मंगलवार, 12 अगस्त 2008

प्यार का बंधन अटूट …

प्यार का बंधन अटूट …

प्यार का बंधन अटूट,

प्रभु का अनमोल उपहार ,

प्यारा सा रिश्ता अटूट ,

हमारी संस्कृति की सौगात …।

ऐसा पवित्र बंधन अटूट,

जिसमे बंधे हम और तुम,

मेरे दु:ख में तुम दु:खी,

और मेरी चोट का दर्द तुम्हे …।

भाई-बहन का रिश्ता प्यारा,

संसार का यह बंधन न्यारा,

उस डोर से बंधा हूँ मैं,

ऐसा पावन त्योहार हमारा …।

तेरा आशीष मुझे चाहिए,

तेरा दुलार मुझे चाहिए,

यही चाहना तुझसे बहना ,

तेरा पुचकार मुझे चाहिए ....

अब इस ब्लॉग की मेरी बहनों के लिए –

आपने दिया बहुत अनुराग,

आप सभी बहनों को प्रणाम,

हे ईश्वर, मुझे वह शक्ती दे,

करुँ मैं आप सबका जीवन भर सम्मान …।

शुभकामनाओं के साथ ......

आपका,

केशव सिंघल

यह काव्य 16 अगस्त 2008 के लिए. वर्तनी की कुछ ग़लतियों के लिए माफी.

1 टिप्पणी:

YatindraSingh ने कहा…

अति उत्तम प्रयास - डॉ यतीन्द्र सिंह, अजमेर