कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल
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लेखक
- केशव राम सिंघल
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जब
भी हमारे मोहल्ले की औरतें बातचीत करती हैं तो उनके विषय पहले से निर्धारित तो होते
नहीं, पर कोई बात किसी ने कह दी बस उसी पर चर्चा शुरू हो जाती है। कभी-कभी तो ऐसा लगता
है कि ये औरतें बहुत कुछ जानती हैं।
अम्मा
जी ने बताया कि मैंने कहीं पढ़ा कि पतंजलि गाय के घी का सैम्पल फेल हुआ है, प्रयोगशाला
में मिलावट के साथ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया गया है इस घी को।
चाची
बोली कि मैंने नहीं सुनी यह खबर। हमारे घर तो पतंजलि का ही घी आता है। मैं मुन्ना से
कहूँगी कि वास्तविक जानकारी पता लगाए। वैसे बाबा रामदेव तो हर समय शुद्धता का दावा
करते है अपने उत्पादों पर।
शैलबाला
ने बताया कि पतंजलि ब्रांड गाय के घी का सैंपल खाद्य संरक्षा और औषधि विभाग के द्वारा
साल 2021 में दीपावली के पर्व पर टिहरी जनपद के घनसाली में एक दुकान से सैंपल भरा गया
था। जिसके बाद सैंपल को राज्य की प्रयोगशाला में जाँच के लिए भेजा गया था तो, सैंपल
फेल पाया गया। जिसके बाद खाद्य संरक्षा विभाग के द्वारा पतंजलि कंपनी को नोटिस जारी
किया तो, कंपनी ने राज्य की लैबोरेट्री को रिपोर्ट को गलत साबित किया। जिसके बाद फिर
से खाद्य संरक्षा विभाग के द्वारा केंद्रीय प्रयोगशाला में सैंपल भेजा गया तो केंद्रीय
प्रयोगशाला में भी पतंजलि ब्रांड गाय के घी का सैंपल फेल पाया गया। जिसके बाद खाद्य
संरक्षा विभाग कंपनी के खिलाफ टिहरी के एडीएम कोर्ट में वाद दायर करने जा रही है। खाद्य
संरक्षा अभिहित अधिकारी एमएन जोशी ने कहा कि प्रयोगशाला की रिपोर्ट के अनुसार पतंजलि
घी में मिलावट और घी मानकों के अनुरूप ना मिलने और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया
गया है।
चाची
बोली - तो अब यह मामला कोर्ट में है। कंपनी अपने विज्ञापन में कहती रही है कि पतंजलि
गाय का घी पोषक गुणों से भरपूर और एक आदर्श आहार है। गाय का घी स्मरणशक्ति, बुद्धि,
पाचन शक्ति, वसा को बढ़ाता है। वजन बढ़ाने की चाहत रखने वालों के लिए घी का नियमित
सेवन या आहार में घी को शामिल करने की सलाह दी जाती है। मैं मुन्ना से कहूँगी कि ये
भी पता लगाए कि क्या कंपनी एफएसएसएआई (FSSAI) मानकों का पालन करती है।
तभी
शैलबाला ने पूछा - ये एफएसएसएआई (FSSAI) मानक क्या होता है?
अम्मा
जी बताने लगीं - एफएसएसएआई भोजन के मानकों को स्थापित करने के लिए उत्तरदायी राष्ट्रीय
मानक संस्था है। खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता के लिए एफएसएसएआई किसी भी भोजन में इस्तेमाल
होने वाले रासायनिक, पोषक गुणों, भोजने के रंग, महक, आकार इत्यादि की जाँच करता है।
जाँच में सही पाए जाने के बाद ही उसे विक्रेताओं द्वारा बाजार में बेचा जाता है। खाद्य
सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत एफएसएसएआई निश्चित रूप से खाने में मिलावट पर
नियंत्रण करने का कार्य करता है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
चाची
बोली - हाँ, अम्मा जी, आजकल खाने की कोई चीज खरीदों उसके पैकेट पर एफएसएसएआई
(FSSAI) का सन्दर्भ और एक्सपायरी डेट छपी रहती है।
शैलबाला
कहने लगी - हाँ, मैं तो हरदम एक्सपायरी डेट देखकर ही खाने की चीज खरीदती हूँ, पर दालें,
चावल आदि बहुत सी चीजें तो हम अभी भी खुली ही खरीदते हैं पास के दुकानदार से। खुली
में चीजें सस्ती मिलती हैं, जबकि पैकिंग के बाद वही चीज दस-बीस प्रतिशत महँगी मिलती
है।
चाची
बोली - सो तो है। यदि कोई चीज खुली खरीदों तो देखभाल के खरीदों। हमारे यहाँ तो सिंधी की किराने की दुकान से खरीदें जाते हैं दाल,
चावल आदि। कोई चीज अगर गलत आ भी जाती है तो वह वापिस ले लेता है। आजकल वैसे भी ज्यादातर
चीजें पैकिंग में आने लगी हैं। सिंधी की किराने की दुकान अपने एरिया में करीब पिचहत्तर
साल पुरानी होगी। वह खुद भी ध्यान रखता है कि कोई गलत चीज ग्राहक के पास जाने न पाए।
सिंधी दादा ने शुरू की थी यह दुकान जब वे उन्नीस सौ सैतालिस में पाकिस्तान से भारत
आए थे। तब तो छोटी सी दुकान थी उनकी, पर व्यवहार उनका बहुत ही अच्छा था। अपना सब कुछ
पाकिस्तान में गँवाकर आए थे, पर यहाँ आकर मेहनत, लगन और ईमानदारी से शुरू की अपनी दुकान
तो आज इतनी बड़ी है और दुकान की प्रतिष्ठा भी खूब है।
भार्गव
आंटी कहने लगीं - बात तो आप लोग सही कह रही हो। पिछले दिनों कोरोना काल में मैं तो
परेशान थी। बच्चे तो रोजगार के कारण बाहर रहते हैं। हम बुढ्ढे-बुढ़िया बाजार जा नहीं
पा रहे थे तब इनके यहाँ से ही हमारे यहाँ सामान आ जाता था। हम लोग व्हाट्सएप्प से सामान
की लिस्ट भेज देते थे और इनके यहाँ से सामान घर आ जाता था और हम भुगतान भी ऑनलाइन कर
देते थे।
शैलबाला
बोली - आपको आता है ऑनलाइन पेमेंट करना?
भार्गव
आंटी बोली - अरे यह सब हमें अपने मोहल्ले की गुल्लू और इनु ने सिखाया। उन्होंने ही
हमारे मोबाइल में पेटीएम और गूगल पे का एप्प इंस्टाल किया और भुगतान कैसे करें सब कुछ
सिखाया। हालाँकि दोनों अभी छोटी है, पर जानती बहुत कुछ हैं। हमें यह भी बताया कि अपना
मोबाइल संभाल कर रखा करो और पासवर्ड किसी को मत बताना।
शैलबाला
बोली - भार्गव आंटी, बहुत खूब। वैसे भी आजकल के बच्चे बहुत कुछ जानते हैं। एक दिन मेरा
मोबाइल चल नहीं रहा था, मैं बहुत परेशान थी। पर घर के बच्चों ने उसे पता नहीं कैसे
ठीक कर दिया।
गुल्लू
और इनु की माताएँ भी वहाँ खड़ी थीं, यह सब सुनकर बहुत खुश हुईं।
चाची
कहने लगीं - आजकल तो बच्चे पैदा होते ही मोबाइल चलाना सीख जाते हैं। अम्मा जी बोलीं
- तुम सही कहती हो। अब तो उस्ताद पैदा होते हैं बच्चें।
यह
कथा-श्रृंखला, पाठको
को समर्पित है।
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और टिप्पणियों का।
कल्पना
और तथ्यों के
घालमेल से लिखी यह कथा-श्रृंखला रुचिकर लगेगी,
ऐसा मेरा विश्वास
है। कथा में दिए सभी चित्र प्रतीकात्मक हैं
तथा इंटरनेट से साभार लिए गए हैं।
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