सोमवार, 20 जुलाई 2015

जाने किस उम्मीद में ... #2


किस मंशा से जलाते रहे वे नफ़रत की आग, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में पैगाम मुहब्बत का गाता हूँ मैं ।
- केशव राम सिंघल

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