जाने किस उम्मीद में इधर-उधर खोजता-फिरता हूँ मैं !
- केशव राम सिंघल
इधर-उधर = क्भी इस मन्दिर में, कभी उस मन्दिर में, कभी गुरुद्वारे में, कभी मस्जिद में, तो कभी चर्च में ...
अपनी बात अभिव्यक्त करने का प्रयास, चाहे वे आपके विचारों से भिन्न ही क्यों ना हों .... पाठकों की टिप्पणी का स्वागत है, पर भाषा शालीन हो, इसका निवेदन है .... - केशव राम सिंघल, अजमेर, भारत.
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