन को सुरक्षित तापमान पर रखें। गर्म भोजन को 60°C से ऊपर और ठंडे भोजन को 5°C से नीचे के तापमान पर रखना चाहिए। यह ध्यान रखें कि पके हुए भोजन को लंबे समय तक कमरे के तापमान पर न रखें। बचे हुए भोजन को शीघ्रता से ठंडे स्थान पर रखें और उचित भंडारण करें।

 

स्वच्छ पानी और सुरक्षित कच्ची सामग्री का उपयोग करें (Use Safe Water and Raw Materials)

 

साफ पानी और सुरक्षित सामग्री का उपयोग भोजन तैयार करने में करें। ऐसे खाद्य पदार्थों का उपयोग करें जो रसायनों और दूषित पदार्थों से मुक्त हों। फल और सब्जियों को अच्छी तरह स्वच्छ तरीके से धोकर की उपयोग करें।

 

नियमावली का उद्देश्य

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा  2006 में जारी सुरक्षित भोजन नियमावली (Five Keys to Safer Food Manual) में दिए गए सिद्धांतो का उद्देश्य उपभोक्ताओं को भोजन से जुड़ी बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए उन लोगों को जागरूक करना है, जो भोजन तैयार करने और परोसने में लगे रहते हैं। इन सिद्धांतों का पालन कर सरल और आसानी से अपनाई जा सकने वाली प्रथाओं के माध्यम से घरेलू रसोई और व्यवसायों में खाद्य सुरक्षा बधाई जा सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की इस सुरक्षित भोजन नियमावली में हर प्रमुख सिद्धांत को विस्तार से समझाया गया है, ताकि लोग अपने दैनिक जीवन में उन्हें आसानी से लागू कर सकें और स्वस्थ आदतें अपनाएँ। इस भोजन नियमावली को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से प्राप्त किया जा सकता है।

 

सादर,

केशव राम सिंघल

 

शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

भाई-भाई के बीच संघर्ष: इतिहास की एक कड़वी सच्चाई

भाई-भाई के बीच संघर्ष: इतिहास की एक कड़वी सच्चाई









साभार NightCafe - प्रतीकात्मक चित्र


संसार में भाई-भाई के बीच के संघर्ष एक पुरातन सत्य है। कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया महाभारत युद्ध इसका प्रसिद्ध उदाहरण है, जहाँ भाइयों के बीच की प्रतिद्वंद्विता ने विनाशकारी युद्ध को जन्म दिया। रामायण में भी किष्किंधा के राज के लिए सुग्रीव और बाली के बीच का आपसी संघर्ष भाई-भाई के बीच हुआ टकराव ही था।


यदि आधुनिक काल की ओर देखें, तो रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा संघर्ष भी इसी तरह की कहानी बयां करता है। दोनों देशों के निवासियों के बीच ऐतिहासिक रूप से गहरा संबंध रहा, जो अब युद्ध का कारण बन गया है। इसी प्रकार, इजराइल और हमास के बीच का वर्तमान संघर्ष दो समुदायों के बीच के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास से उपजा है, जो एक समय एक ही मूल के थे।


भारत में भी हिन्दू और मुसलमानों के बीच कई बार संघर्ष हुए हैं, जो इस बात का संकेत देते हैं कि किसी समय एक ही समुदाय के लोग धर्मांतरण के बाद एक-दूसरे के विरोधी बन गए।


यदि हम इतिहास टटोलें तो हमें भाई-भाई के बीच हुए टकराव और संघर्ष के कई उदाहरण मिल सकते हैं। कुछेक निम्न हैं:


- बाबर और उनके भाइयों का संघर्ष: मुगल सम्राट बाबर, जो भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखने वाले थे, अपने भाइयों के साथ सत्ता संघर्ष में उलझे रहे। बाबर का सबसे बड़ा संघर्ष उनके भाई जहाँगीर मिर्ज़ा के साथ हुआ, जिसने उनके शासन को चुनौती दी। बाबर ने अपने भाई को पराजित करके काबुल पर अधिकार जमाया और बाद में भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की।


- औरंगजेब और दारा शिकोह: मुगल साम्राज्य में औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह को सत्ता की लालसा में पराजित किया और मृत्युदंड दिया।


- बिंदुसार के पुत्रों का संघर्ष (अशोक और उनके भाई): मौर्य सम्राट बिंदुसार की मृत्यु के बाद उनके पुत्रों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष हुआ। सम्राट अशोक ने अपने भाइयों को पराजित कर मौर्य साम्राज्य का राजा बनने के लिए कई भाइयों का वध किया। यह संघर्ष सत्ता के लिए था, और अशोक इस संघर्ष के विजयी होकर मौर्य सम्राट बने, जो बाद में अपने शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।


- राणा सांगा और उनके भाइयों का संघर्ष: मेवाड़ के राजा राणा सांगा और उनके भाइयों के बीच भी सत्ता का संघर्ष हुआ था। राणा सांगा ने अपने बड़े भाइयों को हराकर मेवाड़ की गद्दी पर अधिकार किया। यह संघर्ष उस समय मेवाड़ के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने वाला साबित हुआ और राणा सांगा ने अपनी वीरता और संघर्ष के कारण एक मजबूत राज्य स्थापित किया।


- मराठा साम्राज्य में शाहू और ताराबाई का संघर्ष: छत्रपति शाहू और महारानी ताराबाई के बीच का संघर्ष भी भाई-भाई के बीच के संघर्ष की श्रेणी में आता है। शाहू को शिवाजी के पुत्र संभाजी के पुत्र के रूप में सत्ता में आने का अधिकार था, जबकि ताराबाई ने अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय को सत्ता का उत्तराधिकारी घोषित किया। यह सत्ता संघर्ष वर्षों तक चला और मराठा साम्राज्य के भीतर गुटबाजी का कारण बना।


- चित्तौड़ के महाराणा उदयसिंह और उनके भाई शत्रु सिंह का संघर्ष: उदयसिंह और उनके भाई शत्रु सिंह के बीच भी सत्ता के लिए संघर्ष हुआ। उदयसिंह ने अपने भाई को हराकर चित्तौड़ के सिंहासन पर अधिकार किया। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप उदयसिंह चित्तौड़ के राजा बने और बाद में उनके पुत्र महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ वीरतापूर्वक संघर्ष किया।


- ग्रेट स्किज्म: ग्यारहवीं सदी में ईसाई चर्च का विभाजन भी एक विश्वास के अनुयायियों के बीच आंतरिक मतभेद का परिणाम था।


- अमेरिका में गृह युद्ध: अमेरिका का गृह युद्ध भी मूल रूप से उत्तर और दक्षिण के बीच का संघर्ष था, जो दास प्रथा और राज्यों के अधिकारों को लेकर उत्पन्न हुआ।


- शिया-सुन्नी विभाजन: इस्लाम के प्रारंभिक दिनों में पैगंबर मुहम्मद के उत्तराधिकार को लेकर हुए विवाद से शिया और सुन्नी समुदायों के बीच विभाजन हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।


- सिकंदर महान: मकदूनिया के सिंहासन के लिए सिकंदर ने भी अपने भाइयों से युद्ध किया।


उपर्युक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि सत्ता, विचारधाराओं, और संपत्ति के लिए भाई-भाई के बीच संघर्ष इतिहास के हर युग में देखे गए हैं। पारिवारिक और निकट संबंधों के बीच का यह टकराव समाज में व्यापक असर डालता है और इसने कई सभ्यताओं के पतन और उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज भी हमें भाई-भाई के बीच पारिवारिक संघर्षों और पारिवारिक विघटन के रूप में ऐसे बहुत से मामले देखने-सुनने को मिलते रहते हैं। भाई-भाई के बीच संघर्ष इतिहास की एक कड़वी सच्चाई रही है।


सादर,

केशव राम सिंघल


शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

मूर्खता, भय और लालच का प्रभाव

 मूर्खता, भय और लालच का प्रभाव 









साभार NightCafe - अलबर्ट आइंस्टीन का प्रतीकात्मक चित्र 


अलबर्ट आइंस्टीन का कथन, "तीन महान शक्तियाँ दुनिया पर राज करती हैं: मूर्खता, भय और लालच," ((Three great forces rule the world: Stupidity, fear and greed.) गहरे सामाजिक और मानवीय व्यवहारों की ओर संकेत करती है। इन शक्तियों का प्रभाव पूर्व में भी देखने को मिला और वर्तमान में भी ये उपस्थित हैं। इन तीनों शक्तियों को हम ऐतिहासिक और वर्तमान उदाहरणों के साथ समझने का प्रयास करते हैं।


1. मूर्खता (Stupidity)


मूर्खता का अर्थ है तर्कहीनता, अज्ञानता या समझ का अभाव। यह तब सामने आती है, जब लोग जानकारी होते हुए भी गलत निर्णय लेते हैं या आलोचनात्मक या विश्लेषणात्त्मक  सोच का उपयोग नहीं करते। मूर्खता का सामाजिक प्रभाव बहुत व्यापक है, खासकर जब सामूहिक रूप से लोग बिना सोचे-समझे किसी बात को मानते हैं या गलत दिशा में चलते हैं।


ऐतिहासिक उदाहरण:


नाज़ीवाद और हिटलर का उदय: बीसवीं सदी में नाज़ी जर्मनी और हिटलर का उदय एक प्रमुख उदाहरण है। हिटलर ने अपनी नस्लवादी और विभाजनकारी विचारधारा को प्रचार के माध्यम से जनता में फैलाया। बहुत से लोगों ने बिना सोचे-समझे हिटलर की विचारधारा का समर्थन किया, जिससे विश्व युद्ध और लाखों निर्दोष लोगों का विनाश हुआ।


वर्तमान उदाहरण:


अफवाह और गलत जानकारी का प्रसार: आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली अफवाहें और झूठी खबरें मूर्खता का एक प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। बिना सत्यापन के सोशल मीडिया की खबरों को लोग सत्य मान लेते हैं। बिना सत्यापन किए लोग अफवाहें और असत्य खबरे आगे अपने मित्रों और परिचितों को अग्रेषित कर देते हैं।  बिना सत्यापन के फैली जानकारियाँ बड़े स्तर पर समाज में विभाजन और तनाव पैदा करती हैं। कोविड महामारी के दौरान गलत जानकारी का प्रसार इसका उदाहरण है, जिसने टीकाकरण के खिलाफ भ्रम और भय उत्पन्न किया।


2. भय (Fear)


भय एक शक्तिशाली भावना है जो लोगों को तर्कहीन निर्णय लेने के लिए मजबूर कर सकती है। लोग अकसर अपनी सुरक्षा के लिए किसी विचार या बात का समर्थन करते हैं, चाहे वह नैतिक हो या न हो, क्योंकि वे किसी संभावित नुकसान से डरते हैं।


ऐतिहासिक उदाहरण:


शीत युद्ध और हथियारों की दौड़: बीसवीं सदी में, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध एक लंबे समय तक भय की स्थिति का उदाहरण है। दोनों देशों को परमाणु हमले का डर था, जिसके कारण उन्होंने हथियारों की दौड़ शुरू की और शांति की संभावना को लगातार पीछे धकेला। इस भय ने विश्व स्तर पर अनिश्चितता और अस्थिरता को जन्म दिया।


वर्तमान उदाहरण:


आतंकवाद का डर और राष्ट्रवादी नीतियाँ: वर्तमान में, आतंकवाद का भय अक्सर राष्ट्रों की नीतियों को प्रभावित करता है। कई देशों ने सुरक्षा के नाम पर कठोर अप्रवासी नीतियाँ लागू की हैं, जिससे सामाजिक असमानता बढ़ी है। यह भय अन्य संस्कृतियों और समुदायों के प्रति अविश्वास और भेदभाव को जन्म देता है।


3. लालच (Greed)


लालच तब होता है जब कोई संस्था या व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से परे अधिक संपत्ति, शक्ति, या नियंत्रण प्राप्त करने के लिए काम करता है। लालच समाज को असमानता और शोषण की ओर धकेलता है। लालच जब प्रभावी होता है, तब नैतिकता और न्याय पीछे छूट जाते हैं।


ऐतिहासिक उदाहरण:


औपनिवेशिक शोषण: सत्रहवीं और अट्ठारहवीं शताब्दी में यूरोपीय साम्राज्यवादी देशों ने अपने लालच के कारण एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के कई देशों पर नियंत्रण कर शासन किया। वे पराधीन राष्ट्रों के संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर अपने देश के धन और शक्ति को बढ़ाते रहे, जिससे उन पराधीन देशों की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और समाज पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ा।


वर्तमान उदाहरण:


वित्तीय संकट और कॉर्पोरेट लालच: 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट एक प्रमुख उदाहरण है कि कैसे लालच दुनिया पर राज कर सकता है। वित्तीय संस्थानों और बैंकों द्वारा अधिक मुनाफा कमाने की लालसा ने जोखिम भरे निवेश और अस्थिर ऋण नीतियों को जन्म दिया, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर संकट में डाल दिया।


सार 


अलबर्ट आइंस्टीन ने जिन तीन शक्तियों का जिक्र किया है—मूर्खता, भय और लालच—ये वास्तव में समाज और राजनीति के विभिन्न पहलुओं में गहराई से समाई हुई हैं। ये शक्तियाँ न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर भी निर्णयों और नीतियों को प्रभावित करती हैं। अगर हम इतिहास और वर्तमान को ध्यान में रखें, तो यह स्पष्ट होता है कि इन तत्वों का प्रभाव विनाशकारी हो सकता है, लेकिन जागरूकता और शिक्षा के माध्यम से हम इनसे बचने का प्रयास कर सकते हैं।


सादर,

केशव राम सिंघल 



बुधवार, 4 सितंबर 2024

भगवान श्रीगणेश: हमारे जीवन के शिक्षक

भगवान श्रीगणेश: हमारे जीवन के शिक्षक










गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है, विशेषकर दक्षिण भारत में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीगणेश जी का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। हम भारतवासी गणेश चतुर्थी के अवसर पर उत्साह और खुशी से झूम उठते हैं। हर काम करने से पहले हम भगवान श्रीगणेश का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी प्रार्थना करते हैं। गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। आइए हम भगवान श्रीगणेश का जन्मदिन मनाने के साथ-साथ उनके जीवन की शिक्षाओं को भी सीखने का प्रयत्न करें। भगवान श्रीगणेश की शिक्षाओं में हमें ज्ञान, दृढ़ता और करुणा गहराई से दिखाई देती हैं। भगवान श्रीगणेश शुभारम्भ के देवता और बाधाओं को दूर करने वाले देवता के रूप में पूजे जाते हैं। हर काम का शुभारम्भ करने से पहले हम भगवान् श्रीगणेश का आशीर्वाद लेने के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं। हिंदू संस्कृति में वे एक प्रतिष्ठित देवता हैं। उनका अनोखा रूप और उनसे जुड़ी कहानियाँ जीवन के गहन सबक देती हैं।

 

प्रतीक रूप में भगवान श्रीगणेश

 

1.   भगवान श्रीगणेश का हाथी जैसा मस्तक ज्ञान और बुद्धि की विशालता का प्रतीक है। भगवान श्रीगणेश का बड़ा मस्तक हमें बड़ा सोचने और अपने मन की असीमित शक्ति को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

 

2.   भगवान श्रीगणेश का एकल दाँत अनुकूलनशीलता और लचीलेपन का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान श्रीगणेश का एकल दाँत हमें शिक्षा देता है कि हमारे पास जो है उसका सर्वोत्तम उपयोग हम करें और कभी हार न मानें।

 

3.   भगवान श्रीगणेश के बड़े कान सक्रिय रूप से सुनने और सतर्क रहने के महत्व पर जोर देते हैं। उनके बड़े कान हमें अपने आस-पास की दुनिया के प्रति ग्रहणशील होने का पाठ पढ़ाते हैं।

 

4.   भगवान श्रीगणेश की सूंड लचीलापन और अनुकूलनशीलता का प्रदर्शन करते हुए चुनौतियों का सामना शालीनता से करने की क्षमता का प्रतीक है।

 

अपने भौतिक स्वरूप से परे, भगवान श्रीगणेश के गुण, उनका वाहन चूहा और उनके द्वारा धारण किया जाने वाला मोदक (मिठाई), गहरे आध्यात्मिक अर्थ रखते हैं। वे विनम्रता, इच्छाओं और भक्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं।

 










भगवान श्रीगणेश द्वारा बताए जीवन के चौदह सबक

 

आज की तेज़-तर्रार दुनिया में, युवा पीढ़ी भगवान श्रीगणेश की शिक्षाओं से सांत्वना और मार्गदर्शन पा सकती है। खामियों को स्वीकार करना, सचेत रहना और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना ऐसे कालातीत सबक हैं, जो हर पीढ़ी के लिए समान रूप से प्रभावशाली हैं। आइए, इन अमूल्य शिक्षाओं को ध्यान से समझने का प्रयास करते हैं:

 

1.   अपनी कमियों को स्वीकार करें -

 

भगवान श्रीगणेश आशा की किरण के रूप में खड़े हैं, जो अपने अनोखे रूप के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका हाथी जैसा सिर और एकल दाँत अपनी कमियों को स्वीकार करने का प्रतीक है। हमें अपनी कमियों और गलतियों को स्वीकार करना उनसे सीखना चाहिए। हमारी कमियाँ और गलतियाँ हमें सही राह पर चलना सिखाती हैं और इन्हें स्वीकार कर हम आत्म-विकास और आत्म-स्वीकृति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

 

2.   क्रोध में शांत रहना -

 

जब भगवान शिव, भगवान श्रीगणेश की पैदायश से अनजान थे, तो उन्होंने प्रवेश करने का प्रयास किया। श्रीगणेश ने उन्हें रोक दिया, जिससे भयंकर युद्ध हुआ। क्रोध और भ्रम के बावजूद अपने कर्तव्य को पूरा करने में गणेश का संघर्ष के दौरान शांत रहना इस बात को सामने रखता है और यह सिखाता है कि क्रोध में आवेगपूर्ण कार्य करने से पछतावे भरे परिणाम हो सकते हैं। भक्ति का अभ्यास करके और शांति बनाए रखकर, हम चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को अनुग्रह और बुद्धि के साथ पार कर सकते हैं, जैसा कि भगवान् श्रीगणेश ने अपने बचपन में किया था। भगवान श्रीगणेश की पैदायश से सम्बंधित कथा नीचे दी गई है।

 

3.   सावधानी से सुनें -

 

सावधानी से सुनने का अर्थ है वास्तव में सुनना। ऐसा करने से, हम अपने आप को गहरे संबंधों और समृद्ध अनुभवों के लिए खोलते हैं। भगवान श्रीगणेश के बड़े कान हमारे आस-पास की दुनिया से ज्ञान और समझ को ग्रहण करने के महत्व को दर्शाते हैं। विकर्षणों से भरी दुनिया में, सक्रिय रूप से सुनने से गहन अंतर्दृष्टि और मजबूत रिश्ते बनते हैं।

 

4.   कभी हार मत मानो -

 

भगवान श्रीगणेश की दृढ़ता की अनेक कहानियाँ हमें प्रेरित करती हैं। अपने माता-पिता की तलाश से लेकर अपने एकल दाँत के बावजूद उनके दृढ़ संकल्प तक, ये कहानियाँ दृढ़ता सिखाती हैं। चुनौतियाँ अपरिहार्य हैं, लेकिन दृढ़ संकल्प और विश्वास के साथ, सफलता संभव है। भगवान श्रीगणेश हमें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं भले ही रास्ता कठिन हो।

 

5.   क्षमा का अभ्यास करें -

 

शिकायत और अतीत की चोटों को अपने दिल में रखना एक भारी बोझ हो सकता है, जो हमारी आत्मा को दबा देता है। भगवान श्रीगणेश, अपनी असीम बुद्धि में, क्षमा और करुणा की परिवर्तनकारी शक्ति का उदाहरण देते हैं। अतीत की नाराजगी को दूर करके और समझ का रास्ता चुनकर, हम न केवल खुद को पूर्वाग्रहों से मुक्त करते हैं, बल्कि प्रेम और सद्भाव का माहौल भी बनाते हैं।

 

6.   ज्ञान का बुद्धिमानी से उपयोग करें -

 

भगवान श्रीगणेश को अक्सर समृद्धि के साथ जोड़ा जाता है, लेकिन उनका असली सार ज्ञान की खोज में निहित है। भौतिक इच्छाओं से प्रेरित दुनिया में, भगवान श्रीगणेश की शिक्षाएँ ज्ञान के मूल्य पर जोर देती हैं। ज्ञान को प्राथमिकता देकर, हम अपने आप को ज्ञान के एक ऐसे भंडार से भर लेते हैं जो समय पर जीवन की जटिलताओं के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करता है।

 

7.   विनम्रता को महत्व दें और सभी का सम्मान करें -

 

भगवान श्रीगणेश की अपनी दिव्य स्थिति के बावजूद अपने वाहन के रूप में एक छोटे से जानवर "मूषक" का चयन करना उनके द्वारा विनम्रता के महत्व को रेखांकित करना है। आज के युग में अहंकार और अभिमान अक्सर केंद्र में होते हैं, ऐसे में भगवान श्रीगणेश की शिक्षाएँ एक सौम्य अनुस्मारक के रूप में काम करती हैं कि सच्ची महानता विनम्रता और सेवा में निहित है। खुद को विनम्र स्थापित करके, हम वास्तविक संबंध बना सकते हैं और अपने आस-पास के लोगों का सम्मान और प्रशंसा अर्जित कर सकते हैं।

 

8.   आशावादी बनें -

 

भगवान श्रीगणेश के हाथी के मस्तक की कहानी परिवर्तन की अनिवार्यता का प्रमाण है। जीवन बदलती परिस्थितियों की एक श्रृंखला है, और भगवान श्रीगणेश हमें अनुग्रह और साहस के साथ परिवर्तन को स्वीकार करना सिखाते हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव का विरोध करने के बजाय, हमें जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के साथ सामंजस्य रखना और परिवर्तन में विशेषता खोजना सीखना चाहिए। एक सकारात्मक दृष्टिकोण दरवाजे खोल सकता है और सफलता और खुशी का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

 

9.   धैर्य का अभ्यास करें -

 

भगवान श्रीगणेश, जिन्हें अक्सर हम अपने नए प्रयासों की शुरुआत में याद करते हैं, धैर्य और दृढ़ता के प्रतीक हैं। तत्काल संतुष्टि की दुनिया में, गणेश की शिक्षाएँ हमें धैर्य के गुणों और इसके साथ मिलने वाले लाभों की याद दिलाती हैं। धैर्य का अभ्यास करके, हम खुद को आगे बढ़ने, सीखने और अपने लक्ष्यों को उस गति से प्राप्त करने की अनुमति देते हैं, जो हमारे लिए स्थायी सफलता सुनिश्चित करती है।

 

10. रिश्तों को संजोएँ -

 

भगवान श्रीगणेश के अपने माता-पिता, भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ गहरे बंधन की कहानियाँ रिश्तों के महत्व को उजागर करती हैं। आभासी संबंधों से प्रेरित दुनिया में, भगवान श्रीगणेश की शिक्षाएँ हमें अपने वास्तविक दुनिया के रिश्तों को संजोने और पोषित करने का आग्रह करती हैं, उन्हें भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण के आधार के रूप में पहचानती हैं।

 

11. संतुलन की तलाश करें -

 

सामान्य मुद्रा में भगवान श्रीगणेश अपना एक पैर जमीन पर और दूसरा अपने घुटने पर टिकाए हुए दिखते हैं, जो संतुलन का प्रतीक हैं। उनकी मुद्रा हमें अपनी भौतिक और आध्यात्मिक खोजों के बीच संतुलन बनाने के महत्व को दर्शाती है। सफलता की तलाश में, संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है, यह सुनिश्चित करते हुए कि हम नई ऊँचाइयों पर चढ़ते हुए भी जमीन पर बने रहें।

 

12. वर्तमान में जिएँ -

 

भगवान श्रीगणेश के कान हमें अपने आस-पास के वातावरण के प्रति जागरूक रहने की याद दिलाते हैं। वर्तमान में रहकर हम जीवन सचेतनता का अभ्यास करके, हम अव्यवस्था को दूर कर सकते हैं, सांसारिकता में सुंदरता की सराहना कर सकते हैं और उथल-पुथल के बीच शांति पा सकते हैं। यह बढ़ी हुई जागरूकता हमारे अनुभवों को समृद्ध करती है, जीवन और उसमें हमारे स्थान की गहरी समझ को बढ़ावा देती है।

 

13. छोटी जीत की खुशी मनाएँ -

 

हर उपलब्धि, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, सफलता की ओर एक कदम है और इसकी खुशी मनाई जानी चाहिए। भगवान श्रीगणेश छोटी जीत की खुशी मनाने के प्रतीक हैं। उनकी कहानियाँ छोटी उपलब्धियों को स्वीकार करने के महत्व को उजागर करती हैं, जो बड़ी सफलताओं की ओर ले जाती हैं। उनके हाथ में मोदक छोटे प्रयासों से मिलने वाले पुरस्कारों की मिठास का प्रतीक है।

 

14. तनाव के समय में सकारात्मक दृष्टिकोण -

 

तनाव के समय में सकारात्मक दृष्टिकोण का उदाहरण देने वाली सबसे प्रतिष्ठित कहानियों में से एक यह है कि कैसे बालक श्रीगणेश का मस्तक हाथी का हो गया। अपने बदले हुए रूप पर विलाप करने या अतीत पर ध्यान देने के बजाय, बालक श्रीगणेश ने अपने नए रूप को अनुग्रह और सकारात्मकता के साथ अपनाया। सकारात्मक सोच के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने से चुनौती कम नहीं होती, बल्कि हमें आशा और उम्मीद के साथ उसका सामना करने की शक्ति मिलती है, यह पाठ हमें भगवान श्रीगणेश से सीखने को मिलता है ।

 

भगवान श्रीगणेश की पैदायश से सम्बंधित कथा

 

शिवपुराण में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया। भगवान शिव ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया, परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का मस्तक काट दिया। इससे माता पार्वती क्रुद्ध हो उठीं। माता पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव के आदेश पर विष्णुजी सबसे पहले मिले जीव हाथी (गज) का मस्तक काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने हाथी (गज) के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने खुशी से आनंदित हो उस गज-मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। भगवान शिव ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन, विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय भगवान श्रीगणेश की पूजा करने के पश्चात् चंद्रमा को अ‌र्घ्य देकर मिष्ठान खिलाएँ और खाएँ। ऐसी मान्यता है कि श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

 

भगवान श्रीगणेश के जीवन और शिक्षाओं में वह गहनता और ज्ञान है जो हमें जीवन की कठिनाइयों से उबरने और आत्म-विकास की ओर प्रेरित करती है। आज के समय में, जब चुनौतियाँ और प्रतिकूलताएँ हमारे रास्ते में आती हैं, भगवान श्रीगणेश की शिक्षाएँ हमें सही मार्ग दिखाने का कार्य करती हैं। उनके प्रतीक और उनके द्वारा दी गई शिक्षाएँ हमें आशावाद, धैर्य, और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। आइए, हम इस गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान श्रीगणेश के चरणों में समर्पित होकर उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में आत्मसात करें और जीवन को सही मायनों में सार्थक बनाएँ।

 

सादर,

केशव राम सिंघल

आलेख में शामिल सम्बंधित चित्रों की रचनाकार - श्रीमती मधु सिंघल 


शनिवार, 17 अगस्त 2024

टकराव टालो

टकराव टालो 

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सार - यह आलेख एक दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जिसमें टकराव से बचने और हल निकालने पर जोर दिया गया है। आलेख में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं जैसे कि टकराव से शक्ति नष्ट होती है, बैरभाव से ही टकराव उत्पन्न होता है, और जिस व्यक्ति का टकराव और बैरभाव समाप्त हो गया, समझो उसका मोक्ष हो गया।

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विज्ञान के अनुसार 13.7 अरब वर्ष पहले एक छोटे से बिंदु से फैलते हुए ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। एक बहुत बड़े टकराव के साथ धमाका हुआ और उस धमाके के साथ  सृष्टि की रचना हुई। टकराव से यह जगत निर्मित हुआ है। यह जगत टकराव ही है। यह स्पंदन स्वरूप है। टकराव टालो। टकराव मिटा दो, संघर्ष मिटा दो, नहीं तो हमारे मन में एक नई टकराव वाली दुनिया बन जाएगी।


बुद्धि ही संसार में टकराव करवाती है। टकराव हमारी अज्ञानता की निशानी है। इस दुनिया में जो भी टकराता है, वे निर्जीव वस्तुएँ होती हैं। जो टकराते हैं, वे जीवंत नहीं होते। जीवंत टकराते नहीं, हल खोजते हैं। निर्जीव वस्तुएँ टकराती हैं। इसलिए जो भी आपसे टकराए, उसे दीवार जैसा निर्जीव समझ लेना। टकराव करने वाले से टकराव टालना है, प्रतिक्रिया से बचना है। 


इस संसार का सबसे बड़ा धर्मयुद्ध महाभारत पांडवों और कौरवों के बीच लड़ा गया, जिसमें लाखों सैनिक मारे गए और अंत में मात्र  18 योद्धा ही जीवित बचे थे। महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला और लगभग 45 लाख सैनिक और योद्धाओं में हजारों सैनिक लापता हो गए, जबकि युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे, जिनके नाम हैं- कौरव पक्ष के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि। महाभारत युद्ध इस बात का प्रमाण है कि पांडव और कौरव अपने बीच आपसी टकराव नहीं टाल सके, जिसका अंत भारी नुकसान के साथ हुआ।   


ये जो टकराव करते हैं या करवाते हैं, सभी निर्जीव दीवारें हैं। जो टकराते हैं, वे भी निर्जीव दीवारें ही हैं। ऐसा अपनी बुद्धि में डाल लो। दरवाजा अर्थात् हल (solution) कहाँ है, उसे ढूँढो तो अँधेरे में दरवाजा अर्थात् हल मिल ही जाएगा। अँधेरे में ऐसे हाथ से टटोलते-टटोलते दरवाजा मिल ही जाता है, फिर वहां से निकल जाओ। किसी भी हालत में टकराना नहीं है। अपने लिए नियम बनाओ - मुझे किसी से टकराना नहीं है। 


टकराव से दुःख होता है, सारा समय बिगड़ जाता है। टकराव से सज्जनता चली जाती है, मानवता का ह्रास होता है। टकराव का कारण अज्ञानता है। जब किसी के साथ मतभेद होता है, तो वह हमारी निर्बलता की निशानी है। लोग गलत नहीं हैं, मतभेद में गलती हमारी है। अगर कोई जानबूझकर भी विवाद पैदा कर रहा हो, तो हमें उससे क्षमा माँग लेनी चाहिए। कहना चाहिए - "भैया, यह मेरी समझ में नहीं आता।" लोग मतभेद को लंबा खींचे, ऐसा होता नहीं। जहाँ टकराव हुआ, वहाँ अपनी भूल है, ऐसा समझना चाहिए। 


कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आ जाती है, जब सामने वाला हमारा अपमान करने लगता है। वास्तव में ऐसे समय सामने वाला अहंकारी होता है। वह अपने अहंकार के वशीभूत होता है, पर इससे हमारा क्या बिगड़ने वाला? उसे उसकी गलती मत बताओ, बल्कि कहो - मेरी ही भूल है। अपनी भूल को स्वीकार कर लो। भूल स्वीकार करने के बाद ही हल निकलता है। 


टकराव टालने और हल निकालने की हमारी प्रवृति हो, फिर भी सामने वाला व्यक्ति हमें परेशान करे, अपमान करे, तब हम क्या करें? मेरा उत्तर है - कुछ नहीं। हमें ध्यान रखना है कि टकराव से हमारी सारी आत्मशक्ति ख़त्म होती है। ज़रा सा भी टकराए तो हमारी आत्मशक्ति का ह्रास। सामने वाला टकराए, तो हमें संयम से रहना चाहिए। टकराव तो होना ही नहीं चाहिए। फिर चाहे तो यह शरीर भी जाना हो तो जाए, मगर टकराव में नहीं आना चाहिए। टकराव से हर हालत में बचने का प्रयास करो।  


यदि टकराव नहीं हो तो मनुष्य को शान्ति मिल जाए, वह मोक्ष प्राप्त कर ले। किसी ने इतना ही सीख लिया कि मुझे टकराव में नहीं आना है तो उसे किसी की भी जरुरत नहीं। एक-दो जन्मों में उसका मोक्ष निश्चित है। "टकराव में नहीं आना है।" ऐसा यदि किसी व्यक्ति के मन में बैठ गया और उसने निश्चय कर लिया तो वह संयमित हो गया। मन में इच्छा होती है। मन की इच्छा के कारण कर्मबन्धन है। मन रूपी नौका इस संसार के साधनों से चलती है, पर हमें अपना जीवन उन्नत करना है और मन को इसी संसार के पार ले जाना है। इसके लिए मन को लक्ष्य और परिस्थितियों के अनुसार संयमित करने की जरुरत है।


शरीर का टकराव हुआ हो और शरीर के किसी भाग में चोट लगी हो तो वह इलाज करने या मरहम-पट्टी से वह ठीक हो जाएगा, पर टकराव से मन में जो घाव पड़ गए हों, बुद्धि में जो घाव पड़े हों, उन्हें कौन ठीक करेगा। ऐसे घाव अनेक जन्मों तक नहीं जा पाएँगे। टकराव से मन-बुद्धि पर तो घाव पड़ते ही हैं, साथ ही पूरे अंतःकरण पर भी घाव पड़ते हैं। ध्यान रहे, टकराव से शक्ति नष्ट होती है। नया टकराव पैदा ना करो, इससे शक्तियाँ केंद्रित होंगी। 


इस दुनिया में बैरभाव से ही टकराव उत्पन्न होता है। संसार का मूल टकराव है। यह संसार टकराव से उत्पन्न हुआ। जिस व्यक्ति का टकराव और बैरभाव समाप्त हो गया, समझो उसका मोक्ष हो गया। प्रेम बाधक नहीं है, बैरभाव जाए तो प्रेम उत्पन्न हो जाए। यह समझना है हमें।  भले ही कोई व्यक्ति हमसे टकराए, पर हम किसी से न टकराएँ। इस तरह रहेंगे तो हमारी व्यावहारिक समझ बनी रहेगी। हमें किसी से टकराना नहीं है, अन्यथा हमारी व्यावहारिक समझ चली जाएगी। हमें ध्यान रखना है कि अपनी ओर से टकराव न हो। 


सामने वाले व्यक्ति द्वारा उत्पन्न टकराव से अपने में व्यावहारिक समझ पैदा होती है। आत्मा की यह ऐसी शक्ति है कि टकराव के वक्त कैसे व्यवहार करना है, उसके सभी उपाय हमारी आत्मा बता देती है। एक बार आत्मज्ञान हो गया तो वह जाएगा नहीं। ऐसा करते-करते हमारी व्यावहारिक समझ बढ़ती जाएगी।  


निष्कर्ष 


1. टकराव से हमारी आत्मशक्ति ख़त्म होती है।

2. टकराव से मन में जो घाव पड़ गए हों, बुद्धि में जो घाव पड़े हों, उन्हें ठीक करना मुश्किल है।

3. टकराव से शक्ति नष्ट होती है।

4. बैरभाव से ही टकराव उत्पन्न होता है।

5. जिस व्यक्ति का टकराव और बैरभाव समाप्त हो गया, समझो उसका मोक्ष हो गया।


सादर,

केशव राम सिंघल 


गुरुवार, 25 जुलाई 2024

जीवन में गुणवत्ता सुधार - अपनी रसोई को शून्य-अपशिष्ट में बदलें

जीवन में गुणवत्ता सुधार -

अपनी रसोई को शून्य-अपशिष्ट में बदलें

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  • गुणवत्तापूर्ण जीवन में सुधार के लिए अपनी रसोई के लिए शून्य-अपशिष्ट (zero-waste) नीति अपनाएँ
  • पैसे बचाएँ और भोजन को और भी स्वादिष्ट बनाएँ
  • भारत में उत्पादित सभी खाद्य पदार्थों में से एक-तिहाई खाने से पहले ही बर्बाद हो जाता है या खराब हो जाता है
  • दुनिया भर में हर साल 1.3 बिलियन टन भोजन बर्बाद हो जाता है

रसोई के कचरे को कम करने के लिए, हम निम्नलिखित उपायों को लागू कर सकते हैं -

·       अपने भोजन की योजना बनाएँ: सप्ताहभर के लिए हमें एक मेनू बनाना चाहिए और उसके अनुसार ही खरीदारी करनी चाहिए। इससे हम केवल वही खरीदेंगे जो आवश्यक है और बर्बादी कम होगी।

    • उदाहरण: श्रीमती शर्मा हर रविवार को अपने परिवार के लिए पूरे सप्ताह का मेनू बनाती हैं। इससे वे केवल वही सामग्री खरीदती हैं जो उन्हें चाहिए, इसलिए उनके कचरे की मात्रा बहुत कम हो गई है

·       केवल उतना ही खरीदें जितना हमें चाहिए और उसे ठीक से स्टोर करें: फलों और सब्जियों को सही तरीके से स्टोर करने से उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है।

    • उदाहरण: राजेश अपनी सब्जियों और फलों को उचित तापमान पर स्टोर करते हैं, जिससे वे अधिक समय तक ताजे रहते हैं और बर्बादी कम होती है

·       खाने के हिस्से के आकार का ध्यान रखें: खाने का हिस्सा कम रखें ताकि प्लेट में खाना बर्बाद हो।

    • उदाहरण: गुप्ता परिवार खाने की प्लेटों में खाने की सामग्री के छोटे हिस्से रखता है, जिससे यदि किसी को चाहिए तो वह दुबारा ले सकता है, और खाने की बर्बादी कम होती है

·       बचे हुए खाने को पुनः उपयोग करें: सूप, पराठे, सलाद, सैंडविच आदि में बचे हुए खाने को इस्तेमाल करें।

    • उदाहरण: अनिता बचे हुए चावल से हर दूसरे दिन स्वादिष्ट तवा पुलाव बनाती हैं, जिससे खाना बर्बाद नहीं होता और एक नया स्वाद भी मिलता है

·       खाद बनाना शुरू करें: अपने घर के बगीचे में फलों और सब्जियों के अवशेषों, कॉफी के अवशेषों, अंडे के छिलकों और अन्य जैविक कचरे से खाद बनाना शुरू करें।

    • उदाहरण: संजय अपने घर के बगीचे में खाद बनाने का काम शुरू किया है। इससे उनके पौधों को पोषण मिलता है और कचरे की मात्रा भी कम होती है

·       खाद्य-अपशिष्ट को कम करें: सब्जी के शोरबे के लिए प्याज के छिलके, सूप के लिए धनिया के तने और स्वाद बढ़ाने के लिए खट्टे फलों के छिलकों का इस्तेमाल करें।

    • उदाहरण: माया सब्जियों के छिलकों से शोरबा बनाकर उसे विभिन्न व्यंजनों में इस्तेमाल करती हैं, जिससे उनके खाने में स्वाद बढ़ता है और कचरा भी कम होता है

अपनी रसोई को शून्य-अपशिष्ट में बदलकर, हम अपने जीवन में गुणवत्ता सुधार कर सकते हैं और बहुत सारा पैसा बचा सकते हैं।

शुभकामनाएँ,

केशव राम सिंघल