मंगलवार, 18 मार्च 2025

दास्ताँ - 2 - दिल्ली में नमक हराम की हवेली

दास्ताँ - 2 - दिल्ली में नमक हराम की हवेली

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दिल्ली की हवेलियाँ और इमारतें ऐतिहासिक गाथाएँ सुनाती हैं। दिल्ली में नमक हराम की हवेली, चाँदनी चौक के कूचा घसीराम गली में है। कहा जाता है कि यह हवेली 19वीं सदी की शुरुआत में बनी थी। 'नमक हराम की हवेली' से सम्बंधित जानकारी के बारे में ऐतिहासिक प्रमाणों की कमी है।

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19वीं सदी की शुरुआत तक भारत की अनेक रियासतें, राजा-रजवाड़े ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी स्वीकार कर चुके थे, लेकिन कुछ रियासतें उस समय भी अंग्रेजों से लड़ रही थीं। उनमें से एक थे इंदौर के नौजवान महाराजा यशवंतराव होलकर। अनेक रियासतों ने अंग्रेजों के आगे सिर झुका लिया लेकिन होलकर ने ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी स्वीकार नहीं की, बल्कि अंग्रेजों से लड़ने का फैसला किया।

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सन् 1803 में पटपड़गंज के इलाके में मराठा दौलत राव सिंधिया और अंग्रेज़ों के बीच एक बड़ी लड़ाई हुई थी। यशवंतराव होलकर इस युद्ध में शामिल नहीं थे, लेकिन उन्होंने 1804 में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया था। भवानी शंकर खत्री, इंदौर के नौजवान महाराजा यशवंतराव होलकर के वफ़ादार थे। इस लड़ाई में खत्री ने महाराजा यशवंतराव के साथ विश्वासघात कर अंग्रेज़ों का साथ दिया था और उन्होंने महाराजा होलकर और मराठा सेना की खुफिया जानकारी अंग्रेजों को दे दी थी, इसलिए अंग्रेज़ों ने खत्री की अंग्रेजो के प्रति वफ़ादारी और महाराजा होलकर से की गई गद्दारी से खुश होकर उन्हें चाँदनी चौक में एक शानदार हवेली तोहफ़े में दी थी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जब दिल्ली में विद्रोह भड़का, तब से इस हवेली का नाम 'नमक हराम की हवेली' पड़ गया। भवानी शंकर खत्री के विश्वासघात से जुड़ी जानकारी मुख्य रूप से मौखिक परंपरा में ही मिलती है।

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समय के साथ, यह हवेली मौखिक इतिहास का हिस्सा बन गई और इसके नाम के पीछे की कहानी आज भी लोगों की स्मृतियों में है। यह एक पारंपरिक मुगल और राजपूत शैली की हवेली है, जो उस समय की शाही वास्तुकला को दर्शाती थी। हवेली की प्रमुख विशेषताएँ निम्न थीं- इसके बड़े प्रवेश द्वार– लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे, जो अब जर्जर स्थिति में हैं। खूबसूरत झरोखे – राजस्थान और मुगल वास्तुकला से प्रेरित बालकनी और झरोखे। आलीशान आँगन, जिसमें पहले बड़े उत्सव और आयोजन होते थे। संगमरमर के खंभे और मेहराब– हवेली के आंतरिक हिस्सों में सुंदर नक्काशी थी, जो अब टूट-फुट चुकी है। अब यह हवेली खंडहर में तब्दील हो चुकी है और इसकी भव्यता की केवल कल्पना ही की जा सकती है।

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कुछ स्रोतों में यह हवेली 'घसीटा हवेली' या 'गद्दारों की हवेली' के रूप में भी वर्णित है। सुना कि हवेली में कुछ लोग अवैध कब्जा कर रहते हैं और कुछ पुराने किरायेदार भी हैं। यह हवेली एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसके संरक्षण के लिए कोई पहल होती नहीं दिखाई दी और समय के साथ यह लुप्त होने कगार पर है। अब यह हवेली इतिहास में दबी एक भूली-बिसरी निशानी बनकर रह गई है।

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सादर,

केशव राम सिंघल

(संकलित जानकारी)

आलेख में प्रयुक्त चित्र साभार: Times Now Navbharat (स्रोत लिंक) 

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