सोमवार, 12 सितंबर 2022

कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल - 8

कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल

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लेखक - केशव राम सिंघल

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आज की बातचीत में चाची कहने लगी - घर पर सब कह रहे हैं कि इस बार घर-घर तिरंगा अभियान है और स्वतंत्रता दिवस की पिचहत्तरवीं वर्षगाँठ मनाने के लिए पूरा राष्ट्र युद्धस्तर पर जुटा हुआ है। मैंने इनसे कितनी बार कहा कि एक तिरंगा घर के लिए ला दो, पर ये हैं कि सुनते ही नहीं। कहने लगे - मैं गया था बाजार, पर सुना है तिरंगा पोस्ट ऑफिस में मिल रहा है पच्चीस रूपये में। फिर लाए क्यों नहीं? मैंने पूछा तो कहने लगे - अरे पोस्ट ऑफिस तीन किलोमीटर दूर है। मैं सोच रहा था कि आसपास कहीं मिल जाए। पोस्ट ऑफिस आने जाने में ऑटो किराया ही काफी लग जाएगा। फिर आने-जाने में समय भी लगेगा। यहीं आसपास मिल जाए तो ठीक रहेगा। फिर भी मैंने इन्हे चेताते हुए कहा - अच्छा, पर ध्यान रहे जल्द तिरंगा लाना है। हालाँकि आजादी का अमृत महोत्सव के तहत हर घर तिरंगा अभियान ग्यारह अगस्त से मनाया जाना है, पर हर घर तिरंगा अभियान से जुड़े कार्यक्रम दो अगस्त से ही शुरू हो गए हैं। लोगों के घर तिरंगा फहरेगा तो देशभक्ति की भावना जागेगी। ये कहने लगे - मैं सोच रहा था कि आसपास मिल जाता तो ठीक रहता।

 

अम्मा जी ने पूछा - नहीं लाए तिरंगा?

 

चाची बोली - ये शाम को पास के बाजार में गए थे, वहाँ चौराहे पर एक युवा को तिरंगा बेचते देखा। उसे इशारे से अपने पास बुलाया। आते ही उसने एक तिरंगा इनके हाथ में थमाया और कहा - पैंतीस रूपये। इन्होने प्रश्नवाचक लहजे में उस युवा से कहा - पोस्ट ऑफिस में तो पच्चीस रुपये का मिल रहा है? वह बोला - हाँ, साहब, उसका साइज छोटा है। इसका तो पैंतीस ही लगेगा। लेना हो तो बोलो साहब। उसका जवाब सुनकर इनके मन में विचार आया कि ऑटो का किराया और आने-जाने के समय से तो बेहतर है पैतीस रुपये में तिरंगा खरीदना। फिर भी इन्होने उस युवा से कहा - तीस में दे दो। पाँच रूपये तो फिर भी कमाओगे। उसने कहा - नहीं साहब, इसकी फिक्स रेट है। कोई भाव-ताव नहीं। इसके बाद जैसे ही इन्होने उसे पैंतीस रूपये पकड़ाए, वह बोला - आस्था के नाम पर भगवान राम का नाम और देशभक्ति का प्रतीक तिरंगा सब बेचे जाते हैं। ये बड़ा बिजनेस है साहब बड़े लोगों का। हमें तो एक झंडा बेचने पर चार रुपये ही मिलते हैं साहब। दिन भर में पिचहत्तर-सौ झंडे ही बेच पाते हैं तब जाकर तीन-चार सौ की कमाई हो पाती है। कमाते तो वे हैं जो करोड़ों झंडे बनाते हैं साहब या मंदिर के नाम पर करोड़ों रुपये इकट्ठा कर लेते हैं। और यह कहकर वह अगले ग्राहक की तलाश में चला गया और ये चुपचाप उसे जाते हुए देखते रहे।

 


अम्मा जी कहने लगी - चलो, अच्छा ही है कि तिरंगा ले लिया, वैसे पोस्ट ऑफिस की विशेष स्कीम के तहत मात्र पच्चीस रूपये में घर पर मंगाया जा सकता हैं तिरंगा, जिसके लिए ऑनलाइन आर्डर दिया जा सकता है।

 

चाची कहने लगी - यह बात हमें नहीं पता थी अन्यथा हम ऑनलाइन आर्डर ही दे देते। वैसे भी बात पच्चीस रूपये में तिरंगा मंगाने की नहीं है, गूढ़ बात वह है जो वह लड़का इनसे कह गया।

 

अम्मा जी ने कहा - तिरंगा हम घरों में फहराएँगे, पर हमें ध्यान रखना है कि हम सम्मान के साथ तिरंगा फहराएँ और सम्मान के साथ इसे उतारें।

 

चाची बोलीं - अम्मा जी सही कह रहीं हैं। हमें ध्यान रखना है कि तिरंगें का अपमान न हो। तिरंगे को इधर-उधर फेंकने से बचना चाहिए। पंद्रह अगस्त के बाद तिरंगा उतारते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि तिरंगा जमीन पर न गिरे। इसे संभाल कर साइड से फोल्ड करके सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान पर रखना चाहिए। तिरंगे को कभी भी उलटा ना पकड़े। सजावट या किसी वस्तु में तिरंगे का इस्तेमाल न करें। तिरंगे पर कुछ ना लिखें। 

 

राजरानी पूछने लगी - यदि हम तिरंगे झंडे का निस्तारण करना चाहें तो कैसे कर सकते हैं?

 

अम्मा जी ने बताया - तिरंगे का निस्तारण करते समय इसे सम्मानपूर्वक सलामी दी जानी चाहिए। इसे मिट्टी में दफ़नाएँ या निजी स्थान पर इसे जलाएँ।

 

तभी उधर से पड़ौस में रहने वाली भार्गव आंटी निकली तो उन्होंने पूछा कि क्या बातें हो रही हैं। पोस्ट ऑफिस से ऑनलाइन आर्डर देकर तिरंगा मंगाने की बात सुनकर भार्गव आंटी ने कहा कि मैं जयेश को कहती हूँ कि वह तिरंगे का ऑनलाइन आर्डर भेज दे और आसपास सभी को बता भी दे। आपने बहुत ही अच्छी खबर सुनाई है।

 


भार्गव आंटी कहने लगी कि इस बार स्वतंत्रता दिवस पर स्कूल में सुरुचि को बोलना है तो अम्मा जी के पास उसे भेज दूँगी तो अम्मा जी उसकी तैयारी करा देंगी।

 

अम्मा ने कहा - हाँ, भेज देना।

 

तभी सुरुचि भी वहाँ आ गई।

 

सुरुचि ने कहा - अम्मा जी, मैं कल दोपहर में आ जाऊँ आपके पास?

 

अम्मा ने सुरुचि से कहा - हाँ, हाँ, आ जाना।

 

तभी सुरुचि ने कहा - एक बात पूछनी है, 1947 में भारत और पाकिस्तान दो देश बने और फिर 1971 में 26 मार्च को पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बन गया था। जैसे जन-गण-मन हमारे देश का राष्ट्रगान है, वैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश के भी राष्ट्रगान होंगे ना?

 

अम्मा जी ने कहा - हाँ हाँ, तीनों देशों के अपने-अपने राष्ट्रगान हैं। आगे की बात अम्मा जी ने बताई कि हमारे देश का राष्ट्रगान जन-गण-मन गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था और बांग्लादेश का राष्ट्रगान आमार शोनार बाङ्ला (मेरा सोने का बंगाल या मेरा सोने जैसा बंगाल) है, जिसे भी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था। यह बांग्ला भाषा में लिखा गया था तथा गुरुदेव ने इसे बंग भंग के समय सन 1906 में लिखा था, जब मजहब के आधार पर अंग्रेजों ने बंगाल को दो भागों में बांट दिया था।

 

सुरुचि अम्मा जी की बातें ध्यानपूर्वक सुन रही थी तो कह पड़ी - वाह-वाह, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने दो देशों के राष्ट्रगान लिखे। गजब बात बताई अम्मा जी आपने।

 

तभी अम्मा जी कहने लगी - एक बात और बताऊँ, तुझे। शायद ही किसी को मालूम हो। पाकिस्तान का कौमी तराना अर्थात पाकिस्तान का राष्ट्रगान एक हिन्दू शायर ने लिखा था।

 

सभी आश्चर्य से अम्मा जी की तरफ देखने लगे तो अम्मा जी बोली - जिन्ना की इच्छा थी कि कोई हिन्दू शायर पाकिस्तान का कौमी तराना लिखे तो जगन नाथ आजाद ने पाकिस्तान का कौमी तराना (राष्ट्रगान) "ऐ सरज़मीन-ए-पाक" सिर्फ पाँच दिनों में लिखकर दे दिया था। 

 

पाकिस्तान के कौमी तराने वाली बात तो मुझे भी मालूम नहीं थी तो मैंने सोचा कि इस बारे में और जानकारी जुटाने की कोशिश करूँगा। जानकारी खोजने पर मुझे पता चला कि मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के बाद पाकिस्तान में यह माँग उठने लगी थी कि एक हिन्दू जगन नाथ आजाद द्वारा लिखे पाकिस्तान के राष्ट्रगान 'ऐ सरज़मीन-ए-पाक' की जगह दूसरा कौमी तराना हो। सन 1954 में 'पाक सरज़मीन शाद बाद' पाकिस्तान का राष्ट्रगान (कौमी तराना) बना, जिसे हफ़ीज़ जालंधरी ने लिखा था। 

 

यह कथा-श्रृंखला, पाठको को समर्पित है। आप पढ़े, आनंद लें, टिप्पणी करें, दूसरों को पढ़ाएँ, अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा करें। स्वागत है आपके सुझावों और टिप्पणियों का।

 

कल्पना और तथ्यों के घालमेल से लिखी यह कथा-श्रृंखला रुचिकर लगेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

 

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