शनिवार, 20 नवंबर 2021

तीन कृषि कानूनों की वापसी

 तीन कृषि कानूनों की वापसी

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*प्रधानमंत्री की घोषणा*

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार 19 नवम्बर 2021 को राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान देशवासियों से क्षमा मांगते हुए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। इस दौरान उन्होंने कहा, "इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के दौरान कहा, "हमारी सरकार किसानों के कल्याण के लिए, गांव-गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए पूरी सत्य निष्ठा से, ये कानून लेकर आई थी।" उन्होंने आगे कहा, "शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी, जिसके कारण दीए के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए।"

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन, फसलों के पैटर्न बदलने, एमएसपी को अधिक प्रभावी बनाने जैसे विषयों पर निर्णय लेने के लिए एक कमिटी गठित की जाएगी। बकौल प्रधानमंत्री, इस कमिटी में केंद्र व राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, किसान, कृषि वैज्ञानिक और कृषि अर्थशास्त्री शामिल होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान के बाद प्रदर्शनकारी किसानों से कहा, "मेरा आग्रह है, आज गुरु पर्व का पवित्र दिन है, अब आप अपने-अपने घर लौटें, अपने खेत में लौटें।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद यह भी कहा, "मैंने जो कुछ भी किया, किसानों के लिए किया, मैं जो कर रहा हूँ वह देश के लिए कर रहा हूँ।" उन्होंने आगे कहा, "आज मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अब और ज़्यादा मेहनत करूंगा ताकि आपके व देश के सपने साकार हो सकें।"

 

*घोषणा के बाद कुछ प्रतिक्रियाएँ*

 

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान करने के बाद कहा है, "उन्होंने प्रकाश पर्व पर तीनों कृषि कानून वापस लेने का फैसला लेकर किसानों से माफी मांगी है।" पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा, "इससे बड़ी बात कोई नहीं कर सकता। मैं उनका आभारी हूँ।"

 

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा के बाद कहा, "उन्होंने (प्रधानमंत्री ने) अपनी गलती मान ली है।" उन्होंने आगे कहा, "पंजाब को उन्हें माफ कर देना चाहिए क्योंकि एक नए अध्याय की शुरुआत हो रही है। इस जीत का पूरा श्रेय संयुक्त किसान मोर्चा के सत्याग्रह को जाता है।"

 

पंजाब के उप-मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन कृषि कानून रद्द करने के ऐलान के बाद कहा है, "देर आए दुरुस्त आए, भारत सरकार ने अपनी गलती मानी, मैं इसका स्वागत करता हूँ।" रंधावा ने कहा कि किसान आंदोलन में करीब 700 किसानों की मौत हुई, पंजाब सरकार की तरह केंद्र भी उनके परिजनों की मदद करे।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया, "अथक संघर्ष करने वाले भाजपा की क्रूरता से विचलित नहीं होने वाले हर एक किसान को मेरी हार्दिक बधाई।"

 

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के बाद कहा है कि प्रधानमंत्री का निर्णय उनके बड़प्पन का परिचायक है। उन्होंने कहा, "इन कानूनों का मकसद किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाना था। मुझे दु:ख है कि इनका लाभ हम कुछ किसानों को समझाने में असफल हुए।"

 

अभिनेता सोनू सूद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान पर ट्वीट किया है, "किसान वापस अपने खेतों में आएंगे, देश के खेत फिर से लहराएंगे।" अभिनेता ने इस फैसले के लिए प्रदानमंत्री मोदी का धन्यवाद करते हुए लिखा, "इस ऐतिहासिक फैसले से, किसानों का प्रकाश पर्व और भी ऐतिहासिक हो गया, जय जवान जय किसान।"

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुक्रवार को तीन कृषि कानून को वापस लेने की घोषणा के बाद केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा, "साल भर से चले आ रहे किसानों के विरोध की आखिरकार जीत हुई है।" उन्होंने आगे कहा, "किसानों ने संघर्षों के इतिहास में एक उत्कृष्ट अध्याय को जोड़ा है। शहीदों, किसानों और संगठनों को नमन है।"

 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कृषि समिति के सदस्य अनिल घनवट ने केंद्र के तीनों कृषि कानून वापस लेने के ऐलान पर कहा है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान हित के ऊपर राजनीति को चुना है।" उन्होंने कहा, "हमारी समिति ने कई सुधार सुझाए थे, उनके इस्तेमाल की बजाय प्रधानमंत्री व बीजेपी ने पीछे हटने को चुना, वे सिर्फ चुनाव जीतना चाहते हैं।"

 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान के बाद ट्वीट किया, "देश के अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सिर झुका दिया। अन्याय के खिलाफ ये जीत मुबारक हो!" उन्होंने अपना पुराना ट्वीट शेयर किया जिसमें उन्होंने लिखा था, "मेरे शब्द लिख लीजिए...सरकार को कृषि विरोधी कानून वापस लेने पड़ेंगे।"

 

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तीनों कानूनों को रद्द किए जाने के एलान पर कहा कि 700 से अधिक किसान परिवारों, जिनके सदस्यों ने न्याय के लिए इस संघर्ष में अपने प्राणों की आहुति दी है, उनका बलिदान रंग लाया है। सत्य, न्याय और अहिंसा की जीत हुई है। लगभग 12 महीने के गांधीवादी आंदोलन के बाद आज देश के 62 करोड़ अन्नदाताओं-किसानों-खेत मजदूरों के संघर्ष व इच्छाशक्ति की जीत हुई। उन 700 से अधिक किसान परिवारों की कुर्बानी रंग लाई, जिनके परिवारजनों ने न्याय के इस संघर्ष में अपनी जान न्योछावर की। सत्ता में बैठे लोगों द्वारा बुना किसान-मजदूर विरोधी षडयंत्र भी हारा और तानाशाह शासकों का अहंकार भी। रोजी-रोटी और किसानी पर हमला करने की साजिश भी हारी। खेती-विरोधी तीनों काले कानून हारे और अन्नदाता की जीत हुई।

 

वरिष्ठ कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा - "लगभग 600 किसानों की शहादत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की है। भले ही यूपी चुनाव का दबाव है। पर गणतंत्र में जन भावनाएँ सर्वोपरि होती हैं। सरकार बहुत देर से समझी। आंदोलनकारी किसानों का अभिनंदन। अन्नदाता सुखी भव:।"

 

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुक्रवार को कहा, "किसानों को चिंता नहीं करनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कह दिया है कि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएंगे, तो यह निश्चित रूप से होगा ही।" उन्होंने कहा, "आज भी अगर कोई प्रधानमंत्री के बारे में अविश्वास की भावना रखते हैं तो मैं समझता हूँ यह बड़ी भूल है।"

 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों कृषि कानून रद्द करने के ऐलान के बाद कहा है, "आज प्रकाश दिवस के दिन कितनी बड़ी खुशखबरी मिली।" उन्होंने कहा, "700 से ज़्यादा किसान शहीद हुए, उनकी शहादत अमर रहेगी। आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी कि किस तरह, किसानों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर किसानी और किसानों को बचाया।"


शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में लिखा गया है, "किसान लड़ते रहे, शहीद हुए और आखिरकार जीत गए। 13 राज्यों के उप-चुनाव में बीजेपी को पराजय स्वीकार करनी पड़ी, उससे यह सद्बुद्धि आई है।" इसमें लिखा है, "पीछे नहीं हटेंगे, ऐसा कहने वाला अहंकार पराजित हुआ, परंतु अब भी अंधभक्त कहेंगे - यह साहब का मास्टर स्ट्रोक है!"

 

कृषि कानूनों को रद्द करने के प्रधानमंत्री मोदी के एलान को राजनीतिक स्टंट बताने वाले कई किसान संगठनों का कहना है कि तीन कृषि कानूनों के रद्द होने से किसानों की जिंदगी में कोई बड़ा बदलाव आने वाला नहीं हैं। जब तक केंद्र सरकार तमाम फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी) की कानूनी गारंटी नहीं देती तब तक किसानों की आय में वृद्धि की कल्पना नहीं की जा सकती। पंजाब के कई किसान संगठन तो एमएसपी से आगे तमाम कृषि कर्ज माफी की मांग पूरी न होने तक आंदोलन पर डटे रहने की बात कर रहे हैं।

 

तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा के बाद गाज़ीपुर सीमा पर किसानों ने जलेबियाँ बाँटकर जश्न मनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद किसानों ने 'किसान एकता ज़िंदाबाद' के नारे भी लगाए। वहीं, भारतीय किसान यूनियन ने कहा, "आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा, हम उस दिन का इंतज़ार करेंगे, जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान के बाद प्रदर्शनकारी किसानों से घर लौटने का आग्रह किया था।



*संयुक्त किसान मोर्चा का बयान*

 

प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने निम्न प्रेस वक्तव्य दिया -

 

"भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जून 2020 में पहली बार अध्यादेश के रूप में लाए गए सभी तीन किसान-विरोधी, कॉर्पोरेट-समर्थक काले कानूनों को निरस्त करने के भारत सरकार के फैसले की घोषणा की है। उन्होंने गुरु नानक जयंती के अवसर पर यह घोषणा करने का निर्णय लिया। संयुक्त किसान मोर्चा इस निर्णय का स्वागत करता है और उचित संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से घोषणा के प्रभावी होने की प्रतीक्षा करेगा। अगर ऐसा होता है, तो यह भारत में एक वर्ष से चल रहे किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत होगी। हालांकि, इस संघर्ष में करीब 700 किसान शहीद हुए हैं। लखीमपुर खीरी हत्याकांड समेत, इन टाली जा सकने वाली मौतों के लिए केंद्र सरकार की जिद जिम्मेदार है। संयुक्त किसान मोर्चा प्रधानमंत्री को यह भी याद दिलाना चाहता है कि किसानों का यह आंदोलन न केवल तीन काले कानूनों को निरस्त करने के लिए है, बल्कि सभी कृषि उत्पादों और सभी किसानों के लिए लाभकारी मूल्य की कानूनी गारंटी के लिए भी है। किसानों की यह अहम मांग  अभी बाकी है। इसी तरह बिजली संशोधन विधेयक को भी वापस लिया जाना बाकि है। एसकेएम सभी घटनाक्रमों पर संज्ञान लेकर, जल्द ही अपनी बैठक करेगा और यदि कोई हो तो आगे के निर्णयों की घोषणा करेगा।"

 

*पूर्व में भी मोदी सरकार अपने फैसलों से पीछे हटी*

 

यह पहली बार नहीं है कि मोदी सरकार अपने फैसलों से पीछे हटी है या हटना पड़ा है। 2015 में मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम वापिस लिया था। 2015 में सरकार को विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अधिनियम पर पुनर्विचार की मांग माननी पडी थी। सरकार राज्यसभा में संशोधन पारित नहीं करवा पाई थी अतः कानून को ठन्डे बास्ते में डालना पड़ा। बीज कानून में संशोधन भी भारी विरोध के कारण मोदी सरकार को छोड़ना पड़ा था।

 

*अध्यादेश के माध्यम से भी हो सकती थी कृषि कानूनों की वापसी*

 

प्रधानमंत्री ने अपनी घोषणा में कहा - "इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।" वैसे यदि सरकार चाहती तो अध्यादेश के माध्यम से इन तीन कृषि कानून को रद्द कर सकती थी। इससे किसान संगठनों को उस दिन का इंतज़ार नहीं करना पड़ता जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाता। जब सरकार ने तीन कृषि कानून को रद्द करने का निर्णय ले ही लिया था तो इस महीने के अंत का इन्तजार क्यों?

 

*प्रधानमंत्री की घोषणा स्वागतयोग्य पर प्रश्न बहुत से हैं*

 

प्रधानमंत्री की घोषणा स्वागतयोग्य है। लेकिन अभी भी बहुत से प्रश्न उठ खड़े हैं। सरकार किसान संगठन से बातचीत के लिए क्या कदम उठा रही है? न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी को लेकर क्या वह वास्तव में गंभीर है? कहीं यह केवल आगामी विधानसभा चुनाव जीतने के लिए की जाने वाली रणनीति तो नहीं है? जिन किसानों पर आंदोलन के दौरान मुकदमें हुए उन पर आगे क्या कार्रवाई होगी? इस आंदोलन में 700 से अधिक किसान शहीद हुए, क्या सरकार उनके परिवारों को उचित मुआवजा देगी? इन सभी प्रश्नों के उत्तर समय के गर्भ में हैं। जनतंत्र में कोई भी निर्णय सबसे चर्चा कर, सभी प्रभावित लोगों की सहमति और विपक्ष के साथ राय मशवरे के बाद ही लिया जाना चाहिए। इसलिए सबसे अहम और जरूरी बात है कि सरकार को ऐसा वातावरण बनाना चाहिए ताकि किसान संगठनों से बातचीत प्रारम्भ हो। यदि सरकार बातचीत प्रारम्भ नहीं करती है तो ऐसा सन्देश जाएगा कि सरकार अभी भी अंहकार में है।

 

मेरे इसी ब्लॉग में आप पिछला लिखा लेख 'छह माह से चल रहा किसान आंदोलन'  पढ़ सकते हैं और साथ ही इसी ब्लॉग में किसान आंदोलन और कृषि कानूनों से सम्बंधित निम्न पूर्व लेख भी आप पढ़ सकते है -

 

(१) तीन कृषि कानूनऔर किसान संगठनों की मांग,

 

(२) कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट का नजरिया, और

 

(३) किसान आंदोलन

 

आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा।

 

धन्यवाद,

 

केशव राम सिंघल

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