मंगलवार, 6 सितंबर 2022

कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल - 6

कथा-श्रृंखला - हमारी अम्मा और पड़ौस की चाची की चौपाल

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लेखक - केशव राम सिंघल

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आज अम्मा जी को क्या हो गया है, जब चाहो तब बड़बड़ाने लगती हैं। चाची ने पूछा तो कहने लगीं - कोई राजनीतिक फैसला अंतिम नहीं होता। जो आज है, कल हो या ना हो। जनता को मौक़ा पाँच साल में एक बार मिलता है। बार-बार नहीं। राजनेताओं का उद्देश्य येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करना है। खेद इस बात का है कि जनता के फैसले को ताक में रख जोड़-तोड़ की जाती है।

 

महँगाई की बात पर चाची बोलती हैं - घर-घर गैस सप्लाई करने वाला अपने घर चूल्हा लकड़ी से जलाता है। अधिक कीमतों के कारण उसे सिलेंडर पोसाता नहीं। दिन भर मेहनत करने वाला अपना जीवन बहुत सादगी से बिताता है। पर सादगी से बिताने तो दे सरकार। सरकार ने तो हर वस्तु पर जीएसटी लगा दिया है।  

 

अम्मा जी कहने लगीं - रोज अखबार पढ़ते हैं, ख़बरें सुनते हैं और मन बेचैन हो जाता है कि आखिर देश में क्या हो रहा है। जनता से जुड़े मसलों पर कोई सार्थक बहस या निर्णय नहीं होता दिखता। आम आदमी अपने आपको ठगा सा महसूस करता है।

 

शैलबाला बोली - आप लोग सही कहते हो। पिछले दिनों महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ वह सब सामने है। दलबदल कानून भी अब दलबदल रोकने में नाकाम साबित हो रहा है।

 


फिर बात का अचानक विषयांतर हो गया। चाची पिछले दिनों अपने पीहर गईं थी। वहीं से इस बार तलकाडु होकर आईं थी। बताने लगीं - तलकाडु पंचलिंग दर्शन का पवित्र स्थान है। भगवान शिव के मंदिर हैं। कह रहीं थीं - हिमालय में केदारनाथ से लेकर भारत के सबसे दक्षिणी बिंदु रामेश्वरम तक पूरे भारत में 12 ज्योतिर्लिंग फैले हुए हैं। शिव के प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग के रूप में काशी या बनारस की तरह दक्षिणी काशी तलकाडु गाँव शिवक्षेत्र के लिए प्रसिद्ध है। यह मैसूर से 58 किमी तथा बेंगलुरु से लगभग 135 किमी दूर है। यह 1868 ईस्वी तक तालुक केंद्र में से एक रहा है। अब यह मैसूर जिले के टी. नरसीपुर तालुक के अंतर्गत एक गाँव है। भगवान शिव पांच लिंगों के रूप में पवित्र रूप में निवास करते हैं।

 

सभी उनकी बातें सुन रहे थे। बीच में गुल्लू ने टोका कि चाची बस मंदिर देखा। चाची नाराज होकर बोलने लगीं कि हम तुम्हें ऐतिहासिक बातें बताते हैं और बीच में टोका-टाकी मत किया करो।

 

फिर वे आगे कहने लगी - तलकाडु में रेत मंदिरों को ढकती है। पत्थर के खंभे, आधार पर वर्गाकार और अबेकस के नीचे एक पहिये में फिट होने के लिए, चारों ओर बिखरे पड़े हैं। यहाँ स्थित पत्थलेश्वर, मारुलेश्वर, अर्केश्वर, विद्येश्वरा और मल्लिकार्जुन मंदिरों के पाँच लिंग शिव के पाँच चेहरों का प्रतिनिधित्व करते हैं, पंच पथ बनाते हैं और प्रसिद्ध हो गए हैं। इन पाँच शिव मंदिरों के सम्मान में, हर बारह साल (कभी-कभी पंद्रह साल) में एक बार पंचलिंग दर्शन नामक मेला आयोजित किया जाता है। कार्तिक मास की अमावस्या के दिन जो सोमवार को आती है, उस समय चन्द्रमा वृश्चिक कुहू योग और विशाखा नक्षत्र होता है। पिछले वर्षों में 1906, 1908, 1915, 1925, 1938, 1952, 1959, 1966, 1979, 1986, 1993, 2006, 2009, 2013 में हुए पंचलिंग दर्शन 2020 में फिर से हुए तालकाडु में चार दिशाओं में बहने वाली कावेरी नदी क्रमशः पूर्व वाहिनी, पश्चिम वाहिनी, उत्तर वाहिनी और दक्षिण वाहिनी कहलाती है।

 

सभी चाची की बात गौर से सुन रहे थे। वे बता रहीं थी - विभिन्न दिशाओं में दिखने वाली  कावेरी नदी के किनारे की रेत इस नदी को शानदार विशालता प्रदान करती है। हर साल जब सूर्य तुला राशि में प्रवेश करता है तो गंगा माता कावेरी में शामिल होकर तीर्थयात्रियों को आशीर्वाद देती हैं। इसलिए हर साल शिव के भक्त आते रहते हैं। आजकल लोग बारह महीने इस स्थान पर जाते हैं, मंदिरों में पूजा करते हैं, पवित्र नदी में स्नान करते हैं और पारम्परिक गोल नाव की सवारी का भी आनंद लेते हैं। मुझे परिवार के साथ 31 जुलाई 2022 श्रवण शुक्ल माह की तीसरी तिथि को इस पवित्र स्थान पर पवित्र नदी और मंदिर दर्शन का मौक़ा मिला। हमने यहाँ का पारम्परिक भोजन (रसम, साम्भर, चावल, रोटी, सब्जी, दही आदि) केले के पत्तों में खाया और पारम्परिक गोल नाव में सैर भी की। हमें तो तलकाडू स्थित मंदिर में जाकर बहुत ही अच्छा लगा। कुछ देर के लिए तो हम वहाँ बैठ गए तो ऐसा लगा कि हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा गई हो। मंदिर भी एक तरह से अस्पताल ही हैं, जहाँ व्यक्ति का मानसिक और आध्यात्मिक इलाज होता है और इसका सकारात्मक प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। हम तो जब भी मंदिर जाते हैं तो वहाँ शान्ति से कुछ देर के लिए जरूर बैठते हैं।

 


इनु बोली - वाह चाची वाह। आपने फोटो खिंचवाए या नहीं।

 

चाची बोली - हाँ, हाँ, खिंचवाएं हैं। फिर वे अपने मोबाईल में फोटो दिखाने लगीं तो इनु बोली कि चाची आप भी भीड़ में कैसे दिखाओगी सबको फोटो। व्हाट्सएप्प ग्रुप पर या अपने फेसबुक पर शेयर कर दो ना।

 

चाची बोली - अच्छा, यही ठीक रहेगा।

 

फिर चाची अम्मा जी की तरफ मुड़कर बोलीं - आप भी तो कहीं गई थीं ना पिछले दिनों?

 

अम्मा जी बताने लगीं - मैं गई थी अमृतसर और अटारी-वाघा बॉर्डर पर। जब मैं बॉर्डर पर पहुँची तो मुझे बताया गया कि आगे सड़क जाती है लाहौर और पीछे अमृतसर, फिर हँसते हुए जिसने बताया उसने कहा - सड़क कहीं नहीं जाती, लोग सड़क पर आते-जाते हैं, आगे है लाहौर और पीछे अमृतसर। लाहौर-अमृतसर छप्पन किलोमीटर, सड़क कभी इधर मुढ़ती कभी उधर मुढ़ती, कभी बल खाती कभी सीधी जाती, चुपचाप पड़ी रहती, चुपचाप देखती रहती, चुपचाप सहती रहती। इस सड़क का इतिहास बहुत पुराना है। ग्रैंड ट्रंक रोड कहो या जी टी रोड, किसी जमाने में कही जाती थी सड़के--आज़म या बादशाही सड़क, दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी और मुख्य सड़क, जिसे कहा जाता था उत्तरापथ।

 

वे बता रही थीं कि गाजियाबाद में इसी ऐतिहासिक सड़क के किनारे बचपन में वे कई बार खेली, कूदी और दौड़ी। अम्मा जी ने बताया कि गाजियाबाद में जीटी रोड के किनारे उनका पीहर था। यह सड़क बांग्लादेश से पूरे उत्तर भारत और पाकिस्तान के पेशावर से होती हुई अफ़ग़ानिस्तान के क़ाबुल तक जाती है रास्ते में पड़ते हैं अमृतसर और लाहौर। मौर्यों ने तक्षशिला से पाटलिपुत्र तक राजमार्ग बनवाया, शेरशाह सूरी ने इसकी लम्बाई बढ़ाई, और साथ ही दूरी नापने के लिए जगह-जगह मील के पत्थर लगवाए, छायादार वृक्ष लगवाए, राहगीरों के लिए सरायें बनवाईं और चुंगी की व्यवस्था की। इस सड़क ने बहुत कुछ देखा है, विभाजन का दर्द सहा है, घुड़सवारों की टापों की आवाज, व्यापार, डाक-व्यवस्था और बहुत कुछ संभव हो सका इसी सड़क के कारण। कहा जाता है कि ग्रैंड ट्रंक रोड के निर्माण के लिए शेरशाह सूरी ने पुख़्ता भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण करवाया था। आज इसे भारत में नेशनल हाइवे-2 या एनएच- के नाम से जाना जाता है।

 

अम्मा जी ने बताया - अटारी-वाघा बॉर्डर को पर्यटकों के लिए खोला जाता है। यहाँ प्रतिदिन एक समारोह का आयोजन होता है जिसका नाम बीटिंग रिट्रीट कहते हैं। इस समारोह में भारत और पाकिस्तान का झंडा एक साथ सम्मानपूर्वक उतारा जाता है। यह समारोह प्रतिदिन शाम में सूर्यास्त से पहले आयोजित होता है। इस समारोह को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। हमने भी इस समारोह को देखा।

 

पड़ौस में रहने वाली शैलबाला ने बताया - पिछले दिनों मुझे परिवार सदस्यों के साथ लेपाक्षी गाँव जाने का मौक़ा मिला। लेपाक्षी आंध्र प्रदेश राज्य के अनंतपुर में स्थित एक छोटा सा गाँव है। यह गाँव अपने कलात्‍मक मंदिरों के लिए जाना जाता है जिनका निर्माण सोलहवीं शताब्‍दी में किया गया था। विजयनगर शैली के मंदिरों का सुंदर उदाहरण 'लेपाक्षी मंदिर' है। विशाल मंदिर परिसर में भगवान शिव, भगवान विष्‍णु और भगवान वीरभद्र को समर्पित तीन मंदिर हैं। भगवान शिव नायक शासकों के कुलदेवता थे। लेपाक्षी मंदिर में नागलिंग की संभवत: सबसे बड़ी प्रतिमा स्‍थापित है। भगवान गणेश की मूर्ति भी यहाँ आने वाले सैलानियों का ध्‍यान आकर्षित करती है।

 


सभी शैलबाला की बात सुने जा रहे थे। उसने बताया कि लेपाक्षी मंदिर सत्तर खंभों पर खड़ा है, लेकिन जानकर हैरानी हुई क‍ि मंदिर के  खम्बों को सीमेंट या चूने से स्थापित नहीं किया गया है। इन्हीं खम्बों में से एक खम्बे के नीचे से हमने एक तरफ से कपड़ा डाल कर दूसरी तरफ से निकाल लिया, जिससे पता चला कि एक खम्बा हवा में झूलता रहता है। यही वजह है कि इस मंदिर को झूलते हुए मंदिर (हैंगिंग टेंपल) के नाम से भी जाना जाता है। लेपाक्षी मंदिर के झूलते हुए खंभे को लेकर एक पारम्परिक कहावत चली रही है। कहा जाता है क‍ि जो भी श्रद्धालु लटके हुए खंबे के नीचे से कपड़ा निकालते हैं। उनके जीवन में फिर क‍िसी भी बात की दु:-तकलीफ नहीं होती। परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। लेपाक्षी मंदिर में देखने लायक कई चीजे है जो कि कलात्मक दृष्टि से बेहद उत्कृष्ट है। मान्यता है कि लेपाक्षी गाँव रामायणकालीन वही जगह है जहाँ रावण से अधर युद्ध के पश्चात घायल हो जटायू गिरा था। सीता को तलाशते हुए जब भगवान राम इस स्थान पर पहुँचे तो उन्होंने घायल पक्षी को देख कर कहा लेपाक्षी यानी कि उठो पक्षी। लेपाक्षी एक तेलगु शब्द है। पहाड़ी की चोटी पर एक जटायु की मूर्ति है, जिसे कुछ दूरी से देखने के लिए जटायु पार्क से पहाड़ी पर जा सकते हैं। जटायु पार्क का प्रवेश शुल्क दस रूपये प्रति व्यक्ति है। लेपाक्षी गाँव में मुख्य सड़क पर एक ही पत्थर से बनी विशाल नंदी प्रतिमा है जो की 8. 23 मीटर (27 फ़ीट) लम्बी, 4.5 मीटर (15 फ़ीट) ऊंची है। यह एक ही पत्थर से बनी नंदी की विशाल प्रतिमा है। 

 

सभी तन्मयता के साथ बातें सुन रहे थे, फिर एक ने कहा - ऐतिहासिक स्थानों के दर्शन करने से लाभ ही लाभ है। एक तो नई चीजों की जानकारी मिलती है और साथ ही इस मन-मस्तिष्क भी फ्रेश हो जाता है।

 

यह कथा-श्रृंखला, पाठको को समर्पित है। आप पढ़े, आनंद लें, टिप्पणी करें, दूसरों को पढ़ाएँ, अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा करें। स्वागत है आपके सुझावों और टिप्पणियों का।

 

कल्पना और तथ्यों के घालमेल से लिखी यह कथा-श्रृंखला रुचिकर लगेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

 

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