शनिवार, 17 सितंबर 2022

कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल - 14

कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल

''''''''''''''''''

लेखक - केशव राम सिंघल

''''''''''''''''''

14

 

आज की बातचीत में स्थानीय झील में जलकुम्भी का मामला चाची ने उठा दिया, कहने लगीं - एक बार फिर हमारे शहर की मुख्य झील में तेजी से जलकुंभी पैर पसार रही है जबकि इसी झील की सुंदरता बढा़ने के नाम पर करोड़ों रूपए सरकार खर्च कर रही है। जलकुंभी की सफाई के लिए नगर निगम ने डिविडिंग मशीन खरीद रखी है, इसके बावजूद झील में जलकुम्भी बढ़ रही है।

 

तभी अम्मा जी ने कहा - नगर निगम तो बस अपने लोगों को ठेके देने में लगा रहता है। बिल बन जाते हैं और पैसा उठा लिया जाता है। जमीन पर काम होता नहीं। ऐसा ही जलकुम्भी के मामले में हुआ होगा।

 

अम्मा जी की बात सुनने के बाद शैलबाला बोली - अम्मा जी, जलकुंभी एक पानी में उगने वाला जंगली पौधा है जिसका इस्तेमाल कई बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है। इसका स्वाद मीठा और हल्का तीखा होता है। जलकुंभी की पत्तियों, फल और फूल का इस्तेमाल किया जाता है। जलकुंभी में विटामिन की मात्रा पाई जाती है जो हमारी हड्डियों के लिए फायदेमंद होता है, वहीं इसमें विटामिन भी मौजूद होता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और जुकाम जैसे वायरस समस्याएँ दूर होती हैं। जलकुंभी में विटामिन बी6, प्रोटीन, विटामिन ए, विटामिन बी, प्रोटीन, मैग्नीशियम जैसे कई पोषक तत्व होते हैं। जलकुंभी को आयुर्वेद में औषधी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कई बीमारियों का इलाज होता है। लोग इसे बेकार समझते हैं और उखाड़ कर यूंही फेंक देते हैं। यह ब्लड प्रेशर, हृदय रोग और डायबिटीज से लेकर कैंसर तक में कारगर है। कई स्थानों पर यह बाजार में भी बिकती है और लोग इसे सब्जी और सलाद की तरह खाते हैं। साथ ही, इसका फूल काफी सुंदर होता है। इसके फूल को सजावट के तौर पर भी उपयोग में लिया जाता है। जलकुंभी की जड़े मोटी और खोखली होती हैं। यह पौधा पानी को शुद्ध करने का काम करता है। आयुर्वेद दवा कंपनियों से संपर्क कर या अन्य ठेकेदारों को इस पौधे के उत्पादों को नगर निगम बेचकर अच्छी आय अर्जित कर सकता है। इस प्रकार अपने शहर के झील की जलकुंभी एक समस्या नहीं, आय का अच्छा स्रोत हो जाएगी।

 

चाची बोली - अरे शैलबाला, तुमने तो बहुत ही सटीक जानकारी दी है। इसे मैं अपने वार्ड के पार्षद को बताऊँगी, शायद वह कुछ कर सके।

 

तभी सुरुचि ने कहा - मैंने एक खबर पढ़ी थी जलकुम्भी के बारे में। असम के दिपोर बील झील में जलकुम्भी बढ़ी जा रही थी। वहाँ की छह लड़कियों ने झील की जलकुम्भी से बायोडिग्रेडेबल योगा मैट बना लिया है और अपने प्रोजेक्ट का नाम 'सीमांग' रखा है। मैट बनाने, रंगने, बुनने की विधि इको फ्रेंडली है और जलकुम्भी से बना मैट स्लिप-प्रूफ है।

 


अम्मा जी ने कहा - सुरुचि, कैसे तैयार करते हैं मैट? यदि कुछ जानकारी हो तो बताओ।

 

सुरुचि बोली - अम्मा जी, ज्यादा जानकारी तो मुझे नहीं है, फिर भी जितना मुझे पता है, बताती हूँ। मैट बनाने के लिए सबसे पहले जलकुम्भी को पानी से निकालकर धूप में सुखाया जाता है। पच्चीस किलो जलकुम्भी सूखकर करीब चार-पाँच किलो के लगभग हो जाती है, जिसके स्टेम को रुई के धागों के साथ बुनकर मैट तैयार किया जाता है।

 

चाची बोली - वाह। यह तो बहुत ही लाभदायक जानकारी दी तुमने।

 

तभी सुरुचि बोली - चाची, इस तरह बनी एक मैट बारह सौ रूपये से अधिक में बिक जाती है।

 

चाची ने कहा - यह बात भी मैं पार्षद को बताऊँगी। 

 

आज की बातचीत में राजनीति पर भी चर्चा हुई। अम्मा जी कहने लगीं - बहुत से लोग पूछते हैं कि मोदी जी का विकल्प कौन? और साथ ही कहते हैं कि मोदी जी को कोई विकल्प नहीं। विपक्ष चेहरा विहीन है जो मोदी जी का मुकाबला कर सके। कोई ऐसा नेता नहीं है जो मोदी जी का विकल्प हो। अधिकाँश ने मोदी जी को नायक मान लिया है जिसके सहारे वे समाज की समस्याओं से मुक्ति का स्वप्न देखते हैं।

 

तभी चाची बोली - हमारे देश की राजनीति नायक केंद्रित राजनीति रही है। हम नायक को पूजते हैं और उसी पर भरोसा करते हैं। हम विकल्प के लिए तैयार ही नहीं होते। नायक केन्द्रित मनोदशा ने हमारी स्थिति ऐसी कर दी है कि हम बस नायक की तलाश करते रह जाते हैं, और वर्तमान नायक से मोह छोड़ नहीं पाते। इंदिरा थीं तो हम इंदिरा इंदिरा करते थे, अब मोदी जी हैं तो हम मोदी मोदी करते हैं। हमें तो सिर्फ नायक चाहिए ताकि हम बेफिक्र रहें।

 

चाची ने जैसे ही बात ख़त्म की शैलबाला ने कहा - हम सिस्टम सुधारना नहीं चाहते, बस नायक पर आश्रित रहते हैं। क्या ऐसा नहीं लगता कि नायक की लगातार पूजा कर हम हम वैचारिक शून्यता की ओर जा रहे हैं? क्या हम नायक ही खोजते रहेंगे या फिर अच्छा विचार, अच्छा मूल्य, अच्छी प्रक्रिया, अच्छी नीति, अच्छी व्यवस्था खोजने के लिए कुछ करेंगे।

 


शैलबाला की बात सुनकर राजरानी बोली - नायक के नाम पर हम हमेशा भ्रमित होते रहे है। सांसद, विधायक चुनने के लिए हम अपना वोट प्रत्याशी के चरित्र और योग्यता को देखकर नहीं करते, बल्कि नायक के नाम पर वोट देते हैं। हम मान लेते हैं कि नायक की पार्टी का प्रत्याशी ही सबसे अच्छा प्रत्याशी है। हम नायक पर सबसे अधिक विश्वास करते हैं और यही हमारी सबसे बड़ी भूल होती है।  नायक के नाम पर वोट देने के कारण हम ऐसे लोग चुन लेते हैं जो अनेक अपराधों में आरोपी होते हैं और इन्ही लोगों में से कुछ मंत्री, मुख्यमंत्री आदि बन कर हम पर राज करते है। जिनकी जगह कारागार में होनी चाहिए, वे हमारे सत्ताधीश बन जाते हैं।

 

तब चाची ने कहा - सही बात कह रही हो तुम सभी। नायक को सिर्फ अपनी ताकत बढ़ाने में दिलचस्पी होती है और इसके लिए वह किसी आलोचना को पसंद नहीं करता। नायक अपने अनुयाईयों से केवल प्रशंसा के गीत सुनना चाहते हैं। नायक को अत्यधिक महत्त्व देना और उसी को सबसे श्रेष्ठ मान लेना हमारी मानसिक और सांस्कृतिक दरिद्रता को दर्शाता है। हमें नायक स्तुति से बचना चाहिए। जब भी हम नायक स्तुति में लिप्त रहते हैं, यह हमारी विश्लेषण करने की योग्यता और आलोचनात्मक विवेक को एक कोने में रख देता है, क्यों कि हम अच्छे विचार, अच्छे मूल्य, अच्छी प्रक्रिया, अच्छी नीति, अच्छी व्यवस्था पर बहस ना कर नायक पर बहस कर रहे होते हैं। नायक राजनीति को केन्द्र में रखने का अर्थ है कि हम समस्याओं पर सोचना बंद कर दें और नायक के भाषण, कपड़े, मीडिया, जलवे, शोहरत के क़िस्सों में समय व्यतीत करने लगें। ऐसा लगता है कि नायक केंद्रित राजनीति की वजह से आज की राजनीति में मीडिया और प्रचार ने सार्वजनिक जीवन से बुनियादी समस्याओं पर बहस को गायब कर दिया है।

 

पूरी बातचीत को सुनने के बाद अम्मा जी बोलीं कि आज की बातचीत का उद्देश्य यह है कि हम तय करे कि हमें क्या चाहिए नायक केंद्रित राजनीति या विषय केंद्रित राजनीति? मुझे दुःख है कि हमारी राजनीति में जनता की समस्याएँ केन्द्र में नहीं रहतीं, नायक केन्द्र में रहता है। इस पर विचार होना चाहिए।


तभी चाची बोल उठीं - अम्मा जी, आपकी बात सही है कि हमारे देश की राजनीति में जनता की समस्याएँ केन्द्र में नहीं रहतीं, नायक केन्द्र में रहता है। यदि हम इस स्थिति का विश्लेषण करें तो ऐसा लगता है जैसे हम अभी भी सामंतवादी तरीके से सोचते हैं। राजशाही चली गई पर सामंतवादी सोच नहीं गई। काश हम विषय केंद्रित राजनीति पर ध्यान देते। ऐसा लगा जैसे सभी औरतों के मुख पर चिंता का भाव उभर आया हो और आज की बातचीत पर यहीं विराम लग गया। 

 

यह कथा-श्रृंखला, पाठको को समर्पित है। आप पढ़े, आनंद लें, टिप्पणी करें, दूसरों को पढ़ाएँ, अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा करें। स्वागत है आपके सुझावों और टिप्पणियों का।

 

कल्पना और तथ्यों के घालमेल से लिखी यह कथा-श्रृंखला रुचिकर लगेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। कथा में दिए सभी चित्र प्रतीकात्मक हैं तथा इंटरनेट से साभार लिए गए हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं: