शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

जाने किस उम्मीद में ... #3


मन्दिर में भगवान नहीं, मूरत मिली उसकी, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में इधर-उधर खोजता-फिरता हूँ मैं !
- केशव राम सिंघल

इधर-उधर = क्भी इस मन्दिर में, कभी उस मन्दिर में, कभी गुरुद्वारे में, कभी मस्जिद में, तो कभी चर्च में ...

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