आईने में जब दिखा बदसूरत चेहरा अपना, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में आईने को साफ़ करने लगा मैं !
भूल गया धूल आईने पर नहीं, चेहरे पर है, फिर भी,
जाने किस उम्मीद में आईने को साफ़ करने लगा मैं !
- केशव राम सिंघल
अपनी बात अभिव्यक्त करने का प्रयास, चाहे वे आपके विचारों से भिन्न ही क्यों ना हों .... पाठकों की टिप्पणी का स्वागत है, पर भाषा शालीन हो, इसका निवेदन है .... - केशव राम सिंघल, अजमेर, भारत.
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