बुधवार, 15 जुलाई 2015

एक नजर यह भी .... एक ग़लत नजरिया ...


एक नजर यह भी ....

एक ग़लत नजरिया ...


बैंकों के सेवानिवृत कर्मचारी और अधिकारी ताकते रह गए हैं. उन्हें इस बार भी द्विपक्षीय समझौते दिनांक 25 मई 2015 में कुछ मिला नही. न तो बेसिक पेंशन में कोई बढ़ोतरी हुई और न ही पारिवारिक पेंशन में सुधार हुआ है. सबसे अधिक दुःख तो इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (Indian Banks' Association) के रवैये से हुआ, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया - "IBA maintained that any demand of retirees can be examined as a welfare measure as contractual relationship does not exist between banks and retirees." यह तो ऐसा वक्तव्य है जैसे वे कहना चाह रहे हों कि बैंक जो पेंशन सेवानिवृतों को दे रहे हैं, उसके लिए बैंकों की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है, यह तो कल्याण उपाय (welfare measure) के तौर पर दी जाने वाली राशि है, जो उनकी दया-अनुकम्पा है और जिसे कभी भी रोका जा सकता है. कितना ग़लत है ऐसा नजरिया ?

कानूनी रूप से देखा जाए तो इंडियन बैंक्स एसोसिएशन की सोच ग़लत है. वास्तव में पेंशन सेवानिवृत कर्मचारी/अधिकारी का वैधानिक अधिकार है, जो पेंशन रेग्युलेशन. 1995 से मिला, जो 29 सितंबर 1995 को अधिसूचित हुआ था. पेंशन रेग्युलेशन सेवानिवृत कर्मचारी/अधिकारी से संविदात्मक संबंध (contractual relationship) को स्वीकार करता है. पेंशन एक आस्थगित वेतन (deferred wage) है और इस तथ्य को पूरा विश्व स्वीकार करता है. आज जब संस्थाएँ सामाजिक उत्तरदायित्व (social responsibility) से अपने आपको अलग नहीं कर सकते तो इंडियन बैंक्स एसोसिएशन कैसे पेंशन सुधार से अपना मुँह मोड़ रहा है, यह समझ के बाहर है.

दुःख होता है इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के अधिकारियों पर जो संकीर्ण सोच रखते हैं और इसी कारण इंडियन बैंक्स एसोसिएशन का एक ग़लत नजरिया बना है. क्या वे नही जानते कि कभी वे भी सेवानिवृत होंगे.

- केशव राम सिंघल

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समय-समय पर 'एक नजर यह भी' के अंतर्गत लघु-लेखों के लिए 'अपनी बात' ब्लॉग http://krsinghal.blogspot.in/ देखने का निवेदन है.

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