शून्य की पूर्णता
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शून्य चित्र साभार - ओपनएआई (OpenAI)
शून्य है —
निराकार,
निर्वात (रिक्तता),
फिर भी है पूर्णता का आधार।
शून्य गणित की वह संख्या है, जिसे किसी भी संख्या में जोड़ने या घटाने पर मूल संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता। शून्य शब्द संस्कृत के "śūnya" (शून्य) से आया है, जिसका अर्थ है – रिक्त, शून्यता।
100 + 0 = 100
100 - 0 = 100
शून्य एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आज की सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव (additive identity) है।
हम सामान्यतः शून्य का प्रयोग खाली या 'कुछ नहीं' को दर्शाने के लिए करते हैं, परंतु उसी शून्य में बहुत कुछ समाहित है। यदि आप इसे गहराई से जानना चाहें, तो पहले स्वयं को जानिए।
जब हमने शून्य को और गहराई से समझने का प्रयास किया, तो इसके निम्न अर्थ सामने आए —
1. वह स्थान जिसमें कुछ भी न हो / खाली स्थान
2. आकाश
3. एकांत स्थान / निर्जन स्थान
4. बिंदु / बिंदी / सिफर (अरबी मूल का शब्द, जिसका अर्थ है – कुछ नहीं)
5. अभाव / राहित्य / कुछ न होना। जैसे —तुम्हारे हिस्से में शून्य है।
6. स्वर्ग
7. विष्णु
8. ईश्वर
कहैं एक तासों शिवे शून्य एकै। कहैं काल एकै महा विष्णु एकै। कहैं अर्थ एकै परब्रह्म जानो। प्रभा पूर्ण एकै सदा शून्य मानो।
9. कान में पहना जाने वाला एक गोलाकार आभूषण, जिसे शून्य रूप या ‘शून्य’ कहा जाता है।
शून्य की खोज भारत की एक अद्वितीय देन है। आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त जैसे गणितज्ञों ने शून्य को एक गणितीय संकल्पना के रूप में प्रस्तुत किया। ब्रह्मगुप्त (7वीं शताब्दी) ने शून्य के गणितीय नियमों को परिभाषित किया और इसे अन्य संख्याओं के साथ जोड़ने, घटाने आदि के सिद्धांत दिए।
भारतीय दर्शन में शून्य को 'शून्यता' या निर्वाण के रूप में देखा गया है — जो न केवल अंत है, बल्कि एक नई चेतना का आरंभ भी है। बौद्ध दर्शन में ‘शून्यता’ (Śūnyatā) का तात्पर्य है कि कोई भी वस्तु स्थायी, स्वतंत्र या आत्मनिष्ठ नहीं है — सब कुछ आपसी निर्भरता से उत्पन्न होता है। यही बोध व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है।
शून्य और ब्रह्म (अद्वैत दृष्टिकोण) में शून्य को 'परब्रह्म' या 'पूर्णता' का प्रतीक माना गया है — "पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।" यहाँ ‘पूर्ण’ का अर्थ भी शून्य की ही भांति है — एक ऐसा खालीपन जो पूर्ण है।
गणित में शून्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। दशमलव पद्धति की नींव शून्य पर ही आधारित है। कंप्यूटर विज्ञान की बाइनरी प्रणाली (0 और 1) में भी शून्य एक मूलभूत आधार है। इसके बिना आधुनिक विज्ञान, गणित और तकनीक की कल्पना नहीं की जा सकती।
पश्चिमी दुनिया में शून्य की अवधारणा 9वीं शताब्दी में अरब गणितज्ञों के माध्यम से पहुँची, जिन्होंने भारतीय अंकों और दशमलव पद्धति को अपनाया।
सार रूप में कह सकते हैं कि शून्य में कुछ नहीं, पर शून्य में हैं बहुत कुछ।
शून्य —
जहाँ कुछ नहीं, वहीं से बहुत कुछ शुरू होता है।
यह खाली नहीं, बल्कि अनंत की संभावना है।
गणित में संतुलन,
दर्शन में मौन,
और अध्यात्म में मोक्ष —
सब समाहित है शून्य में।
प्रसिद्द कथन - "Zero is not nothing; it is the beginning of everything." (शून्य कुछ नहीं नहीं है; यह सब कुछ का आरंभ है।)
शून्य —
जहाँ अंत है, वहीं आरंभ भी है।
जहाँ मौन है, वहीं संगीत भी है।
जहाँ खालीपन है, वहीं समग्रता है।
शून्य — नकार नहीं, बल्कि अनंत की ओर पहला कदम है।
सादर,
केशव राम सिंघल